मंगलवार, 27 नवंबर 2012

फूड कूपन योजना में धांधली

टेंडर की शर्तो में बदलाव कर कंपनियों ने लगाई करोडों की चपत विनोद उपाध्याय
भोपाल। प्रदेश सरकार की लापरवाही और कंपनियों की चालाकी के कारण 1400 करोड़ रुपये की फूड कूपन योजना में करोड़ों की चपत लगाने का मामला सामने आया है। फूड कूपन योजना में हुई धांधली ने सरकार की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़ा कर दिया है। योजना के अनुसार शुरुआत में प्रदेश में एक करोड़ 55 लाख कार्ड बनने हैं। इसलिए सरकार का बजट भी करीब 1400 करोड़ रुपए का है। केन्द्र सरकार की इस महत्वपूर्ण योजना के तहत प्रदेश सरकार को पांच साल में उक्त राशि खर्च किये जाने हैं। आरोप है कि राज्य सरकार ने निजी कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए एग्रीमेंट में टेंडर की शर्तों को बदल दिया। मध्य प्रदेश में 22 हजार से ज्यादा राशन की दुकानें चलती हैं। अभी तक इन दुकानों पर पुराने राशन कार्ड चलते हैं, लेकिन सरकार अब बार कोडेड राशन कार्ड और फूड कूपन बनवा रही है। मकसद ये है कि जिसके हिस्से का अनाज है वो उसी को मिले। दुकानदार कहीं और सब्सिडी का राशन बेच नहीं पाए। लेकिन बेईमानी रोकने के लिए बनी ये योजना शुरू होने से पहले ही विवादों से घिर गई है। राज्य में फूड कूपन योजना का काम 3 कंपनियों को दे भी दिया गया है,लेकिन तफ्तीश में चौंकाने वाली जानकारी मिली हैं। दरअसल तीन आला आईएएस अफसरों की कमेटी ने तीनों कंपनियों के साथ हुए समझौते पर सवाल उठा दिया है। वजह ये क्योंकि जिन शर्तों पर टेंडर निकाला गया और जिन शर्तों पर समझौता हुआ। उसमें बहुत फर्क है। अफसरों की कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि टेंडर के मुताबिक गरीबी रेखा से ऊपर के लोगों को बार कोडेड राशन कार्ड 250 रुपए में दिया जाना था, लेकिन 3 कंपनियों के साथ जब इस पर एग्रीमेंट हुआ तो ये रकम बढ़कर 281 रुपए हो गई। टेंडर में ये लिखा था कि कार्ड में फेरबदल की फीस भी कार्ड की कीमत से कम होगी, लेकिन जब एग्रीमेंट हुआ तो इसकी कीमत भी 281 रुपए रख दी गई। टेंडर के दौरान ये कहा गया कि सारे सर्विस टैक्स कंपनी चुकाएगी, लेकिन जब समझौता हुआ तो ये लिखा गया कि सर्विस टैक्स या तो सरकार चुकाएगी या फिर जनता। तीन कंपनियों से एग्रीमेंट के बाद सरकार ने अपने ही खजाने को नुकसान का इंतजाम कर लिया। यही नहीं जिन 10 जिलों में ये योजना शुरू हुई उसमें भी गरीबी रेखा के ऊपर रहने वालों की तादाद में इजाफा और नीचे रहने वालों की संख्या कम होने की बात सामने आ रही है। होशंगाबाद जिले में तो इसी वजह से फूड कूपन बनाने का काम ही रोक दिया गया है। होशंगाबाद के फूड कूपन योजना प्रभारी अधिकारी ए के उईके के मुताबिक तुलनात्मक रूप से बीपीएल परिवारों की संख्या फुड कूपन योजना में कम हुई है। फिलहाल योजना बंद है। शासन के निर्देशानुसार आगे कार्रवाई होगी। राज्य में गरीब भले बढ़े हैं, लेकिन सरकारी योजनाओं में गरीबों की तादाद कम हो रही है। इसकी वजह की ओर भी तीन आईएएस अधिकारियों की कमेटी इशारा कर रही है। रिपोर्ट के मुताबिक टेंडर गरीबी रेखा से नीचे रह रहे लोगों को बार कोडेड कार्ड मुफ्त दिया जाना था। साल भर के लिए फूड कूपन की कीमत थी 131 रुपए, जिसका खर्चा सरकार को ही उठाना था यानि गरीबी रेखा से नीचे रह रहे लोगों को कार्ड बांटने में कंपनी को फायदा कम था। ऐसे में सवाल ये कि क्या इसी वजह से गरीबों की तादाद कम हुई। कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक बीपीएल परिवारों के मामले में भी टेंडर और एग्रीमेंट की शर्तों में काफी फर्क है। टेंडर में तय किया गया था कि 550 सर्विस सेंटर बनेंगे। ये भी लिखा था कि हार्डवेयर की सारी जिम्मेदारी कंपनी की होगी लेकिन कंपनियों से समझौते के वक्त इस बारे में कुछ तय नहीं किया गया। उल्टे सर्विस सेंटर में सारे इंतजाम की जिम्मेदारी अब सरकार पर ही आ गई है। टेंडर के दौरान ये भी तय किया गया कि इस योजना का प्रचार कंपनी करेगी, लेकिन एग्रीमेंट के वक्त ये जिम्मेदारी सरकार पर डाल दी गई यही नहीं एग्रीमेंट के बाद अब सरकार को करार रद्द करने का अधिकार भी नहीं है। मतलब ये कि कंपनी अगर अपना काम सही नहीं कर पाई तो सरकार उसका कॉन्ट्रेक्ट नहीं रद्द कर पाएगी। किसी दूसरी कंपनी को काम देने का अधिकार भी पहले वाली कंपनी के ही पास है। बड़ी बात ये कि प्रोजेक्ट कितने वक्त में पूरा होगा। इसकी भी कोई समय सीमा नहीं रखी गई है।

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