बुधवार, 21 अप्रैल 2010

आईपीएल खेल या खिलवाड़

हम ऐसे पूंजीवाद को पिछले बीस सालों से बढ़ावा दे रहे हैं जो लोकतंत्र और राजनीति को फालतू और विध्वंसक बता कर पैसे को सबसे महत्वपूर्ण बताने में लगा हुआ है। आईपीएल (इंडियन प्रीमियर लीग) इस कड़ी का सबसे बड़ा उदाहरण है। देश की लगभग एक अरब जनता की रग-रग में बसे क्रिकेट पर ग्लैमर का तड़का लगाकर पूंजीवाद को बढ़ावा देने का जो खेल खेला जा रहा हैै वह असली भारत से परे लगता है। वहीं जिसे कभी खेलों का राजा और राजाओं का खेल कहा जाता था वह क्रिकेट अब सटोरियों-जुआरियों के खेल के रूप में अपनी पहचान बनाने में व्यस्त है। हालांकि क्रिकेट में शर्त और सट्टे का इतिहास बहुत पुराना है, लेकिन आईपीएल ने इसे संजीवनी दे दी है।
आईपीएल की चकाचौंध भले ही कुछ बुद्धिजीवियों को साल रही हो, लेकिन इसने केन्द्र और राज्यों की सरकारों को बहुत ही राहत पहुंचाई है। महंगाई, आतंकवाद और नक्सलवाद के इस दौर में लोग अपनी समस्या भूल बैठे हैं और आईपीएल में खेल रही टीमों और खिलाडिय़ों के रन, विकेट, कैच और जीत-हार का हिसाब लगाने में व्यस्त हैं।
आईपीएल में हो रहे शाही खर्चे और चकाचौंध को देखकर तो यही लगता है कि सचमुच में भारत सोने की चिडिय़ा है, जबकि हकीकत यह है कि इस देश में दरिद्रों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। एक ओर इस देश की अधिकांश जनता दो जून की रोटी जुगाडऩे में सारा श्रम खर्च कर देती है वहीं देश की अधिकांश रियाया भुखमरी की शिकार है, ऐसे में चंद अमीरों की पिपासा को शांत करने के लिए दूधिया रोशनी में भद्र पुरूषों के खेल 'क्रिकेटÓ पर चियर्स लीडर्स का तड़का लगाकर जो तमाशा हो रहा है वह महात्मा गाँधी का सपना नहीं हो सकता। महात्मा गांधी को आदर्श मानकर राजनेता आज भी इस देश में रामराज स्थापित करना चाह रहे हैं, पर रामराज तो स्थापित नहीं हो पाया उसकी जगह रोमराज जरूर स्थापित हो गया है।
इस देश के गरीबों की हालत अफ्रीका के सब-सहारन देशों के गरीबों जैसी हो चुकी है। इस देश में 77 फीसदी आबादी 20 रुपये प्रतिदिन की आय पर निर्वाह के लिए मजबूर है। यह कोई कपोल कल्पना नहीं बल्कि सरकार द्वारा नियुक्त डॉ. अर्जुन सेनगुप्ता समिति की रिपोर्ट इस विदारक सत्य का साक्ष्य देती है। जिस देश में आजादी के 63 साल बाद 77 फीसदी आबादी भूख की कगार पर खड़ी हो वहाँ आईपीएल खेल की जगह खिलवाड़ ही तो साबित हो रहा है।
देश के ग्रामीण अंचलों में आज भी लोगों को महज चार से छ: घंटे भी बिजली नहीं मिल पाती है, तब फिर आईपीएल में खर्च होने वाली बिजली को बचाकर उसे देश के ग्रामीण अंचलों के बच्चों की पढाई और कृषि पैदावार के लिए क्यों नहीं दिया जाता है। बात बात पर न्यायालयों में जाकर जनहित याचिका लगाने वाली गैर सरकारी संस्थाओं की नजरों में क्या यह बात नहीं आई। यदि आई भी होगी तो उन्हें इस मामले में अपने निहित स्वार्थ गौड ही नजर आ रहे होंगे तभी उन्होंने भी खामोशी अख्तियार कर रखी है।
ललित मोदी को शत-शत नमन जिन्होंने ग्लैमर के साथ क्रिकेट को सफल कारोबार का रूप दे दिया। भले भारत सरकार के नवरत्न बाजार में पिट गए, आईपीएल का शेयर कुलांचे भर रहा है। धर्मशाला तो छोटा है पर कानपुर, नागपुर, अहमदाबाद, इंदौर जैसे महानगरों को पछाड़ कोच्चि और पुणे बिक गए। बिके भी तो हल्के में नहीं, दोनों की कीमत (32 अरब रुपए) पिछली आठ टीमों के कुल जमा दाम से भी अधिक है। माननीय मोदी जी ने उम्मीद जताई है कि दोनों फ्रेंचाइजी बढिय़ा कारोबार करेंगे। उनके मुंह से ये शब्द नहीं निकले कि आईपीएल की ये नई टीमें खेल की प्रतिस्पर्धा को नई उंचाइयां देंगी या क्रिकेट में इनका योगदान उल्लेखनीय रहेगा। खेल को बिजनेस का शक्ल देना इसी को कहते हैं। वैसे भी आईपीएल में सब कुछ है, फिल्मों के नायक हैं, तारिकाएं हैं, छम-छम करतीं चीयर्स लीडर हैं, सेलिब्रिटी हैं, शराब है, शबाब है लेट-नाइट पार्टी है, असल में क्रिकेट तो बस नाम का है।
बिजनेस की हॉस्पिटेलिटी देखिए एक केंद्रीय मंत्री की पुत्री ने आईपीएल प्रेमियों के लिए एक पैकेज दिया है 22 लाख का। उद्घाटन समारोह, सेमी फाइनल-फाइनल छोड़, इसमे सभी 56 मैचों के प्रवेश टिकट, हवाई यात्रा और पांच सितारा खान-पान सुविधाओं के साथ ही पोस्ट आईपीएल पार्टी का खर्च शामिल है। अगर आप सभी मैच में शामिल नहीं होना चाहते तो एक मैच के लिए एक व्यक्ति का रेट है 50 हजार रुपए। सेमी फाइनल और फाइनल के अलग रेट हैं 1.42 लाख रुपए प्रति व्यक्ति। बालीवुड की ताजातरीन नायिकाओं और सेलिब्रिटी से सजी पार्टी की रौनक को देखते हुए यह मूल्य कम ही प्रतीत होगा। दिल्ली में हुई पोस्ट आईपीएल पार्टी की जो झलक अखबारों में दिखी उसमे हरभजन और युवराज सरीखे खेल से अधिक आधुनिकाओं के साथ आमोद-प्रमोद के लिए चर्चा में रहे। इस पार्टी के एक्सक्लूसिव टिकट का घोषित मूल्य था 40 हजार रुपए। जब मैच की एक-एक गेंद तक बिक चुकी हो और चौका-छक्का कहां से लगा कहां गया यह देखने-समझने से पहले विज्ञापन परोस दिए जाते हों देर रात की पार्टी निशुल्क किस खुशी में हो?
आईपीएल सिर्फ और सिर्फ खेल होता तो शायद आयोजक कुछ मूल बातों पर जरूर ध्यान देते। पहले क्रिकेट मैच और बड़े टूर्नामेंटों की तारीखें तय करते समय आयोजक ध्यान रखते थे कि उस दौरान बोर्ड की परीक्षाएं न हों या उसके आगे पीछे होली-दिवाली जैसे त्योहार न पड़ रहे हों। मंशा कि छात्रों की पढ़ाई में खलल न पड़े या फिर दर्शक समूह को टीवी के सामने बिठाने में सहूलियत रहे। आज देश में अगर क्रिकेट पूजा जा रहा है तो उसके पीछे हैं करोड़ों की संख्या में दर्शक लेकिन आईपीएल कमाने में दर्शक हित कहीं पीछे छूट रहा है। पिछली बार जब चुनाव के समय सरकार ने सुरक्षा देने में ना नुकर की तो ललित मोदी आईपीएल को ले उड़े दक्षिण अफ्रीका। चिदंबरम् जैसे प्रोफेशनल गृहमंत्री गुस्से में कहने से नहीं चूके कि आईपीएल सिर्फ खेल नहीं, खेल से बढ़कर भी कुछ है। चुनाव में माना गया कि आईपीएल ने नेताओं की जनसभा में भीड़ कम कर दी। इन हालात में यह अपेक्षा करना कि आयोजक बोर्ड परीक्षाओं को माफी देंगे बेकार है। वह भी मार्च-अप्रैल में जब आईसीएसई, सीबीएसई समेत सभी राज्यों की बोर्ड परीक्षाएं होती हैं और आईपीएल का तमाशा पूरे शबाब पर होता है। बच्चे परीक्षा दें कि आईपीएल देखें? अभिभावकों के दिमाग में परीक्षा है तो बच्चों का ध्यान आईपीएल पर। कौन कहे, किससे कहे कि कृपया पूरे साल तीन टाइम क्रिकेट का डोज न दें, गरमी-बरसात भूल गए, दिन-रात का विभेद मिटा डाला कम से कम बच्चों की परीक्षा तो बख्श देते। आईपीएल वालों को सरकार समझा नहीं सकती तो कम से कम बोर्ड से परीक्षा की तिथियां ही मोदी से पूछ कर तय करने को कहे।
आईपीएल का तमाशा साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है। अभी 45 दिन में 60 मैच हो रहे हैं अगले साल से 94 होने हैं यानी कुछ नहीं तो दो महीने का उत्सव। आयोजकों के लिए मार्च-अप्रैल का समय ही शायद मुफीद बैठता है क्योंकि आईसीसी के कैलेंडर में यही समय खाली रहता है। और बीसीसीआई अब इतनी हैसियतदार है कि आईसीसी का कैलेंडर अपने हिसाब से बना सके और बदल सके। आईपीएल के आगे सभी देशों के खिलाड़ी और क्रिकेट बोर्ड नत मस्तक हैं आखिर असली ब्रेड-बटर तो इसी में है। सौजन्य बीसीसीआई, एक यही क्षेत्र है जहां हम शान से कह सकते हैं कि क्रिकेट में वही होता है जो भारत चाहता है। बाकी तो हमारी पड़ोस तक में नहीं चलती, चीन आंखें तरेरता है, पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा, नेपाल-बांग्लादेश सरीखे भी चिढ़ाने के लिए चीन की तरफ हाथ बढ़ाने लगते हैं। आईपीएल की माया देखिए, इस 45 दिन में देश की सारी समस्याएं उडऩ-छू हो गईं। हम भूल गए कि गरीब देश के रहने वाले हैं, नहीं याद रहा कि महंगाई से रसोई तंग है, कि पवार की कृपा से गरमी शुरू होते दूध का भाव 30 रुपए लीटर हो गया, कि महंगाई रोकने का वादा करके केंद्र ने पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ा दिए। महंगाई की आड़ में आरबीआई ने होम और कार लोन महंगा करने की जमीन बना दी, गैस-केरोसिन के दाम बढ़ाने की तैयारी है। इसी हल्ले में दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार ने बजट में रसोई गैस से सब्सिडी हटा ली, अब प्रति सिलिण्डर 40 रूपए अधिक देने होंगे। फिर भी हम गाएंगे जय हो।
आईपीएल को मोदी ने ऐसा खेल बना दिया है जिसका नाम लेने के लिए भी पैसा वसूल करना चाहते हैं, टीम बनने से जो खरीद बिक्री का खेल शुरू होता है वह खेलने और देखने तक जारी रहता है। यह सवाल दीगर है कि ऐसे में क्या इसे खेल कहा जाए या फिर इसे एक जुए की उपाधि देकर इसका तिरस्कार कर दिया जाए? लेकिन ललित मोदी का पैसे कमाने का यह अति उत्साह उनके अपने ही ब्रेन चाईल्ड आईपीएल के लिए अब जहर की घुट्टी बनता जा रहा है। आईपीएल की एक भी बाईट समाचार चैनलों पर नहीं जानी चाहिए यह जिद्द आईपीएल के कमिश्नर ललित मोदी की ही थी क्योकि उन्होंने सेट मैक्स से इतना पैसा ले लिया था कि सेटमैक्स आईपीएल का एक भी फुटेज सिवाय अपने चैनल के कहीं और दिखाना बर्दाश्त नहीं कर सकता था। यहां तक कि खबर के नाम पर समाचार चैनलों पर भी आईपीएल की फुटेज नहीं दिखाई जा सकती। इसका परिणाम यह हुआ कि टेलीवीजन चैनलों ने आईपीएल के कवरेज का ही बहिष्कार कर दिया।
न्यूज चैनलों के लिए भी यह घाटे का सौदा था। इसलिए दोनों ओर से पैच-अप का खेल हुआ और पहले मैच के दिन दोनों ओर से एक सहमति बनी कि एक दिन में एक न्यूज चैनल 5.5 मिनट से अधिक का फ्रेश फुटेज नहीं दिखाएगा। इसके साथ ही आईपीएल ने एक शर्त और लादी कि चीयर लीडर्स को डेढ़ मिनट से ज्यादा का फुटेज न्यूज चैनल नहीं दिखा सकते। इतनी शर्तों के बाद भी न्यूज चैनलों ने बहिष्कार वापस ले लिया और भिक्षा में मिली फुटेज से ही काम चलाने का फैसला कर लिया।
ऐसे ही वक्त में इंटरनेट कनेक्शन का इस्तेमाल करने वालों के लिए गूगल के साथ मिलकर यूट्यूब पर आईपीएल का टेलिकास्ट करने का करार कर लिया। 19 जनवरी को हुए इस करार के तहत यू-ट्यूब को यह अधिकार दिया गया कि वह थोड़ी देर के अंतर पर मैच को सीधा प्रसारित कर सकता है। हालांकि यह रहस्य भेदन नहीं हुआ कि गूगल और आईपीएल ने यह डील कितने में किया लेकिन गार्जियन अखबार ने यह खबर जरूर प्रकाशित की थी कि यूट्यूब पर प्रसारण से जो भी विज्ञापन की कमाई होगी वह दोनों कंपनियों में बंटेगी। इंटरनेट कंपनी गूगल ने आईपीएल के जरिए बड़ा दांव लगाया था क्योंकि भारत में प्रतिमाह उसके 3 करोड़ 10 लाख से अधिक यूनिक यूजर्स हैं तो कि किसी भी सेटेलाइट बेस्ड चैनल से अधिक बड़ा दर्शक वर्ग है। लेकिन गूगल और मोदी के इस दांव को भारत की इंटरनेट स्पीड ने फुस्स कर दिया। भारत में औसत स्पीड 100 एमबीपीएस है जो कि वीडियो दिखाने में भी पांच सेकेण्ड से अधिक की बाईट नहीं दिखा पाता और बफर करता है। फिर लाईव टेलीकास्ट के लिए कम से कम 1 एमबीपीएस की स्पीड तो होनी ही चाहिए, ललित मोदी की चालाकी और गूगल का दांव दोनों ही उल्टा पड़ गया है।
हालांकि एयरटेल ने अपने ग्राहकों को आफर किया है कि वे चाहें तो आईपीएल के लिए उसके 2 एमबीपीएस के विशेष पैकेज को ले सकते हैं। यहां भी एयरटेल आईपीएल के जरिए अपनी कमाई का रास्ता खोल रही है लेकिन सामान्य दर्शकों के लिए जो आईपीएल का के्रज था वह तो पूरी तरह से प्रभावित हो ही गया। धुर पूंजीवादी मानसिकता ऐसे ही प्रभाव डालती है। जब आईपीएल का गठन हुआ था तब विद्वानों ने यह कहने में संकोच नहीं किया था कि यह खेल नहीं तमाशा है जो पूरी तरह से पूंजी के प्रभाव में है। आईपीएल खेल न होकर पूंजी का ऐसा झमेला बन गया है जिसके पास शायद ही कोई स्वस्थ दिमाग वाला व्यक्ति फटकना चाहे।
भारत में सबसे लोकप्रिय खेल क्रिकेट और मनोरंजन का पसंदीदा जरिया है बॉलीवुड। और जब दोनों का मिलन हो रहा हो तो धूम और पैसों की बरसात होनी तो तय ही है। आईपीएल लीग में खिलाडिय़ों, कंपनियों, मालिकों के वारे न्यारे हो रहे हैं। भले ही क्रिकेट को परंपरागत स्वरूप में चाहने वाले आईपीएल को महज 'ग्लैमर इवेंट या 'सर्कस कह कर खारिज करें लेकिन सच तो यह है कि आईपीएल का बुखार डेढ़ महीने के लिए भारत और भारत से बाहर भी लोगों को अपनी गिरफ्त में लेने लगा है। आईपीएल के पहले 14 मैचों में ही इसे टीवी पर देखने वाले दर्शकों की संख्या बढ़ कर 10 करोड़ से ज़्यादा हो गई है। आईपीएल पहला ऐसा खेल आयोजन बन गया है जो यूट्यूब पर भी देखा जा सकता है यानी दर्शकों की संख्या और बढ़ी। ब्रैंड फिनेन्स कंपनी की मानें तो आईपीएल की कीमत तीसरे साल में ही आसमान छू रही है। आईपीएल ब्रैंड की कीमत 4 अरब डॉलर से भी ज़्यादा है यानी करीब 18 हजार करोड़ रूपये, अपने तीसरे साल में ही आईपीएल खेल की दुनिया में छठा सबसे कीमती इवेंट बन गया है। बीसीसीआई को साल 2010 में होने वाला मुनाफा बढ़ कर 700 करोड़ रुपये हो जाने की उम्मीद है जो पिछले साल से 25 फीसदी ज़्यादा है। आईपीएल से कुछ ही पहले शुरुआत हुई थी इंडियन क्रिकेट लीग की लेकिन उस पर बीसीसीआई और आईसीसी की मुहर न लगी थी। आयोजन सफल नहीं रहा..खिलाड़ी बागी कहलाए, मगर आईपीएल में ताकत है बीसीसीआई की..तड़का बॉलीवुड का और तजुर्बा खिलाडिय़ों का।
आईपीएल टीम मालिकों के लिए कमाई का मुख्य जरिया स्पॉन्सरशिप और प्रमोशन है। लोकप्रिय टीमों से पैसा बनाने की कोशिश इस हद तक है कि खिलाडिय़ों के कपड़ों, उनके जूतों, हेलमेट, बैटिंग ग्लव्स, पैड तक बिकाऊ हैं। सिर्फ खिलाडिय़ों के चेहरे ही बचे हैं। रियल एस्टेट में भारत की बड़ी कंपनी डीएलएफ ने आईपीएल का हेडलाइन स्पॉन्सर बनने के लिए पांच करोड़ डॉलर चुकाए हैं। जापान की सोनी एंटरटेनमेंट वर्ल्ड स्पोर्ट ग्रुप के साथ अगले दस साल के लिए आईपीएल के प्रसारण अधिकार खऱीदने के लिए एक अरब डॉलर से ज़्यादा की कीमत दे चुकी है।
पहले सीजन में मुंबई इंडियंस और रॉयल चैलेन्जर्स बैंगलोर सबसे महंगी टीमों में आंकी गई। करीब 440 करोड़ रुपये में खऱीदी गई दोनों टीमें। लेकिन इस बार कोच्ची और पुणे की टीमों के लिए लगने वाली बोली ने तो सबकी नजरें आईपीएल पर टिका दी। पुणे के लिए सहारा ने 1700 करोड़ रुपये दिए तो कोच्ची के लिए रान्देवू गु्रप ने 1530 करोड़ रुपये से ज़्यादा की कीमत चुकाने को तैयार था। टीमों के मालिक अपनी कंपनियों के प्रचार करने का मौका भी नहीं छोड़ रहे हैं। रॉयल चैलेन्जर्स बैंगलोर के मालिक विजय माल्या अपनी टीम के नाम के जरिए रॉयल चैलेंज व्हिस्की का नाम भी पेश कर रहे हैं जबकि डेक्कन चार्जर्स हैदराबाद अपने अख़बार डेक्कन क्रोनिकल को फायदा पहुंचाने की कोशिश में है। टीमों के मालिकों को कितना मुनाफ़ा हो रहा है इस पर अभी मतभेद है। कुछ रिपोर्टों में कहा जाता है कि किंग्स इलेवन को छोड़ कर सब टीमें मुनाफे में आ गई हैं जबकि ऐसी भी रिपोर्टें हैं जिसमें सिर्फ चार टीमों के फायदे में होने की बात कही जाती है। लेकिन मालिकों, खिलाडिय़ों, कंपनियों को होने वाले फायदे के बीच यह बहस भी हो रही है कि कहीं आईपीएल एक बुलबुला तो नहीं जो जल्द ही फूटेगा। परंपरागत क्रिकेट को नुकसान पहुंचने की आशंका तो विशेषज्ञ जता ही रहे हैं..लेकिन आईपीएल में चौकों, छक्कों और ग्लैमर की धूम में अभी ये बातें अनसुनी ही हो रही हैं।
क्रिकेट अब एक लाख करोड़ रुपए का हो चुका है। अब ये दुनिया के सबसे ज़्यादा पैसे वाले खेल फुटबॉल के मुकाबले में आ खड़ा हुआ है। माना जा रहा है कि धोनी और पोलार्ड की सितंबर में जब फिर से कीमत लगाई जाएगी तो वो 100 करोड़ के पार जा सकती है। बाकी स्टॉर खिलाड़ी जैसे सचिन तेंदुलकर, युवराज सिंह वगैरह भी 50 से 100 करोड़ तक के ब्रैंड बन सकते हैं। यानी अमिताभ, शाहरुख और आमिर सरीखे बॉलीवुड स्टार्स से कहीं ज़्यादा महंगे हो जाएंगे क्रिकेट खिलाड़ी।
2008 में इंग्लिश प्रीमियर लीग के क्लब मैनचेस्टर सिटी को अबूधाबी के एक इंडस्ट्रियल ग्रुप ने 200 मिलियन डॉलर यानी 1380 करोड़ रुपए में खरीदा था। जबकि इस साल आईपीएल में पुणे को 1702 करोड़ रुपए में और कोच्चि को 1533 करोड़ रुपए में खरीदा गया। यानी फुटबॉल पर भारी क्रिकेट। पुणे को सहारा एडवेंचर स्पोर्ट्स ने खरीदा, तो कोच्चि को खरीदा रोंदेवू स्पोर्ट्स वर्ल्ड ने। साल 2008 में जब आईपीएल की शुरुआत हुई थी तब 8 टीमें कुल मिलाकर 2800 करोड़ रुपए में बिकी थीं। लेकिन आईपीएल 4 के लिए महज 2 टीमों की कीमत ही 3200 करोड़ रुपए तक पहुंच गई।
लेकिन पैसे की चकाचौंध में इस तथ्य को नजर अंदाज किया जा रहा है कि देश को आजाद हुए तिरसठ साल से ज्यादा बीत चुके हैं। इन सालों में देश का आम आदमी ब्रितानी बर्बरता तो नहीं भोग रहा है, पर स्वदेशी जनसेवकों की अदूरदर्शी नीतियों के चलते नारकीय जीवन जीने पर अवश्य मजबूर हो चुका है। एक आम भारतीय को (जनसेवकों और अमीर लोगों को छोडकर) आज भी बिजली, पानी साफ सफाई जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल सकी हैं। सरकारी दस्तावेजों में अवश्य इन सारी चीजों को आम आदमी की पहुंच में बताया जा रहा हो पर जमीनी हकीकत किसी से छिपी नहीं है। कमोबेश पचास फीसदी से अधिक की ग्रामीण आबादी आज भी गंदा, कंदला पानी पीने, अंधेरे में रात बसर करने, आधे पेट भोजन करने एवं शौच के लिए दिशा मैदान (खुली जगह का प्रयोग) का उपयोग करने पर मजबूर ही है।
इन परिस्थितियों के वाबजूद भारत में आईपीएल 20-20 जैसी क्रिकेट प्रतियोगिताएं सभ्रांत नागरिकों के मनोरंजन का साधन है। फटाफट क्रिकेट के इस आयोजन में कुछ मैच दिन में तो अधिकांश दिन के बजाय रात गहराने के साथ ही होते हैं। जाहिर है, इन मैच के लिए सैकडों फ्लड लाईट का इस्तेमाल किया जाता है। कहने का तात्यपर्य यह कि रात गहराने के साथ ही जब लोगों के दिल दिमाग पर हाला (शराब) का सुरूर हावी होता जाएगा, वैसे वैसे नामी गिरामी क्रिकेट के सितारे अपना जौहर दिखाएंगे। दर्शक भी अधखुली आंखों से इस फटाफट क्रिकेट का आनंद उठाते नजर आते हैं। जनवरी से लेकर अप्रेल तक का समय अमूमन हर विद्यार्थी के लिए परीक्षा की तैयारी करने और देने के लिए सुरक्षित रखा जाता है। सवाल यह उठता है कि जब देश के भविष्य बनने वाले छात्र-छात्राएं परीक्षाओं की तैयारियों में व्यस्त होंगे तब इस तरह के आयोजनों के औचित्य पर किसी ने प्रश्न चिन्ह क्यों नहीं लगाया। क्या देश के नीति निर्धारक जनसेवकों की नैतिकता इस कदर गिर चुकी है, कि वे देश के भविष्य के साथ ही समझौता करने को आमदा हो गए हैं।
यहां हम यह बता देना उचित समझते हैं कि वर्ष 1903 में जब पहली बार चीयर लीडर्स संस्था गामा सिगमा का गठन हुआ था तब यह पूर्णत: पुरुष संस्था थी। लीडर्स प्रदर्शन के दौरान विभिन्न प्रकार के स्टन्ट तथा जिम्नास्टिक कर लोगों को गुदगुदाते थे। 1923 में इसमें महिलाओं की भागीदारी शुरू हुई। आईपीएल में सिर्फ महिला चीयर लीडर्स दिखाई दे रही हैं वह भी कम कपड़े में। सबसे आश्चर्यजनक यह लगता है कि इसे भारत में एकदम सेक्सुअल तरीके से परोसा जा रहा है। इसी कारण मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित बहुत से लोगों को इस पर आपत्ति है।

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