बुधवार, 24 फ़रवरी 2010
लड़ाकू विमानों को धराशायी होने की बीमारी
भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों को धराशायी होने की बीमारी है, जो लगातार बढ़ रही है। इसके चलते बीते तीन महीनों में पहले सुखोई-30 और अब मिग-27 के बेड़े को जमीन पर खड़ा करना पड़ा है। आलम यह है कि पिछले चौदह महीनों में वायुसेना के 15 विमान दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं। मतलब हर माह एक का औसत। वायुसेना पहले ही निर्धारित से कम स्क्वाड्रन संख्या से काम चला रही है। उस पर से विमानों के लगातार गिरने की इस बीमारी ने उसे परेशान कर डाला है। बीते एक सप्ताह में हुए दो हादसों के बाद वायुसेना ने उच्च स्तर पर घटनाओं को खंगालना शुरु कर दिया है। कोर्ट आफ इंक्वायरी के साथ-साथ वृहद स्तर पर भी दुर्घटनाओं की रफ्तार रोकने की कवायद तेज की गई है। रक्षा मंत्रालय द्वारा संसद में पेश किए गए आंकड़ों पर गौर करें तो बीते दो दशकों में हुए हादसों के कारण वायुसेना करीब 14 स्क्वाड्रन के बराबर विमान खो चुकी है। अप्रैल 1989 से लेकर अब तक 267 मिग विमानों से जुड़े हादसों में 97 सैन्यकर्मी और 44 नागरिकों को भी जान गंवाना पड़ी है। बागडोगरा में हुई दुर्घटना के बाद वायुसेना ने जांच के लिए जिन मिग-27 विमानों को जमीन पर खड़ा रखने का फैसला किया है उनके खाते में जनवरी 2009 से लेकर अब तक चार दुर्घटनाएं दर्ज हैं। लगातार होते हादसों के चलते ही वायुसेना को मजबूरन अपने एचपीटी प्रशिक्षण विमानों के पूरे बेड़े को रिटायर करने का फैसला लेना पड़ा। आला अफसरों के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं है कि तमाम उपायों के बावजूद विमान हादसे रुक क्यों नहीं रहे हैं। हालांकि पूछे जाने पर वे यह बताना नहीं भूलते कि हादसे रोकने के लिए पायलट प्रशिक्षण व दक्षता विकास के नए कार्यक्रम तैयार किए जा रहे हैं। इसके अलावा रूसी मूल के विमानों की खामियां दूर करने के लिए मूल उत्पादक कंपनी के विशेषज्ञों की भी मदद ली जा रही है।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें