शिवसेना नाम के गुब्बारे की हवा अब निकल चुकी है। ठाकरे की ठसक का अंत हो चुका है। जनता होशियार हो चुकी है शाहरुख का साथ देकर उसने अपना स्टैंड भी साफ कर दिया है अब बारी हमारी है, मीडिया की है जिसे अब शिवसेना और एमएनएस के गुंडों को उनके दायरे में समेटने का काम शुरू कर देना चाहिए। उनके बयानों को पूरे देश की जनता तक पल भर में पहुंचाने की अपनी आदत से बाज़ आना चाहिए। गालियों से भरे और अलोकतांत्रिक धमकियों का पिटारा बन चुके शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' के एडिटोरियल में टीवी न्यूज की सुर्खियां ढूंढने वाले पत्रकारों को भी अब ये समझ लेना चाहिए कि देश की जनता अब ठाकरे के तीखे तेवरों और जहरीले बाणों से बोर होकर तंग आ चुकी है। लिहाजा मुंबई की दूसरी अहम खबरों पर तवज्जो देना सीख लें।
अब ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों का विरोध नहीं करेंगे बाल ठाकरे और उनके लोग, जल्दबाजी में नहीं बहुत सोच समझ कर फैसला किया है ठाकरे ने। मन में एक उधेड़बुन सी चल रही होगी क्या करें क्या न करें शाहरुख ने ऐसी बैंड बजाई कि कहीं के नहीं रहे, किस मुंह से किसी बात का विरोध करें, पता नहीं कोई मानेगा भी या नहीं, पता नहीं कोई डरेगा भी या नहीं। कहीं नफरत के सौदागर बन चुके शिवसैनिकों को फिर मुंह की न खानी पड़ जाए। कहीं उल्टे जनता का विरोध न सहना पड़ जाए।
शरद पवार से ठाकरे की मुलाकात का जिक्र इसलिए नहीं कर रहा क्योंकि ठाकरे के फैसले का इससे कोई ताल्लुक नहीं है अगर पवार की दोस्ती की वजह से ही फैसला बदलना था तो कल तक शिवसेना के तमाम गुंडे ये कहते न फिरते कि हम तो ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों को मुंबई की धरती पर कदम तक नहीं रखने देंगे।
इस वक्त ठाकरे के इस नए फैसले से दो बातें हुईं हैं एक तो कांग्रेस के सामने ये जताने निकले पवार की अकड़ ठंडी पड़ गई है कि वो उसके दुश्मन नंबर 1 ठाकरे के कितने नजदीक हैं और मौका पाकर पासा पलटने की कुवत रखते हैं। दूसरी और सबसे अहम ये कि आम जनता को ये पता चल गया है कि अगर इन कागज के शेरों के छिटपुट विरोध और मारपिटाई को तवज्जो न दी जाए तो ये किसी काम के नहीं रह जाएंगे।
असल बात तो यही है कि 'माई नेम इज खान' की रिलीज के वक्त शाहरुख और मुंबईकरों के करारे तमाचे ने शिवसेना को कहीं का न छोड़ा, अब उनसे कोई नहीं डरेगा, अब उनकी कोई नहीं सुनेगा, अब उनकी नहीं चलेगी, वही हो रहा है। दरअसल शिवसेना को अब ये डर सताने लगा है कि कहीं शाहरुख विरोध की तरह इस आंदोलन की भी हवा न निकल जाए और बूढ़े ठाकरे को पूरे देश के सामने एक बार फिर शर्मसार न होना पड़ जाए। सो भलाई पैर वापस खींचने में ही है। वो समझ गई है कि ये पब्लिक है सब जानती है उसे पता है कि ऑस्ट्रलियाई खिलाड़ियों के यहां आकर खेलने न खेलने से वहां भारतीय छात्रों पर हो रहे नस्लवादी हमलों पर कोई असर नहीं पड़ने वाला। उसे पता है कि इस तरह के इमोशनल मुद्दे भड़काकर शिवसेना अपनी खोई जमीन हासिल करने की फिराक़ में है। उसे पता है कि शिवसेना की क्षेत्रवाद से लबरेज विचारधारा को अगर अमली जामा पहना दिया गया तो इस देश की अखंडता तार-तार हो सकती है।
कली बेंच देगें चमन बेंच देगें,
जवाब देंहटाएंधरा बेंच देगें गगन बेंच देगें,
कलम के पुजारी अगर सो गये तो
ये धन के पुजारी
वतन बेंच देगें।
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