इंदौर के कुशाभाऊ ठाकरे नगर में भारतीय जनता पार्टी का तीन दिवसीय अधिवेशन चल रहा है.इस अधिवेशन से भाजपा कि भावी दिशा तय होनी है.भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने इस अधिवेशन में अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में मुसलामानों को राष्ट्र की मुख्यधारा में जोड़ने का प्रयास किया है.
गडकरी को भाजपा के अध्यक्ष पद का सूत्र संभाले डेढ़ माह बीत चुके हैं. राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा कि नीतियों को लेकर उनका विचार पहली बार सामने आया है. गडकरी का कहना है कि भाजपा अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनवाने के प्रति कृतसंकल्प है. गडकरी ने याद दिलवाया है कि राम मंदिर निर्माण के लिए भाजपा पहले भी आन्दोलन कर चुकी है और उसमें कारसेवकों ने अपना बलिदान भी किया है. गडकरी ने अत्यंत विनम्रता से मुस्लिमों से अपील कि है कि वे अयोध्या में राम मंदिर परिसर हिन्दुओं के लिए छोड़ दें. गडकरी ने मुसलामानों से सहृदयता का परिचय देनें की प्रार्थना भी की है. उनका मत है कि यदि मुसलमान उनकी इस मांग से राजी हो जाएं तो इस देश में भाईचारे और विकास के नए युग का सूत्रपात हो जाएगा।
भाजाप के नेता 1990 के दशक में कहते थे कि राममंदिर का फैसला अदालत की परिधि में नहीं हो सकता. 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह यही तो कह रहे थे कि उन्हें विश्व हिन्दू परिषद और भारतीय जनता पार्टी मामले को न्याय की परिधि में निपटाने का अवसर दें. लालकृष्ण आडवाणी की बहुचर्चित सोमनाथ से अयोध्या की बहुचर्चित यात्रा के पहले भी तत्कालीन वीपी सिंह सरकार के ट्रबल शूटर इसी लाईन पर काम कर रहे थे. चंद्रशेखर की सरकार ने तो बाकायदा इस मामले को निपटाने के लिए टास्क फोर्स का ही गठन कर दिया था. अयोध्या के धर्माचार्यों, प्रशासनिक अधिकारियों और न्यायविदों ने कुछ फार्मूले भी तय किये थे. पीवी नरसिंहराव की सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन प्रमुख राजेन्द्र सिंह उर्फ रज्जू भैया से उसी वार्ता की अगली कड़ी के रूप में चर्चा हुई थी. उस समय विश्व हिन्दू परिषद तथा रामजन्मभूमि न्यास बाबरी ढांचे को हटाकर वहां शीघ्रातिशीघ्र भव्य राममंदिर के निर्माण पर अड़ा था. कल्याण िसंह के पहले कार्यकाल के दौरान रामजन्मभूमि न्यास को मंदिर निर्माण के लिए आवश्यक भूखण्ड का आवंटन भी हो गया था. भव्य मंदिर के निर्माण के लिए आस पास के भूखण्डों की अधिग्रहण की प्रक्रिया भी प्रारंभ हुई थी.
गड़करी महाराष्ट्र के सपूत हैं। उनकी सोच सर्वधर्मं समभाव वाली है.सवाल पैदा होता है कि क्या उनकी सोच को तथाकथित धर्मनिरपेक्षों कि बिरादरी सफल होने देगी? अयोध्या में राम मंदिर कि जगह पर बाबरी मस्जिद कायम रहे ये विचार इस देश के बहुसंख्यक मुसलामानों का कभी नहीं रहा है. इस्लाम कब बुतपरस्त हो गया जो किसी एक जगह पर सादे हुए ढाँचे को मस्जिद मान कर अड़ जाए? मक्का और मदीना में भी पुरानी मस्जिदों को हटाने कि परम्परा रही है. इस्लामी देशों में विकास के रास्ते पर आड़े आनेवाली मस्जिदों को हटाया जाता रहा है. मुंबई में बिल्डरों को फायदा पहुंचाने के लिए सत्ताधारी दलों के लोग मस्जिदें हटवाते रहे हैं. फिर बाबरी मस्जिद को लेकर मुसलमान क्यों अड़ गए?
भाजपा के वर्तमान अध्यक्ष नितिन गडकरी जिस न्यायायलीन प्रक्रिया की दुहाई दे रहे हैं वह 1992 में लगभग उसी स्थिति में थी जिसमें 2010 में है. इस बीच बाबरी ढांचे का विध्वंस और उस परिसर में मेक-शिफ्ट राम मंदिर बन चुका है. इस बीच वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान परमहंस रामचंद्रदास के नेतृत्व में शिलापूजन का भी आह्वान किया गया था. शिलापूजन के दौरान तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ठीक उसी शैली में अड़ गये थे जिस शैली में कभी विश्वनाथ प्रताप सिंह या मुलायम सिंह यादव अड़ा करते थे. अयोध्या आंदोलन से जुड़ा एक बड़ा वर्ग यह मानता है कि उस समय रामरथी आडवाणी के रवैये से परमहंस रामचंद्रदास इतने आहत हुए कि वे फिर कभी स्वस्थ नहीं रह पाये. अटल बिहारी वाजपेयी ने परमहंस रामचंद्रदास की चिता पर जो संकल्प व्यक्त किया था उसके आड़े तत्कालीन वाजपेयी सरकार में कौन आया? भारतीय जनता पार्टी की साख को सबसे बड़ा बट्टा राममंदिर आंदोलन पर भ्रम की स्थिति बनाये रखने से लगा. परमहंस रामचंद्रदास के बाद विहिप ने कभी राममंिदर निर्माण के लिए कोई मुहिम क्यों शुरू नहीं किया? क्या संघ परिवार में अशोक सिंहल बिल्कुल अकेले पड़ गये थे? क्या संघ स्वयं राममंदिर निर्माण के प्रति गंभीर नहीं था? या फिर संघ के निर्णय भाजपा के राजभवन से हो रहे थे? अचानक गडकरी को राम जन्मभूमि का भूखण्ड मुसलमानों से मांगने की क्यों सूझी? क्या यह भी भाजपा के मुस्लिम पटाओ कार्यक्रम का हिस्सा है? भाजपा अध्यक्ष के भाषण में मुस्लिम आरक्षण का विरोध तो है लेकिन समान नागरिक कानून और धारा 370 के प्रति भाजपा के रूख की कहीं कोई चर्चा नहीं है.
भाजपा अध्यक्ष कहते हैं कि कश्मीर पर वार्ता में संयुक्त प्रगितिशील गठबंधन सरकार का रवैया सही नहीं है. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान की दुहाई देते समय धारा 370 के संबंध में भाजपा का मौन क्यों है? भाजपा अध्यक्ष के भाषण में वाजपेयी सरकार के गौरवपूर्ण इतिहास पर प्रकाश डाला गया है. लेकिन वाजपेयी के शासनकाल में पंडित दीनदयाल उपाध्याय का अंत्योदय क्यों बिसार दिया गया था? भाजपा शासित राज्यों में दीनदयाल उपाध्याय के अंत्योदय के विचारों को लागू करनेवाली कौन सी योजनाएं हैं? भाजपा का मुसलमानों से अनुनयवादी रुख क्या जो हिन्दू हित की बात करेगा वही देश पर राज करेगा वाले नारे का पराभवकारी स्वरूप नहीं है? हिन्दू हित की बात करनेवाले मुसलमानों से रामलला के जन्मभूमि की भीख मांगने लगे, समान नागरिक संहिता को भूल गये और धारा 370 को अपने एजेण्डे से बाहर कर दिया. भाजपा का यह समझौतावादी चेहरा क्या विश्वनाथ प्रताप सिंह और चंद्रशेखर के चेहरे से भिन्न है? जब राम जन्मभूमि का मुद्दा खबरों से पूरी तरह से बाहर है, बाबरी मस्जिद के नाम पर बनी तमाम कमेटियां और उसके नेता हाशिये पर भी जगह बनाने में सफल नहीं है, उस समय समझौते का सुर छेड़ने का क्या औचित्य? मुसलमान कभी बाबरी मस्जिद के साथ नहीं था. भाजपा के उग्र आंदोलन, छद्म सेकुलरों के स्यापे, मुस्लिम नेताओं की विखण्डनवादी नीतियों से मुसलमान बाबर की तुलना राम से करने की गलती कर बैठा था. अब भाजपा स्वयं राम की तुलना बाबर से करने की गलती कर रही है. इससे मामले का निपटारा तो दूर है, नये सिरे से विवाद जरूर पैदा हो जाएगा.
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