सुरक्षा की बढ़ती चुनौतियों और खराब होते हालात में सरकार सेना के कमांडर से लेकर पुलिस कांस्टेबल तक, हर स्तर पर साझेदारी पर जोर दे रही है। दूसरी ओर, फौज अपने खास दर्जे और अहमियत के साथ किसी समझौते को राजी नहीं है। यहां तक कि उसे तो अर्द्धसैनिक बलों और पुलिस वालों के जवान कहलाने पर भी ऐतराज है। जी हां! फौज ने बाकायदा मीडिया से गुजारिश भी की है कि जवान शब्द का प्रयोग सिर्फ भारतीय सेना के सैनिकों के लिए किया जाए। भावी सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल वी.के. सिंह की अगुवाई वाली पूर्वी कमान से जारी वक्तव्य में मीडिया से आग्रह किया है कि पुलिस या अर्द्धसैनिक बलों में सैन्य जवानों के समकक्ष कर्मचारियों के लिए पुलिस वाले या अर्द्धसैनिक कर्मी या संगठन के अनुरूप शब्दावली का प्रयोग किया जाए। सेना की फिक्र इस बात को लेकर भी है कि जवान शब्द का गलत प्रयोग राष्ट्रीय ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी संगठन की अवांछित छवि बना सकता है। जवान पर कापीराइट कायम करने की कवायद में सेना पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का हवाला देती है। दैनिक जागरण से बातचीत में कोलकाता स्थित रक्षा मंत्रालय के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी विंग कमांडर महेश उपासने कहते हैं कि शास्त्री जी ने सबसे पहले जय जवान, जय किसान का नारा दिया था। उसके बाद से ही जवान शब्द भारतीय फौज के सैनिकों का पर्याय बन चुका है। हालांकि फौज की इस राय से पुलिस और अर्द्धसैनिक बल के आला अधिकारी न केवल असहमति जताते हैं, बल्कि आहत भी नजर आते हैं। सीमा सुरक्षा बल के पूर्व महानिदेशक एम.एल. कुमावत कहते हैं कि जवान शब्द के प्रयोग पर इस तरह का एकाधिकारपूर्ण रवैया ठीक नहीं है। किसी को भी यह नहीं भूलना चाहिए कि इस देश और लोकतंत्र को बचाने के लिए सैनिकों की शहादत से कहीं ज्यादा बलिदान पुलिस बल के लोगों ने दिया है। वहीं उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह के अनुसार जवान शब्द का इस्तेमाल हर उस वर्दीधारी जांबाज के लिए किया जा सकता है जो देश के लिए जान न्यौछावर करने को तैयार है। सिंह के अनुसार सेना और पुलिस बलों के बीच अंतर बना रहना जरूरी है, लेकिन आम बोलचाल में पुलिस के जवान या अर्द्धसैनिक बल के जवान कहा जाता है। लिहाजा संदर्भ के साथ यह स्पष्ट हो जाता है कि बात किस बल के जवानों के बारे में हो रही है। बीते दिनों सेना ने फौजी वर्दी के दुरुपयोग को रोकने की कवायद में न केवल वर्दी पहनने के नियम बदले थे, बल्कि उसके कपड़े और डिजाइन का भी पेटेंट करवाया था। अब सेना का नया आग्रह इस दिशा में एक अलग ही पहल है।
.. जवान बोले तो शास्त्री जी ने सबसे पहले जय जवान, जय किसान का नारा दिया था। उसके बाद से ही जवान शब्द भारतीय फौज के सैनिकों का पर्याय बन चुका है।
विंग कमांडर महेश उपासने, कोलकाता
स्थित रक्षा मंत्रालय के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी जवान शब्द का इस्तेमाल हर उस वर्दीधारी जांबाज के लिए किया जा सकता है जो देश के लिए जान न्यौछावर करने को तैयार है।
प्रकाश सिंह, उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक
जवान शब्द के प्रयोग पर एकाधिकारपूर्ण रवैया ठीक नहीं है। हीं भूलना चाहिए कि इस देश की खातिर सैनिकों की शहादत से कहीं ज्यादा बलिदान पुलिस बल के लोगों ने दिया है।
एम.एल. कुमावत,
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