मध्यप्रदेश में एक बार फिर से गैर प्रशासनिक सेवा से भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन के लिए पिछले तीन वर्षों से जारी कवायद इस बार फिर तेज हो गई है। विगत दो वर्षों की भांति इस बार भी अधिकारी अपनी योग्यता नहीं बल्कि जुगाड़ के बल पर इस सर्वोच्च प्रशासनिक पद को पाने की जुगत भिड़ा रहे हैं। हालांकि इनमें से कुछ अधिकारी तो ऐसे हैं, जो वर्षों से आईएएस बनने की जुगत भिड़ा रहे हैं, लेकिन दांव नहीं लग पा रहा है। सूत्रों के मुताबिक कुछ विभाग तो ऐसे हैं जो निर्धारित समय सीमा में एक भी नाम नहीं भेज पाए तो कुछ इक्का-दुक्का नाम ही ढूंढ पाएं हैं।
गत तीन वर्षों से आईएएस चयन की प्रक्रिया किसी न किसी कारण से नहीं हो पाने के कारण मध्यप्रदेश कैडर राष्ट्रीय स्तर पर बदनाम हो गया है। सूत्र बताते हैं कि पिछली बार चयन की प्रक्रिया में करोड़ों रुपए के लेन-देन की बात सामने आने से राज्य सरकार और मप्र कैडर की जो बदनामी हुई थी उससे इस बार भी पीछा छूटता नजर नहीं आ रहा है। क्योंकि जिन दागदार लोगों की शिकायत पिछले वर्ष कुछ राजनीतिक दलों के नेताओं, गैर प्रशासनिक सेवा संगठन और आईएएस के दावेदारों ने की थी वे इस बार भी आईएएस बनने की सूची में शामिल किए गए हैं। जिससे अभी से अनुमान लगाया जाने लगा है कि अगर यही स्थिति रही तो चौथी बार भी आईएएस चयन की प्रक्रिया बाधित हो सकती है।
उधर आईएएस चयन कवायद शुरू होने के साथ ही गैर प्रशासनीक सेवा के अधिकारी जहां मुस्तैदी के साथ फिल्डिंग में जुटते नजर आए वहीं राज्य में अन्य विभागों से आईएएस में चयन के लिए कई विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों ने रूचि नहीं दिखाई है। आलम यह रहा कि अंतिम तिथि समाप्त होने तक केवल 30 अधिकारियों ने ही आवेदन पत्र जमा कराए थे, जबकि सामान्य प्रशासन विभाग ने सभी सरकारी विभागों से पांच-पांच अधिकारियों के नाम आईएएस के लिए मंगवाए थे। उसके बाद 10 और नाम सामान्य प्रशासन विभाग को पहुंचे। यानी कुल 40 नाम इस बार आईएएस चयन के लिए सूची में शामिल किए गए है। प्राप्त जानकारी के अनुसार जो नाम सामान्य प्रशासन विभाग के पास पहुंचे हैं उनमें जेल विभाग से एक, महिला एवं बाल विकास विभाग से तीन, नगरीय प्रशासन विभाग से 2 वित्त विभाग से पांच, उद्योग से पांच साथ ही जनसंपर्क और वाणिज्यिककर विभाग के अधिकारियों के नाम शामिल है। हालांकि जेल विभाग के सूत्रों का कहना है कि वहां से चार नाम भेजे गए थे लेकिन एक ही नाम को हरी झंडी मिली है। हद तो यह है कि जेल विभाग ने इस बार भी उसी अधिकारी का नाम भेजा है जिसको लेकर पिछली बार जमकर बवाल मचा था। उक्त अधिकारी वित्त मंत्री राघवजी के चहेते हैं। जब इस संबंध में जेल मंत्री जगदीश देवड़ा सेे बात की गई तो उन्होंने बताया कि नियम प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए ही एक नाम भेजा गया है। सामान्य प्रशासन विभाग इनमें से कुल 25 अधिकारियों के नाम छांटेगा और इनके नाम साक्षात्कार के लिए भेजे जाएंगे। चूंकि जीएडी द्वारा अपेक्षित नामों की संख्या कम है इसलिए अटकले लगाई जा रही हैं कि सामान्य प्रशासन विभाग एक बार फिर आवेदन मंगवाने की अंतिम तिथि को बढ़ाने पर विचार कर सकता है। वैसे देखा जाए तो विभिन्न विभागों द्वारा जिन अधिकारियों की सूची सामान्य प्रशासन विभाग को भेजी गई है उनमें से अधिकांश दागदार हैं। सूत्रों के अनुसार पिछली बार जो सूची आईएएस चयन के लिए भेजी गई थी उसमें जेल विभाग के यह अधिकारी सबसे दागदार थे। प्रश्न यह उठता है कि क्या जेल विभाग के पास पांच गैर प्रशासनिक सेवा के ऐसे अधिकारी नहीं है जो आईएएस बनने की पात्रता रखते हों।
उल्लेखनीय है कि गत वर्ष भी यह प्रक्रिया अपने अंतिम चरण तक पहुंच गई थी। मप्र से गैर सिविल सेवा से आईएएस चयन के लिए यूपीएससी को भेजी गई सूची लगातार तीसरे वर्ष भी लेप्स हो गई। इस सूची में 15 नाम शामिल थे। इन नामों को लेकर हुए विवाद के बाद राज्य सरकार ने भी इसमें रूचि नहीं ली थी। मध्यप्रदेश में गैर सिविल सेवा के अधिकारियों में आईएएस चयन को लेकर जबरदस्त खींचतान मची हुई थी। कुल पांच पदों के लिए राज्य सरकार ने सभी विभागों से नाम मंगवाए थे। मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बनी एक कमेटी ने लगभग तीन दर्जन अधिकारियों के नामों में 15 नामों का चयन करके यूपीएससी को भेजा था। इन नामों को लेकर भोपाल से दिल्ली तक बवाल मचा रहा। कांग्रेस ने मुख्यमंत्री और कुछ मंत्रियों पर आईएएस चयन में अपने चहेतों को लाभ पहुंचाने के लिए हस्तक्षेप और लाखों रूपए के लेनदेन का आरोप लगाया था। राज्य सरकार ने जिन पन्द्रह अधिकारियों के नाम दिल्ली भेजे थे, वे पिछले कई दिनों से दिल्ली में साक्षात्कार के लिए कॉल लेटर का इंतजार कर रहे थें।
इन अधिकारियों ने अपने अपने कार्यालयों से अवकाश लेकर साक्षात्कार की तैयारियों भी शुरू कर दी थी। लेकिन उन्हें 31 दिसम्बर के बाद सूची स्वत: लेप्स मानी जाती हैं। अब फिर से यह प्रक्रिया प्रारंभ हुई। यहां बता दें कि वर्ष 2007 में मप्र केडर में एक पद था, लेकिन डिप्टी कलेक्टरों के हस्तक्षेप के कारण चयन नहीें हो सका। वर्ष 2008 में दो पदों के राज्य सरकार ने दस अधिकारियों के नाम यूपीएससी को भेजे थे। यूपीएससी ने 19 सितम्बर 2008 को साक्षात्कार रद्द कर दिया। बीते साल भी ऐसा ही हुआ है। इस संबंध में एक अधिकारी का कहना है कि राज्य सरकार ने इसमें रूचि ली होती तो ऐसा नहीं होता। इस बार भी गैर प्रशासनिक सेवा से भारतीय प्रशासनिक सेवा में जाने का अधिकारी का सपना पूरा तब होगा जब राज्य सरकार के आलाअधिकारी सही ढंग से जांच पड़ताल कर नामों को भेजे।
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