शुक्रवार, 28 मई 2010
मेडिकल एजूकेशन का माफिया डॉन
सीबीआई के शिकंजे में आया केतन देसाई शिक्षा में फैलते माफियागीरी का जीता जागता उदाहरण है। इस माफियागीरी से उसने कितना पैसा कमाया इसका अंदाजा इसी से लग सकता है कि उसके पास दर्जनों के हिसाब से आलीशान भवन, क्विटल के हिसाब से सोना तथा सैकड़ों करोड़ रुपयों के हिसाब से नगदी की बरामदगी हो रही है।
देश में फिसड्डी एवं अज्ञानी डॉक्टरों की भरमार का राज भी अब कहीं जाकर खुला जबकि गत् दो दशकों से भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद् अर्थात मेडिकल कौंसिल आफ इंडिया (एम.सी. आई)के अध्यक्ष पद पर तैनात केतन देसाई नामक एक महाभ्रष्ट व्यक्ति की काली करतूतों का सीबीआई द्वारा भंडाफोड़ किया गया। केतन देसाई ने देश में सैकड़ों ऐसे मेडिकल कॉलेज को मान्यता दे डाली है जो अपने आप में मेडिकल कॉलेज बनने की संपूर्ण आर्हता नहीं रखते थे। किसी मरीज की देखभाल, उसकी जांच-पड़ताल, मेडिकल शिक्षा संबंधी जरूरी मापदंड कहीं हों या न हों परंतु यदि कॉलेज के संचालक ने केतन देसाई की मु_ी गर्म कर दी है तो उस संचालक को मेडिकल कॉलेज की मान्यता अवश्य मिल जाती थी।
इतना ही नहीं एम सी आई के इस महाभ्रष्ट प्रमुख ने कुछ ऐसे अयोग्यतम व्यक्तियों को मेडिकल प्रेक्टिस किए जाने के प्रमाण पत्र जारी कर दिये थे जिन्होंने कभी विज्ञान की कक्षा में दाखिला तक नहीं लिया था। कला तथा संस्कृत जैसे विषयों के कई छात्र केतन देसाई की रिश्वतपूर्ण कृपा दृष्टि से डॉक्टर बन चुके हैं और यही नकली डॉक्टर भारत में अब तक न जाने कितने भोले-भाले मरीजों की जानों से खिलवाड़ कर चुके हैं। केतन की जलालत की हद यहीं खत्म नहीं होती बल्कि उसने तो कई ऐसे बंगला देशी नागरिकों को भी भारतीय डॉक्टर होने का प्रमाण पत्र जारी कर दिया जो स्वयं भारत के नागरिक होने का फर्जी प्रमाण पत्र लिए लुके-छुपे इधर-उधर फिरा करते थे। केतन देसाई को किसी को डॉक्टर बनाने में अथवा किसी संचालक को मेडिकल कॉलेज का मालिक बनाने में कोई आपत्ति नहीं होती थी बशर्ते कि वह इस एम सी आई प्रमुख की जेबें भरपूर तरीके से गर्म कर दे।
मेडिकल शिक्षा माफिया डॉन केतन देसाई ने अपने इस लूट-खसोट के महाषड्यंत्र को अंजाम देने के लिए अपने कुछ विशेष व भरोसेमंद व्यक्तियों की एक मंडली बनाई हुई थी। इसी मंडली के मात्र दसवीं कक्षा पास व्यक्ति एस एस राही को देसाई ने एमसीआई का सचिव नियुक्त किया हुआ था। और यही व्यक्ति एमसीआई के रजिस्ट्रेशन विभाग का भी प्रमुख था। जरा गौर फरमाईए कि देसाई के नेतृत्व में चल रही एमसीआई द्वारा मेडिकल कालेज की मान्यता देने तथा डाक्टरों को रजिस्ट्रेशन प्रदान करने, व उसकी स्क्रीनिंग करने का जिम्मा एक लगभग अशिक्षित सा व्यक्ति संभाले हुए था। बड़े आश्चर्यपूर्ण ढंग से गत् दो दशकों से लूट-खसोट का यह सारा तांडव सरेआम चलता रहा। आखिरकार 20 वर्षों तक स्वयं को सिकंदर महान समझने वाले इस भ्रष्टाचारी को पंजाब के एक मेडिकल कालेज से दो करोड़ रुपये की रिश्वत के इल्जाम में सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया। इससे पूर्व ही केतन देसाई आज अकूत धन संपत्ति का मालिक बन चुका है।
अपनी गिरफ्तारी के बाद केतन देसाई ने चूंकि त्याग पत्र दे दिया था इसलिए केंद्र सरकार की संस्तुति पर राष्ट्रपति ने एम सी आई को भंग करने की सिफारिश भी कर दी है। अब राष्ट्रपति द्वारा देश के 6 प्रतिष्ठित चिकित्सकों का एक पैनल बनाया गया है जो एम सी आई के कार्यों की अस्थाई रूप से निगरानी करेगा। केतन देसाई इस समय कानून के शिकंजे में है तथा अभी कई दिनों तक उससे और कई राज खुलने तथा उसके द्वारा दोनों हाथों से लूटी गई संपति का और अधिक खुलासा होने की उम्मीद की जा रही है। भारतीय यांत्रिकी शिक्षा संस्थान परिषद् तथा भारतीय आर्किटेक्ट शिक्षा संस्थान परिषद् में भी इसी प्रकार के घोटाले पहले उजागर हो चुके हैं। गोया हम यह कह सकते हैं कि रोजगारोन्मुख समझा जाने वाला तकनीकी शिक्षण का क्षेत्र इस समय लगभग पूरी तरह भ्रष्टाचार की पकड़ में है। ऐसे संगीन हादसे आखिर हमें क्या सोचने पर मजबूर करते हैं। देश के किस प्राईवेट मेडिकल कॉलेज पर हम विश्वास करें और किस पर न करें? देश का कौन सा डॉक्टर वास्तव में आयुर्विज्ञान की शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात तकनीक व योग्यता के अनुसार डॉक्टर बना है और कौन डाक्टर संस्कृत, कला या संगीत का विद्यार्थी होने के बावजूद डाक्टर की डिग्री लिए घूम रहा है? गत् 20 वर्षों में ऐसे घोटालों व भ्रष्टाचारों के परिणामस्वरूम कितने मरीज इन जैसे अनाड़ी डाक्टरों के हाथों मौत के मुंह में जा चुके हैं। आखिर इन सवालों का जवाब कौन देगा तथा इनके लिए जिम्मेदार कौन है?
ऐसे भ्रष्टाचारों के उजागर होने के बाद एक सवाल और यह उठता है कि हमारे देश के सुप्रसिद्ध लचीले कानून के परिणामस्वरूप केतन देसाई जैसे खुली लूट-खसोट करने वाले तथा हजारों मरीजों की जान से खिलवाड़ करने का अधिकार पत्र बेचने वाले इस महापापी एवं महान मुजरिम को आखिर कब और क्या सजा मिलती है। जरा कल्पना कीजिए कि इसी भ्रष्टाचार का प्रतीक बने केतन देसाई की रिश्वतखोरी के चलते ही डॉक्टर की पढ़ाई पढऩेे के इच्छुक लाखों होनहार छात्र मात्र इसीलिए डॉक्टर ही नहीं बन सके क्योंकि उनके अभिभावक दस-बीस और तीस लाख रुपये खर्च कर अपने बच्चे को मेडिकल शिक्षा दिलवा पाने की हैसियत नहीं रखते थे। दूसरी ओर तमाम धनाढ्यों की अयोग्य संतानें मात्र अपने धन के बलबूते पर डॉक्टरी का प्रमाण पत्र लिए पूरे देश मे घूमते फिर रही हैं तथा अपना निजी नर्सिंग होम अथवा दवाखाना चलाकर मरीजों से अपनी खर्च की गई रकम बेदर्दी से वसूलने पर तुली हुई हैं।
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