मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने सिपहसलारों की सलाह पर स्वर्णिम मध्य प्रदेश बनाने का सपना संजोए जहां-तहां हाथ-पैर चला रहे हैं। इसके लिए वे विदेशों की खाक भी छान रहे हैं लेकिन प्रदेशवासियों को स्वर्णिम मध्य प्रदेश का सपना दिखा रहे मुख्यमंत्री को शायद मालूम नहीं है कि उनके सुशासन में मध्य प्रदेश देश के अन्य राज्यों की तुलना में कितना पीछे चला गया है। प्रति व्यक्ति औसत सालाना आय के हिसाब से उत्तर प्रदेश के बाद मध्य प्रदेश, देश का सबसे कम आमदनी वाला राज्य है। अर्थात भारत में प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक आय 42 हजार रुपये है, वहीं मध्य प्रदेश के नागरिक की यह आय मात्र 21 हजार रुपये है। साल 2001 में मध्य प्रदेश से अलग हुए छत्तीसगढ़ राज्य ने इतनी तरक्की कर ली कि आज वहां प्रति व्यक्ति आय 33 हजार 500 रुपये वार्षिक है, लेकिन हम पहले से छोटे राज्य होने के बाद भी तरक्की नहीं सके। इसका मुख्य कारण है हमारी दिशाहीन नीति।
मप्र की भौगोलिक स्थिति जानने वालों की माने तो प्रदेश में खनिज,खेती,उद्योग और पर्यटन की आपार संभावनाएं हैं। अगर इनका उचित तरीके से दोहन किया जाए तो मप्र को किसी के आगे हाथ पसारने की जरूरत नहीं है। लेकिन हमने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया और विदेशों में संभावनाएं तलाशते फिर रहे हैं। अभी हाल ही में अपनी इसी मंशा से शिवराज ने तीन देशों जर्मनी, नीदरलैंड और इटली की यात्रा की। यात्रा से लौटने के बाद मुख्यमंत्री श्री चौहान ने इस बात पर संतोष जताया कि इस यात्रा में मध्यप्रदेश की संभावनाओं का दिग्दर्शन करवाने में उन्हें सफलता मिली। उन्होंने यात्रा के दौरान संपन्न इंडस्ट्री इंटरऐक्टिव मीट्स को भी उल्लेखनीय रूप से सफल बताया। मुख्यमंत्री ने यात्रा के उद्देश्यों की जानकारी देते हुए कहा कि उनकी इस यात्रा का प्रमुख उद्देश्य इन देशों के कामर्स तथा इंडस्ट्री चेंबर्स, प्रमुख उद्योपतियों तथा अंतरदेशीय संगठनों में मध्यप्रदेश में कृषि तथा खाद्य प्रसंस्करण, न्यू एंड रिन्यूएबल इनर्जी, सुरक्षित उन्नत खेती, इंजीनियरिंग तथा फैशन डिजाइनिंग जैसे विभिन्न क्षेत्रों में उद्योग-व्यवसायों की स्थापना के लिये उपलब्ध संसाधनों तथा संभावनाओं के बारे में जागरूकता पैदा करना था।
अब शिवराज को कोई यह कैसे समझाए की मप्र में निवेश करने की संभावना से उन्होंने जिन तीन देशों की यात्रा कि वे आर्थिक मंदी के इस दौर में बदहाल हैं। जर्मनी और इटली की स्थिति तो फिर भी कुछ अच्छी है जबकि नीदरलैंड तो खुद भारत की ओर आंखे फैलाए हुए है। यह हम नहीं बल्कि भारत में नीदरलैंड के राजदूत बॉब हाइन्स कहते हैं। नीदरलैंड में इस समय 80 से अधिक भारतीय कंपनियां कार्यरत हैं जो कि आईटी से लेकर फॉर्मा तक के क्षेत्रों में काम कर रही हैं। नीदरलैंड सरकार भारतीय कंपनियों से लगातार निवेश का आग्रह कर रही है। हाइन्स ने माना कि बीते दो साल में आर्थिक मंदी का असर नीदरलैंड पर पड़ा है। बावजूद इसके मुख्यमंत्री के सलाहकार उन्हें ऐसे देश में निवेश की संभावना तलाशने ले जाते हैं। राज्य सरकार का सपना स्वर्णिम मध्यप्रदेश वास्तविकता के धरातल से काफी दूर है। लचर प्रशासन और कमजोर राजनीतिक इच्छा शक्ति के कारण यह कभी पूरा हो पाएगा, इसमें संदेह है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री का स्वर्णिम प्रदेश का सपना मानवीय दृष्टि से उनकी भावनाओं को व्यक्त करता हुआ प्रतीत होता है, परंतु मुख्यमंत्री मौजूदा प्रशासन वर्ग के साथ जनहित योजना के क्रियान्वयन में कितने सफल हो पाएंगे यह संदेह के दायरे में ही रहेगा। अब तक मिले परिणामों पर गौर किया जाए तो हम पाते है कि बेहतर वित्तीय प्रबंधन का दावा करने वाली सरकार ने मध्य प्रदेश को 58000 करोड़ रूपये के कर्ज में डुबा दिया है। स्थितियां इतनी खराब है कि कर्जों की अदायगी न होने के कारण कर्ज के बराबर की ही राशि ब्याज के रूप में राज्य पर अतिरिक्त वित्तीय भार बनकर आ चुकी है। इस वित्तीय वर्ष में इस ब्याज की राशि कितनी बड़ी है इसका आंकलन अभी शेष है। सरकार को प्रतिवर्ष अभी तक 6500 करोड़ रूपये का ब्याज चुकाना है। यह राशि आने वाले दस वर्षों में भुगतान की जानी है। राष्ट्रीय कार्यक्रमों के प्रति राज्य सरकार का रवैया बहुत प्रभावशाली नहीं है। नरेगा में व्याप्त भ्रष्टाचार की शिकायत आम हो चुकी है। राज्य सरकार द्वारा स्वयं कर्जे में डूबे रहने के बाद दूसरों को गारंटी देने की प्रवृत्ति राज्य को भीषण तंगी की ओर ले गई है। सरकार द्वारा इस तरह की गारंटी देने के बावजूद राज्य पर लगभग 60 करोड़ का कर्ज चढ़ चुका है। सरकार ने 13000 करोड़ के खर्च पर बैंक गारंटी दे रखी है। यह गारंटी कुछ निजी कंपनियों के अलावा अद्र्ध शासकीय संस्थाओं और निगम मण्डलों की वजह से दी गई है। सरकार के 2009-10 के आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक सन 1999-2000 में राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का अंशदान 28 प्रतिशत था जो 2008-09 में घटकर 20.53 प्रतिशत रह गया है। सरकार लाख दावे करे, पर कृषि क्षेत्र में विकास दर कम हो रही है। कृषि क्षेत्र आर्थिक रूप से जर्जर हो रहा है, इसलिए रोजगार अवसर भी कम हो रहे हैं। प्रदेश की ग्रामीण, आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था अस्त-व्यस्त और बर्बाद हो गई है। जानकार कहते हैं कि मध्य प्रदेश में विकास की अपार संभावनाएं हैं, लेकिन उनका दोहन अभी तक नहीं हुआ है। अगर सरकार की मंशा विकास की है तो उसे कहीं जाने की जरूरत नहीं है वह अपनी संपदाओं का उचित तरीके से दोहन कर के तो देखे।
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