सोमवार, 2 नवंबर 2015
क्या सिंहस्थ के अभिशाप का मिथक तोड़ पाएंगे शिवराज
मुख्यमंत्रियों के लिए शुभ नहीं रहा है सिंहस्थ
अभी तक पांच मुख्यमंत्री असमय गवां चुके हैं अपनी कुर्सी
सट्टा बाजार में भी लग रहा दांव
भोपाल। 273 साल पहले शुरू हुई परंपरा के अनुसार 20 सितंबर को जब मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने नासिक में साधु-संतों और शंकराचार्यों को सिंहस्थ 2016 में आने के लिए निमंत्रण दिया, तो प्रदेश की राजनीतिक वीथिकाओं में यह चर्चा जारों पर चल पड़ी हैं कि क्या शिवराज मुख्यमंत्रियों के लिए अशुभ समझे जाने वाल सिंहस्थ का मिथक तोड़ पाएंगे। दरअसल, अभी तक सिहस्थ की तैयारी कराने वाले या संपन्न कराने वाले पांच मुख्यमंत्री अपनी कुर्सी असमय गवां चुके हैं। इसलिए यह चर्चा एक बार फिर जोर पकड़ रही है। इसको लेकर ज्योतिषाचार्यो के भी अलग-अलग मत हैं, वहीं वर्तमान में शिवराज, उनके परिजन और सरकार पर लगने वाले आरोपों को इसी परिपेक्ष्य में देखा जा रहा है। उधर, सटोरियों ने भी सिंहस्थ के इस मिथक को भुनाने की तैयारी कर ली है। अभी तक करीब 122 करोड़ रूपए दांव पर लग चुके हैं।
वैसे देखा जाए तो महाकाल की नगरी उज्जैन को मिथकों का शहर कहा जाता है। इसके बारे में ऐसा माना जाता है यह ऐसा नगर है कि यहां यदि किसी मुख्यमंत्री ने रात गुजारी तो उसे किसी न किसी कारणवश 6 महीने के अंदर ही अपना पद छोडऩे पर मजबूर होना पड़ा। यहां तक कि अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री भी महाकाल के दर्शन के लिए उज्जैन तो आते हैं लेकिन वे यहां कभी रात नहीं गुजराते। तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह वर्ष 2003 में उज्जैन एक कार्यक्रम में आए थे और रात अधिक हो जाने के कारण वे यही रुक गए थे लेकिन इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा और नवंबर 2003 के विधानसभा चुनाव में उन्हें करारी पराजय का सामना करना पड़ा। इसी कड़ी में यह भी मिथक है कि महाकाल की नगरी में आयोजित सिंहस्थ के दौरान मुख्यमंत्रियों की विदाई तय मानी जाती है।
1 नवंबर 1956 में मध्यप्रदेश के गठन के बाद से अब तक जितने भी मुख्यमंत्रियों के शासनकाल में सिंहस्थ की तैयारी शुरू हुई या सिंहस्थ संपन्न हुआ उनकी कुर्सी जाती रही। मध्य प्रदेश के गठन के बाद पहला सिंहस्थ तात्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह के नेतृत्व में वर्ष 1968 में आयोजित हुआ और उसके 11 माह के भीतर ही 12 मार्च 1969 को गोविंद नारायण सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा। उसके बाद 1980 में तात्कालीन मुख्यमंत्री विरेंद्र कुमार सकलेचा ने सिंहस्थ की तैयारियां शुरू करवाईं। लेकिन सिंहस्थ शुरू होने से पहले ही 19 जनवरी 1980 को उनकी कुर्सी चली गई और 20 जनवरी 1980 को सुंदरलाल पटवा मुख्यमंत्री बने। लेकिन 17 फरवरी 1980 वे भी रुखसत हो गए और 18 फरवरी 1980 को प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागे हो गया। राष्ट्रपति शासन में ही सिंहस्थ संपन्न हुआ। पटवा के साथ सिंहस्थ से जुड़ा हादसा दो बार हुआ। मार्च 1990 में मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए पटवा ने सिंहस्थ का सफल आयोजन किया लेकिन सिंहस्थ सम्पन्न होने के चंद माह बाद ही 15 दिसंबर 1992 को उनकी कुर्सी जाती रही है और अयोध्या में विवादास्पद ढांचा विध्वंस के कारण राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। उसके बाद 2004 के सिंहस्थ के लिए दिग्विजय सिंह ने तैयारियां शुरू करवाई थी। लेकिन सिहस्थ शुरू होने से पहले हुए विधानसभा चुनाव में उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा और सत्ता उनके हाथ से चली गई। उसके बाद उमाभारती ने मुख्यमंत्री पद संभाला और सिंहस्थ का सफल आयोजन संपन्न करवाया। किंतु फिर भी महाकाल प्रसन्न नहीं हुए और 23 अगस्त 2004 को वे मध्यप्रदेश से कुछ इस अंदाज में रुखसत हुई कि आज तक प्रदेश की राजनीति में उनका कोई दखल नहीं है। सिंहस्थ का अगला पड़ाव वर्ष 2016 में है देखना यह है कि 2016 के बाद मध्यप्रदेश की राजनीति में शीर्ष क्रम पर कोई बदलाव आता है या नहीं। क्योंकि इस बार शिवराज सिंह चौहान की देखरेख में ही सिंहस्थ की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। ऐसे में 20 सितंबर को जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती, निश्चलानंद सरस्वती, जूना अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरी से मुलाकात कर सिंहस्थ का निमंत्रण पत्र दिया तो यह चर्चा छिड़ गई है कि क्या शिवराज सिंहस्थ से संबंधित मिथक को तोड़ पाएंगे।
काल उसका क्या करे जो भक्त हो महाकाल का
सिंहस्थ के इस मिथक को लेकर ज्योतिषाचार्यों के अलग-अलग मत हैं। कुछ ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि शिवराज सिंह चौहान महाकाल के अनन्य भक्त हैं। वे पूरी आस्था और निष्ठा से सिंहस्थ को संपन्न कराने में जुटे हुए हैं। अगर ऊपरी मौर पर देखा जाए तो यही कहा जा सकता है कि काल उसका क्या करे जो भक्त हो महाकाल का।
ज्योतिषाचार्य कृष्ण शरण राजोरिया कहते हैं कि शिवराज सिंह चौहान की कुंभ राशि है और वर्तमान में कुंभ राशि का समय कमजोर होने के साथ नकारात्मक चल रहा है। उसका कारण है कि राशि के 8वें भाव में राहू चल रहे हैं जो कि जनवरी 2016 तक रहेंगे। लेकिन जुलाई 2015 में सिंहस्थ गुरू भी लग गए हैं जो शिवराज सिंह चौहान की मदद करेंगे। वहीं वर्तमान में शत्रु भाव का गोचर चल रहा है, जो उनकी परेशानी बढ़ा रहा है। कुल मिलाकर 13 जुलाई 2015 तक का समय शिवराजसिंह चौहान के लिए कमजोर था और तब तक ही वह परेशानी में रहे। अब निश्चित तौर पर 2016 के बाद वह अपना कार्यकाल बिना किसी परेशानी के पूर्ण कर लेंगे। हालांकि उन्होंने यह भी बताया कि ग्रह नक्षत्र के साथ-साथ व्यक्ति के कर्म भी लाभ और हानि में अहम भूमिका निभाते हैं।
सिंहस्थ के दौरान अनिष्टकारी ग्रह योग
ज्योतिष की दृष्टि से सिंहस्थ के दौरान अनिष्टकारी ग्रह योग बन रहे हैं। कई ज्योतिषाचार्य यह कह चुके हैं। अब सरकार ने भी इस पर चिंता जताई है। संतों सहित ज्योतिषाचार्यों से पूछा जा रहा है कि क्या करें। संभागायुक्त रवींद्र पस्तोर ने यह जिम्मा सिंहस्थ प्राधिकरण अध्यक्ष दिवाकर नातू को सौंपा है। ज्योतिषाचार्य अनुष्ठान पर 2-3 करोड़ रुपए का खर्च बता रहे हैं। ज्योतिष अनुसार 27 जनवरी से अगस्त 2016 तक राहु और गुरु का युतीय योग है, जिसे गुरु चांडाल योग कहा जाता है। यह अनिष्टकारक होता है। इस अवधि में ही सिंहस्थ है। सिंहस्थ की कुंडली के हिसाब से मेष राशि पर मुख्य स्नान होगा। चार ग्रहों की युतीय, उस पर राहु और गुरु की पूर्ण दृष्टि है। इस परिस्थिति में ग्रह टकराएंगे। ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि से तब प्राकृतिक आपदा, महामारी जैसे योग बनेंगे। ऐसे योग 96 साल पहले सन 1921 में बने थे। ज्योतिर्विद पं. आनंदशंकर व्यास के अनुसार योग के प्रभाव को कम करने के लिए लक्ष्यचंडी, अतिरुद्र यज्ञ, गणपति लक्ष्य आवर्तन, शनि-मंगल ग्रह शांति यज्ञ कराए जाने का सुझाव दिया है। इन पर करीब 2-3 करोड़ रुपए का खर्च अनुमानित है। तिरुपति धाम मंदिर के रामानुजाचार्य स्वामी श्री कांताचार्यजी महाराज के अनुसार प्रशासन केवल सिंहस्थ की व्यवस्था देखे। साधु-संन्यासी को मिलकर अनिष्टकारी योग का उपाय करना चाहिए। उधर, सिंहस्थ मेला प्राधिकरण के अध्यक्ष दिवाकर नातू कहते हैं कि ज्योतिष की दृष्टि से ग्रह दशा प्रतिकूल बताई जा रही है, इसलिए संतों से चर्चा कर रहे हैं। धार्मिक दृष्टि से जो भी उपाय सामने आएंगे, नागरिकों के साथ मिलकर किए जाएंगे।
तिरूपति धाम मंदिर, बडऩगर रोड के श्रीमद् जगतगुरु रामानुजाचार्य स्वामी श्रीकांताचार्यजी महाराज ने कहा कि देश के भविष्य पर कुछ अनिष्ठकारक ग्रहों के संयोग से विपरीत परिस्थितियां उत्पन्न होने वाली है। बहुत समय बाद 27 जनवरी से अगस्त 2016 तक राहु एवं गुरु की युतीय (योग) मिल रहा है, जिसे गुरु चाण्डाल योग कहते हैं। यह योग बहुत उपद्रवी, मारक एवं अनिष्टकारक होता है। बृहस्पति को बुद्धि का देवता कहा गया है। जब वही चाण्डाल हो गया तो क्या स्थितियां बनेंगी। इस योग से विधायिका, न्याय पालिका, राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न होगी। राज्य और केन्द्र तथा अधिकारियों-कर्मचारियों में टकराव की संभावना बनेगी। स्वामीजी ने बताया कि इसी मध्य में उज्जैन का सिंहस्थ आ रहा है। सिंहस्थ की कुंडली के हिसाब से मेष राशि पर मुख्य स्नान हो रहा है। जहां चार ग्रहों की युतीय है। उस पर राहु और गुरु की पूर्ण दृष्टि है। इस परिस्थिति में ग्रह आपस में टकराएंगे और साधु-संन्यासियों के बीच भी टकरार की स्थिति निर्मित हो सकती है। इस परिस्थिति को टालने के लिए शासन और समाज तथा संतों तथा विद्वतजनों को मिलकर अनिष्टकारी योग का उपाय करना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि वैष्णव लोग सुदर्शन शपथ, संन्यासी महामृत्युंजय, सातजन (सती उपासक) दुर्गा सप्तसती की आराधना करे तो देश और सिंहस्थ का कल्याण हो सकता है। इस दुष्परिणाम के आने से पहले फरवरी से अप्रैल तक सारे उपाय हो जाना चाहिए।
उनका कहना है कि सिंहस्थ में साधु संत धर्म-कर्म एवं विश्व कल्याण की भावना से आते हैं। उन्हें अनिष्टकारक योग के प्रभाव को कम करने के लिए यज्ञ और जाप करने का सुझाव दिया है ताकि इस योग के प्रभाव को रोका जा सके। स्वामीजी ने यह भी कहा कि शासन-प्रशासन सिंहस्थ के लिए चाकचौबंद व्यवस्था करें। यात्रियों के आने जाने के मार्ग को सुव्यवस्थित करें। चारों दिशाओं से आने वाले यात्रियों के लिए वाहन पार्किंग बनाएं। मेले में आने जाने के लिए सुविधाजनक संसाधनों की व्यवस्था की जाए, जिससे किसी यात्री को परेशानी न हो सके। सिंहस्थ में आने वाले नागरिकों को एक स्थान पर नहीं रोका जाए, उन्हें चलते-फिरते रहने के लिए प्रेरित करें, जिससे संभावित दुर्घटनाओं को टाला जा सके। लेकिन इस बीच कई ज्योतिषाचार्य यह भी कहने से नहीं चुकते हैं कि इस दौरान राजनीतिक अस्थिरता की जो स्थिति निर्मित होगी उसका परिणाम निश्चित रूप से चिंतनीय होगा। ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि किसी भी ग्रह नक्षत्र का सबसे अधिक प्रतिफल शासक वर्ग पर पड़ता है, इसलिए सरकार को भी इस दिशा में उचित कदम उठाना चााहिए।
जारी रहेगा बदनामी का सिलसिला
व्यापमं घोटाले में बदनामी झेल रहे शिवराज सिंह चौहान ने सीबीआई जांच के बाद भले ही 'राहतवाला पानÓ खाने का प्रयास किया हो परंतु फिलहाल उनकी कठिनाईयां कम होने वाली नहीं हैं। संसद और विधानसभा के मानसून सत्र में भी शिवराज सिंह की प्रतिष्ठा गिरी और बदनामी भी हुई। यह सिलसिला सितम्बर तक तो तेजी से चला और आगे भी यह लगातार चलता रहेगा, हालांकि उसकी गति मंथर रहेगी। ज्योतिषाचार्य पंडित अमर डिब्बेवाला के अनुसार शिवराज सिंह चौहान की नाम राशि के आधार पर ग्रहों का दृष्टि संबंधन विभिन्न राशियों के गोचर फल के आधार पर अलग-अलग क्षेत्रों को प्रभावित कर रहा है। मध्यप्रदेश की गोचर काल स्थिति सभी तरह के दृष्टिकोण से कहीं न कहीं प्रभावित करती रहेगी। वर्तमान में बृहस्पति ने कर्क राशि में प्रवेश किया है। चुंकि शिवराज की कुंभ राशि है और इस कारण राहत जरूर मिलेगी लेकिन इसके बाद भी शनि की वक्र दृष्टि उनके सम्मान को प्रभावित करने का प्रयास करेगी। यह स्थिति सिंतबर के बाद भले ही थोड़ी बहुत बदल जाएगी और उन्हें राहत का एहसास होगा लेकिन इसी बीच उन्हें चाहे व्यापमं घोटाला हो या फिर अन्य किसी तरह का घोटाला ही क्यों न हो, कहीं न कहीं उन्हें परेशानी सामने आएगी।
परंपरा का मान रखा शिवराज ने
कुछ ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि शिवराज सिंह चौहान महाकाल के भक्त हैं। इसलिए वे सिंहस्थ के मिथक को जानते हुए भी परंपराओं का मान रख रहे हैं। यही कारण है कि 273 साल पहले तत्कालीन शासक राणोजी शिंदे द्वारा शुरू की गई परंपरा का मान रखते हुए वे सपरिवार संतों को न्योता देने नासिक गए। वर्ष 2003 में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी गए थे। ज्योतिर्विद पं. आनंदशंकर व्यास ने बताया कि साधुओं में संषर्घ के कारण वर्ष 1719 और 1731 के सिंहस्थ शिथिल रहे थे। तत्कालीन सत्ता प्रमुख राणोजी शिंदे सिंहस्थ को दोबारा उल्लासपूर्वक शुरू कराने के उद्देश्य से 1743 में साधु-संतों को निमंत्रण देने नासिक गए थे। यह परंपरा आज तक जारी है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि कहते हैं कि मुख्यमंत्री का यह प्रयास सराहनीय है। संत समाज का स्नेह एवं आशीष उनके साथ है। पंचायती निरंजनी अखाड़ा के स्वामी शांतिस्वरूपानंद जी महाराज महामंडलेश्वर कहते हैं कि राज्य शासन के मुखिया की यह पहल अच्छी है। विनम्र होने से व्यक्ति का मान बढ़ता है। संतों का कहना है कि जब शासक इतना विनम्र हो तो महाकाल किसी प्रकार का अनिष्ट कैसे होने देंगे।
122 करोड़ का लगा दांव पर
क्या शिवराज सिंहस्थ का मिथक तोड़ पाएंगे या नहीं इसको लेकर सट्टा बाजार में भी दांव लगने लगा है। अभी तक केवल भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर, रतलाम और कुछ अन्य शहरों के सटारिए ही इसको लेकर दांव लगा रहे है। अभी तक करीब 122 करोड़ रूपए का दांव लगा है। इसमें से करीब 70 करोड़ रूपए का दांव तो 24 सितंबर को व्यापमं के आरोपियों के यहां पड़े इनकम टैक्स के छापे के बाद लगा है। इस छापे के बाद प्रदेश के गली-मोहल्ले, घरों के ड्रार्इंग रूम के अलावा मंत्रालय से लेकर सड़क तक हरेक की जुबां पर एक ही सवाल है, क्या व्यापमं घोटाला प्रदेश में राजनीतिक भूचाल लाएगा? गौरतलब है कि राजनीतिक अनुमान और क्रिकेट के खेल के सट्टे पर होने वाली दांवबाजी का पूरा नियंत्रण दुबई से है। लेकिन अभी प्रदेश स्तर पर सट्टा बाजार में दांव खेला जा रहा है। राजधानी के उपनगर बैरागढ़ के एक सटारिए का कहना है कि अधिकांश लोग दांव लगा रहे हैं कि शिवराज सिंह चौहान लगातार मुख्यमंत्री बने रहेंगे। प्रदेश भर के सटोरियों को पूरा यकीन हो गया है कि मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की कुर्सी को कोई खतरा नहीं है। बताया जाता है कि जैसे-जैसे यह खबर राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचेगी सटोरिए बड़े-बड़े दांव खेलेंगे। सटोरियों को लग रहा है कि शिवराज के पक्ष पर दांव लगाने से फायदा ज्यादा होगा। लिहाजा शिवराज के पक्ष में 1 रुपए पर 75 पैसे का भाव मिल रहा है, जबकि उनके विपक्ष में 1 रुपए पर 1.35 रुपये का भाव मिल रहा है। जिसके लिए ज्यादा भाव मिलता है उसका मतलब है उसकी कम उम्मीद।
22 अप्रैल 2016 से आरंभ होगा सिंहस्थ
सिंहस्थ के मास्टर प्लान में आधारभूत संरचनाओं को अभी से विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया जा रहा है। इस बार सिंहस्थ का आयोजन 22 अप्रैल से 21 मई 2016 तक किया जाएगा। इस बार के सिंहस्थ की तैयारियों में सिंहस्थ का प्रथम स्नान 22 अप्रैल को होगा। शाही स्नान 21 मई, अन्य स्नान 9, 11, 17, 19 मई को होगा। वहीं सवा सात किलोमीटर के नए-पुराने घाटों में सिंहस्थ में आने वाले साधुसंतों और भक्तों का स्नान होगा। दो पवित्र नदी क्षिप्रा-नर्मदा के मिलन का साक्षी बनेगा सिंहस्थ। विश्व के लगभग 100 देश से श्रद्धालुओं के आने की संभावना के चलते सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। कोई 5 करोड़ श्रद्धालुओं के आगमन की संभावना। इस बार स्विस टैंटों में आगन्तुकों के लिए 5 सितारा व्यवस्था होगी। पूरे माह होंगे सांस्कृतिक, धार्मिक आयोजन। अप्रैल में ही पेशवाई होगी। एक से छह मई तक पंचक्रोशी यात्रा का आयोजन होगा। जगह जगह धार्मिक प्रवचन और सत्संग का आयोजन किया जाएगा। 23 हजार पुलिस बल तथा प्रशासनिक व्यवस्थाओं में 80 हजार की तैनाती होगी। इसमें 60 हजार वॉलेंटियर्स शामिल।
सिंहस्थ में करीब पांच करोड़ लोगों के आने की संभावना है, जिनमें से बड़ी संख्या मे अनिवासी भारतीय और विदेशी भी होंगे। अनिवासी भारतीयों के लिए सिंहस्थ में आना आसान माना जा सकता है,क्योंकि भारत में उनकी जड़ें होती है और उनमें से अधिकतर को भाषा संबंधी कोई दिक्कत नहीं होती, लेकिन विदेशी श्रद्धालुओं को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए सिंहस्थ के मौके पर दुभाषियों की नियुक्तियां भी की जा रही है। ये दुभाषियें अंग्रेजी के साथ ही फ्रेंच, जापानी, चीनी, स्पेनिश, रशियन, अरबी, फारसी, सिहली आदि भाषाओं के भी जानकार होंगे। इनकी मदद से विदेशी श्रद्धालु सिंहस्थ की भावना को ज्यादा अच्छी तरह समझने में सक्षम होंगे।
सिंहस्थ के पहले ही उज्जैन में कई 3, 4 और 5 स्टार होटल शुरू किए जा रहे है। ये होटल पर्यावरण के मामले में सकारात्मक होंगे। कोशिश है कि इन होटलों में एनवायरमेंट फ्रेंडली व्यवस्था हो। जैविक खेती से तैयार भोजन अतिथियों को उपलब्ध रहेगा और साफ-सफाई में पर्यावरण हितैषी उत्पादों का प्रयोग किया जाएगा। स्नान घाट और महाकाल मंदिर क्षेत्र मेंं 3 सितारा होटल बन रहे है। यंत्र महल के पास भी दो 3 स्टार होटल का निर्माण चल रहा है। तीन-चार महीनों में यह होटल कारोबार करने लगेंगे और दिसंबर से इन होटलों की बुकिंग भी शुरू हो जाएगी। त्रिवेणी पर शनि मंदिर के पास एक रिसोर्ट का निर्माण भी चल रहा है और महाकाल मंदिर के आसपास दर्जनों मकान, होटल और लॉज का निर्माण किया जा रहा है, ताकि श्रद्धालु कम खर्चे में वहां रुक सके।
सिंहस्थ को देखते हुए निकटस्थ विमान स्थल इंदौर के अहिल्याबाई होल्कर एयरपोर्ट पर विशेष उड़ानों की रुपरेखा भी बनाई जा रही है। कई अतिथि निजी या चार्टर विमानों से आएंगे। उनके विमानों को पार्वस करने की व्यवस्था भी की जा रही है। भारतीय रेल भी सिंहस्थ के श्रद्धालुओं को उज्जैन तक लाने ले जाने के लिए विशेष ट्रेन चलाने वाला है। इन ट्रेनों में सामान्य श्रेणी के डिब्बों के अलावा वातानुकूलित चेयरकार और एसी स्लीपर कोच भी होंगे। करीब 125 विशेष ट्रेन चलाने की योजना हैं, जिसकी कार्ययोजना को अंतिम रूप दिया जा रहा है। रेल मंत्रालय ने तय किया है कि सिंहस्थ के लिए एडीआरएम (एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर) स्तर के एक अधिकारी की नियुक्ति की जाएगी। अब तक सिंहस्थ के अवसर पर सीनियर डीसीएम (डिविजनल कमर्शियल मैनेजर) स्तर का अधिकारी नियुक्त होता रहा है, लेकिन इस बार एडीआरएम स्तर पर नियुक्ति का निर्णय किया गया है, ताकि वह अपने विशेष अतिरिक्त अधिकारों का त्वरित उपयोग कर निर्णय ले सके। रेलवे स्टेशन पर ही सिंहस्थ के यात्रियों के लिए अलग से अतिरिक्त कार्यालय भी खोले जाएंगे, जिनमें यात्रियों को अलग-अलग तरह की सभी सुविधाएं उपलब्ध कराने की कोशिश रहेगी।
उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सिंहस्थ 2016 महाकुंभ के लिए दुनियाभर में फैले भारतवासियों को व्यक्तिगत रूप से पत्र लिखकर आमंत्रित किया है सीएम ने भारतीय मूल के 300 संगठनों को पत्र लिखा है जिसमें लोगों को सिंहस्थ में आने के लिए प्रेरित करने का अनुरोध किया गया है आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा को ध्यान में रखते हुए पत्र के साथ सीएम ने सिंहस्थ के पुरे कार्यक्रम की जानकारी और ठहरने की सारी व्यवस्थाओं की जानकारी भी दी है। गौरतलब है कि सरकार सिंहस्थ 2016 की ग्लोबल ब्रांडिंग पर विशेष ध्यान दे रही है। सिंहस्थ 2016 की वैश्विक ब्रांडिंग की जा रही है। सिंहस्थ में पूरी दुनिया के लोग आएंगे और उन्हें आने में कोई परेशानी न हो, इसलिए उन्हें हर तरह की जानकारी और सुविधाएं मुहैया कराने के इरादे से दुनिया के सभी देशों में सिंहस्थ दूत तैनात रहेंगे। ये दूत सिंहस्थ के प्रतिनिधि होंगे। राजदूत की तरह इन्हें सुविधाएं और अधिकार तो नहीं होंगे, लेकिन यह भारत और सिंहस्थ के प्रतिनिधि अवश्य होंगे। ये सिंहस्थ दूत अनिवासी भारतीय होंगे और जिन देशों में योग्य स्थानीय निवासी मिलेंगे, उन्हें भी सिंहस्थ का दूत बनाया जा सकेगा। सिंहस्थ के अवसर पर शासन को यह लगता है कि इन दूतों की नियुक्ति से विदेशी नागरिकों को सिंहस्थ संबंधी जानकारियां पाने में कोई कष्ट नहीं होगा।
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