सोमवार, 2 नवंबर 2015
सस्ता अन्न मदद, नहीं निकम्मा बना रहा..!
माल्थस का एक सिद्धांत है जिसमें वे कहते है कि एक आदमी अगर एक मुंह लाता है तो दो हाथ भी लाता है। यानी एक आदमी अपनी आवश्यकता से दोगुना कमाने की हैसियत रखता है। सत्तर के दशक से पहले लोग न केवल अपने लिए बल्कि दूसरों के लिए भी खेती-किसानी, मेहनत-मजदूरी करके कमाई करते थे। लेकिन देश में वोट बैंक की खातिर हमारी सरकारों ने वृद्धावस्था पेंशन, बेरोजगारी भत्ता, सस्ता अनाज, मुफ्त बिजली आदि योजनाओं को संचालित कर हरामखोरी को बढ़ा दिया है। खासकर सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी पीडीएस से मिलने वाले सस्ते अनाज और नमक ने तो लोगों को इस कदर निक्कमा बना दिया है कि अब खेतों, मनरेगा और उद्योगों के लिए भी मजदूर नहीं मिल रहे हैं। ठीक भी है, काम की बजाय खैरात में अगर भोजन-पानी मिल रहा है तो काम कौन करना चाहेगा? लेकिन लोगों में बढ़ते निकम्मेंपन के कारण खेतों में काम करने के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं। हमारे परंपरागत घरेलू उद्योग बंद हो रहे हैं। मप्र में गरीब परिवारों को मात्र एक रूपये और दो रूपये किलो हर महीने 35 किलो अनाज दिया जा रहा है। पीडीएस सिस्टम की दशा ठीक नहीं। राजीव गांधी ने कहा था केंद्र से चला एक रुपया पन्द्रह पैसे हो कर जमीन तक पहुंचता है..! इस व्यवस्था में सुधार की तरफ कोई काम नहीं किया जाता। बिचौलियों की बन आई है...वर्क कल्चर बना नहीं। काम के अवसरों की कमी है। गांव के उद्योगों को जीवित करने जरूरत है। महात्मा गांधी इस तरफ जोर देते थे, पर हम भूल गए। नहीं तो आज तक सौ फीसदी ग्रामीण अपने पैरों पर खड़े होते। वर्तमान नीतियां उन्हें मोहताज बना रही हैं वे मदद कम कर रही हैं। अब जब तक गरीब अपने पैरो पर खड़ा होने की तरफ कदम नहीं बढ़ाते, और सरकार इस तरफ उनकी मददगार नहीं बनती... मेहनतकश ये वर्ग सस्ते अन्न के लिए सरकार का मोहताज बने रहेगा..! हां पर एक मजबूत वोट बैंक वो बने रहेंगे..! सरकार की इस नीति का हमारे समाज पर क्या विपरीत असर पड़ रहा है यह ऐसे समझा जा सकता है कि-दो राज्यों में भुखमरी थी, दोनों राज्यों के लोग प्रभु से प्रार्थना कर रहे थे, उनकी दशा देख ईश्वर प्रकट हुए, कहा-जो वरदान चाहिए मांग लीजिये..पहले राज्य के नागरिकों ने मांगा हमें बहुत सारी मछली और रोटी खाने को दे दीजिये, ईश्वर ने ढेर लगा दिया.. फिर दूसरे राज्य के नागरिकों से कहा वरदान में क्या चाहिए..? उन्होंने कहा ईश्वर, हमें मछली पकडऩा और खेती का हुनर सिखा दीजिए। ईश्वर ने मछली पकडऩे का गुर और बीज देकर खेती की विधि सिखा दी..! जिन्होंने रोटी मछली मांगी थी, कुछ दिन उन्होंने जम कर खाया और फिर खाना खराब होने लगा, फिर एक दिन वो खाने के काबिल न रहा और वे फिर ईश्वर से याचना करने लगे। पर प्रभु कहीं और व्यस्त थे। दूसरी तरफ जिस राज्य ने प्रभु से आत्मनिर्भर होने का गुर सीखा था वो पनप गए, दुबारा उन्होंने किसी के सामने हाथ न फैलाये..वे अब खुद दाता बन गये..! इसलिए हमें भी सरकार की योजनाओं का मोहताज होने की वजाय आत्मनिर्भर बनना चाहिए, ताकि किसी भी विषम परिस्थिति का सामना करने में हम सक्षम हों।
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