ऐसी सरकारी कोशिशों से कैसे हो सकेगा उद्योगों का विस्तार!
68,90,00,00,00,000 का सपना कब होगा अपना
बड़ों ने दिखाया सरकार को ठेंगा, छोटों को सरकार ने ठगा
भोपाल। जापान-दक्षिण कोरिया की दस दिनी यात्रा से लौटने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आंकड़ें परोसते हुए दावा किया है कि भोपाल-इंदौर मेट्रो के साथ ही प्रदेश के उद्योगों को भी जापानी और दक्षिण कोरियाई उद्योगपति गति देंगे। लेकिन यह कितनी हकीकत और कितना फसाना होगा यह तो आने वाला समय बताएगा। क्योंकि आपको तो याद होगा, ठीक एक साल पहले अक्टूबर में ही इंदौर में आयोजित ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के समापन अवसर पर यह खबर आई की देश और विदेश के उद्योगपतियों ने प्रदेश में 6.89 लाख करोड़(6890000000000) रुपए के निवेश प्रस्ताव दिए हैं तो सब गदगद हो गए। सात करोड़ की जनसंख्या वाले इस प्रदेश के हर एक बाशिंदे को लगा कि इसमें से कम से कम 98,428 रूपए की अंश पूंजी तो उसके हिस्से में आ सकती है, लेकिन जिन बड़े घरानों ने हमें यह सपना दिखाया था उन्होंने सरकार को ठेंगा दिखा दिया है। वहीं दूसरी तरफ छोटे उद्योगपति प्रदेश में निवेश के लिए दर-दर भटक रहे हैं, लेकिन उन्हें तव्वजो नहीं दी जा रही। ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसी सरकारी कोशिशों से कैसे हो सकेगा उद्योगों का विस्तार!
एक उद्योगपति की नजर से देखा जाए तो मध्यप्रदेश में उद्योगों के लिए जरूरी पानी, ऊर्जा, कनेक्टिविटी, भूमि, प्रतिभा और विश्वास है। इसी के बल पर शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश को देश की अर्थ-व्यवस्था का ड्राइविंग फोर्स बनाना चाहते है। वे अपनी इसी सोच के साथ प्रदेश में औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देने के लिए पिछले 9 साल से निरंतर प्रयास कर रहे हैं। लेकिन नौकरशाही के अडिय़ल रवैए और उद्योगपतियों की नाफरमानी के कारण प्रदेश में औद्योगिक विकास तेजी से नहीं हो पा रहा है।
365 दिन में न अंबानी आए न अडानी
इंदौर ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2014 के पहले जितने भी समिट हुए थे उनके बार में कहा जाता था कि केवल कागजी एमओयू करके उद्योगपति भूल जाते हैं कि उन्होंने क्या वादा किया है। इसलिए इंदौर ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2014 में एमओयू के साथ ही उद्योगपतियों से घोषणा कराई गई की वे मप्र में कितना निवेश करना चाहते हैं। प्रदेश में निवेश की उम्मीदों को परवान चढ़ाने वाली ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट का एक साल पूरा हो गया। समिट में निवेश के वादों के साथ एक लाख से ज्यादा को रोजगार का सपना दिखाया गया था, लेकिन वादे अभी अधूरे हैं। समिट में मंच से निवेश के लिए देश के बड़े औद्योगिक घरानों ने ऐलान किया था। औद्योगिक हस्तियां भी पलटकर दोबारा नहीं आई। इंदौर में समिट में 3 हजार से ज्यादा समूह ने 5.89 लाख करोड़ का वादा किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में मंच से बड़े औद्योगिक घरानों ने निवेश का भरोसा दिलाया था, लेकिन कोई भी समूह 365 दिन में नहीं आया है।
अनिल अंबानी-रिलायंस एडीजी ग्रुप ने सीमेंट, कोल, पॉवर और टेलीकॉम प्रोजेक्ट में 60 हजार करोड़ के निवेश की घोषणा की थी। पहले समूह ने धीरूबाई यूनिवर्सिटी के लिए अचारपुरा में जमीन ली थी। इस प्रोजेक्ट से हाथ खींच लिए। अब इंदौर में समूह ने निवेश के लिए 300 जमीन मांगी है। रिलायंस ग्रुप डिफेंस मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में प्रवेश करने की तैयारी में है। उन्होंने मप्र सरकार को रक्षा संयंत्र उत्पाद में 5000 करोड़ रुपए के निवेश का प्रस्ताव दिया है। वह मप्र में बंदूक-तोप का कारखाना खोलना चाहते हैं। मप्र में अभी रक्षा संयत्र उत्पाद बनाने वाले दो संयंत्र जबलपुर और इटारसी में आयुध निर्माण कारखाना हैं। इंदौर में रिलायंस के निवेश के बाद यह रक्षा संयत्र उत्पाद का पहला निवेश निजी क्षेत्र का होगा। उल्लेखनीय है कि भारत अभी डिफेंस सेक्टर पर लगभग 40 अरब डॉलर सालाना खर्च करता है। इस रकम का लगभग 40 प्रतिशत यानी 16 अरब डॉलर नए संयत्र और उत्पादों की खरीदारी पर खर्च होता है। वर्तमान में डिफेंस की लगभग 60 प्रतिशत खरीदारी विदेश से होती है। उद्योग विभाग के प्रमुख सचिव मोहम्मद सुलेमान के अनुसार अनिल अंबानी ग्रुप ने डिफेंस सेक्टर में निवेश करने के लिए हमसे 300 एकड़ जमीन मांगी है। हमने उन्हें इंदौर, धार, ग्वालियर और शिवपुरी में जमीनें दिखाई हैं। इंदौर के एसईजेड में वे अपना निवेश करेंगे। अब देखना यह है कि अंबानी कि यह योजना भी कागजी तो नहीं साबित होती है। वहीं मुकेश अंबानी के रिलायंस इंडस्ट्रीज ने उर्जा और आईटी के क्षेत्र में 20 हजार करोड़ के निवेश का कहा था। होशंगाबाद में जमीन देखी गई थी। बाद में पहल नहीं की गई। अब आईटी में कंपनी ने इंदौर में आने का मन बनाया है।
वादा मप्र से और काम छत्तीसगढ़ में
अडानी समूह के गौतम अडानी ने मप्र में वेयर हाउसिंग और लॉजिस्टिक के क्षेत्र में 20 हजार करोड़ के निवेश का वादा किया था। समूह ने अभी तक निवेश के लिए कोई कदम नहीं उठाया है। जबकि एक साल पहले समूह ने ग्वालियर और जबलपुर में उद्योग का कहा गया था। लेकिन समूह मप्र में की गई घोषणाओं को भूल गया है और छत्तीसगढ़ में सक्रिय हो चुका है। अंबिकापुर जिले के पासा कोल ब्लाक से कंपनी द्वारा कोयला उत्खनन कर गुजरात भेजा जा रहा है। हाल ही में कंपनी ने रायगढ़ जिला में स्थित कोरबा वेस्ट पावर प्लांट को खरीदा है, प्लांट तक कोयला आपूर्ति करने की कवायद भी शुरू कर दी गई है। उल्लेखनीय है कि अभी हाल ही में अडानी ग्रुप ने बड़वानी के खजूरी ग्राम में 1000 करोड़ रुपए का नया निवेश विंड एनर्जी प्लांट में करने की बात कही थी, लेकिन उसका भी अता-पता नहीं है। इसी तरह फ्यूचर ग्रुप के किशोर बियाणी ने फूड पार्क के क्षेत्र में दो हजार करोड़ रुपए निवेश का कहा था। ग्रुप की तरफ से बड़े फूड बाजार की योजना भी थी, लेकिन अभी तक निवेश नहीं आया है। इससे दस हजार लोगों को रोजगार मिल सकता था। एस्सार ग्रुप के शशि रूइया ने चार हजार करोड़ से कोल व बीपीओ सेक्टर के लिए हा करने के बाद कुछ नहीं किया। कोल सेक्टर के लिए सिंगरौली और उससे लगे इलाकों में जमीन मांगी गई है। फिलहाल प्रोजेक्ट आने के आसार नहीं है। एस्सेल ग्रुप के सुभाष चंद्रा ने मध्यप्रदेश में 50 हजार करोड़ रुपए का निवेश 6 परियोजना में करने वाले थे। इसमें प्रदेश के पांच शहर को स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित करने तथा हैल्थ और वैलनेस प्रोजेक्ट शामिल हैं। लेकिन उसके बाद से एस्सेल ग्रुप गायब हो गया है। समिट में पेप्सी और कोका कोला कंपनी ने निवेश का ऐलान किया था। पेप्सी ने ग्वालियर के मालनपुर में बाटलिंग प्लांट लगाने के लिए 50 एकड़ और कोका कोला ने होशंगाबाद में प्लांट के लिए 110 एकड़ जमीन मांगी थी। दोनों प्रस्ताव अटके हैं। भोपाल में छह हजार करोड़ की लागत से इलेक्ट्रानिक फेब प्लांट का दावा अमेरिकी कंपनी मेसर्स क्रिकेट सेमीकण्डक्टर ने किया था। प्लांट में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में लगने वाली माइक्रोचिप बनना है। ऐसे ही 600 करोड़ के निवेश का अमेरिकी कंपनी ब्लूमबर्ग साइंटिफिक वेयर हाउस क्षेत्र में करने आई थी। दोनों कंपनी जमीन देखने के बाद नहीं आई है।
जेपी ग्रुप ने सबसे अधिक दिखाए हवाई सपने
इन सभी औद्योगिक घरानों ने मप्र के साथ जो किया सो किया लेकिन प्रदेश को जेपी ग्रुप ने सबसे अधिक हवाई सपने दिखाया है। जेपी ग्रुप के संस्थापक जयप्रकाश गौड़ ने भोपाल में सेमी कंडक्टर मेन्यूफेक्चरिंग यूनिट लगाने को कहा था। लेकिन कंपनी की तरफ से प्रोजेक्ट से किनारा कर लिया गया है। अब कंपनी सीमेंट के सेक्टर में भी कोई निवेश नहीं करना चाह रही है। जेपी ग्रुप के जयप्रकाश गौर ने समिट में कहा था कि उनका समूह मध्यप्रदेश में 35 हजार करोड़ रुपए का निवेश करेगा। जिसमें सीमेंट प्लांट, रीवा में स्मार्ट सिटी, टीवी चैनल तथा हिन्दी समाचार-पत्र शामिल है। लेकिन पिछले 40 साल से मप्र में कार्य कर रहे समूह ने प्रदेश में निवेश से मुंह मोड़ लिया है। इसके पीछे मुख्य वजह यह बताई जा रही है की समूह लगातार कर्ज में डूबता जा रहा है। अभी हाल ही में जेपी समूह को बड़ा झटका देते हुए केयर रेटिंग्स ने जयप्रकाश एसोसिएट्स की ऋण रेटिंग घटाकर डिफॉल्ट कर दी है। बुनियादी ढांचा क्षेत्र में कारोबार करने वाली जेपी एसोसिएट्स तय समय पर अपने गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर्स की रकम चुकाने में असफल रही। इसके बाद ही इसकी रेटिंग में कटौती की गई है। आईसीआईसीआई बैंक के नेतृत्व में निजी क्षेत्र के बैंकों समेत कई बैंकों ने कंपनी को ऋण दे रखा है। केयर ने कहा कि कंपनी का वित्तीय प्रदर्शन खराब होने और आस्तियों की बिक्री से रकम प्राप्त करने में हो रही देरी के साथ ही ऋण प्रबंधन प्रक्रिया के कारण कंपनी का नकदी प्रवाह प्रभावित हुआ है। इसी वजह से कंपनी समय पर अपना ऋण नहीं चुका पा रही है। आंकड़ों के अनुसार जयप्रकाश एसोसिएट्स पर कुल 60,000 करोड़ रुपए का ऋण बकाया है, जबकि वैश्विक बैंक यूबीएस ने वित्त वर्ष 2015 के लिए समूह की कुल देनदारी 96,000 करोड़ रुपए रहने का अनुमान लगाया है। उधर, प्रदेश में निवेश में हो रही देरी के बारे में ट्राइफेक के एमडी डीपी आहूजा का कहना है कि निवेश की प्रकिया लंबी चलती है। ज्यादातर बड़े समूहों से संवाद चल रहा है। कई कंपनियां आने को तैयार है। कुछ बड़े समूह जल्द ही प्रदेश में आमद देंगे।
मंजूरी की प्रकिया लंबी
समिट में मप्र सरकार ने आश्वासन दिया था कि समिट में प्राप्त निवेश प्रस्तावों के आधार पर रोडमैप बनाया जाएगा। प्रत्येक निवेशक के साथ एक अधिकारी को जोड़कर सिंगल डोर व्यवस्था से स्वीकृतियां दिलाई जाएंगी। मध्यप्रदेश में ईज ऑफ बिजनेस डूइंग पर रिपोर्ट तैयार कर देश के सामने रखेंगे। निवेशकों के विश्वास को मध्यप्रदेश सरकार टूटने नहीं देगी। अपने वादे के मुताबिक सरकार ने सिंगल विंडो सिस्टम बनाया था। ट्राइफेक की वेबसाइट पर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के बाद ट्राइफेक को खुद इसे अमल में लाना था। औद्योगिक घरानों से समन्वय करना था, लेकिन सिस्टम पूरी तरह फेल हो चुका है। अब भी ऐसी जटिल प्रकिया है कि किसी भी उद्योग को डालने की प्रकिया एक साल में नहीं हो पाती है। विभागों में समन्वय नहीं है। उद्योगपतियों की सुविधा के लिए किए जाने वाले दावे और वादे खोखले साबित हो रहे हैं। हाल ये हैं कि भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर के आसपास औद्योगिक क्लस्टर्स में कॉमन फैसिलिटी सेंटर्स (सीएफसी) तक शुरू नहीं किया जा सका है। जबकि इसकी बातें 2012 से चल रही हैं। करीब तीन साल बाद भी वो क्लस्टर्स तक स्थापित नहीं हो सके, जहां सीएफसी शुरू होना है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि उद्योगों के विस्तार को लेकर सरकारी कोशिशें कितनी सफल या विफल साबित हो रही हैं। निवेशकों को रिझाने के लिए मप्र शासन ने उद्योगपतियों को कई तरह की सुविधाएं देने की बात तो की, लेकिन इनमें से काफी कम पर शासन खुद खरा उतर पाया। इंदौर और इसके आसपास बनाए जा रहे औद्योगिक क्लस्टर्स में कॉमन फैसिलिटी सेंटर्स (सीएफसी) शुरू करने की योजना बनाए करीब दो साल बीत गए हैं, लेकिन इस दिशा में कोई काम नहीं हो पाया। उद्यमियों को सुविधा देने वाली इन सेंटर्स की योजना बनाते समय काफी वाहवाही बटोरी गई थी, लेकिन अब करीब दो साल बाद अधिकारी यह तक नहीं बता पा रहे हैं कि सेंटर्स कब तक शुरू हो सकेंगे।
उद्योग और उद्यमियों को बढ़ाने में मिलेगी मदद
अधिकारी इस बात को खुद स्वीकार कर रहे हैं कि सीएफसी के शुरू होने के बाद उद्योग और उद्यमियों, दोनों को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। इंदौर, ग्वालियर के आसपास सभी प्रकार के उद्योगों में विस्तार की काफी संभावनाएं हैं और सीएफसी इसमें बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। सीएफसी के लिए 60 करोड़ रुपए की योजना बनाई गई है। इसके शुरू होने के बाद उद्योगों में विस्तार होगा। इसकी मदद से सूक्ष्म, लघु के साथ बड़े उद्योग स्थापित करने वाले लोगों के लिए भी प्रशिक्षण लेने और उत्पाद तैयार करने की सुविधा होगी। कई लोग ऐसे होते हैं जो निवेश की क्षमता के साथ ही उद्योगों को शुरू करने की चाह भी रखते हैं, लेकिन उचित मार्गदर्शन नहीं मिलने के कारण शुरुआत नहीं कर पा रहे। इसी तरह के लोगों को प्रशिक्षण देने और क्षमताओं का विस्तार करने के लिए इन सेंटर्स की शुरुआत की जाना है, लेकिन एकेवीएन अब तक कोई बड़ा कदम नहीं उठा पाया है।
इंदौर के आसपास क्लस्टर्स ही तैयार नहीं...
प्रदेश की औद्योगिक राजधानी इंदौर के आसपास नमकीन, फार्मा, अपेरल आदि इंडस्ट्रियल क्लस्टर्स तैयार होने हैं। इन्हीं क्लस्टर्स में सीएफसी बनाए जाना हैं। मगर अब तक क्लस्टर्स भी तैयार नहीं हो सके हैं। अधिकारियों का कहना है कि पहले क्लस्टर्स शुरू करने पर जोर दिया जा रहा है। यहां कंपनियां आने के बाद सीएफसी की कोशिशें शुरू होंगी। इधर उद्योगपतियों का मानना है कि सीएफसी के लिए कंपनियों और क्लस्टर्स का इंतजार नहीं किया जाना चाहिए। सीएफसी से नए उद्यमियों को प्रशिक्षण लेने और अपना प्रोडक्ट लॉन्च करने का मौका मिलेगा। इंडस्ट्री समय के साथ तरक्की कर सकेगी।
जापान-दक्षिण कोरिया को न्योता यहां की कंपनी को अनुमति का इंतजार
सरकार प्रदेश में उद्योग लगाने के लिए जापान-दक्षिण कोरिया के उद्योगपतियों को न्योता दे रही है, वहीं प्रदेश उद्योगपतियों को निवेश की अनुमति नहीं मिल पा रही है। अभी हाल ही में इंदौर के समीप ही गंगवाल फ्लोर फूड्स एलएलपी 100 करोड़ का निवेश करने को तैयार है, लेकिन अनुमतियों के लिए पांच माह से भटक रही है। स्थानीय अफसरों द्वारा की जा रही आनाकानी पर ट्राईफेक के एमडी ने भी आपति दर्ज कराई है। कंपनी द्वारा ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में हातोद के समीप ग्राम मुरखेड़ा में फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाने के लिए करार किया था। इसके लिए जमीन का डायवर्शन, लेआउट प्लॉन एप्रुवल, भवन निर्माण अनुज्ञा व अन्य आवश्यक अनुमतियां दी जाना है। कंपनी द्वारा आवेदन करने के पांच माह बीत गए, लेकिन आवेदनों पर कार्रवाई आगे नहीं बढ़ रही है।
उद्योग क्षेत्र के रखरखाव का खर्च बढ़ा
औद्योगिक क्षेत्र के रखरखाव का खर्च अब बढ़ गया है। प्रदेश शासन के निर्देश पर उद्योग विभाग ने औद्योगिक भूमि पर संचालित हो रहे लघु उद्योगों से पहले से 10 गुना संधारण शुल्क वसूल करने की तैयारी कर ली है। महाकोशल उद्योग संघ ने इसका विरोध किया है। संघ ने कहा है कि प्रदेश का औद्योगिक विकास सुनिश्चित करने मुख्यमंत्री ने 'मेक इन एमपीÓ का नारा दिया है। प्रदेश में उद्योगपतियों को बढ़ाने तरह-तरह की योजनाएं लागू करने के प्रयास हो रहे हैं। वहीं शासन के कुछ विभाग मुख्यमंत्री की मंशा पर पानी फेरने में जुटे हैं। हाल ही में नगर निगम प्रशासन उद्योगपतियों से भारी संपत्तिकर वसूलने का प्रयास किया। तो अब उद्योग विभाग ने लघु उद्योगों से एक फीसदी के बजाए अब 10 गुना संधारण शुल्क वसूली करने को तैयार है। इस तरह उद्योगपतियों पर दोहरी मार पड़ेगी और आर्थिक बोझ बढऩे से व्यापार भी छिन जाएगा। महासचिव डीआर जैसवानी ने कहा है कि वरिष्ठ अधिकारी वास्तविक स्थितियों से अनजान होकर, उद्योगपतियों से चर्चा किए बिना ही निर्णय कर लेते हैं। जबकि एकतरफा निर्णयों का उद्योगों के विकास पर विपरीत असर होता है। महाकोशल उद्योग संघ ऐसे निर्णयों का खुले मंच पर आकर विरोध करेगा।
नटरॉक्स परियोजना अधर में
प्रदेश के पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में खुलने वाली डिजिटल ऑटो परीक्षण परियोजना के खटाई में पडऩे के कारण मध्यप्रदेश सरकार पर तीन हजार करोड़ रुपये का वित्तीय भार पड़ सकता है। नटरॉक्स परियोजना नाम से स्थापित होने वाली इस विशाल ईकाइ में ऑटोमोबाइल्स उद्योग के उत्पादों का परीक्षण करने के लिए ऑटो ट्रेक से लेकर तमाम तरह की लैब और परीक्षण इकाईयां स्थापित की जानी थी। मध्यप्रदेश सरकार ने अगस्त 2005 में इस परियोजना के लिए 1669 हैक्टेयर जमीन उपलब्ध कराई थी। उस समय 1718 करोड़ रुपये की लागत वाली इस परियोजना में नटरॉक्स की स्थापना पर 450 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान लगाया गया था। यह भी अभिकल्पना थी कि एक बार विकसित हो जाने के बाद यह प्रोजेक्ट ऑटो उद्योग से अतिरिक्त निवेश पाने में सफल रहेगा लेकिन इस महत्वकांक्षी परियोजना को पूरा करने में हुई 5 वर्ष की देरी ने अब मध्यप्रदेश सरकार को तीन हजार करोड़ रुपये के घाटे की कगार पर खड़ा कर दिया है। परियोजना पर राज्य सरकार ने 351 करोड़ रुपये (भूमि अधिग्रहण पर) पहले ही खर्च कर दिये हैं किंतु 4143 एकड़ जमीन के कुछ हिस्से में ही काम हो पाया है बाकी हिस्सा खाली और बेकार पड़ा हुआ है। दिनों-दिन होती देरी के कारण राज्य सरकार के हाथ-पैर फूल रहे हैं क्योंकि जिन किसानों और भू मालिकों की जमीन का अधिग्रहण राज्य सरकार ने किया था वे कोर्ट की शरण में जा चुके हैं। जिला अदालत ने सरकार से गैर सिंचित भूमि के लिए 30 लाख 57 हजार और सिंचित भूमि के लिए 48 लाख 92 हजार प्रति हैक्टेयर की दर से राशि उन किसानों को देने का कहा है जिनकी जमींने अधिकृत की गई हैं। ये जमीने जिनका आकार 1412 हैक्टेयर के करीब है 10 गांवों की कृषि भूमि है जिनसे 160 परिवारों को विस्थापित भी किया गया है। 256.3 हैक्टेयर जमीन सरकारी है।
कुल मिलाकर 615.91 करोड़ रुपये 1014.55 हैक्टेयर सिंचित और 390.87 हैक्टेयर गैर सिंचित भूमि के लिए कोर्ट के आदेश के बाद देने थे। लेकिन किसानों ने इस हर्जाने की रकम से असहमति जताते हुए इंदौर में हाईकोर्ट की बैंच में अपील कर दी। इसके बाद हाईकोर्ट ने सिंचित भूमि के लिए 1 करोड़ 4 लाख और असिंचित भूमि के लिए 69 लाख 89 हजार प्रति हैक्टेयर की दर से हर्जाना देने का आदेश दिया है। इसका अर्थ यह हुआ कि मध्यप्रदेश सरकार को 1336 करोड़ 88 लाख रुपये का हर्जाना किसानों को देना होगा। यही नहीं यदि भूमि अधिग्रहण, पुर्नवास और पुर्नस्थापन अधिनियम 2013 का पालन किया गया तो प्रोजेक्ट पाँच वर्ष तक अपूर्ण रहने की स्थिति में जमीनों को उनके वास्तविक मालिकों को लौटाना होगा। मतलब दोहरा घाटा। मध्यप्रदेश के उद्योग विभाग के सूत्रों का कहना है कि 90 प्रतिशत जमीन अनुपयोगी पड़ी हुई है। यदि इस पर काम प्रारंभ हुआ तो अगले तीन वर्ष काम पूर्ण होने में लगेंगे। इस प्रकार 5 वर्ष तो यूं ही बीत जायेंगे। उद्योग विभाग के आयुक्त वीएल कान्ताराव कहते हैं कि सरकार सुप्रीम कोर्ट में यह मुकदमा हारती है तो यह एक बड़ी लायबिलिटी साबित होगी। यदि नाटरॉक्स जमीन वापस लौटा दे तो कम से कम उस जमीन पर नई औद्योगिक इकाईयां डालकर कुछ पैसा कमाया जा सकता है। खास बात यह है कि यह जमीन मध्यप्रदेश सरकार ने उद्योगों को बढ़ावा देने की नीति के तहत मात्र 100 रुपये में नटरॉक्स को मुहैया कराई थी और अब इन सातों परियोजनाओं की लागत बढ़कर 3827.30 करोड़ रुपये तक पहुँच चुकी है। जहां तक केन्द्र सरकार का प्रश्न है वहां कछुआ चाल से काम हो रहा है। इंदौर का पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र ऑटोमोबाइल और ऑटो कंपोनेंट के निर्माण के लिए एशिया के डेट्रोइट नाम से विख्यात है। पीथमपुर इलाके में फोर्ड मोटर्स और आयशर जैसी कंपनियों ने भी इकाईयां स्थापित की हुई हैं। इस तरह के 6 प्रोजेक्ट सारे देश में लगने थे। पीथमपुर प्रोजेक्ट वर्ष 2010 में ही पूरा होना था लेकिन 5 साल निकल चुके हैं एक कदम भी आगे नहीं बढ़े। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने केन्द्रीय भारी उद्योग मंत्री अनंत गीते से इस वर्ष जून में मुलाकात करके 1669 हैक्टेयर में से 1125 एकड़ जमीन लौटाने की मांग की थी। नटरॉक्स के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि केन्द्रिय भारी उद्योग मंत्रालय ने अतिरिक्त हर्जाने से संबंधित मामले की पड़ताल के लिए एक समिति नियुक्त की है। इस समिति ने राज्य सरकार को 1125 एकड़ अनुपयोगी जमीन लौटाने की अनुशंसा की है। यह प्रस्ताव केन्द्रीय कैबिनेट के समक्ष अनुमोदन के लिए लंबित है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस परियोजना की गति बढ़ाने का निवेदन भी किया है। परियोजना में 700 लोगों को सीधे रोजगार मिलेगा। पीथमपुर के अलावा चेन्नई, मनेसर, सिलचर, अराई, रायबरेली और अहमद नगर में भी इसी तरह के प्रोजेक्ट खुलने हैं। सवाल यह है कि यदि सरकार को जमीन लौटानी पड़ी तो जो भी खर्च हुआ है उसकी जिम्मेदारी किसके माथे आयेगी। मध्यप्रदेश में कई औद्योगिक घरानों ने भी बड़ी क्षेत्रफल की जमीने ले रखी हैं जिन्हें अब वापस लौटाया जा रहा है। सरकार इनवेस्टर्स मीट कराती है, लाखों करोड़ रुपये के एमओयू पर दस्तखत किये जाते हैं, लेकिन ढाक के वही तीन पात। जमीन पर कहीं भी काम होता दिखाई नहीं पड़ता। यही हाल रहा तो मध्यप्रदेश देश के औद्योगिक नक्शे पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल नहीं हो सकेगा।
कारोबार के लिए सुगम राज्यों में मप्र पांचवे स्थान पर
एक तरफ तो मध्यप्रदेश सरकार उद्योग को बढ़ावा देने के नाम पर इन्वेटर्स मीट का आयोजन कर निवेश के लिए जुनून की हद तक प्रयास कर रही है वही दूसरी तरफ सरकारी लालफीताशाही के कारण कई प्रोजेक्ट 5-5 वर्षों से लटक रहे हैं। इससे सरकार के तमाम प्रयासों पर पानी फिर रहा है। इसी का परिणाम है कि कारोबार के लिए सुगम राज्यों में हम छतीसगढ़ और झारखंड से भी पिछड़े हैं। भाजपा शासित गुजरात उद्योग-व्यवसाय के लिहाज से सुगमता वाले राज्यों की सूची में गुजरात शीर्ष पर है। यानी गुजरात में उद्योग-व्यवसाय लगाना-चलाना सबसे आसान है। देश के राज्यों में कारोबार में सुगमता पर पहली बार जारी अपनी तरह की इस को विश्व बैंक ने तैयार किया गया है। इस रैंकिंग में भाजपा शासित राज्य शीर्ष पांच में से चार स्थानों पर काबिज हैं। भाजपा के सहयोगी तेलुगूदेशम पार्टी (टीडीपी) शासित आंध्र प्रदेश दूसरे स्थान पर रहा। इनके बाद क्रमश: झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान का स्थान है। ये सभी राज्य भाजपा शासन वाले हैं।
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