सोमवार, 2 नवंबर 2015
चहेतों के कारण चित हुए मंत्री
निजी एजेंसी की सर्वे रिपोर्ट से आलकमान चिंतित
स्टाफ के कारण मंत्री और प्रमुख सचिव में लगातार बढ़ रही दूरी
भोपाल। मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और वरिष्ठ अफसरों के प्रयास से मप्र में लगातार विकास हो रहा है। लेकिन शिवराज मंत्रिमंडल के सदस्यों के स्टाफ की नाफरमानी के कारण कई योजनाएं मूर्त रूप नहीं ले पा रही हैं। इसके कारण मंत्रियों की परफार्मेंस खराब हो रही है। इसका खुलासा संघ और केंद्रीय संगठन द्वारा हाल ही में एक निजी एजेंसी द्वारा तैयार करवाई गई रिपोर्ट में हुआ है। यही नहीं रिपोर्ट में कहा गया है कि अपने स्टाफ के मोहफांस में फंसे कई मंत्री विभाग के प्रमुख सचिव को भी महत्व नहीं दे पा रहे हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है की कई प्रमुख सचिव बिना मंत्री के अनुमोदन और अनुशंसा के ही योजनाओं का खाका तैयार कर रहे हैं और मुख्य सचिव या मुख्यमंत्री को रिपोर्ट दे रहे हैं। बताया जाता है कि केंद्रीय नेतृत्व इस रिपोर्ट का अध्ययन कर रहा है। जिसमें उल्लेखित है कि मप्र के काबीना मंत्री मुख्यमंत्री की बात हमेशा दरकिनार करते रहे हैं। मंत्रियों ने मुख्यमंत्री द्वारा पुराना स्टाफ न रखे जाने के फरमान को तुरंत ही पलीता लगा दिया था। जिसके कारण मंत्री के पीए और पीएस विभाग के वरिष्ठ अफसरों को मंत्री के पास फटकने तक नहीं देते हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि योजनाओं का क्रियान्वयन ठीक से नहीं हो पा रहा है। संभवत: मंत्रिमंडल विस्तार में यह रिपोर्ट महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी।
बताया जाता है कि मंत्रियों के खिलाफ संगठन के नेताओं द्वारा की जा रही शिकायतों का सत्यापन कराने के उद्देश्य से केंद्रीय संगठन ने यह सर्वे कराया है। इसके तहत मंत्रियों के विभाग में पदस्थ अफसरों-कर्मचारियों के अलावा संबंधित विभाग की योजनाओं का लाभ ले रहे हितग्राहियों और पार्टी कार्यकर्ताओं से चर्चा की गई है। साथ ही विभाग की योजनाओं के क्रियान्वयन में जुटी एजेंसियों और ठेकेदारों के भी मत लिए गए हैं। जिसमें यह तथ्य निकलकर सामने आया है कि मंत्रियों के स्टाफ के हस्तक्षेप के कारण कई योजनाएं-परियोजनाएं लटकी पड़ी हैं। कुछ मंत्री तो पूरी तरह पीए और पीएस पर निर्भर हैं, इसका फायदा ये लोग जमकर उठा रहे हैं।
दरअसल, 21 दिसम्बर, 2013 को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जब अपनी कैबिनेट का गठन किया तो उन्होंने मंत्रियों को हिदायत दी थी कि वे अपने स्टाफ में अच्छे लोगों को रखें ताकि पिछली बार की तरह पार्टी और सरकार की छवि धूमिल न हो। लेकिन एक भी मंत्री ने मुख्यमंत्री की हिदायत नहीं सुनी और अपने चहेते लोगों को स्टाफ में रख लिया। ये वे लोग हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि प्रदेश में सत्ता किसी की भी हो, चाहे जो मंत्री बने इनकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता। अपने मैनेजमेंट से ये सरकार में अपना रसूख कायम रखते हैं। एक तो करौला ऊपर से नीम चढ़ा वाली कहावत इन पर खरी उतर रही है। यानी पहले से ही विवादित (करैलानुमा) इन अफसरों को ऐसे मंत्रियों (नीमनुमा )का साथ मिल गया है जिससे सरकार की छवि दागदार हो रही है। इससे भाजपा में शुद्धिकरण के सारे प्रयास विफल हो रहे हैं। ऐसा भी नहीं की इसकी भनक सरकार और संगठन को नहीं है। अपने कदावर मंत्रियों की करतूते जानने के बाद भी सरकार मजबूर है लेकिन संगठन ने सर्वे रिपोर्ट आने के बाद शुद्धिकरण के लिए किसी भी हद तक जाने का मन बना लिया है। बताया जाता है कि मध्यप्रदेश में इन दिनों मंत्रियों और उनके स्टाफ की करतूतों को लेकर उच्च स्तर पर जबरदस्त बवाल मचा है। सूत्र बताते हैं कि राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, प्रदेश प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे और राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल की तिकड़ी इस मामले में परफार्मेंस और पार्टी के प्रति निष्ठा को आधार बनाकर बड़े निर्णय ले सकती है। मंत्रिमंडल में फेरबदल कर या उनके विभाग बदल कर इन विवादित मंत्रियों को सबक सिखाया जा सकता है ताकि मंत्रियों और अधिकारियों की जुगलबंदी से निजात मिल सके।
शिवराज सिंह चौहान सरकार पर मंत्रियों के विभाग और की निजी स्थापना में पदस्थ अधिकारी भारी पड़ रहे हैं। सरकार के कामकाज में पारदर्शिता और स्वच्छता की वकालत के बीच मंत्रियों के निज सचिव, निज सहायक और विशेष सहायक जब-तब भ्रष्टाचार और अनियमितता को लेकर सुर्खियां बटोरते रहे हैं। भाजपा संगठन की नजर भी इस मामले में कुछ विशेष सहायकों पर टेढ़ी है, जिनके खिलाफ गंभीर मामलों में लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू में प्रकरण दर्ज है। प्रदेश में तीसरी बार भाजपा की सरकार बनने के बाद मंत्रियों के निजी स्टाफ में पदस्थ होने वाले अधिकारियों एवं कर्मचारियों के बारे में संगठन ने गाइडलाइन जारी की थी। लेकिन अधिकांश मंत्रियों ने उसका पालन नहीं किया। मुख्यमंत्री के निर्देशों को दरकिनार कर वरिष्ठ मंत्री बाबूलाल गौर, जयंत मलैया, गोपाल भार्गव, नरोत्तम मिश्रा, गौरीशंकर बिसेन, कुसुम मेहदेले, यशोधरा राजे सिंधिया एवं भूपेंद्र सिंह अपनी पसंद के पुराने कर्मचारियों को निजी स्टाफ में रखने में कामयाब रहे।
इन मंत्रियों के चहेतों ने बिगाड़ी सरकार की छवि
मध्यप्रदेश के मंत्रियों में से कुछ को तो सत्ता में रहने का अच्छा खासा अनुभव है और उनमें भी कुछ ऐसे हैं जो नए हैं, लेकिन उनके स्टाफ में मंत्री के यहां रहने की हर काबिलियत मौजूद है। मंत्री स्टाफ की यही काबिलियत शिवराज सिंह की जीरो टालरेंस नीति को धता बता रही है। सूचना है कि लगभग सारे मंत्रियों के पास अरसे से ऐसा स्टाफ मौजूद है जो कोई भी शासन हो मंत्री के निकट पहुंचने की जुगाड़ जमा ही लेता है। इसे यूं भी समझ सकते हैं कि मंत्री स्वयं ही अनुभवी स्टाफ की तलाश करते हैं जो मंत्री बंगलों से लेकर उनके निजी स्टाफ में रहने का अनुभव रखते हों। यह अनुभव बहुत काम का है और यही कारण है कि मंत्रियों के यहां जमें इन अनुभवियों को डिगाने का साहस किसी का नहीं है। 5-5, 10-10 वर्षों से मंत्रियों के अग्रणी मोर्चे पर तैनात यह धुरंधर बीच में ही काम निपटाने के माहिर हैं और कुछ तो इस चालाकी से काम कर डालते हैं कि मंत्रियों को भी भनक नहीं लगती। कहने का तात्पर्य यह है कि कुछ मंत्रियों को उनके स्टाफ के कारण परेशानी भी उठानी पड़ी है, लेकिन इन्हें बदलें तो बदलें कैसे। मुख्यमंत्री ने कुछ समय पहले जीएडी को निर्देशित किया था कि मंत्रियों के पीए, पीएस की नियुक्ति बहुत सोच-समझकर होनी चाहिए। जीएडी ने भी कई छन्ने लगाने की कोशिश की, लेकिन ये इतने सूक्ष्मजीवी हैं कि हर छन्ने से बाहर आ गए।
जहां शिवराज सरकार के दूसरे कार्यकाल में कुछ मंत्रियों और उनके स्टाफ की करतूतों के कारण सरकार की छवि दागदार हुई थी, वहीं इस बार भी कई मंत्रियों ने अपने कुछ पुराने अफसरों पर विश्वास जताया है। आलम यह है कि कुछ मंत्रियों के निज या विशेष सहायक तो बरसों से जमे हुए हैं। इनमें से कई तो रिटायर होने के बाद भी एक्सटेंशन के आधार पर मंत्रीजी के निजी स्टाफ में जगह बनाए हुए हैं।
मलैया और पीपी वर्गीस और महिपाल सिंह की तिकड़ी
28 जून 2004 को तात्कालीन मुख्यमंत्री उमा भारती के मंत्रिमंडल में जब जयंत मलैया को नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री बनाया गया तब से लेकर आज तक महिपाल सिंह मंत्रीजी के सारथी बने हुए हैं। वहीं पीपी वर्गीस एक दशक से ज्यादा समय से वित्त मंत्री के स्टाफ में हैं। यहीं से रिटायर हो गए। अब दो साल से एक्सटेंशन पर काम संभाले हुए हैं। सारे अहम काम वर्गीस ही करते हैं। इन दोनों अफसरों का मंत्री पर इतना प्रभाव है कि विभाग के प्रमुख सचिव या अन्य अफसरों की दाल भी इनके आगे नहीं गलती है।
राय के बिना भार्गव के यहां पत्ता भी नहीं हिलता
मलैया की ही तरह पंचायत और ग्रामिण विकास मंत्री गोपाल भार्गव केडी कुकरेती और आरके राय की तिकड़ी के आगे बड़े-बड़े अफसर पानी भरते हैं। 28 जून 2004 को हुए मंत्रिमंडल के पुनर्गठन के बाद एक जुलाई 2004 को गोपाल भार्गव को जब कृषि एवं सहकारिता विभाग का उत्तरदायित्व सौंपा गया तब से ही ये दोनों अधिकारी इनके साथ हैं। आलम यह है कि रिटायर होने के बाद भी मंत्री कुकरेती का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। कुकरेती की पदस्थापना के लिए मंत्री ने सरकार से नियमों में बदलाव भी करवाए। पहली बार संविदा नियुक्ति के रिटायर्ड अफसर को मंत्री का विशेष सहायक बनाने के लिए बाकायदा कैबिनेट में प्रस्ताव पारित किया गया। इसी तरह आरके राय इतने पॉवरफुल हैं कि मंत्री इनके बिना फैसले नहीं लेते हैं। ये एक दशक से ज्यादा समय से पीए हैं। कुकरेती, श्यामाचरण शुक्ल, मोतीलाल वोरा, लक्ष्मीनारायण शर्मा, महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा एवं मुकेश नायक के साथ भी रहे हैं।
राजपूत के कारण मंत्री की नहीं सुनते पीएस
पशुपालन, विधि मंत्री कुसुम मेहदेले और कोमल राजपूत का साथ करीब ढाई दशक पुराना है। जब मेहदेले 1990 में पहली बार मंत्री बनी तब से अब तक राजपूत का साथ बना हुआ है। कुसुम मेहदेले के विभागों की लंबी फेहरिस्त है। इस कारण राजपूत अधिक पावरफुल हैं। मंत्री भले ही चुप रहें लेकिन राजपूत हर जगह हस्तक्षेप करते हैं या यूं कह सकते हैं कि विधि-विधायी, पशुपालन, उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण, मछुआ कल्याण एवं मत्स्य विकास, कुटीर एवं ग्रामोद्योग जैसे पांच महकमे का वे स्वयं को मुखिया मानते हैं। इस कारण वे कई बार विभागीय प्रमुख सचिवों के ऊपर हावी होने की कोशिश करते हैं। ऐसे में राजपूत के व्यवहार की खीज प्रमुख सचिव मंत्री पर निकालते हैं। जिससे विभाग में काम प्रभावित होते हैं। विभाग की नब्ज पर कोमल सिंह राजपूत की अच्छीखासी पकड़ है। किसी सिरफिरे ने राजपूत की प्रापर्टी की फोटो खींचकर ऊपर तक शिकायत कर डाली है, लेकिन मंत्री महोदया को इससे कोई मतलब नहीं है। कहने वाले तो कथित रूप से यह भी कहते हैं कि राजपूत ने पिछली बार मंत्री जी की पार्टनरशिप में दुकान भी खोलकर रखी थी। इसी कारण से राजपूत वह भी कोमल के आदेश भी नहीं हुए हैं।
कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन और शिव हरोड़े की जोड़ी भी चर्चा में है। हरोड़े करीब सात साल से बिसेन के पीए हैं। उमाशंकर गुप्ता यूं तो सख्त, ईमानदार और दबंग मंत्री होने का ढिंडोरा पीटते हैं, लेकिन उनके यहां जाने से स्टाफ भी झिझकता है। शायद उनकी दबंगई से लोग भय खाते होंगे पर नरोत्तम मिश्रा की उदारता का कोई ओर छोर नहीं है। वीरेन्द्र पाण्डेय स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा के विश्वसनीय हैं, पिछले 10 वर्षों से मंत्री दफ्तर संभाल रहे हैं और सरकार ने उनके आदेश भी नहीं किए। परंतु वे ही सर्वेसर्वा हैं। उनके घर पर सबेरे से ही डॉक्टरों की लंबी कतार लग जाती है। इन्हें मंत्री से ज्यादा वजनदार माना जाता है। पीए के साथ ही राजनीतिक सलाहकार का भी काम करते हैं। वहीं उद्योग मंत्री यशोधरा राजे और एम सी जैन का साथ एक दशक से ज्यादा समय का है। राजे के यहां जमे हुए जैन ही महाराज को झेल पाते हैं बाकी कोई पीए, पीएस उनके यहां जाना पसंद नहीं करता कारण साफ है कि मंत्री किसी भी तरीके के स्टाफ के कारण अपनी बदनामी सहन नहीं कर सकती है।
मंत्री बदलते रहे पीए, पीएस वही
कई विभागों के पीए,पीएस तो इतने जुगाडू या यूं कहें कि पॉवरफुल हैं कि मंत्री बदलते रहते हैं लेकिन वे नहीं बदले। और जब पीए, पीएस नहीं बदले तो सीएम का जीरो टालरेंस कैसे संभव होता। हुआ भी यही। मैनेजमेंट के माहिर इन अफसरों ने जैसा चाहा मंत्रियों ने वैसा ही किया। जिसका परिणाम यह हुआ की कई मंत्रियों को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। इसमें विनोद सूरी का नाम सबसे बदनाम रहा है। पूर्व मंत्री करण सिंह वर्मा की नैय्या डुबाने वाले विनोद सूरी शेजवार को भी पहले हार का मुंह दिखा चुके हैं। क्योंकि मंत्री के व्यवहार से ज्यादा उसके स्टाफ का व्यवहार अच्छा होना चाहिए। उसके प्रत्यक्ष उदाहरण विनोद सूरी हैं जो कइयों बार मंत्री के स्टाफ में रहे परंतु मंत्री एक टर्म से ज्यादा पूरा नहीं कर पाए। इस बार भी उन्होंने शेजवार के यहां गोटी बिछाने का प्रयास किया था, लेकिन उनकी दाल नहीं गल सकी। बसंत बाथरे वन मंत्री डॉ गौरीशंकर शैजवार के स्टाफ में। कांग्रेस सरकार के दौरान वे तत्कालीन पीएचई मंत्री दीपक सक्सेना के साथ रहे। भाजपा सरकार में भी नागेंद्र सिंह के पीए रहे। ऐसे ही राजघराने की मंत्री माया सिंह के यहां पर विजय शर्मा को पदस्थ किया है वह अनूप मिश्रा, श्यामाशरण शुक्ल और मोतीलाल वोरा के यहां भी कार्य कर चुके हैं। आखिर माया सिंह को विजय शर्मा ही क्यों पसंद आए। अंतर सिंह आर्य के यहां राजीव सक्सेना नामक बाबू मंत्री का खास हैं, लेकिन अब बैलेंस बनाने के लिए सेंधवा से कोई ज्ञान सिंह आर्य भी पधार गए हैं। सुनने में आया है कि ये मंत्री के रिश्तेदार हैं। अंतर सिंह ने तो पिछली बार स्वेच्छानुदान की सारी राशि रिश्तेदारों को ही दिलवा दी थी, जिसमें एक विशेष सहायक की विशेष भूमिका थी। इसी प्रकार रामपाल सिंह के यहां पर भी दिलीप सिंह नामक एक अनुभवी की तैनाती हुई है जो कभी नागेंद्र सिंह के स्पेशल सेक्रेटरी हुआ करते थे। उन पर पीडब्ल्यूडी में रहते हुए अनियमितता का आरोप भी लगा है। दिलीप सिंह ब्रजेन्द्र प्रताप सिंह के साथ भी रहे।
विजयशाह के यहां वर्षों से जमे हुए गुना कलेक्टोरेट के बाबू जेके राठौर के हाथ में सबकुछ है। अपने खासमखास लोगों की पैरवी करने में मंत्री किस सीमा तक जा सकते हैं इसका श्रेष्ठ उदाहरण ज्ञान सिंह द्वारा की गई वह सिफारिश है जिसमें उन्होंने किसी एमएल आर्य को तैनात करने के लिए चि_ी भेजी थी। डिप्टी कलेक्टर एमएल आर्य सजायाफ्ता हैं उन पर अनियमितता का आरोप लग चुका है, लेकिन मंत्री महोदय को इससे क्या मतलब। गुलाब भुआड़े शिक्षा मंत्री पारस जैन के पसंदीदा हैं। भुआड़े कांग्रेस शासन में महेंद्र सिंह कालूखेड़ा और पूर्व उपमुख्यमंत्री जमुनादेवी के स्टाफ में भी रहे।
ऐसे में जन विश्वास की कसौटी पर खरे उतरने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को कुछ ज्यादा ही सचेत होना पड़ेगा। सत्ता के चाल, चरित्र और चेहरे को और साफ सुथरी छवि प्रदान करने के लिए शिवराज को सबसे पहले अपने मंत्रियों की एक विश्वसनीय टीम बनानी होगी। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि मुख्यमंत्री की ईमानदार छवि के कारण ही भाजपा राज्य में तीसरी बार सत्ता में लौटी है और इसी विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए उनमें जनहित की नीतियों एवं कार्यक्रमों को अमलीजामा पहनाने के लिए समुचित बदलाव लाने का संकल्प साफ झलकता है। फिलहाल तो नौकरशाही की जो तस्वीर नजर आती है, वह प्रशासनिक दृष्टिï से ज्यादा उत्साहजनक नहीं है। अफसरों एवं प्रशासनिक अमले में फैला भ्रष्टाचार ऐसा रोग है जो राज्य को सेहत को बेहतर बनाने तथा इसे खुशहाली का टानिक देने की सरकार की तमाम कोशिशों को निगल रहा है और इसके बावजूद सरकारी आंकड़ेबाजी से सरकार को भ्रमित किया जा रहा है। समीक्षा बैठक भर से काम चलने वाला नहीं है बल्कि जब तक ईमानदार अफसरों को पुरस्कृत करने तथा बेईमान अफसरों को दंडित करने का अभियान नहीं चलेगा तब तक राज्य की प्रगति में बेईमान अफसरशाही रोड़ा बनी रहेगी।
ये रहीं विवादित जोडिय़ा———-
रामकृष्ण कुसमरिया और उमेश शर्मा-
अपनी बेबाक टिप्पणी के लिए बदनाम पूर्व कृषि मंत्री रामकृष्ण कुसमरिया और उमेश शर्मा की जोड़ी हमेशा विवादों में रहती है। बाबाजी के नाम से जाने वाले कुसमरिया को अपने पीए के कारण बदनामी और तमाम आरोप झेलने पड़े। उन पर पीए के माध्यम से वसूली के आरोप लगे। पशुपालन मंत्री रहते हुए मछली ठेके गलत तरीके से दिए, जिस पर विवाद हुआ। इसी वजह से उनसे विभाग छिना। उनके पीए उमेश शर्मा मूलत: डीएसपी थे, लेकिन रामकृष्ण कुसमरिया उन्हें अपना विशेष सहायक बनाए हुए थे। कहा जाता है कि कृषि विभाग में शर्मा की मर्जी के बिना पत्ता तक नहीं खड़कता था। शर्मा के खिलाफ 18 जून 1010 को ईओडब्ल्यू में प्रकरण दर्ज हुआ था, फिर भी वे कुसमरिया के प्रिय बने रहे।
रंजना बघेल और अरूण निगम
प्रदेश में दूसरी बार भाजपा की सरकार बनते ही संगठन ने मंत्रियों के निज स्टाफ में पदस्थ होने वाले अधिकारियों के कार्यों की जांच कराने के बाद ही इन्हें रखने के निर्देश दिए थे। खासकर कुछ मंत्रियों के स्टाफ में संघ से जुडे कार्यकर्ताओं को भी निज सहायक एवं निज सचिव बनाया गया है, लेकिन तात्कालीन महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार रंजना बघेल एक ऐसे शिक्षक को पाल रही थीं जो कि भष्टाचार के मामले में गले-गले फंसे हुए हैं। वहीं रंजना बघेल पर कुपोषण के कलंक से परेशान सरकार ने पूरा भरोसा जताया था, लेकिन धांधली के एक नहीं दर्जनों आरोप उन पर थे। आरोप था कि विभाग को उनके पीए अरूण निगम चला रहे थे। अधिकारियों की पोस्टिंग विभाग का सबसे अहम काम बना हुआ था। अरुण निगम शिक्षा विभाग के भ्रष्ट अफसरों की सूची में शामिल रहे थे। उन पर स्कूलों में होने वाले नलकूप खनन में लाखों रुपए की हेराफेरी के आरोप लगे थे। इनकी शिकायत भाजपा के वरिष्ठ नेता कृष्णमुरारी मोघे ने इंदौर संभागायुक्त से की थी। तात्कालीन इंदौर संभागायुक्त ने निगम को तत्काल सेवा से बर्खास्त करने के लिए कलेक्टर खरगोन को सिफारिश भेजी थी। इनके खिलाफ पुलिस प्रकरण दर्ज करने के भी निर्देश दिए गए। मामला अदालत भी पहुंचा। अदालत ने संभागायुक्त के फैसले को सही ठहराया पर निगम सुरक्षित स्थान पर पहुंच ही गए।
जगदीश देवड़ा और राजेन्द्र सिंह
पूर्व जेल मंत्री जगदीश देवड़ा के विशेष सहायक राजेंद्र सिंह गुर्जर को सीएम के निर्देश पर पद से हटा कर मूल विभाग भेजा गया है। देवड़ा के साथ छह-सात साल से जुड़े रहे राजेंद्र को हटाने की वजह खाचरौद जेल से सिमी के कार्यकर्ताओं को रिहा करने में उनकी भूमिका थी। लेकिन बताया जाता है कि इनको हटाने के लिए मंत्री पर पहले से ही दबाव था। राजेन्द्र सिंह देवड़ा के यहां सर्वशक्तिमान थे। बताया जाता है कि परिवहन विभाग में उस दौरान जितने लोग डेपुटेशन पर गए, उनके लिए लाइजनींग इन्होंने ही की थी। वे व्यापमं घोटाले में भी आरोपी बनाए गए हैं।
पारस जैन और राजेंद्र भूतड़ा
पूर्व खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति राज्यमंत्री पारस जैन शकर एवं दाल खरीदी के मामले के बाद अब फोर्टिफाइड आटे को लेकर गंभीर आरोपों से घिरे थे। इनके विशेष सहायक राजेंद्र भूतड़ा ने मंत्री जी के नाम पर ठेकेदारों और अफसरों से जमकर वसूली की थी। एक खाद्य निरीक्षक द्वारा आत्महत्या किए जाने को लेकर उसकी पत्नी ने भूतड़ा पर तबादले के लिए रिश्वत लेने के आरोप लगाए थे। इंस्पेक्टर के परिजनों ने मंत्री पर आरोप लगाए। भूतड़ा को कुछ माह पहले मुख्यमंत्री के निर्देश पर हटाया गया था।
करण सिंह वर्मा अजय कुमार शर्मा
ईमानदारी के लिए मिसाल के तौर पर पहचाने जाने वाले तात्कालीन राजस्व एवं पुनर्वास राज्यमंत्री करण सिंह वर्मा ने अजय कुमार शर्मा को अपना विशेष सहायक बना रखा था। राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी शर्मा के खिलाफ 12 जनवरी 2009 को लोकायुक्त संगठन में प्रकरण दर्ज हुआ था और जांच चल रही थी। उसके बाद भी मंत्री की उन पर मेहरबानी बरसती रही।
मंत्रियों के साथ तालमेल से काम कर रही महिला आईएएस
एक तरफ प्रदेश में मंत्रियों, उनके स्टाफ और अफसरों के बीच जंग छिड़ी हुई है वहीं जिन विभागों में महिला आईएएस के हाथों में कमान है वे मंत्रियों के साथ सामंजस्य बिठाकर काम कर रही हैं। इनकी अपने विभाग में इतनी पकड़ है कि पुरुष अफसर इनके हर आदेश मानने मजबूर हैं। ऐसी ही कुछ महिला आईएएस की विभागों में सख्त पकड़, कार्य के प्रति लगन और उनकी सरलता के चर्चे उनके विभागों में सुने जा सकते हैं। प्रदेश में पदस्थ महिला अफसरों में 81 बैच की अजिता वाजपेयी पांडे सदस्य सचिव योजना आयोग के पद से अगस्त में ही रिटायर हुई हैं, लेकिन सबसे बडेÞ विभाग की जिम्मेदारी 82 बैच की आईएएस अरुणा शर्मा के हाथों में हैं। उनके अधीन प्रमुख सचिव स्तर की 90 बैच की अधिकारी अलका उपाध्याय को जहां एमपीआरआरडीए का सीईओ बना रखा है, वहीं पंचायत राज आयुक्त के रूप में 92 बैच के आईएएस रघुवीर श्रीवास्तव पदस्थ हैं, तो मनरेगा में केंद्र सरकार से कुछ समय पहले लौटी 93 बैच की स्मिता भारद्वाज को सीईओ बनाया गया है। विकास आयुक्त कार्यालय में सीसीएफ हेमवती वर्मन को मिशन संचालक तथा आईएफएस विभाष ठाकुर को भी संचालक की जिम्मेदारी दे रखी है। यानी अरुणा शर्मा को इतने अफसरों से काम करवाना पड़ता है। वर्ष 1984 बैच की आईएएस कंचन जैन को कुछ समय पहले ही सरकार ने प्रशासन अकादमी का डीजी पदस्थ किया है, जबकि इसके पहले से संचालक के रूप में 87 बैच की शिखा दुबे पदस्थ हैं। अकादमी में ट्रेनिंग आदि की जिम्मेदारी भी महिला अफसरों के पास है। खासकर प्रज्ञा अवस्थी सहित तीन महिला अफसरों के बीच सामंजस बनाने के लिए कंचन जैन को काफी मशक्कत करनी होगी। 1988 बैच की आईएएस वीरा राणा को राज्य सरकार ने कुछ समय पहले ही प्रमुख सचिव पर्यटन विभाग की जिम्मेदारी दी है। इसके पहले वह आयुक्त हाथकरघा एवं हस्तशिल्प विकास निगम रह चुकी हैं। एक समय जीएडी कार्मिक की सफलतापूर्वक जिम्मेदारी संभाल चुकी राणा को आईएएस अफसरों को भी डील करना आता है। पर्यटन में उनकी मदद राप्रसे अफसर भावना बालिम्वे द्वारा की जा रही है। विदेश से कुछ समय पहले लौटी 87 बैच की आईएएस गौरी सिंह को स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी सौंपी है। तेजतर्रार गौरी सिंह को चार आईएएस के साथ सामंजस्य बैठना पड़ता है। इनमें स्वास्थ्य कमिश्नर पंकज अग्रवाल, एनआरएचएम फैज अहमद किदवई, संचालक स्वास्थ्य डॉ. नवनीत मोहन कोठारी, सचिव सूरज डामोर का नाम है।
महिला एवं बाल विकास विभाग की मंत्री माया सिंह हैं। जिस तरह मंत्री तेज हैं, उसी तरह विभाग में आयुक्त महिला सशक्तिकरण के पद पर 92 बैच की कल्पना श्रीवास्तव तथा 98 बैच की पुष्पलता सिंह एकीकृत बाल विकास का काम संभाल रही हैं। वैसे विभाग के पीएस जेएन कंसोटिया है, परंतु लाड़ली लक्ष्मी से लेकर कई योजनाओं को लागू कराने में कल्पना श्रीवास्तव की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। 94 बैच की आईएएस रश्मि अरुण शमी वर्तमान में सचिव जीएडी कार्मिक का काम संभाल रही हैं, यहां आईएएस तथा डिप्टी कलेक्टरों की पोस्टिंग विभागीय जांच से लेकर प्रमोशन का भी काम किया जाता है। जबकि स्नेहलता श्रीवास्तव, विजया श्रीवास्तव तथा रश्मि शुक्ला शर्मा आदि केंद्र में पदस्थ हैं और इन पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है।
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