सोमवार, 2 नवंबर 2015
नौकरशाहों के आगे मोदी भी भूले मंत्र
भ्रष्ट अफसरों पर एक साल बाद भी नहीं कसी नकेल
भोपाल। मई 2014 में प्रधानमंत्री बनते ही नरेंद्र मोदी ने सबसे पहले देश की नौकरशाही को बदलने का वीणा उठाया था। इसके लिए कई स्तर पर चिंतन-मनन भी हुआ और प्रधानमंत्री ने तंत्र पर नकेल कसने कागजी मंत्र भी बनवाए, लेकिन मोदी एक साल बाद भी भ्रष्ट नौकरशाहों को सजा नहीं दिला सके। जबकि यह मोदी का चुनावी वादा भी था। सेंट्रल विजिलेंस कमीशन (सीवीसी) के मुताबिक, आज लगभग 15 माह बाद स्थिति यह है कि केंद्र सरकार 12 आईएएस अधिकारियों सहित 34 अधिकारियों के खिलाफ कानूनी मामला चलाने की अनुमति अभी तक नहीं दे पाई है। इसमें मप्र के एक आईएएस के सुरेश कुमार का भी नाम है।
उल्लेखनीय है कि पिछले फरवरी 2014 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान सीबीआई 15 आईएएस अधिकारियों की जांच कर रही थी। सीबीआई ने जिन घोटालों में मामला चलाने की अनुमति मांगी थी, वे यूपीए के कार्यकाल से जुड़े हैं। इस वजह से इन सभी मामलों में अनुमति देने या न देने के लिए सुप्रीम कोर्ट की ओर से तय की गई तीन महीने की डेडलाइन मई में ही समाप्त हो चुकी है। सीबीआई के अधिकारियों का कहना है कि कानूनी मामला चलाने की अनुमति के इंतजार में 18 अन्य मामले भी हैं, जो ज्वाइंट सेक्रेटरी या इससे ऊपर के स्तर के अधिकारियों से जुड़े हैं। इनमें तीन महीने की डेडलाइन इसी महिने पूरी हो गई है। सरकार की अनुमति के इंतजार में कुल 92 मामले हैं, जिनमें अनुमति न मिलने की वजह से सीबीआई चार्जशीट दाखिल नहीं कर पा रही है। सीबीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, बहुत से मामलों में हमने आरोपी व्यक्ति के खिलाफ चार्जशीट बिना अनुमति के दाखिल की है, लेकिन इसे चुनौती दे दी गई। अदालतें भी इसे पसंद नहीं करती और इस वजह से बहुत से मामलों में लोग बरी हो गए हैं। आईएएस अधिकारियों से जुड़े मामलों में लैंड स्कैम, आय से अधिक संपत्ति के मामले और प्राइवेट कंपनियों को फायदा पहुंचाने वाले पॉलिसी से जुड़े फैसले शामिल हैं। सीबीआई की कार्रवाई के डर से ब्यूरोक्रेट्स के फैसले लेने से बचने के मद्देनजर एनडीए सरकार ने हाल ही में प्रिवेंशन ऑफ करप्शन बिल में कुछ संशोधन किए थे। सरकार ने ईमानदार ब्यूरोक्रेट्स का संरक्षण करने और राष्ट्रीय हित में लिए गए फैसलों पर सवाल न उठाने का भी प्रपोजल दिया है। सीबीआई के सूत्रों का कहना है कि अभियोजन चलाने की अनुमति में देरी को लेकर डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग को ईमेल से भेजे गए प्रश्न का कोई जवाब नहीं मिला। ऐसे में अब मोदी सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगा है।
पांच साल में 100 आईएएस जांच के दायरे में
देश की सबसे प्रतिष्ठित सेवा आईएएस में भ्रष्टाचार के मामले बढ़ते जा रहे हैं। सरकार के एक आधिकारिक जवाब के अनुसार पिछले पांच साल में 100 आईएएस अधिकारी भ्रष्टाचार के अलग-अलग मामलों में कथित संलिप्तता के चलते सीबीआई की जांच के दायरे में आए हैं जिनमें से 66 के खिलाफ सरकार से मुकदमे की अनुमति मिली है। ये जानकारी राज्यसभा में राज्य मंत्री जितेन्द्र सिंह द्वारा दी गई है। कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मामलों के राज्य मंत्री जितेन्द्र सिंह ने राज्यसभा को बताया कि 2010 से सीबीआई ने 100 आईएएस अधिकारी, 10 सीएसएस ग्रुप ए अधिकारी और 9 सीबीआई ग्रुप ए अधिकारियों के खिलाफ मुकदमे के लिए अनुमति देने का अनुरोध किया था।
मप्र कैडर के आईएएस के. सुरेश कुमार भी निशाने पर
मध्यप्रदेश कॉडर में 1982 बैच के आईएएस अधिकारी के सुरेश पर भ्रष्टाचार के छींटे तब पड़े जब केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर रहते हुए चेन्नई पोर्ट ट्रस्ट के अध्यक्ष और सेतु समुद्रम परियोजना के सीईओ थे। मामला वर्ष 2004 से 2009 के बीच का है। भ्रष्टाचार की शिकायतों के चलते सीबीआई सक्रिय हुई। और इसी दौरान उनके यहां सीबीआई ने छापामार कार्यवाही की। सीबीआई ने कुमार के घर पर छापे में 2.36 करोड़ रुपये की नकदी बरामद की थी। छापे के कार्यवाही के दौरान इनके यहां मिले दस्तावेजों को सीबीआई ने जब्त किया। जांच में इन्हें दोषी मानते हुए अभियोजन की स्वीकृति मांगी। मध्यप्रदेश वापसी पर सरकार में वे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाते रहे हैं। सीबीआई ने उनके खिलाफ अभियोजन प्रस्तुत करने के लिए केंद्र सरकार से अनुमति मांगी है, लेकिन अभी तक उसे अनुमति नहीं मिली है। के सुरेश इसी माह रिटायर भी हो रहे हैं।
देशी का पता नहीं अब विदेशों में जमा संपत्ति का ब्योरा देना होगा अफसरों को
केंद्र सरकार हर साल अफसरों की संपत्ति का विवरण मांगती है, लेकिन अधिकारी अपनी संपत्ति सार्वजनिक करने से कतराते हैं। जो सार्वजनिक करते हैं उनका व्यौरा भी सही नहीं रहता है। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो मोदी सरकार में तो आईएएस और निरंकुश हो गए हैं। जहां वर्ष 2013 में देश भर में मप्र के 16 आईएएस सहित 248 आईएएस ने अपनी संपत्ति का व्यौरा नहीं दिया वहीं वर्ष 2014 की संपत्ति का व्यौरा अभी तक 429 आईएएस ने नहीं दिया। इसमें 60 मप्र के अफसर हैं। ऐसे में आयकर विभाग की सलाह पर सरकार ने अफसरों से उनकी विदेशों में जमा संपत्ति का व्यौरा मांगा है। आयकर विभाग ने बड़े आयकरदाताओं को नोटिस भेजकर विदेश में संपत्ति का ब्यौरा उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है। इसके लिए विभाग की ओर से 30 सितंबर तक का समय दिया गया है। इस दौरान जानकारी नहीं देने वालों के खिलाफ प्रवर्तन एजेंसी मनी लांड्रिंग एक्ट के तहत सीधी कार्रवाई करेंगे। आयकर विभाग के अधिकारियों ने बताया कि विदेश में काले धन की पड़ताल के लिए विभाग ने प्रदेश के बड़े आयकरदाताओं की विदेश यात्रा के साथ-साथ विदेशी मुद्रा विनिमय की भी जानकारी जुटाई जा रही है। इसमें कई आईएएस भी शामिल हैं।
सीबीडीटी की आधिकारिक प्रवक्ता शैफाली शाह की ओर से जारी बयान के अनुसार सरकार ने कालाधन कानून के तहत विदेशों में रखी संपत्ति का खुलासा करने के लिए तीन माह का समय दिया है। आयकर विभाग के अधिकारियों ने बताया कि उनके पास विदेश में वित्तीय खातों के बारे में सूचना उपलब्ध है, इसलिए जिन लोगों के पास विदेशों में संपत्ति है, वह अनुपालन खिड़की का इस्तेमाल करके जानकारी उपलब्ध करा सकते हैं। यदि विदेशों में संपत्ति रखने वाला व्यक्ति, अफसर, कारोबारी 30 सितंबर तक इसकी घोषणा नहीं करते हैं, तो अघोषित संपत्ति पर 120 प्रतिशत की दर से कर और जुर्माने का भुगतान करना होगा। इसके साथ ही उसे 10 साल तक की सजा हो सकती है। कोई भी व्यक्ति इस प्रकार की जानकारी आयकर विभाग की आधिकारिक वेबसाइट का इस्तेमाल करते हुए भर सकता है। विदेशों में रखे कालेधन की समस्या से निपटने के लिए सरकार ने नए कालाधन रोधी कानून को एक जुलाई से लागू कर दिया। कानून के तहत विदेशों में अघोर्षित संपत्ति रखने वालों को एक मौका भी दिया गया है। 90 दिन में स्वैच्छिक तौर पर ऐसी संपत्ति की घोषणा की जा सकती है। यह अनुपालन सुविधा खिड़की 30 सितंबर तक खुली है। अनुपालन सुविधा के तहत जानकारी देने पर संबंधित व्यक्ति को 60 प्रतिशत कर और जुर्माना देना होगा। जानकारी देने के बाद कर या फिर जुर्माने का भुगतान 31 दिसंबर तक करना होगा।
अखिल भारतीय सेवा के प्रत्येक अफसर को अब अचल संपत्ति ही नहीं, बल्कि अब चल संपत्ति का भी लेखा-जोखा हर वर्ष सरकार को प्रस्तुत करना होगा। खासकर आईएएस, आईपीएस तथा आईएफएस की नियुक्ति के समय उसके नाम पर कितनी संपत्ति थी और आज वह बढ़कर कितनी हो गई है। पत्नी, पुत्र-पुत्री और आश्रितों के नाम पर कितनी संपत्ति है, उनके नाम पर बैंक में कितना पैसा जमा है, जमीन, बीमा पालिसी, बैंक में जमा बॉंड, वाहन मकान आदि का ब्यौरा भी अब बताना होगा। 31 मार्च तक लेखा-जोखा केंद्र सरकार ने लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम के तहत अफसरों को हर वर्ष पहली जनवरी की स्थिति में इसका लेखा-जोखा देना होगा। जीएडी ने इस मामले में अफसरों से 31 जुलाई तक उक्त प्रावधानों के तहत जानकारी मांगी है। केंद्रीय कार्मिक, लोक शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय ने प्रत्येक लोक सेवक, यथास्थिति, लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम 2013 की धारा 44 की उपधारा (2)या उपधारा (3)के अधीन अपनी आस्तियों और दायित्वों की घोषणा करेगा। प्रत्येक लोक सेवक उस वर्ष की 31 जुलाई को या उसके पूर्व लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियमों के अंतर्गत सक्षम प्राधिकारी को प्रत्येक वर्ष के 31 मार्च को अपनी संपत्ति के विषय में घोषणा, सूचना या विवरणी फाइल करेगा। इन अधिनियमों में 26 दिसंबर 2014 को प्ररूप 2 एवं 4 में आंशिक संशोधन भी किए गए है। तीनों अखिल भारतीय सेवा के अफसरों को अपनी संपत्ति के बारे में जानकारी हिंदी और अंग्रेजी दोनों में से किसी एक भाषा में देना होगा। इस मामले में सामान्य प्रशासन विभाग ने प्रदेश के सभी आईएएस अफसरों से 31 जुलाई तक जानकारी मांगी है।
संपत्ति का ब्योरा नहीं दे रहे मप्र के आईएएस
मध्यप्रदेश संवर्ग के भारतीय प्रशासनिक सेवा के करीब 5 दर्जन अधिकारियों ने अभी तक अपनी चल-अचल संपत्ति का ब्योरा नहीं दिया है। सामान्य प्रशासन विभाग की वेबसाइट में आईएएस अधिकारियों की संपत्ति का ब्योरा अपलोड करने का प्रावधान है। लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम के तहत अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों को हर साल अपनी चल-अचल संपत्ति का ब्योरा देना अनिवार्य है। सामान्य प्रशासन विभाग की वेबसाइट के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2014 में जिन आईएएस अफसरों ने अपनी चल-अचल संपत्ति का ब्योरा नहीं दिया है, उनमें प्रमोद अग्रवाल, संजय दुबे, शिवशेखर शुक्ला, चंद्रहास दुबे, एसके पाल, फैज अहमद किदवई, मुकेश चंद गुप्ता, कमता प्रसाद राही, पवन कुमार शर्मा, शशि कर्णावत, सुरेंद्र कुमार उपाध्याय, विवेक कुमार पोरवाल, नीरज दुबे, कैलाशचंद जैन, श्याम सिंह कुमरे, पी नरहरि, सीबी सिंह, राजेंद्र सिंह, राजेश बहुगणा, अजीत कुमार, पीके गुप्ता, डी बी पाटिल, नरेंद्र सिंह परमार, एम के शुक्ला, जॉन किग्सले, लोकेश कुमार जाटव, शेखर वर्मा, अशोक कुमार वर्मा, आरके जैन, एनएम विभीष्ण, छवि भारद्वाज, नंद कुमरे, अविनाश लवानी, गणेश शंकर मिश्रा, कर्मवीर शर्मा, एसपी मिश्रा, विजय कुमार जे, बी विजय दत्ता, हर्षिका सिंह, नीरज कुमार सिंह, पंकज जैन, अजय कटेसरिया, निधि निवेदिता, रोहित सिंह, एस सोमवंशी, प्रवीण सिंह अधयच, अनुराग वर्मा, एफ राहुल हरिदास, राजीव रंजन मीना, बी कार्तिकेय, गिरिश कुमार मिश्रा, सोनिया मीना,हर्ष दीक्षित, सोमेश मिश्रा, प्रियंका मिश्रा, मयंक अग्रवाल, फ्रेंक नोबेल, संदीप जीआर आदि शामिल है। सामान्य प्रशासन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक निर्धारित समय-सीमा में चल-अचल संपत्ति का ब्योरा नहीं देने पर संबंधित अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है। उनकी गोपनीय चरित्रावली में भी इसका उल्लेख किया जा सकता है। चल-अचल संपत्ति का ब्योरा नहीं देने वाले अधिकारियों की पदोन्नित रोके जाने का प्रावधान है।
आईएएस को जनसेवक बनाने की तैयार!
देश की प्रशासनिक व्यवस्था का बोझ ढोने वाले भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) को जनसेवक बनाने की तैयारी चल रही है। प्रधानमंत्री ने खुद को देश का प्रधान सेवक कहा, प्रधानमंत्री की बात को आगे बढ़ाने के लिए आईएएस के नाम के साथ सेवक या जनसेवक जोडऩे की तैयारी चल रही है। भारतीय विदेश सेवा में विशेषज्ञों को शामिल करने की तैयारी हो गयी है इस सेवा में मीडिया, कला, आर्थिक, राजनीतिक के 65 विशेषज्ञों को शामिल करने के लिए आवेदन आमंत्रित किये जाएंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त के मौके पर पिछले साल लाल किले की प्राचीर से कहा था कि वह देश के प्रधानमंत्री नहीं बल्कि प्रधान सेवक हैं। उनकी यह सोच खुद को अपने जो जनता से जोडऩे की कोशिश थी। उनका बयान सोच समझकर दिया गया था जिसका अर्थ अब समझ में आयेगा। अंग्रेजों के समय 1858 में इम्पीरियल शुरू की गयी सिविल सर्विस देश के आजाद होने के बाद भी जारी है। इस सेवा में सुधार को लेकर अनेक बार बहस हुई। सतीश चंद्रा कमेटी ने भी सेवा में सुधार के लिए अनेक सुझाव दिये जो ठंडे बस्ते में पड़े हैं। लेकिन अब कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय ने उस रिपोर्ट पर से धूल झाडऩी शुरू कर दी है। इस सेवा के पक्ष में तर्क है कि इस सेवा ने देश को एकजुट रखा। लेकिन इसके विरोध में तर्क है कि इस सेवा के लोग राजाओं की तरह व्यवहार करते हैं और जनता से कटे रहते हैं।
पिछली सरकार में योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने आईएएस सेवा में आमूल चूल पर्वितन की सिफारिश की थी। उनकी बात को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी स्वीकार किया था और आने वाली सरकार के एक नोट लिख कर गये थे कि अब समय आ गया है कि सिविल सेवा में बदलाव किया जाएगा। सरकार में चर्चा शुरू हो गयी है कि राजकुमारों की सेवा आईएएस को बदला जाए और उन्हें जनता के प्रति उत्तरदायी बनाया जाए। एक विचार है कि सबसे पहले आईएएस नाम बदला जाए। भारतीय प्रशासनि सेवा में कहीं जनसेवा या जनसेवक जोड़ा जाए ताकि आईएएस का आधा ईगो या अहंकार जमीन पर लाया जाए। उनकी सेवा शर्तों में भी परिवर्तन किया जाए।
सरकार संघ लोकसेवा आयोग (यूपीएससी) सिविल सेवा में शामिल 30 सेवाओं को घटाकर 14 करने जा रही है। कुछ विभागीय सेवाओं को उन्हें ही सौंपा जाएगा। भारतीय प्रशासनिक सेवा का भी नाम बदलने पर विचार हो रहा है। विदेश सेवा में भी विशेषज्ञों की भर्ती के लिए प्रक्रिया जल्दी ही शुरू जाएगी। विश्वस्त सूत्रों के अनुसार नौकरशाही की नियुक्ति में आमूल-चूल परिवर्तन के लिए यूपीएसएसी ने कवायद शुरू कर दी है।
केंद्र सरकार भी चाहती है कि बेवजह यूपीएसएसी पर भार न डाला जाए। जो विभागीय भर्तियां हैं उन्हें संबंधित विभाग करे, केवल अखिल भारतीय सेवाओं का आयोजन यूपीएससी करे। सतीश चंद्रा समिति ने भी यूपीएसएसी के परीक्षा पण्राली में परिवर्तन की सिफारिश की थी। सिविल सेवा परीक्षा में रैंकिंग के हिसाब से सेवाओं को आबंटित किया जाता है। मसलन पहले टॉप 100 लोगों को आईएएस, उसके बाद 100 लोगों को आईपीएस और तीसरे 100 लोगों को आईएफएस अलाट की जाती है। इसके बाद अलायड सेवा शुरू होती है जिसमें आईआरएस से लेकर रेलवे सेवा और आखिर में सीएसएस सेवा आबंटित होती। आने वाले दिनों में यूपीएसएसी सिविल सेवा में 14 ऑल इंडिया सेवा की भर्ती करेगा। बाकी सेवाओं को उनके मूल मंत्रालयों को सौंपेगा या यूपीएससी ही इनके लिए अलग से परीक्षा आयोजित करेगा। जिन सेवाओं को सिविल सेवा से हटाया जाना है उनमें रेवले की पांच, डिफेंस की पांच सेवा शामिल हैं। 2-3 सेवाओं को डीलिंक किया जाएगा। इनमें भारतीय सूचना सेवा हो सकती है। सूचना सेवा को व्यावसायिक सेवा बनाकर पत्रकारिता से जुड़े लोगों को भर्ती किया जाएगा। इसी सुधार प्रक्रिया के तहत अंग्रेजों की इम्पीरियल पुलिस को आईपीएस में बदलाव इममें कुछ बाहरी लोगों को शामिल हाल के दिनों में करीब 188 लोगों को लेटरल इंट्री के तहत आईपीएस में समाहित कर सेवा आईपीएस अधिकारियों को संदेश दिया गया कि मार्केट से अच्छे लोगों को पुलिस सेवा में शामिल किया जाएगा।
बताया जाता है कि नरेंद्र मोदी सरकार को विदेशों में भारत की बेहतर ब्रांडिंग करनी है। इसमें ये आईएफएस सफल नहीं हो रहे हैं। उन्होंने तय किया कि आईएफएस में कला, शिक्षा, विज्ञान, खेल, वाणिज्य आदि क्षेत्र में अच्छा काम कर रहे लोगों को आईएफएस में शामिल किया जाए। इन लोगों को भारत का चेहरा बनाया जाएगा। सूत्रों का कहना है कि शुरुआती तौर पर करीब 65 लोगों अनुबंध के आधार पर आईएफएस में शामिल कर भारतीय दूतावासों, उच्चायोगों में तैनात किया जाएगा।
जल्द और मालामाल होंगे नौकरशाह
जल्द ही सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के तहत नौकरशाहों की सैलरी बढ़ जाएगी। अगर आखिरी वक्त में रिटायर सैन्य कर्मियों के लिए वन रैंक वन पेंशन की योजना आड़े नहीं आती तो आयोग अगले तीन महीनों में अपनी सिफारिशें सरकार को सौंप सकता है। लेकिन, सवाल उठता है कि सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों का सबसे ज्यादा फायदा किसे मिलेगा हैरानी की बात है कि उच्च स्तर की नौकरशाही में भी अजीब सी कास्ट हायर की है, जिसके टॉप पर इंडियन ऐडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस यानी आईएएस अधिकारी विराजमान होते हैं। जबकि, बाकी सभी सर्विसेज के लोग उनके मातहत होते हैं। ना ही योग्यता, ना अनुभव, ना क्षेत्र की विशेषज्ञता, ना दक्षता और ना ही ईमानदारी इस कास्ट सिस्टम को बदल सकते हैं। यह ऐसा सिस्टम है जो यह सुनिश्चित करता है कि सिर्फ आईएएस अधिकारी ही टॉप पर पहुंच पाएं। इसकी एक मिसाल यहां भी देखी जा सकती है कि भारत सरकार के 57 सेक्रेटरीज में सिर्फ और सिर्फ दो नन-आईएएस ऑफिसर हैं। इनमें एक तो राष्ट्रपति के सचिव हैं और दूसरे मामूली से पोस्टल डिपार्टमेंट के सेक्रेटरी हैं। हां, इतना जरूर है कि तकनीकी पदों पर वैज्ञानिकों और कानूनी सेवा के विशेषज्ञ कार्यरत हैं, लेकिन सभी गैर-तकनीकी पदों पर आईएएस ऑफिसर ही कुंडली मार कर जमे हैं और इनकी इन्हीं कारस्तानी की वजह से संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ इधर-उधर भटकते रहते हैं।
उदाहरण के तौर पर इंडियन पुलिस सर्विस (आईपीएस) ऑफिसर्स होम सेक्रटरीज के पोस्ट के लिए तो फॉरेस्ट सर्विस ऑफिसर वन एवं पर्यावरण विभाग के पदों के लिए सबसे योग्य होते हैं। इसी तरह इंडियन रेवेन्यू सर्विस (आईआरएस) ऑफिसर वाणिज्य या राजस्व सचिव के पद के आदर्श उम्मीदवार होते हैं। लेकिन, आईएएस ऑफिसरों ने इन सभी पदों को अपनी मिल्कियत बना ली है। इतना ही नहीं आईएएस ने ही इन सर्विसेज की राह में दीवार खड़ी कर कास्ट सिस्टम को सांगठिन रूप दे दिया है। पहली बाधा तो जॉइंट सेक्रेटरी के लिए पैनल निर्माण में है। यहां तक कि जॉइंट सेक्रेटरी पद की योग्यता पाने के लिए एक आईपीएस को अपने बैच के आईएएस के जॉइंट सेक्रेटरी के पैनल में आ जाने के दो से तीन साल बाद तक इंतजार करना होता है। उसके बाद दूसरी भारतीय सेवाओं और ग्रुप ए के केंद्रीय सेवाओं की बारी आती है।
कुछ मामलों में तो एक आईएएस और एक गैर-आईएएस ऑफिसर के बीच की खाई 10 सालों तक हो जाती है। इससे दूसरे ऑफिसर्स अडिशनल सेक्रेटरी के पैनल में भी आने के अयोग्य हो जाते हैं। यह तो साफ हो चुका है कि आईएएस के सिवा दूसरी सेवाओं ऑफिसर्स सेक्रेटरी होने की रेस में पीछे छूट जाते हैं। अब कार्मिक विभाग के गड़बड़झाले पर भी नजर डाल लिया जाए। दरअसल, पैनल निर्माण और पोस्टिंग पर इसी विभाग का नियंत्रण होता है। सेक्रेटरी, कार्मिक विभाग, इसके एस्टेब्लिशमेंट ऑफिसर और सिविल सर्विसेज बोर्ड आदि जगहें सिर्फ और सिर्फ आईएएस ऑफिसरों से अंटी पड़ी रहती हैं। बस इंडियन फॉरेन सर्विस (आईएफएस) के ऑफिसर ही हैं जो अपनी हकमारी नहीं करने देते। शायद प्रवेश परीक्षाओं में टॉपर रहनेवाली उनकी पहचान से उन्हें मदद मिल जाती है।
पढ़ाई कुछ जिम्मेदारी कुछ
मौजूदा सिस्टम में आप क्या जानते हैं यह महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि आप किसे जानते हैं यह बहुत महत्वपूर्ण है। कितनी हैरत की बात है कि एक ऑफिसर ने किस विषय का अध्ययन किया है या किस क्षेत्र में उसकी ट्रेनिंग हुई है, इसका कोई संबंध उसे मिली जिम्मेवारी से नहीं होता। मसलन, मुमकिन है कि एक डॉक्टर ताउम्र हेल्थ डिपार्टमेंट का मुंह नहीं देख सके, एक आईआईटीयन को कभी भी हाइवे प्लानिंग या पावर अथवा शहरी विकास मंत्रालय में अपनी दक्षता साबित करने का कभी मौका ही नहीं मिले। पूर्व हेल्थ सेक्रेटरी जयदेव चौधरी बताते हैं, इस मामले में ऐतिहासिक तौर पर अन्याय हुआ है। ऐडमिनस्ट्रेटिव रिफॉम्र्स कमिशन की तरह इसमें कोई खास सिफारिशें नहीं होतीं। और उन्हें सुनता भी कौन है कोई भी कांटों भरी राह पर कदम रखना नहीं चाहता। वैसे भी पे कमिशन तो सिर्फ वेतन, भत्ता और पेंशन से ही संबंधित है।
आईपीएस और पारामिलिट्री ऑफिसरों को लगता है कि उन्हें अपने जूनियर साथियों से सफाईकर्मी, रसोइये, आया, चपरासी, माली और विभिन्न घरेलू कार्यों में मदद करने वालों की तरह ट्रीट करने का दैवीय अधिकार प्राप्त है। इसलिए, जिन्हें छत्तीसगढ़ और मणिपुर में उग्रवादियों से लडऩे की ट्रेनिंग मिली हुई है, वे साहेब के टॉइलट साफ कर रहे हों या मेमसाहेब के कपड़े धो रहे हों। ऑफिसर कॉन्स्टेबल्स और जवानों को अपने रैंक और पे के साथ मिले सरकारी लाभ की तरह ही देखते हैं। यहां तक कि जो काफी समय पहले रिटायर हो चुके हैं उनके घरों पर भी तीन से चार कॉन्स्टेबल होते हैं। दरअसल, कई ऐसे ऑफिसरों के उदाहरण भी सामने आए हैं जिनके पास 15 से 20 आदेशपालक हैं और जिनकी सैलरी पांच लाख रुपये तक बैठती है। सैन्य बलों और खासकर आर्मी में तो यह सिस्टम और भी बदतर है। यही वजह है कि आर्थिक मामलों के पूर्व सचिव ईएएस शर्मा मौजूदा सिस्टम की खामियों को खत्म करने की जरूरत को सिद्दत से महसूस कर रहे हैं। उन्होंने कहा, शासन के तकनीकी उन्नयन, सिविल सर्वेसेज की उत्पादकता बढ़ाने और ऑफिसरों की सैलरी को उनकी कौशल के स्तर से मैच करवाने की दिशा में कदम उठाने की बहुत जरूरत है।
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