कैसी ये सरकार? बताओं कैसी ये सरकार? गांव-गांव पसरा सूनापन, जनता करती रोज पलायन, रोजी को लाचार... बताओं कैसी? खुल रहे नित नए घोटाले, मीलों पर लटके है ताले, मल्टीप्लेक्स की भरमार... बताओं कैसी? मंत्री और प्रमुख सचिवों की साठ-गांठ, शिव बाबा रोज चिल्ला रहे विकास-विकास,फिर भी अधूरी योजनाओं की भरमार... बताओ कैसी ये सरकार?
यह पंक्तियां हमारी जरूर हैं लेकिन इसके भाव में जो वेदना है वह है मध्यप्रदेश के आवाम की। वह भी उस मुख्यमंत्री के शासनकाल में जिसको विकास पुरूष की उपाधि मिली हुई है। विकास...विकास...बस विकास यह मूल मंत्र है मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह सरकार का। पिछले पांच सालों से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, उनके मंत्रिमंडल के सदस्य और वरिष्ठ अधिकारी इसी अवधारणा पर काम कर रहे हैं या यूं भी कह सकते हैं कि काम करने का दावा कर रहे हैं, लेकिन विकास है कि दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा है। आए भी तो कैसे...? हमारे मुख्यमंत्री नाम से ही नहीं स्वभाव से भी ठहरे भोले भंडारी। जिसका फायदा उठाकर उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने की शपथ लेने वाले मंत्री और विभागों के प्रमुख सचिव 'शिवÓ बाबा को हवाई किले बनाने का ख्वाब दिखाकर अपना उल्लू साध रहे हैं। ऐसे में विकास का संकल्प अगर अधूरा रहता है तो कोई बड़ी बात नहीं है।
मंत्री होने का मतलब मुख्यमंत्री के सहयोगी होने के अलावा किसी विभाग के मुखिया होने का भी है, जो अपने विभाग की नीतियों, कार्यक्रमों के निर्माण के साथ-साथ इनका क्रियान्वयन भी कराता है लेकिन मध्यप्रदेश में भाजपा के इस आठ साल और इसमें से शिवराज सिंह चौहान के पांच साल के शासन काल का विश्लेषण करने पर हम यही पाते हैं कि मंत्री और अधिकारी अपनी ढपली अपना राग की राह पर काम कर रहे हैं। सबका एक मात्र लक्ष्य यही है कि किसी तरह समीक्षा, मंथन के दौरान अच्छे से अच्छा प्रजेंटेशन देना। कोई मंत्री या अधिकारी भला अपने विभागों को बुरा क्यों बताए। क्योंकि जिस विभाग की समीक्षा होनी है उसे सात से दस दिन पहले बता दिया जाता है कि मुख्यमंत्री निम्न बिंदुओं पर समीक्षा बैठक करेंगे तो भला अधिकारियों को तो पता ही है वे उन बिंदुओं पर अच्छी से अच्छी जानकारी और अभी तक हुए कार्य को उन्हीं सात-दस दिनों में अमली जामा पहनाकर प्रस्तुत कर देते हैं। यानी कि इसको समीक्षा माना जाए या मुख्यमंत्री का डंडा। वे इसी में लगे रहते हैं कि किसी तरह लल्लोचप्पो करके मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की आंखों में धूल झोंकी जाए। जिसका प्रतिफल यह है कि सरकार अपनी मंशा पूरी करने में अक्षम साबित हो रही है। इसके पीछे जो सबसे बड़ा कारण नजर आ रहा है वह है सरकार में टीम भावना का अभाव।
एक अपर मुख्य सचिव ने बताया कि मध्यप्रदेश गुजरात थोड़ी बन सकता है। जो कि अपने पूरे मंत्री और अधिकारियों को एक लाइन में खड़ा कर सके। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने पांच साल के कार्यकाल में मंत्रियों की एक ऐसी टीम नहीं बना पाए जो उनके क्रियाकलापों को साकार करने के लिए उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल सके। कुछ ऐसा ही हाल प्रशासनिक अमले का भी है। मुख्य सचिव अवनि वैश्य हर दूसरे-तीसरे दिन अधिकारियों को सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन की घुट्टी पिलाते रहते है, लेकिन उनके निर्देशों के पालन की मॉनीटरिंग करने वाली कोई टीम नहीं होने के कारण अधिकारी अपने मन की करते है। समन्वय के इस अभाव का फायदा उठाते हुए कुछ मंत्रियों और उनके प्रमुख सचिव आपसी साठ-गांठ से अपनी तिजोरी भरने के अलावा किसी ओर ध्यान ही नहीं दे रहे है। वहीं कुछ विभागों के प्रमुख सचिव ऐसे हैं जो अपने मंत्री को दरकिनार कर डायरेक्ट मुख्यमंत्री सचिवालय और मुख्यमंत्री के दिशा-निर्देशों पर काम कर रहे हैं।
शिवराज सरकार में मुख्यमंत्री के अलावा 19 कैबिनेट, 3 राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और 9 राज्यमंत्री हैं। इनमें से कुछ मंत्री ऐसे हैं जो संगठन में बैठे अपने आकाओं के बल पर मुख्यमंत्री को तव्वजों नहीं दे रहे हैं वहीं कुछ ऐसे हैं जो अपनी बड़ी राजनैतिक हैसियत के कारण किसी की सुन नहीं रहे हैं। ऐसे मंत्रियों के विभागों में जो अधिकारी प्रमुख सचिव बने हैं वे मंत्री महोदय को लॉलीपाप थमाकर अपनी झोली भरने में लगे हैं। शिवराज मंत्रिमंडल में सबसे वरिष्ठ और अनुभवी मंत्री नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री बाबूलाल गौर हैं। शिवराज से पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने वाले गौर को इस सरकार का सबसे दबंग मंत्री माना जाता है और वे अपने हिसाब से मंत्रिपरिषद की बैठकों सहित अन्य बैठकों और आयोजनों में जाया करते हैं। बाबूलाल गौर आज भले ही मुख्यमंत्री नहीं हैं लेकिन उनका रुतबा मुख्यमंत्री से कम नहीं है। अपने विभाग की कार्ययोजना वे अपने चहेते अधिकारियों के साथ अपने घर पर बनाते है और इस योजना का क्रियान्वयन किस तरह किया जाए उसका फैसला भी वे ही करते हैं।
प्रदेश में सबसे अधिक विकास योजनाओं की घोषणा करके वाहवाही लूटने वाले गौर साहब की कई योजनाएं आज भी फाइलों में दम तोड़ रही हैं। सूत्र बताते हैं कि गौर साहब सबसे अधिक उन्हीं योजनाओं पर जोर देते हैं जिसमें अधिक कमाई की गुंजाईस रहती है। उनके विभाग के पूर्व प्रमुख सचिव राघव चंद्रा और उनकी ऐसी पटती थी कि अन्य मंत्री भी ऐसे ही अधिकारी की कामना करते थे। बाबूलाल गौर हमेशा अपने विभाग में अपने चहेते अधिकारियों को ही रखते हैं लेकिन इन दिनों उनकी हालत कुछ खराब है, क्योंकि मुख्यमंत्री सचिवालय से आए एसपीएस परिहार इन दिनों उनके विभाग के प्रमुख सचिव हैं। सूत्र बताते हैं कि परिहार ने आते ही कुछ योजनाओं पर उंगली उठानी शुरू की ही थी लेकिन राजनीति के माहिर खिलाड़ी बाबूलाल गौर ने उन्हें भी कुछ हद तक अपने सांचे में उतार ही लिया है। हालांकि गौर के व्यवहार में भी इन दिनों बदलाव देखा जा रहा है। अब तक मुख्यमंत्री से मिलने उनके कक्ष में जाने से बचने वाले गौर साहब अब आए दिन मंत्रालय की पांचवीं मंजिल पर स्थित मुख्यमंत्री के कक्ष में आते-जाते देखे जाते हैं। हालांकि दूसरे कैबिनेट मंत्रियों की तुलना में वे अभी भी बेहतर स्थिति में हैं, क्योंकि मुख्यमंत्री ने अब तक उनके विभाग के कामकाज में सीधे हस्तक्षेप शुरू नहीं किया है। नगरीय प्रशासन एवं विकास की योजनाओं और कार्यक्रमों की समीक्षा अब तक गौर साहब ही कर रहे हैं और अपने हिसाब से इन्हें क्रियान्वित करवा रहे हैं। विकास के नाम पर गौर साहब के नाम जो सबसे बड़ी उपलब्धि है वह है जगह-जगह खुदी हुई सड़कें जो आए दिन दुर्घटना का कारण बनती है। सरकार के दूसरे सबसे वरिष्ठ नेता राघव जी के पास वित्त, योजना एवं आर्थिक सांख्यिकीय, बीस सूत्रीय क्रियान्वयन और वाणिज्य कर विभाग हैं। इस विभाग के प्रमुख सचिव जीपी सिंघल हैं जो मुख्यमंत्री के प्रिय अधिकारियों में से एक हैं और राघव जी भी इन्हें खूब पसंद करते हैं। मुख्यमंत्री के साथ इनकी पटरी इसलिए बैठी हुई है कि ये विभाग काफी बड़े होते हुए भी इनमें बहुत ज्यादा गुंजाइश नहीं है। वित्त विभाग साल भर बजट बनाने और बांटने में लगा रहता है। योजना एवं आर्थिक सांख्यिकीय तथा बीस सूत्रीय क्रियान्वयन बेदम विभाग है और वाणिज्यिक कर विभाग तय फारमेट में काम करता है। इसलिए मुख्यमंत्री और उनके सचिवालय ने इन विभागों को राघवजी के भरोसे ही छोड़ रखा है। वही इनकी कभी-कभार समीक्षा कर लेते हैं। हालांकि इन विभागों में से वित्त और वाणिज्यिक विभाग के अधिकारी सीधे मुख्यमंत्री और उनके सचिवालय के संपर्क में रहते हैं, इसलिए कई मामलों में इन्हें भी मंत्री जी की जरूरत नहीं होती। बावजूद इसके राघवजी ने वाणिज्यिक कर विभाग को अपने बेटे के हवाले कर दिया है। विभाग में वही होता है जो उनका बेटा चाहता हैं।इस सरकार के सबसे दबंग और तेजतर्रार मंत्री माने जाने वाले वाणिज्य, उद्योग एवं रोजगार, सूचना प्रौद्योगिकी, विज्ञान और टेक्नालॉजी, सार्वजनिक उपक्रम, उद्यानिकी एवं खाद्य प्रशंसकरण, ग्रामोद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय कभी शिवराज सिंह चौहान का दाहिना हाथ हुआ करते थे लेकिन मुख्यमंत्री को शिवराज भाई कहकर संबोधित करने वाले विजयवर्गीय अब पलट गए हंै। कहा तो यहो तक जा रहा है कि प्रदेश में उनकी समानान्तर सरकार चल रही है। हिंदुत्व की लाठी के सहारे लोकप्रियता बटोरने वाले कैलाश भाई को संघ का भी वरदहस्त प्राप्त है। कैलाश विजयवर्गीय के सामने मुख्यमंत्री का कद भी छोटा दिखता है। ऐसे में अधिकारियों की क्या मजाल की वे कैलाश भाई के खिलाफ कदम उठा सकें। इसलिए मंत्री महोदय के विभागों के जितने प्रमुख सचिव हैं वे उनके इशारे पर ही काम करते हैं। हालांकि विजयवर्गीय के पास सभी मालदार विभाग है, लेकिन उद्योग विभाग उनके लिए दुधारू साबित हो रहा है। सरकार की फजीहत भी इसी विभाग ने सबसे अधिक कराई है। प्रदेश में उद्योगों की स्थापना के लिए विभागीय मंत्री और अपर मुख्य सचिव सत्यप्रकाश द्वारा बनाई गई योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए मुख्यमंत्री दलबल के साथ विदेशों का भ्रमण कर आए और प्रदेश में कई इन्वेटर्स मीट का आयोजन कर डाला लेकिन सरकार के हाथ में सिफर ही आया। इस विभाग की अनुशंसा पर ही प्रदेश भर में उद्योगपतियों को जमीनें आवंटित की जा रही हैं, लेकिन एक भी बड़ा उद्योग यहां स्थापित नहीं हो सका है। मंत्री और प्रमुख सचिव सरकार और आवाम को उद्योगों का दिवास्वप्न दिखा रहे हैं इसके लिए अरबों रुपए खर्च किए जा चुके हैं। प्रदेश में अगर सबसे अधिक किसी विभाग की बात लगी है तो वह है उद्योग विभाग। आलम यह है कि उद्योग के नाम पर उद्योगपति प्रदेश में केवल जमीनें लेने आते हैं। पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव को मुख्यमंत्री का सबसे विश्वस्त माना जाता है। इसलिए उन्हें उनके विभाग में कामकाज के पूरी तरह से छूट मिली हुई है। इस विभाग में करीब आधा दर्जन आईएएस अधिकारियों की टीम है, लेकिन ये टीम अपने मंत्री को साइट लाइन करने की हिम्मत नहीं जुटा पाती। मुख्यमंत्री आवास मिशन, रोजगार गारंटी योजना और मुख्यमंत्री ग्रामीण सड़क योजना जैसे प्रमुख योजनाओं का जिम्मा इसी विभाग पर है, लेकिन इसके बावजूद मुख्यमंत्री भार्गव के कामकाज में ज्यादा हस्तक्षेप नहीं करते। विभाग में योजनाओं के क्रियान्वयन की स्थिति क्या है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अकेले रीवा में रोजगार गारंटी योजना के तहत एक लाख लोगों को लाभान्वित करने का दावा किया जा रहा है ऐसे में अगर आंकड़ों की बाजीगरी की जाए तो सहज ही अंदाज लगाया जा सकता है कि प्रदेश में कितने लोग लाभान्वित हुए होंगे। विभाग की समीक्षा बैठकें भी बिना मंत्री के नहीं होती। भार्गव ने मुख्यमंत्री को साध रखा है और वे उनकी गुड लिस्ट में हैं और इसका फायदा उठाकर मंत्री महादेय अपनी झोली भरने में लगे हुए हैं। प्रदेश में ग्रामीण सड़कों की क्या स्थिति है यह किसी से छिपी नहीं है। विभाग के प्रमुख सचिव आर परशुराम मंत्रीजी के कदमों का अनुशरण करते हैं। सूत्र बताते हैं कि भार्गव के रुतबे के आगे प्रमुख सचिव कुछ अधिक नहीं कर पाते हैं। अपने विभाग के संदर्भ मे श्री भार्गव कहते हैं कि यहां तो राम राज्य है मुझे कुछ ज्यादा नहीं करना पड़ता है। वे आगे कहते हैं कि भाई छह सात आईएएस अधिकारियों को झेल रहा हूं यह क्या कम है। इन अधिकारियों को एसी कमरे में रहने की आदत है उन्हें गांव देहात के बारे में क्या जानकारी। विभाग के बारे में जो भी निर्णय लेना होता है वह मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव बैठक कर ले लेते हैं।
पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के प्रमुख सचिव पर अवैधानिकता और अनियमित पदोन्नति देने के आरोप लगे हैं। इन पदोन्नतियों में भर्ती नियम, आरक्षण नियम तथा पदोन्नति नियम 2002 के प्रावधानों को दरकिनार कर प्रथम श्रेणी अधिकारियों को रेवड़ी बांटी गई है। एक साल में ही बगैर पद क रहते मुख्य अभियंता पद पर पांच अधीक्षक यंत्रियों को पदोन्नत किया गया। इसी प्रकार पांच कार्यपालन यंत्रियों को अधीक्षण यंत्री बनाया गया। साथ ही सहायक यंत्रियों को कार्यपालन यंत्री और उपयंत्री-ड्राप्समैन को सहायक यंत्री बनाया गया। उपायुक्त विकास जैसे सुयंक्त आयुक्त विकास के पद पर पदोन्नति की कार्यवाही की गई है। संयुक्त आयुक्त के पद पर पदोन्नति के लिए नरेगा, सड़क प्राधिकरण, मुख्यमंत्री सड़क योजना, एमडीएम राजीव गांधी मिशन, स्वच्छता मिशन रोजगार योजना व ग्रामीण विकास को अन्य विभिन्न योजनाओं के पद सम्मिलित कर लिए गए हैं, जबकि इन योजनाओं के पद सीमित अवधि के लिए होकर अस्थायी हैं। इन पदों पर केवल संविदा नियुक्ति या प्रतिनियुक्ति पर ही पदस्थापना की जा सकती है। इन पदों पर स्थायी पदोन्नति करने का न तो कोई प्रावधान है और न ही कोई प्रशासनिक औचित्य। इनमें कई पद ऐसे भी सम्मिलित कर लिए गए हैं, जो राज्य प्रशासनिक सेवा के अपर कलेक्टर स्तर के अधिकारी से भरे जाते हैं। इन पदों पर ग्रामीण विकास विभाग के अधिकारियों की पदोन्नति करने से प्रशासनिक अव्यवस्था के साथ-साथ डिप्टी कलेक्टर संवर्ग के ऊपर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।उद्योग मंत्री के रूप में विफल रहने के बाद जयंत मलैया के पास इन दिनों जल संसाधन और आवास एवं पर्यावरण विभाग है। मलैया को मुख्यमंत्री की तरफ से फ्री हैण्ड मिला हुआ है। मुख्यमंत्री इन पर बहुत विश्वास करते हैं लेकिन पिछले कुछ महीनों के अंदर इंदौर सहित प्रदेशभर में कई ऐसे मामले सामने आए हैं जिससे मलैया की छवि दागदार हुई है। सैकड़ों इंजीनियरों वाले जल संसाधन विभाग में इंजीनियरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग फिलहाल मंत्री जी के इशारों पर ही हो रहे हैं। आवास एवं पर्यावरण विभाग जैसे विभाग को भी मलैया ही पूरी तरह डील कर रहे हैं और इसमें उनको मुख्यमंत्री सचिवालय का पूरा सहयोग मिल रहा है। इस तरह की डील की कीमत क्या होती है यह हर कोई जानता है। हालांकि मंत्री महोदय को आवास एवं पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव के रूप में आलोक श्रीवास्तव जैसा ईमानदार प्रमुख सचिव तो जल संसाधन विभाग में राधेश्याम जुलानिया जैसा अक्खड़ प्रमुख सचिव मिला है लेकिन अधिकारियों को साधने की कला में माहिर मंत्रीजी अपना उल्लू सीधा कर ही लेते हैं।भाजपा के वरिष्ठ नेता और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे सरताज सिंह को भी मुख्यमंत्री ने सम्मान दे रखा है। वन विभाग की कमान उनके हाथ में है और ज्यादातर काम वे अपने हिसाब से करते हैं। मप्र के वनों में अवैध रूप से कटाई जोरों पर है जब कभी एक-दो मामले जब सामने आते हैं तो मंत्री जी इसे कोई बड़ी घटना नहीं मानते हैं। वन विभाग में दागदार अधिकारियों की भरमार है और श्री सिंह ने पदभार ग्रहण करने के साथ ही कहा था कि विभाग में ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी लेकिन आज तक जांच ही चल रही है।कभी शिवराज सिंह चौहान को फूटी आंख नहीं सुहाने वाले संसदीय कार्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा को आवास विभाग का जिम्मा देकर मुख्यमंत्री ने उनकी उपयोगिता बढ़ा दी है। आज नरोत्तम मुख्यमंत्री के नाक-कान हो गए हैं। वैसे उनके दोनों विभागों में ज्यादा करने के लिए कुछ नहीं है, लेकिन नरोत्तम की वफादारी को देखते हुए सरकार में उन्हें तवज्जो मिल रही है। प्रवक्ता होने के नाते सभी विभागों को आदेश जारी कर कहा गया कि वे जो जानकारी मांगें उन्हें तुरंत उपलब्ध कराई जाए। इस सीमित भूमिका में भी वे खुद मुख्यमंत्री के सामने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना चाह रहे हैं, ताकि आगे चलकर उन्हें अच्छे विभाग के साथ फ्री हैण्ड भी मिल सके।आदिम जाति कल्याण और अनुसूचित कल्याण मंत्री कुंवर विजयशाह शिवराज मंत्रीमंडल के सबसे बदनाम मंत्रियों में गिने जाते हैं। वैसे तो यह विभाग प्रदेश सरकार में हाशिये पर हैं, लेकिन केंद्र से मिलने वाला करोड़ों का बजट और राज्य का बजट मिलाकर यह विभाग मलाईदार हो गया है। जिससे यह विभाग भ्रष्टाचार की खान बनकर रह गया है। जैसे को तैसे की तर्ज पर इस विभाग और मंत्री महोदय को देवराज बिरदी जैसा प्रमुख सचिव भी मिल गया है। आदिवासियों और दलितों को मिलने वाले पैसे को किस तरह हजम किया जाए बस यही काम इस विभाग के पास है। सरकार में मुख्यमंत्री के बाद गृह मंत्री को दूसरा सबसे ताकतवर माना जाता है, लेकिन गृह मंत्री उमाशंकर गुप्ता इस सरकार में बहुत कुछ होते हुए कुछ भी नहीं हैं। वे अपने विभाग में सिर्फ नाम के मंत्री हैं। गृह विभाग में उनके कहने और चाहने पर कुछ भी नहीं होता। इस विभाग को पूरी तरह से मुख्यमंत्री और उनके अधिकारियों ने अपने नियंत्रण में ले रखा है। आईपीएस अधिकारियों के तबादलों और प्रमोशन में मंत्री की रत्ती भर भी नहीं चलती। इस विभाग में मंत्री के साथ ही प्रमुख सचिव भी सिर्फ नाम के हैं। हाल ही में विभाग के प्रमुख सचिव राजन एस. कटोच इन्हीं सब परिस्थितियों के चलते केंद्र में जा चुके हैं। उनकी जगह खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग के प्रमुख सचिव अशोक दास को प्रमुख सचिव बनाकर सरकार ने सबको चौंका दिया है। दास को शांत और सौम्य व्यवहार का अफसर माना जाता है, जबकि गृह विभाग ऐसे अफसरों के बस की बात नहीं है। सूत्र बताते हैं कि मंत्री महोदय को खुश करने के लिए कुछ छोटे-मोटे तबादले उनके हिस्से में दे दिया जाता है।प्रदेश सरकार के मालदार विभागों में से एक लोक निर्माण विभाग नागौद के राजपरिवार से आने वाले नागेंद्र सिंह के पास है। शिवराज सरकार की दुर्दशा कराने में इस विभाग का सबसे बड़ा हाथ है। जिस सड़क के मुद्दे पर 2003 भाजपा सरकार सत्ता में आई थी आज वह सड़कों की दशा सुधारने में पूरी तरह असफल रही है। सड़कों के निर्माण का ऐतिहासिक रिकार्ड परोसने वाले इस विभाग की स्थिति का आंकलन इससे ही किया जा सकता है कि यहां उद्योग स्थापित करने की इच्छा लेकर आने वाले उद्योगपति यह कहते सुने गए हैं कि जब तक प्रदेश की सड़कें ठीक नहीं होंगी यहां कोई उद्योग स्थापित करना संभव नहीं है। विभाग के तात्कालीन सचिव मो. सुलेमान ने सड़कों के मामले में इस विभाग को कहीं का नहीं छोड़ा और अब वो प्रदेश के ऊर्जावान अधिकारियों में गिने जाते हैं और वर्तमान में वह ऊर्जा का ही प्रभार देख रहे हैं। नागेंद्र सिंह पढ़े-लिखे और तेजतर्रार मंत्री हैं और उन्हें केके सिंह जैसा प्रमुख सचिव भी मिल गया है। दोनों की जोड़ी राम मिलाई जोड़ी है, परंतु विभाग तो भ्रष्टाचार की आकंठ में पूरी तरह डूबा हुआ है। ऐसे में भला मंत्री और प्रमुख सचिव अपने इंजीनियरों के सामने बौने साबित हो रहे हैं और पैसा पानी की तरह बर्बाद हो रहा है। अभी हाल ही में कुछ अधिकारियों के घर आयकर एवं लोकायुक्त के छापे पड़े हैं और कईयों के मामले जांच में लंबित है। हाउंसिंग सोसायटियों के घपले में सरकार की किरकिरी कराने वाले सहकारिता एवं लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के मंत्री गौरीशंकर बिसेन अपने विभागों में अपने हिसाब से काम कर रहे हैं। उन्हें इस सरकार का खुशकिस्मत मंत्री कहा जा सकता है, जिनके मामले में न तो मुख्यमंत्री और न ही उनके अधिकारी ज्यादा दखल देते हैं। हाउंसिंग सोसायटी के घपलों के मामलों में जरूर मुख्यमंत्री ने सहकारिता विभाग के अफसरों को तलब किया, लेकिन इसमें भी मंत्री को पूरी तवज्जो दी गई। इस विभाग के दम पर ही मुख्यमंत्री ने किसानों को 3 प्रतिशत ब्याज पर लोन देने की घोषणा की थी लेकिन साल बीत जाने के बाद भी यह योजना परवान नहीं चढ़ी। मंत्री जी के कार्यकाल में दो मामले ऐसे सामने आए जिसने सरकार को दागदार बना दिया। पहला मामला था अपेक्स बैंक द्वारा एक्सिस बैंक में एफडी का और दूसरा मामला था किसानों की जमीन विदेश में गिरवी रखने का। मंत्री महोदय की सबसे बड़ी खुशफहमी यह है कि उन्हें एमएम उपाध्याय जैसा कमाऊ प्रमुख सचिव (सहकारिता) मिला है। जिनके बारे में कहा जाता है कि वे जिस विभाग में रहे हैं उस विभाग के मंत्री को अपने सांचे में ढाल लेते हैं। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग में आलम यह है कई पेयजल की परियोजनाएं अधर में लटकी हुई हैं। मुख्यमंत्री ने इस विभाग की दो बार समीक्षा की है लेकिन योजनाओं के क्रियान्वयन ने गति नहीं पकड़ी है। मुख्यमंत्री पेयजल कर स्थिति बद से बदत्तर है। भोपाल में नर्मदा जल लाने की योजना में बाधाएं बढ़ती ही जा रही हैं जबकि मंत्री जी कहते हैं कि इस विभाग के कुल बजट का 82 फीसदी तीन क्वाटर में खर्च कर दिया गया है।प्रदेश के कृषि मंत्री डॉ. रामकृष्ण कुसमरिया ने जैविक खेती को बढ़ावा देने का अभियान चलाकर जहां एक तरफ वाह वाही लूटी वहीं किसानों की आत्महत्या के मामने लगातार सामने आने से उनकी तथा सरकार की जमकर किरकिरी हो रही है। ऐसे मामलों के बीच डॉ. कुसमरिया ने यह कह कर सनसनी फैला दी है कि किसान अपना पाप ढो रहे हैं। उन्होंने जिस तरह जमीन में केमिकलयुक्त दवाओं का उपयोग किया है, उससे जमीन तो खराब हुई ही है फसलों को भी नुकसान हो रहा है इसलिए ये घटनाएं हो रहीं हैं। प्रदेश में एक माह में अब तक सात किसान अपनी जीवनलीला समाप्त कर चुके हैं, वहीं प्रदेश के नेता इनकी तकलीफें दूर करने की बजाए एक दूसरे पर दोष मढऩे पर आमादा है। मंत्रीजी के दो बंदरों की उछलकूद इस विभाग में जमकर है। एक तो पुलिस विभाग के अधिकारी हैं वहीं दूसरे कृषि विभाग के अधिकारी। इन्होंने इस विभाग में हर एक अधिकारी से चौथ वसूली कर रखी है जिसकी शिकायत किसान संघ के शिवकुमार शर्मा ने मुख्यमंत्री से कर डाली कि उमेश शर्मा नाम का अधिकारी को मंत्री के स्टाफ से तत्काल हटाया जाए।महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार रंजना बघेल कहने को तो पूरी तरह से मुख्यमंत्री के रहमो करम हैं लेकिन इस विभाग का जितना दोहन इन्होंने किया है शायद ही किसी और मंत्री ने किया हो। विभाग की पूर्व प्रमुख सचिव टीनू जोशी और इनकी जुगलबंदी ऐसी थी की प्रदेश में एक तरफ कुपोषण से बच्चों की मौत हो रही थी और दूसरी तरफ ये लोग कागजी योजनाएं बनाकर पैसा खर्च करने में लगे हुए थे। सीएजी ने मप्र सरकार की सबसे पॉपुलर लाड़ली लक्ष्मी योजना के नाम पर मची लूट को भी रेखांकित किया था। सीएजी अपनी रिपोर्ट में योजना में गंभीर वित्तीय अनियमितताओं सहित अपात्र हितग्राहियों को मदद पहुंचाने का खुलासा कर चुका है। रिपोर्ट के अनुसार बच्ची की जन्मतिथि में हेराफेरी सहित परिवार नियोजन सुनिश्चित किए बगैर करीब एक करोड़ आठ लाख रुपए का भुगतान कर दिया गया। बात निकलकर दूर तक गई तो आयकर विभाग ने टीनू जोशी के घर छापा डाल हकीकत सबके सामने ला दिया। टीनू जोशी के निलंबन के बाद लवलीन कक्कड़ प्रमुख सचिव बनी लेकिन मंत्री महोदया के सांचे में नहीं ढल पाने के कारण उन्हें विभाग छोडऩा पड़ा। अब इस कमाऊ विभाग के प्रमुख सचिव की कुर्सी पर बीआर नायडू विराजमान हैं। परंतु मंत्री पति के आगे किसी की नहीं चलती। अगर देखा जाए तो मंत्राणी की भी नहीं। बताते हैं कि अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के मामले और घपलेबाजों को बचाने की कला में माहिर मंत्री परिवार पूरी तरह लगा हुआ है। खनिज एवं ऊर्जा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) राजेंद्र शुक्ला के पास कहने को तो खनिज और ऊर्जा जैसे अहम विभाग हैं, लेकिन भाई साहब केवल खनिज में ही उलझ कर रह गए हैं। जबकि ऊर्जा विभाग सचिव मो. सुलेमान के हवाले कर दिया है। सूत्र बताते हैं कि मंत्री महोदय वे ऊर्जा जैसे विभाग के मंत्री भी हैं। प्रदेश में बिजली कटौती को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। बिजली की कटौती से परेशान किसान राजधानी की सांसे रोक कर कोहराम मचा देते हैं लेकिन मंत्री पूरे परिदृश्य में कहीं नजर नहीं आते हैं। मो. सुलेमान जैसे ऊर्जावान अधिकारी जिन्होंने मध्यप्रदेश की सड़कों में बद से बदत्तर कार्य किया है जिसका खामियाजा उद्योग विभाग को झेलना पड़ रहा है। क्योंकि यहां पर उद्योग नहीं आने का एक मुख्य कारण सड़क भी है। प्रदेश के सबसे दागदार विभाग के मुखिया रहे अजय विश्रोई इस समय पशुपालन, मछली पालन, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण और अपरम्परागत उर्जा विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। परंतु यहां पर उनकी अधिकारियों से नहीं पट रही है। कारण मंत्रीजी अपने विभाग को बहुत तेजी से चलाना जानते हैं और उनकी चाल से शायद ही कोई मंत्रालय का सचिव या प्रमुख सचिव चल पाए। मालदार विभाग में रहने के कारण पैसा कमाने के आदि मंत्री जी यहां भी इसी में लगे रहते हैं। इनको मंत्रीमंडल से बर्खास्त करने के बाद अरुण जेटली की अनुशंसा पर पुन: मंत्री बनाया है। स्कूल शिक्षा मंत्री अर्चना चिटनीस विभाग में अपने अंदाज में काम करती हैं, लेकिन सर्वशिक्षा अभियान और माध्यमिक शिक्षा अभियान जैसे राष्ट्रीय कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के कारण मुख्यमंत्री विभाग की समीक्षा कभी-कभी खुद भी कर लेते हैं। शिक्षकों और अध्यापकों की लंबी फौज वाले इस विभाग में वैसे मंत्री को फ्री हैण्ड है, लेकिन इसके लिए उन्हें भी मुख्यमंत्री को विश्वास में लेना पड़ा। प्रदेश में शिक्षा का स्तर सुधारने के बड़े- बड़े दावे करने वाली खुद अध्यापक रही मंत्री महोदया अधिकतर समय इंदौर और खंडवा में ही गुजारती हैं ऐसे मे विभाग की स्थिति सुधर सकती है उसका अनुमान लगाना भी बेमानी साबित होगा।प्रदेश के राजस्व एवं पुनर्वास मंत्री करण सिंह वर्मा अपने बड़बोलेपन के कारण अधिक जाने जाते हैं। वे जहां भी जाते हैं कुछ न कुछ ऐसा बयान दे आते हैं कि उससे सरकार की किरकिरी होती है। वैसे तो ईमानदारी का पाठ पढ़ाने वाले मंत्री महोदय अपने प्रमुख सचिव से बहुत परेशान है उसका कारण है प्रमुख सचिव कोई निर्णय नहीं लेते हैं। जेल एवं परिवहन मंत्री, जगदीश देवड़ा, श्रम मंत्री जगन्नाथ सिंह और खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार पारस चंद्र जैन सिर्फ नाम के मंत्री हैं। देवड़ा का परिवहन विभाग सीधे भाजपा संगठन और मुख्यमंत्री संभालते हैं और जेल की तरफ कोई देखना नहीं चाहता। यही हाल श्रम विभाग का है, इसलिए मंत्री लालबत्ती में बैठकर खुश हो लेते हैं। नागरिक आपूर्ति विभाग पर मुख्यमंत्री सचिवालय का सीधा नियंत्रण है, पारस चंद्र जैन भी राजधानी में कम ही दिखाई देते हैं। सरकार के 9 राज्यमंत्रियों में लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री महेंद्र हार्डिया की लॉटरी लगी हुई है। वे एकमात्र ऐसे राज्यमंत्री हैं, जिनके पास करने के लिए कुछ काम है। अनूप मिश्रा के इस्तीफे के बाद मुख्यमंत्री ने इस विभाग में किसी कैबिनेट मंत्री की नियुक्ति करने की बजाए इसे अपने पास रखा। हार्डिया राज्यमंत्री होने के नाते फिलहाल अधिकांश काम संभाल रहे हैं।
ऐसे में जन विश्वास की कसौटी पर खरे उतरने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को कुछ ज्यादा ही सचेत होना पड़ेगा। सत्ता के चाल, चरित्र और चेहरे को और साफ सुथरी छवि प्रदान करने के लिए शिवराज को सबसे पहले अपने मंत्रियों की एक विश्वसनीय टीम बनानी होगी। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि मुख्यमंत्री की ईमानदार छवि के कारण ही भाजपा राज्य में दुबारा सत्ता में लौटी है और इसी विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए उनमें जनहित की नीतियों एवं कार्यक्रमों को अमलीजामा पहनाने के लिए समुचित बदलाव लाने का संकल्प साफ झलकता है। उक्त मुहिम इसी की परिचायक है लेकिन सवाल यही है कि क्या उनके पास ऐसे मंत्रियों एवं अफसरों की टीम मौजूद है जिनमें भी ऐसी ही ईमानदारी और संकल्पबद्धता हो। फिलहाल तो नौकरशाही की जो तस्वीर नजर आती है, वह प्रशासनिक दृष्टिï से ज्यादा उत्साहजनक नहीं है। अफसरों एवं प्रशासनिक अमले में फैला भ्रष्टïाचार ऐसा रोग है जो राज्य को सेहत को बेहतर बनाने तथा इसे खुशहाली का टानिक देने की सरकार की तमाम कोशिशों को निगल रहा है और इसके बावजूद सरकारी आंकड़ेबाजी से सरकार को भ्रमित किया जा रहा है। समीक्षा बैठक भर से काम चलने वाला नहीं है बल्कि जब तक ईमानदार अफसरों को पुरस्कृत करने तथा बेईमान अफसरों को दंडित करने का अभियान नहीं चलेगा तब तक राज्य की प्रगति में बेईमान अफसरशाही रोड़ा बनी रहेगी। प्रशासन से सरकार के कार्यक्रमों के क्रियान्वयन को सुनिश्चित कराने के लिए मंत्रियों में प्रशासनिक क्षमता तथा ईमानदारी का होना पहली शर्त है। यदि मंत्रालय में मंत्रियों की उपस्थिति पर नजर डाली जाए तो यह बात साफ हो जाती है कि अधिकांश मंत्री तो इस प्रशासनिक मुख्यालय में तभी आते हैं जब उनके किसी परिचित, रिश्तेदार या राजनीतिक साथी, सहयोगी की फाइलें निपटानी होती हैं। फिर वे आला अफसरों पर नियंत्रण कैसे करेंगे। इतना ही नहीं, कई बार तो मंत्रियों एवं आला अफसरों में भ्रष्टïाचार के मामले मेें मिलीभगत होती है। कौन नहीं जानता कि कई मंत्रियों पर पिछले वर्षों में भ्रष्टïाचार के गंभीर आरोप लग चुके हैं और उनमें से अधिकांश आज मंत्रिमंडल में हैं। क्या सरकार एवं सत्तारूढ़ पार्टी ऐसे मंत्रियों पर नकेल कसने के लिए तैयार है ताकि जनता के प्रति जवाबदेह ईमानदार शासन -प्रशासन का मार्ग प्रशस्त हो सके।
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