उत्तर प्रदेश और बिहार से आई दो खबरों ने देश भर में मंथन का एक नया दौर शुरू किया है. बिहार में पूर्णिया के भाजपा विधायक राजकिशोर केसरी को एक महिला ने सरेआम चाकू मारकर मौत के घाट उतार दिया. इधर, उत्तर प्रदेश में एक नाबालिग दलित लड़की से बलात्कार का आरोप झेल रहे बांदा जिले के बसपा विधायक पुरुषोत्तम नारायण द्विवेदी ने अपना दामन बचाने के लिए जिस तर्क का सहारा लिया वह बात कोई और कहता तो विधायक उसकी जान के दुश्मन बन गए होते. उन्होंने खुद को नपुंसक घोषित करते हुए बलात्कार कर पाने में असमर्थ होने का दावा किया है. ये दोनों ही मामले वर्तमान राजनीतिक रंगमंच के यथार्थ की झलकियां हैं.
पहले बात दिवंगत भाजपा विधायक राज किशोरी केसरी की। पूर्णिया के एक स्कूल की प्रिंसिपल रुपम पाठक ने चाकू मारकर उनकी जान ले ली थी। उसका आरोप था कि विधायक जी यौन शोषण कर रहे थे और शिकायत करने पर पुलिस कोई सुनवाई नहीं कर रही है। अब लालूप्रसाद जैसे बड़े नेता इस हत्याकांड की उच्चस्तरीय जांच की मांग कर रहे हैं। पूर्णिया के पुलिस उप महानिरीक्षक अमित कुमार कह रहे हैं कि आरोपी का कैरेक्टर संदिग्ध था। ..और विधायक जी तो अब रहे नहीं, लेकिन उनके चरित्र पर जाते-जाते जितने धब्बे लग चुके हैं, उनकी सफाई कौन देगा? राजकुमार केसरी कोई मामूली आदमी नहीं थे। इलाका उनसे थर्राता था। शायद इसी वजह से रूपम पाठक के ससुर ने ऐलानिया कह दिया कि स्वर्गीय विधायक जी तो बहुत अच्छे आदमी थे, उनकी बहू ने ही गड़बड़ किया था। इस प्रकार से मामला दफन होने की राह पर निकल पड़ा था लेकिन रूपम पाठक की मां, कुमुद मिश्र ने अपनी बेटी की इज्जत को दागदार होने से बचाने का फैसला किया और बिहार के राज्य महिला आयोग में अर्जी लगा दी कि राजकुमार केसरी और उसका चमचा बिपिन राय उनकी बेटी को हमेशा परेशान करते रहते थे। उन्होंने अपनी दरखास्त में लिखा है कि केसरी एक बदमाश आदमी था और सारा पूर्णिया जिला उसके गुनाहों को जानता था और बहुत सारे लोगों को मालूम है कि उसने आतंक का राज कायम कर रखा था। रूपम की मां ने मांग की है कि मामले की सीबीआई जांच करवायी जाए क्योंकि बिहार पुलिस तो गवाहों को डरा-धमका कर फर्जी मामले में रूपम पाठक को फंसा देगी। रूपम पाठक की मां की तरफ से हिम्मत करके आगे आने के बाद तो एक राष्ट्रीय न्यूज चैनल ने भी अपने कर्तव्य की पहचान की और उनको टेलीविजन न्यूज का समय दिया। रूपम की मां ने देश को बताया कि राजकुमार केसरी के लोग उनको धमका रहे हैं, बिपिन राय इस गिरोह की अगुवाई कर रहा है। रूपम के बेटों के अपहरण की धमकी दी जा रही है। कुमुद मिश्र ने बताया कि रूपम के पति जो इंफाल में रहते हैं, उनकी जान को भी खतरा है और बिहार पुलिस से न्याय की उम्मीद बिलकुल नहीं है।
द्विवेदी मामले के बाद उत्तर प्रदेश की मौजूदा सरकार की विशिष्ट उपलब्धियों की फेहरिस्त में एक ऐसा सितारा जुड़ गया है जिसे मायावती या बसपा का कोई शुभेच्छु शायद ही याद रखना चाहे. मई, 2007 में पूर्ण बहुमत से राज्य की सत्ता में आने के बाद से अब तक मायावती कुनबे के पांच विधायकों पर बलात्कार के या तो आरोप लगे हैं या फिर वे बलात्कार के आरोप में जेल में हैं. प्रदेश की कमान संभालने के बाद मायावती ने दावा किया था कि अब जनता को सपा के कुशासन से मुक्ति मिलना तय है. पर उनके अपने जनप्रतिनिधि जिस तरह की अनैतिक मिसालें पेश कर रहे हैं उससे उनके दावे धूल-धूसरित हो चुके हैं.महिलाओं से दुराचार व हत्या को लेकर विधायक आनंदसेन यादव, गुड्डू पंडित, योगेंद्र सागर और राम मोहन गर्ग पर लगे आरोपों के चलते पहले ही मायावती काफी फजीहत झेल चुकी थीं. लेकिन इन मामलों को भुलाकर वे 2012 के चुनाव योग्य उम्मीदवारों का टिकट तय करने में मशगूल थीं. इस उम्मीद में कि 2007 का चमत्कार एक बार फिर से 2012 में भी हो जाए. इस बीच बांदा की नरैनी विधानसभा से पार्टी के विधायक पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी पर अति पिछड़ी जाति की गरीब लड़की नीलू (बदला हुआ नाम) द्वारा लगाए गए दुराचार के आरोप ने सरकार को पसीना-पसीना कर दिया. हद तो तब हो गई जब सत्ता के मद में चूर विधायक ने गैंगरेप का आरोप लगाने वाली नाबालिग लड़की को चोरी के आरोप में जेल भी भिजवा दिया.
आखिर कौन है नीलू और किन परिस्थितियों में वह विधायक के घर तक पहुंची? इन सवालों के जवाब इस मामले के रहस्य से पर्दा उठा सकते हैं. बांदा के शहबाजपुर गांव निवासी अच्छेलाल केवट की चार संतानों में नीलू सबसे बड़ी है. अच्छेलाल बताते हैं कि मध्य प्रदेश के पन्ना जिले के गांव हरनामपुर स्थित ससुराल में उनके बुजुर्ग सास-ससुर अकेले रहते हैं. उनकी देखभाल के लिए डेढ़ साल से नीलू हरनामपुर में रह रही थी. करीब दो महीने पहले बांदा के एक युवक रज्जू पटेल के साथ वह घर से गायब हो गई. अच्छेलाल बताते हैं कि काफी खोजबीन के बाद भी उसका कुछ पता नहीं चल पाया. दिसंबर के पहले सप्ताह में अचानक एक दिन रज्जू के गांव पथरा से किसी ने फोन करके बताया कि नीलू गांव में ही है. यह खबर मिलने पर अच्छेलाल पुलिस के पास पहुंचे, लेकिन पुलिस ने उन्हें दुत्कार दिया. बसपा की स्थापना के बाद से ही पार्टी से जुड़े रहे अच्छेलाल ने मजबूरन अपनी पार्टी के विधायक पुरूषोत्तम नरेश द्विवेदी से मदद मांगने का फैसला किया. विधायक ने उनकी मदद की भी, लेकिन नीलू को रज्जू के चंगुल से छुड़ाकर उसके पिता अच्छेलाल को सौंपने की बजाय अतर्रा स्थित अपने घर ले आए. अच्छेलाल भावुक होकर बताते हैं, विधायक ने नीलू की हालत देखकर कहा था कि तुम चिंता न करो, इसे यहां रहने दो. मैं कोई अच्छा-सा लड़का देखकर खुद ही इसका कन्यादान कर दूंगा.लेकिन इसके बाद जो हुआ वह अच्छेलाल ने सपने में भी नहीं सोचा था. वे बताते हैं कि 13 दिसंबर की सुबह विधायक ने उन्हें फोन करके बताया कि नीलू फिर से रज्जू के साथ भाग गई है और घर में रखी पिस्टल व नगदी भी ले गई है. इस संबंध में विधायक के बेटे मयंक की ओर से नीलू के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज करा दिया गया. पुलिस ने 14 दिसंबर को नीलू को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया. घटना में उस वक्त नया मोड़ आ गया जब गिरफ्तारी के कुछ समय बाद अच्छेलाल का बेटा संतू अपनी बहन से मुलाकात करने बांदा जेल पहुंचा. संतू बताता है, जेल में बहन ने जो सच्चाई बताई उसे सुनकर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई. नीलू ने बताया कि विधायक व उसके दो अन्य साथियों ने उसके साथ गलत काम किया. उनकी जोर-जबर्दस्ती से बचने के लिए ही वह रात में घर से भाग निकली. विवाद को दबाने की तमाम कोशिशों के बावजूद मामला बनता न देख मुख्यमंत्री ने पूरे प्रकरण की सीबीसीआईडी जांच का आदेश देकर विधायक को पार्टी से निलंबित कर दिया. जांच एजेंसी ने शुरुआती जांच में इसकी पुष्टि कर दी कि लड़की के साथ बलात्कार हुआ है. चौतरफा दबाव में लगभग महीने भर बाद विधायक और दो अन्य आरोपितों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई और 13 जनवरी को आरोपित विधायक को गिरफ्तार किया गया. पूरे प्रकरण पर विधायक द्विवेदी का बयान चौंकाने वाला था. उनका कहना था, मैं नपुंसक हूं. किसी के साथ दुराचार नहीं कर सकता.
दूसरी बार विधायक बने आनंदसेन यादव को मंत्रिपद रास नहीं आया. पिछले ढाई साल से वे दलित छात्रा शशि के बलात्कार और हत्या के आरोप में जेल में बंद हैं. राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले आनंदसेन के पिता मित्रसेन यादव मिल्कीपुर सीट से कई बार विधायक व फैजाबाद लोकसभा सीट से सांसद भी रह चुके हैं. मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र के गांव सौहलारा निवासी योगेंद्र प्रसाद की बेटी शशि का अक्टूबर, 2007 में उस समय संदिग्ध परिस्थितियों में अपहरण हो गया था जब वह अयोध्या स्थित साकेत महाविद्यालय पढऩे गई थी. उस वक्त शशि का विधायक आनंदसेन के साथ प्रेम-प्रसंग चल रहा था और शशि गर्भवती थी. इस बात का जिक्र शशि की छोटी बहन ने न्यायालय में अपने बयान में भी किया है. इस बात का पता चलने पर योगेंद्र ने अयोध्या कोतवाली में आनंदसेन, उसके चालक विजयसेन और एक महिला के खिलाफ हत्या व अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराई. योगेंद्र का आरोप है कि सुल्तानपुर जिले में शशि की हत्या करके फेंका गया शव पुलिस ने बरामद भी किया लेकिन विधायक के दबाव में वह गायब कर दिया गया. मौके से सिर्फ शशि की घड़ी बरामद हुई. पूरे मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग को लेकर योगेंद्र ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. किरकिरी होती देख मायावती ने उन्हें मंत्री पद से हटा दिया, लेकिन उनकी गिरफ्तारी में पुलिस को आठ महीने लग गए.
सत्ता की हनक के आगे प्रशासन किस कदर बौना साबित होता है, इसका उदाहरण बदायूं जिले में भी देखने को मिला. बसपा विधायक योगेंद्र सागर पर ज्योति नाम की एक युवती के अपहरण और दुराचार में लिप्त होने के आरोप लगे. न्यायालय ने सागर के खिलाफ गैरजमानती वारंट भी जारी किया. इसके बावजूद पुलिस सत्तारूढ़ दल के विधायक पर हाथ डालने का साहस नहीं कर सकी. अप्रैल, 2008 में बिल्सी कस्बे के निवासी कुलदीप किशोर की बेटी ज्योति अचानक गायब हो गई थी. घटना के संबंध में कुलदीप ने विधायक योगेंद्र सागर, उनके रिश्तेदार तेजेंद्र सागर सहित कई अन्य लोगों के खिलाफ अपहरण और दुराचार का मुकदमा दर्ज कराया था. पहले तो पुलिस मामले को ठंडे बस्ते में डालने की कोशिश करके ज्योति के परिवारवालों पर ही दबाव बनाती रही लेकिन जब प्रकरण ने राजनीतिक रंग लेना शुरू किया तो पुलिस ने घटना के कई महीनों बाद ज्योति को बरामद किया. लाख प्रयासों के बाद भी पुलिस आरोपी विधायक तक नहीं पहुंच सकी. 2010 में कुलदीप ने फिर से अदालत की शरण ली. कुलदीप का संघर्ष अभी भी जारी है.
स्वभाव से ही दबंग विधायक गुड्डू पंडित पर 2007 के चुनाव के बाद माया सरकार खासी मेहरबान थी क्योंकि गुड्डू ने बसपा का झंडा थामकर पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह को शिकस्त दी थी. वैसे तो इनका दामन पहले से ही दागदार था लेकिन 2008 में इनका नाम उस समय सुर्खियों में आया जब आगरा विश्वविद्यालय से शोध करने वाली छात्रा शीतल बिरला ने इनके ऊपर दुराचार का आरोप लगाया. शीतल का आरोप था कि विधायक ने एक मंदिर में उससे विवाह किया था और खुद के शादीशुदा व बाल-बच्चेदार होने की बात छिपाई थी. मामला सत्तारूढ़ दल से जुड़ा था लिहाजा किरकिरी से बचने के लिए सरकार से हरीझंडी मिलने के बाद पुलिस ने नाटकीय ढंग से विधायक को गौतमबुद्ध नगर से गिरफ्तार किया. लेकिन कुछ माह बाद ही मामले में विधायक को जमानत मिल गई. पंचायत चुनाव के दौरान बीडीसी सदस्यों के अपहरण में विधायक का नाम आने पर सरकार को सफाई देनी मुश्किल हो गई लिहाजा बिना और देरी किए उन्हें जेल भेज दिया गया ताकि आगे और फजीहत न हो. बुलंदशहर से बसपा के एक और विधायक हाजी आलम के दामन पर भी सर्कस में काम करने वाली युवतियों से दुराचार करने का दाग लग चुका है. हाजी पर मुजफ्फरनगर कोतवाली में 2003 में दुराचार सहित कई धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ था.
अलीगढ़ जिले के खैर कस्बा निवासी राममोहन गर्ग न तो विधायक, एमएलसी थे और न ही सांसद, इसके बावजूद माया सरकार ने 2008 में उन्हें मत्स्य विकास निगम का उपाध्यक्ष बनाकर राज्यमंत्री के ओहदे से नवाजा था. गर्ग के पास सरकार का यह तोहफा अधिक समय तक टिकाऊ नहीं रहा. एक जनवरी, 2009 को खैर के पास ही स्थित पिसावा की रहने वाली सीमा नाम की महिला ने आरोप लगाया कि गर्ग ने उससे दुराचार करके उसकी अश्लील सीडी बनाई है. पुलिस ने गर्ग के खिलाफ दुराचार का मुकदमा दर्ज करके गिरफ्तार कर लिया. कुछ माह बाद न्यायालय से गर्ग को जमानत भी मिल गई. 2009 में बीमारी के चलते उनका निधन हो गया. गर्ग ने अपने एक परिचित पुलिस अधिकारी के माध्यम से एमए पास सीमा को दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी के तौर पर मेरठ के एसएसपी कार्यालय में नौकरी दिलवाई थी. सीमा का आरोप था कि लालबत्ती मिलने के बाद गर्ग इलाहाबाद गए और वहीं पर उसके साथ गलत काम करके सीडी बना ली. सबूत के तौर पर सीमा ने एक सीडी भी पुलिस को सौंपी थी जिसमें कथित तौर पर दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में पाया गया था.
ऐसा ही एक मामला था मधुमिता-अमर का। मधुमिता-अमर की प्रेमकथा, जिसे अमरत्व नसीब नहीं हुआ। मधु थी यूपी की एक तेज़-तर्रार कवयित्री, जो शब्दों के तीर चलाकर बड़े-बड़ों को घायल कर देती थी पर उसकी निगाहों के तीर से उत्तर प्रदेश के एक विधायक जी ऐसे घायल हुए कि घर-परिवार की जि़म्मेदारियां तक भुला बैठे। 2003 के मई महीने की एक तारीख़। अचानक यूपी के लोग ये ख़बर सुनकर थर्रा उठते हैं कि युवा छंदकार मधुमिता शुक्ला का लखनऊ की पेपर कॉलोनी स्थित घर में कोल्ड ब्लडिड मर्डर कर दिया गया है—यानी नृशंस तरीके से हत्या। किसी की समझ में नहीं आता कि मंचों की जान मानी जाने वाली मधु का मर्डर किसने और क्यों कर दिया। पंचनामा हुआ, बयान दर्ज हुए, पोस्टमार्टम किया गया, जांच हुई, सबूत तलाशे गए और फिर सामने आया—दहला देने वाला सच। मधु की हत्या के पीछे उत्तर प्रदेश के विधायक और पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी का हाथ बताया गया।
सच तो ये है कि मधुमिता को क़त्ल ना होना पड़ता, लेकिन उसने मंत्री-प्रेमी-नेता के कॉम्बिनेशन वाले अमरमणि से जि़द कर ली—अब मुझे जन्म-जन्म का साथी बनाओ। ये छिप-छिपकर मिलते रहने से जो रुसवाई मेरे माथे पर आ रही है, वह बर्दाश्त नहीं होती। अमरमणि को अब तक जो मोहब्बत जि़ंदा रखती थी, मधुमिता का वही साथ अब उन्हें काट खाने दौडऩे लगा। जानकार कहते हैं, यही वो पल था, जब अमर ने ठान लिया—अब मधुमिता को अपने जीवन में शामिल नहीं करना है। मधुमिता भी मज़बूर थी। उसके पेट में अमरमणि का बच्चा पल रहा था। शक की सुई उठने पर अमर ने इनकार किया—नहीं, मेरा मधु से कोई रिश्ता नहीं था, लेकिन डीएनए टेस्ट से साबित हुआ—मधु के गर्भ में पल रहे बच्चे के वही पिता हैं। 21 सितंबर, 2003 को अमर गिरफ्तार कर लिए गए। अदालत ने उनकी ज़मानत की अर्जी भी खारिज कर दी। इसके बाद 24 अक्टूबर को देहरादून की स्पेशल कोर्ट ने अमरमणि त्रिपाठी, पत्नी मधुमणि त्रिपाठी, उनके चचेरे भाई रोहित चतुर्वेदी और सहयोगी संतोष राय को मधुमिता शुक्ला की हत्या के मामले में दोषी करार दिया। अदालत ने अमरमणि को उम्रकैद की सज़ा सुना दी। अमर के पास अपील के मौके हैं। वो कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन मधु किससे दुहाई दे। उसने कब सोचा था—जिस लीडर पर सबकी रक्षा करने की जि़म्मेदारी है, वही यूं रुसवा करेगा और जान का ही दुश्मन बन जाएगा!
ऐसी ही एक घटना ने उत्तर प्रदेश की सियासत में भूचाल ला दिया था। वह था बैडमिंटन खिलाड़ी सैयद मोदी हत्या कांड। अमिता मोदी के भी दो चाहने वाले थे। एक तो उनके हमसफऱ, हमनवां और नेशनल बैडमिंटन चैंपियन सैयद मोदी और दूसरे यूपी की सियासत के जाने-माने नाम—संजय सिंह। सैयद मोदी उन दिनों उत्तर प्रदेश के खेल जगत में चमकते हुए सितारे के रूप में पहचाने जाते थे। उन्होंने आठ बार राष्ट्रीय बैडमिंटन चैंपियनशिप में जीत हासिल की थी। इसी तरह संजय सिंह भी अपनी ऊर्जा व वक्तव्य की नई शैली के चलते नाम कमा रहे थे। कहते हैं, संजय और अमिता की नज़दीकियां गहराईं और यही अंतरंगता सैयद के लिए जान जाने का सबब बन गई।
23 जुलाई 1988 की सुबह सैयद मोदी लखनऊ के केडी बाबू स्टेडियम से देर तक एक्सरसाइज करने के बाद बाहर निकल रहे थे, तभी कुछ अज्ञात हमलावरों ने उनका मर्डर कर दिया था। शक की सुई जनमोर्चा नेता और यूपी के पूर्व ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर डॉ. संजय सिंह पर उठी और फिर सीबीआई ने उन्हें आईपीसी की धारा-302 के तहत गिरफ्तार कर लिया। सीबीआई ने क़त्ल के दो दिन बाद पुलिस से मामला अपने पास ले लिया था और डॉ. संजय सिंह, सैयद मोदी और अमिता मोदी के बीच प्रेम त्रिकोण की जांच शुरू कर दी थी। सीबीआई को शक़ था कि प्रेम के इस ट्रांइगल की वज़ह से ही सैयद का क़त्ल हुआ है। दस दिन बाद सीबीआई ने दावा किया कि मामले का खुलासा हो गया है और उसने पांच लोगों को गिरफ्तार भी किया। इनमें अखिलेश सिंह, अमर बहादुर सिंह, भगवती सिंहवी, जितेंद्र सिंह और बलाई सिंह शामिल थे। अखिलेश पर आरोप था कि उसने हत्यारों को सुपारी दी थी और अमर, भगवती व जितेंद्र गाड़ी लेकर सैयद की हत्या कराने पहुंचे थे। बलाई सिंह को रायबरेली से गिरफ्तार किया गया। सीबीआई ने संजय सिंह और अमिता मोदी के घरों पर छापे मारे और अमिता की डायरी से इस खूनी मोहब्बत के सुराग तलाशने लगी। यही डायरी थी, जिसने बताया—श्रीमती मोदी और संजय सिंह के बीच क्लोज रिलेशनशिपÓ है। संजय सिंह को मामले का प्रमुख साजि़शकर्ता बताया गया। दो दिन बाद अमिता भी गिरफ्तार कर ली गईं। 26 अगस्त को उन्हें ज़मानत पर रिहा कर दिया गया। इसके बाद 21 सितंबर को डॉ. संजय सिंह भी लखनऊ की जि़ला और सेशन अदालत के निर्देश के मुताबिक, दस हज़ार के निजी मुचलके पर जमानत हासिल कर जेल से बाहर आ गए। इसके बाद सैयद मोदी के कत्ल के पीछे की कथा इतिहास के पन्नों में कैद होकर रह गई। आज तक इसका खुलासा नहीं हो सका है कि मोदी का मर्डर किसने किया और किसने कराया? चंद रोज बीते, संजय और अमिता की शादी हो गई। संजय बीजेपी से राज्यसभा के सांसद बने और अमिता अमेठी से लोकसभा का चुनाव जीतीं। अब दोनों साथ-साथ हैं। चुनाव लड़ते हैं, जीतते हैं।
वर्ष 2006 में एक सीडी ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में हाहाकार मचा दिया था। जब यही सीडी निजी टेलिविजन चैनल पर टेलिकास्ट हुई, तो सियासत की दुनिया में भूचाल आ गया। सीडी में सेंट्रल कैरेक्टर निभाने वाली युवती थी—डॉ. कविता चौधरी। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में कविता अस्थाई प्रवक्ता थी और हॉस्टल में ही रहती थी। ये उस दौर की बात है, जब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। एक टीवी चैनल ने यूपी के पूर्व कैबिनेट मिनिस्टर मेराजुद्दीन और मेरठ यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर आरपी सिंह के साथ कविता के अंतरंग संबंधों की गवाही देती सीडी जारी की। सनसनी भरी इस सीडी के रिलीज होने के बाद सियासत के गलियारों में सन्नाटा छा गया और यूपी के कई मिनिस्टर इसकी आंच में झुलसने से बाल-बाल बचे। सपा सरकार में बेसिक शिक्षा मंत्री किरणपाल, राष्ट्रीय लोकदल से आगरा विधायक और राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त बाबू लाल समेत मेरठ से सपा सरकार में सिंचाई मंत्री रह चुके डॉ. मेराजुद्दीन इस चक्कर में खूब परेशान हुए।ज् हालांकि ये सीडी सियासी लोगों को परेशान करने का सबब भर नहीं थी। कई जि़ंदगियां भी इसकी लपट में झुलस गईं।
23 अक्टूबर, 2006 को कविता चौधरी बुलंदशहर में अपने गांव से मेरठ के लिए निकली। 27 अक्टूबर तक वो मेरठ नहीं पहुंची, ना ही उसके बारे में कोई सुराग मिला। इसके बाद कविता के भाई सतीश मलिक ने मेरठ के थाना सिविल लाइन में कविता के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराई। पुलिस ने इंदिरा आवास गर्ल्स हॉस्टल, मेरठ स्थित कविता के कमरे का ताला तोड़ा। यहां से कई चि_ियां बरामद की गईं। एक चि_ी में लिखा था—रविन्द्र प्रधान मेरा कत्ल करना चाहता है और मैं उसके साथ ही जा रही हूं। कुछ दिन बाद कविता के भाई के पास एक फ़ोन आया, दूसरी तरफ कविता थी। वो कुछ कह रही थी, तभी किसी ने फोन छीन लिया। पुलिसिया जांच में पता चला—रविन्द्र प्रधान ही मेन विलेन था। उसने बताया—मैंने कविता की हत्या कर दी है। रविन्द्र ने 24 दिसंबर को सरेंडर कर दिया और उसे डासना जेल भेज दिया गया। इसके बाद कविता केस सीबीआई के पास चला गया। रविन्द्र ने बताया—24 अक्टूबर को मैं और योगेश कविता को लेकर इंडिका कार से बुलंदशहर की ओर चले। लाल कुआं पर हमने नशीली गोलियां मिलाकर कविता को जूस पिला दिया। बाद में दादरी से एक लुंगी खरीदी और उससे कविता का गला घोंट दिया। आगे जाकर सनौटा पुल से शव नहर में फेंक दिया। रविन्द्र ने बताया कि कविता की लाश उसने नहर में बहा दी थी। पुलिस ने कविता का शव खूब तलाशा, लेकिन वह नहीं मिला। भले ही लाश रिकवर नहीं हुई, लेकिन पुलिस ने मान लिया कि कविता का कत्ल कर दिया गया है।
30 जून, 2008 को गाजियाबाद की डासना जेल में बंद रविन्द्र प्रधान की भी रहस्यमय हालात में मृत्यु हो गई। बताया गया कि उसने ज़हर खा लिया है। हालांकि रविंद्र की मां बलबीरी देवी ने आरोप लगाया कि उनके बेटे ने खुदकुशी नहीं की, बल्कि उसका मर्डर कराया गया है। ऐसा उन लोगों ने किया है, जिन्हें ये अंदेशा था कि रविन्द्र सीबीआई की ओर से सरकारी गवाह बन जाएगा और फिर उन सफ़ेदपोशों का चेहरा बेनकाब हो जाएगा, जो कविता के संग सीडी में नजऱ आए थे। कविता के भाई ने भी आरोप लगाया कि चंद मिनिस्टर्स और एजुकेशनिस्ट्स के इशारे पर उनकी बहन का खून हुआ और रविन्द्र प्रधान को भी मार डाला गया।
पर कहानी इतनी सीधी-सादी नहीं। इसमें ऐसे-ऐसे पेंच थे, जो दिमाग चकरा देते हैं। कविता की हत्या के आरोपी रविन्द्र ने कई बार बयान बदले। पहले कहा गया कि एक मंत्री के कविता के साथ नाजायज़ ताल्लुकात थे, फिर यह बात सामने आई कि कविता का रिश्ता ऐसे गिरोह से था, जो नामचीन हस्तियों के अश्लील वीडियोज़ बनाकर उन्हें ब्लैकमेल करता था। कविता इनकी ओर से हस्तियों को फांसने का काम करती थी। एक स्पाई कैम के सहारे ये ब्ल्यू सीडीज़ तैयार की जाती थीं।
पुलिस की मानें, तो कविता का इस काम में रविन्द्र प्रधान और योगेश नाम के दो लोग साथ देते थे। उन्होंने लखनऊ में पूर्व सिंचाई मंत्री डॉ. मेराजुद्दीन की अश्लील सीडी बनाई और उनसे पैंतीस लाख रुपए वसूल किए। रवीन्द्र ने बताया था कि कविता के कब्जे में चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर आर. पी. सिंह और ललित कला अकादमी के अध्यक्ष कुंवर बिजेंद्र सिंह की अश्लील सीडी भी थी। ब्लैकमेलिंग के एवज में मिले पैसे के बंटवारे को लेकर तीनों के बीच झगड़ा हुआ, तो कविता ने धमकी दी कि वो सारे राज़ का पर्दाफ़ाश कर देगी। रविन्द्र और योगेश ने फिर योजना बनाई और कविता को गला दबाकर मार डाला। पुलिस की थ्योरी मानें, तो कविता को भी इसका इलहाम था और उसने अपने कमरे में कुछ चि_ियां लिखकर रखी थीं। इनमें ही लिखा था—मुझे रविन्द्र से जान का ख़तरा है। इस मामले में योगेश और त्रिलोक भी कानून के शिकंजे में आए। जांच में पता चला कि कविता के मोबाइल फोन की लास्ट कॉल में उसकी राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त बाबू लाल से बातचीत हुई थी।
सीबीआई और पुलिस ने बार-बार कहा कि कई मंत्री इस मामले में इन्वॉल्व हैं और उनसे भी पूछताछ होगी। विवाद बढऩे के बाद राज्य के पूर्व सिंचाई मंत्री डॉ. मेराजुद्दीन ने राष्ट्रीय लोकदल से इस्तीफा दे दिया, वहीं बाबू लाल ने भी पद से त्यागपत्र दे दिया। सियासत और सेक्स के इस कॉकटेल ने खुलासा किया कि महत्वाकांक्षा की शिकार महिलाएं, वासना के भूखे लोग और आपराधिक मानसिकता के चंद युवाज्ये सब पैसे और जिस्म की लालच में इतने भूखे हो चुके हैं कि उन्हें इंसानियत की भी फि़क्र नहीं है। दागदार नेताओं को कोई सज़ा नहीं हुई, रविन्द्र और कविता, दोनों दुनिया में नहीं हैं, अब कुछ बचा है तो यही बदनाम कहानी!
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