विनाद उपाध्याय
कभी दिन ढलते ही तबलों की थाप और घुंघरुओं की खनक से गूंजने वाला इलाका आज शांत पड़ा है। राग रागिनी की थीम पर थिरकने वाली नर्तकियां अब रोजी-रोटी के लिये तरस रही हैं। पारंपरिक नृत्यों के न तो कद्रदान रहे और न हीं पुराने ठुमकों पर रिझाने वाले लोग। नतीजन समय के साथ-साथ अब इन नर्तकियों का नृत्य डीजे और डिस्को में बदल गया है। सरकार द्वारा चलाये जा रहे महत्वाकांक्षी योजनाओं का लाभ इन्हें नहीं मिल रहा है। मजबूरन इन्हें देह व्यापार का सहारा लेकर जीना पड़ रहा है। अपनी विकल्पहीन दुनिया में परंपराओं को तोडऩे का तरीका नर्तकियां नहीं ढूंढ पा रही है। इनके बच्चे पहचान के संकट में फंसे हैं। बच्चों को पहचान छिपाकर पढाई करनी पड़ती है। मुजफ्फरपुर के चर्तुभुज स्थान के अलावे सीतामढी, सहरसा, पूर्णिया समेत राज्य के 25 रेडलाईट एरिया की तस्वीर तकरीबन एक जैसी ही है। यहां लगभग 2 लाख से ज्यादा महिलायें जिस्मफरोसी के धंधे से उबर नहीं पा रही हैं। सिर्फ मुजफ्फरपुर में इनकी संख्या 5 हजार से ज्यादा है। यहां जिस्मफरोसी का बेहतर अड्डा माना जाता है। गया के बीचो-बीच बसे सराय मुहल्ले की पहचान अब धूमिल पड़ गई है।
यहां की गलियों में कभी फिटिन पर सवार रईसों, नवाबों और राजा-रजवाड़ों की लाइन लगी रहती थी, लेकिन अब न वे रईस हैं, न रक्क़ासा और न ही कहीं वह पुरानी रौनक ही दिखाई देती है। नज़्म और नज़ाकत के क़द्रदान भी अब कहीं नजऱ नहीं आते। समय बदला तो सूरत बदली और फिर सोच भी बदल गई। आज सराय को शहर की बदनाम बस्ती के तौर पर जाना जाता है। तवायफ़ों की जगह वेश्याओं ने ले ली है। आज जिस्मफ़रोशी का धंधा यहां खुलेआम चलता है। नए-पुराने मकान और उन मकानों की बालकनी एवं झरोखों से वे हर आने-जाने वालों की ओर उम्मीद भरी नजरों से देखती हैं। हर शख्स उन्हें अपने जिस्म का खरीदार लगता है, जिससे चंद पैसे मिलने की उम्मीद जगती है। इस उम्मीद में वे मुस्कराती हैं, लोगों को रिझाती हैं। संभव है, उनकी मुस्कान से लोग रीझ भी जाते हों, लेकिन, जब आप उनके चेहरे के पीछे छिपे दर्द को जानेंगे तो आपके क़दमों तले ज़मीन सरकती सी महसूस होगी।
गया के इस सराय मुहल्ले का अपना एक इतिहास और गौरवशाली अतीत है। बताया जाता है कि वर्ष 1587 से 1594 के बीच राजा मान सिंह ने इस इलाक़े की बुनियाद डाली थी और अपने सिपहसालारों के मनोरंजन के लिए यहां तवायफ़ों को बसाया था। कभी यहां नृत्य, गीत और संगीत की शानदार महफि़लें सजा करती थीं। तब सराय की गिनती शहर के खास मोहल्लों में की जाती थी। सुर और सौंदर्य की सरिता में सराबोर होने शौक़ीन रईसजादे यहां अपनी शामें बिताने आया करते थे। सूरज ढलते ही यहां की फिज़ां में बेला और गुलाब की खुशबू तैरने लगती थी। लेकिन बदलते वक्त के साथ यहां की रौनक अतीत की गर्द में दफन हो गई। सराय आज देह की मंडी में बदल गया है। कभी रईस घरानों के लड़के यहां के कोठों पर तहज़ीब और अदब सीखने आते थे। लेकिन, अब यहां सिर्फ और सिर्फ हवस मिटाने वालों की ही भीड़ उमड़ती है। यह वही सराय मोहल्ला है, जहां प्रसिद्ध अभिनेत्री नरगिस की मां जद्दन बाई, छप्पन छुरी एवं सिद्धेश्वरी बाई जैसी उम्दा कलाकारों की महफि़लें सजा करती थीं। इसी शहर में जद्दन बाई ने नरगिस को जन्म दिया था। कला के प्रति जब यहां उपेक्षा का भाव देखने को मिला तो वह मुंबई चली गईं। अस्सी वर्षीय सिद्धेश्वरी बाई कहती हैं कि अब यहां के कोठों पर तहज़ीब और कला के क़द्रदान नहीं, बल्कि शरीर पर नजऱ रखने वाले ही अधिक आते हैं। आज़ादी मिलने के पहले और उसके बाद के कुछ वर्षों तक सराय में नृत्य एवं संगीत की स्वस्थ परंपरा जीवित थी और क़द्रदान भी बरकऱार थे, लेकिन बाद में धीरे-धीरे इस जगह का नाम देह व्यापार के अड्डों में शामिल हो गया।
हालांकि सराय की कई तवायफ़ों ने शादी-विवाह एवं अन्य अवसरों के माध्यम से अपनी पुरानी परंपरा क़ायम रखने की भरसक कोशिश की, लेकिन रईसों, नवाबों, ज़मींदारों और बाहुबलियों ने उन्हें रखैल बनने पर मजबूर कर दिया। बीसवीं सदी के आते-आते नक्सलियों के फरमान के कारण शादी-विवाह और बारात में जाने की परंपरा भी खत्म हो गई। ज़मींदारी प्रथा के उन्मूलन के बाद रोज़ी-रोटी की चिंता ने तवायफ़ों को मध्यमवर्गीय समाज के बीच लाकर खड़ा कर दिया। नाच-गाने की आड़ में वे देह व्यापार के धंधे में लिप्त हो गईं। गया के रेड लाइट एरिया में आज दो-ढाई सौ लड़कियां-औरतें देह व्यापार के धंधे में मन-बेमन से शामिल हैं। भी दिन ढलते ही तबलों की थाप और घुंघरुओं की खनक से गूंजने वाला इलाका आज शांत पड़ा है। राग रागिनी की थीम पर थिरकने वाली नर्तकियां अब रोजी-रोटी के लिये तरस रही हैं। पारंपरिक नृत्यों के न तो कद्रदान रहे और न हीं पुराने ठुमकों पर रिझाने वाले लोग। नतीजन समय के साथ-साथ अब इन नर्तकियों का नृत्य डीजे और डिस्को में बदल गया है। सरकार द्वारा चलाये जा रहे महत्वाकांक्षी योजनाओं का लाभ इन्हें नहीं मिल रहा है। मजबूरन इन्हें देह व्यापार का सहारा लेकर जीना पड़ रहा है। अपनी विकल्पहीन दुनिया में परंपराओं को तोडऩे का तरीका नर्तकियां नहीं ढूंढ पा रही है। इनके बच्चे पहचान के संकट में फंसे हैं। बच्चों को पहचान छिपाकर पढाई करनी पड़ती है। मुजफ्फरपुर के चर्तुभुज स्थान के अलावे सीतामढी, सहरसा, पूर्णिया समेत राज्य के 25 रेडलाईट एरिया की तस्वीर तकरीबन एक जैसी ही है। यहां लगभग 2 लाख से ज्यादा महिलायें जिस्मफरोसी के धंधे से उबर नहीं पा रही हैं। सिर्फ मुजफ्फरपुर में इनकी संख्या 5 हजार से ज्यादा है। यहां जिस्मफरोसी का बेहतर अड्डा माना जाता है। गया के बीचो-बीच बसे सराय मुहल्ले की पहचान अब धूमिल पड़ गई है।
यहां की गलियों में कभी फिटिन पर सवार रईसों, नवाबों और राजा-रजवाड़ों की लाइन लगी रहती थी, लेकिन अब न वे रईस हैं, न रक्क़ासा और न ही कहीं वह पुरानी रौनक ही दिखाई देती है। नज़्म और नज़ाकत के क़द्रदान भी अब कहीं नजऱ नहीं आते। समय बदला तो सूरत बदली और फिर सोच भी बदल गई। आज सराय को शहर की बदनाम बस्ती के तौर पर जाना जाता है। तवायफ़ों की जगह वेश्याओं ने ले ली है। आज जिस्मफ़रोशी का धंधा यहां खुलेआम चलता है। नए-पुराने मकान और उन मकानों की बालकनी एवं झरोखों से वे हर आने-जाने वालों की ओर उम्मीद भरी नजरों से देखती हैं। हर शख्स उन्हें अपने जिस्म का खरीदार लगता है, जिससे चंद पैसे मिलने की उम्मीद जगती है। इस उम्मीद में वे मुस्कराती हैं, लोगों को रिझाती हैं। संभव है, उनकी मुस्कान से लोग रीझ भी जाते हों, लेकिन, जब आप उनके चेहरे के पीछे छिपे दर्द को जानेंगे तो आपके क़दमों तले ज़मीन सरकती सी महसूस होगी।
गया के इस सराय मुहल्ले का अपना एक इतिहास और गौरवशाली अतीत है। बताया जाता है कि वर्ष 1587 से 1594 के बीच राजा मान सिंह ने इस इलाक़े की बुनियाद डाली थी और अपने सिपहसालारों के मनोरंजन के लिए यहां तवायफ़ों को बसाया था। कभी यहां नृत्य, गीत और संगीत की शानदार महफि़लें सजा करती थीं। तब सराय की गिनती शहर के खास मोहल्लों में की जाती थी। सुर और सौंदर्य की सरिता में सराबोर होने शौक़ीन रईसजादे यहां अपनी शामें बिताने आया करते थे। सूरज ढलते ही यहां की फिज़ां में बेला और गुलाब की खुशबू तैरने लगती थी। लेकिन बदलते वक्त के साथ यहां की रौनक अतीत की गर्द में दफन हो गई। सराय आज देह की मंडी में बदल गया है। कभी रईस घरानों के लड़के यहां के कोठों पर तहज़ीब और अदब सीखने आते थे। लेकिन, अब यहां सिर्फ और सिर्फ हवस मिटाने वालों की ही भीड़ उमड़ती है। यह वही सराय मोहल्ला है, जहां प्रसिद्ध अभिनेत्री नरगिस की मां जद्दन बाई, छप्पन छुरी एवं सिद्धेश्वरी बाई जैसी उम्दा कलाकारों की महफि़लें सजा करती थीं। इसी शहर में जद्दन बाई ने नरगिस को जन्म दिया था। कला के प्रति जब यहां उपेक्षा का भाव देखने को मिला तो वह मुंबई चली गईं। अस्सी वर्षीय सिद्धेश्वरी बाई कहती हैं कि अब यहां के कोठों पर तहज़ीब और कला के क़द्रदान नहीं, बल्कि शरीर पर नजऱ रखने वाले ही अधिक आते हैं। आज़ादी मिलने के पहले और उसके बाद के कुछ वर्षों तक सराय में नृत्य एवं संगीत की स्वस्थ परंपरा जीवित थी और क़द्रदान भी बरकऱार थे, लेकिन बाद में धीरे-धीरे इस जगह का नाम देह व्यापार के अड्डों में शामिल हो गया।
हालांकि सराय की कई तवायफ़ों ने शादी-विवाह एवं अन्य अवसरों के माध्यम से अपनी पुरानी परंपरा क़ायम रखने की भरसक कोशिश की, लेकिन रईसों, नवाबों, ज़मींदारों और बाहुबलियों ने उन्हें रखैल बनने पर मजबूर कर दिया। बीसवीं सदी के आते-आते नक्सलियों के फरमान के कारण शादी-विवाह और बारात में जाने की परंपरा भी खत्म हो गई। ज़मींदारी प्रथा के उन्मूलन के बाद रोज़ी-रोटी की चिंता ने तवायफ़ों को मध्यमवर्गीय समाज के बीच लाकर खड़ा कर दिया। नाच-गाने की आड़ में वे देह व्यापार के धंधे में लिप्त हो गईं। गया के रेड लाइट एरिया में आज दो-ढाई सौ लड़कियां-औरतें देह व्यापार के धंधे में मन-बेमन से शामिल हैं। यह बात स्थानीय पुलिस खुद स्वीकार करती है। देह व्यापार के धंधे में पुलिस की संलिप्तता से भी इंकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह बस्ती कोतवाली थाना से महज़ कुछ ही दूरी पर स्थित है। गया में एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट भी सक्रिय है, लेकिन इस धंधे से लड़कियों को निकालने और उन्हें पुनर्वासित कर समाज की मुख्य धारा से जोडऩे का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। पिछले पांच सालों के दौरान यहां कई बार छापामारी की गई, जिनमें कई लड़कियां पकड़ी गईं, लेकिन वे पुलिस को चकमा देकर फरार हो गईं। जानकार बताते हैं कि एक संगठित गिरोह बेबस और गरीब परिवारों की महिलाओं एवं लड़कियों को बहला-फुसलाकर यहां लाता है और उन्हें देह व्यापार के लिए मजबूर करता है। यहां बंगाल, नेपाल और सीमावर्ती क्षेत्रों से भगा कर लाई गई लड़कियों की संख्या ज़्यादा है। कई बार तो देह व्यापार में लिप्त महिलाएं और लड़कियां पकड़े जाने के बाद खुद सवाल करने लगती हैं कि सभ्य समाज में उन्हें आ़खिर कौन स्वीकार करेगा?
समाज की मुख्यधारा से इन्हें जोडऩे की कोई सार्थक पहल नहीं की जा सकी है। इस धंधे में लिप्त महिलाओं का कहना है कि पहले के जमाने में तवायफों के नृत्य पर लोग हजारों लुटा देते थे, पर अब लोग केवल जिस्म की बात कहते हैं। इनका कहना है कि शरीर देखने वालों की संख्या ज्यादा है। मजबूरी को समझने वाला कोई नहीं। सूबे के रेडलाईट एरिया की तस्वीर और तकदीर बदलने के प्रयास में लगी एक स्वयंसेवी संस्था बामाशक्ति वाहिनी की संचालिका मधु का कहना है कि तवायफों को अगर रोजगार मिल जाये तो इनकी तस्वीर बदल जायेगी। राज्य के नेताओं की निष्क्रियता के कारण रेडलाईट एरिया के विकास के लिये बनी करोड़ो रुपये की योजना दिल्ली वापस चली गई। वहीं परचम नामक संस्था के सचिव नसिमा हार नहीं मानी और ठंढे बस्तों में पड़ी इन फाइलों की गरमाहट देकर इस एरिया के विकास के लिये कोशिश में हैं।
गौरतलब है कि तत्कालीन सहायक पुलिस अधीक्षक दीपीका सुरी और पुलिस उपमहानिरीक्षक गुप्तेश्वर पाण्डेय ने चर्तुभुज स्थान स्थित तवायफों के विकास के लिये कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम चलाये थे। एएसपी और डीआईजी ने अपने कार्यकाल के दौरान इन इलाकों में बाजार लगाकर तवायफों को व्यवसाय के प्रति जागरुक किया था, वहीं डीआईजी पाण्डेय ने इनके बच्चों को स्वयं स्कूल तक पहुँचाया था। परन्तु इन दोनों के तबादले के साथ ही फिर से यह मंडी तवायफ मंडी के रूप में बदल गई और खुलेआम जिस्मफरोसी का धंधा चलने लगा। इधर, गुप्तेश्वर पाण्डेय को मुजफ्फरपुर का आईजी बनाये जाने पर इन नर्तकियों को अपनी तकदीर बदलने की आस जगी है। इस बावत पूछे जाने पर आईजी पाण्डेय ने बताया कि देह व्यापार का धंधा छोटे से बड़े स्तर तक विशाल रैकेट के रूप में फैला हुआ है जिसके लिये जन जागरण की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि मुजफ्फरपुर के नर्तकियों के लिये पुन: एक टीम गठित कर अभियान चलाकर इनकी तकदीर और तस्वीर बदलने का प्रयास शीघ्र शुरू किया जायेगा वहीं इनके बच्चों को स्कूल तक भेजने की पूरी व्यवस्था की जायेगी।
-सत्यकिरण सिंह, पटनायह बात स्थानीय पुलिस खुद स्वीकार करती है। देह व्यापार के धंधे में पुलिस की संलिप्तता से भी इंकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह बस्ती कोतवाली थाना से महज़ कुछ ही दूरी पर स्थित है। गया में एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट भी सक्रिय है, लेकिन इस धंधे से लड़कियों को निकालने और उन्हें पुनर्वासित कर समाज की मुख्य धारा से जोडऩे का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। पिछले पांच सालों के दौरान यहां कई बार छापामारी की गई, जिनमें कई लड़कियां पकड़ी गईं, लेकिन वे पुलिस को चकमा देकर फरार हो गईं। जानकार बताते हैं कि एक संगठित गिरोह बेबस और गरीब परिवारों की महिलाओं एवं लड़कियों को बहला-फुसलाकर यहां लाता है और उन्हें देह व्यापार के लिए मजबूर करता है। यहां बंगाल, नेपाल और सीमावर्ती क्षेत्रों से भगा कर लाई गई लड़कियों की संख्या ज़्यादा है। कई बार तो देह व्यापार में लिप्त महिलाएं और लड़कियां पकड़े जाने के बाद खुद सवाल करने लगती हैं कि सभ्य समाज में उन्हें आ़खिर कौन स्वीकार करेगा?
समाज की मुख्यधारा से इन्हें जोडऩे की कोई सार्थक पहल नहीं की जा सकी है। इस धंधे में लिप्त महिलाओं का कहना है कि पहले के जमाने में तवायफों के नृत्य पर लोग हजारों लुटा देते थे, पर अब लोग केवल जिस्म की बात कहते हैं। इनका कहना है कि शरीर देखने वालों की संख्या ज्यादा है। मजबूरी को समझने वाला कोई नहीं। सूबे के रेडलाईट एरिया की तस्वीर और तकदीर बदलने के प्रयास में लगी एक स्वयंसेवी संस्था बामाशक्ति वाहिनी की संचालिका मधु का कहना है कि तवायफों को अगर रोजगार मिल जाये तो इनकी तस्वीर बदल जायेगी। राज्य के नेताओं की निष्क्रियता के कारण रेडलाईट एरिया के विकास के लिये बनी करोड़ो रुपये की योजना दिल्ली वापस चली गई। वहीं परचम नामक संस्था के सचिव नसिमा हार नहीं मानी और ठंढे बस्तों में पड़ी इन फाइलों की गरमाहट देकर इस एरिया के विकास के लिये कोशिश में हैं।
गौरतलब है कि तत्कालीन सहायक पुलिस अधीक्षक दीपीका सुरी और पुलिस उपमहानिरीक्षक गुप्तेश्वर पाण्डेय ने चर्तुभुज स्थान स्थित तवायफों के विकास के लिये कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम चलाये थे। एएसपी और डीआईजी ने अपने कार्यकाल के दौरान इन इलाकों में बाजार लगाकर तवायफों को व्यवसाय के प्रति जागरुक किया था, वहीं डीआईजी पाण्डेय ने इनके बच्चों को स्वयं स्कूल तक पहुँचाया था। परन्तु इन दोनों के तबादले के साथ ही फिर से यह मंडी तवायफ मंडी के रूप में बदल गई और खुलेआम जिस्मफरोसी का धंधा चलने लगा। इधर, गुप्तेश्वर पाण्डेय को मुजफ्फरपुर का आईजी बनाये जाने पर इन नर्तकियों को अपनी तकदीर बदलने की आस जगी है। इस बावत पूछे जाने पर आईजी पाण्डेय ने बताया कि देह व्यापार का धंधा छोटे से बड़े स्तर तक विशाल रैकेट के रूप में फैला हुआ है जिसके लिये जन जागरण की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि मुजफ्फरपुर के नर्तकियों के लिये पुन: एक टीम गठित कर अभियान चलाकर इनकी तकदीर और तस्वीर बदलने का प्रयास शीघ्र शुरू किया जायेगा वहीं इनके बच्चों को स्कूल तक भेजने की पूरी व्यवस्था की जायेगी।
-सत्यकिरण सिंह, पटनाभी दिन ढलते ही तबलों की थाप और घुंघरुओं की खनक से गूंजने वाला इलाका आज शांत पड़ा है। राग रागिनी की थीम पर थिरकने वाली नर्तकियां अब रोजी-रोटी के लिये तरस रही हैं। पारंपरिक नृत्यों के न तो कद्रदान रहे और न हीं पुराने ठुमकों पर रिझाने वाले लोग। नतीजन समय के साथ-साथ अब इन नर्तकियों का नृत्य डीजे और डिस्को में बदल गया है। सरकार द्वारा चलाये जा रहे महत्वाकांक्षी योजनाओं का लाभ इन्हें नहीं मिल रहा है। मजबूरन इन्हें देह व्यापार का सहारा लेकर जीना पड़ रहा है। अपनी विकल्पहीन दुनिया में परंपराओं को तोडऩे का तरीका नर्तकियां नहीं ढूंढ पा रही है। इनके बच्चे पहचान के संकट में फंसे हैं। बच्चों को पहचान छिपाकर पढाई करनी पड़ती है। मुजफ्फरपुर के चर्तुभुज स्थान के अलावे सीतामढी, सहरसा, पूर्णिया समेत राज्य के 25 रेडलाईट एरिया की तस्वीर तकरीबन एक जैसी ही है। यहां लगभग 2 लाख से ज्यादा महिलायें जिस्मफरोसी के धंधे से उबर नहीं पा रही हैं। सिर्फ मुजफ्फरपुर में इनकी संख्या 5 हजार से ज्यादा है। यहां जिस्मफरोसी का बेहतर अड्डा माना जाता है। गया के बीचो-बीच बसे सराय मुहल्ले की पहचान अब धूमिल पड़ गई है।
यहां की गलियों में कभी फिटिन पर सवार रईसों, नवाबों और राजा-रजवाड़ों की लाइन लगी रहती थी, लेकिन अब न वे रईस हैं, न रक्क़ासा और न ही कहीं वह पुरानी रौनक ही दिखाई देती है। नज़्म और नज़ाकत के क़द्रदान भी अब कहीं नजऱ नहीं आते। समय बदला तो सूरत बदली और फिर सोच भी बदल गई। आज सराय को शहर की बदनाम बस्ती के तौर पर जाना जाता है। तवायफ़ों की जगह वेश्याओं ने ले ली है। आज जिस्मफ़रोशी का धंधा यहां खुलेआम चलता है। नए-पुराने मकान और उन मकानों की बालकनी एवं झरोखों से वे हर आने-जाने वालों की ओर उम्मीद भरी नजरों से देखती हैं। हर शख्स उन्हें अपने जिस्म का खरीदार लगता है, जिससे चंद पैसे मिलने की उम्मीद जगती है। इस उम्मीद में वे मुस्कराती हैं, लोगों को रिझाती हैं। संभव है, उनकी मुस्कान से लोग रीझ भी जाते हों, लेकिन, जब आप उनके चेहरे के पीछे छिपे दर्द को जानेंगे तो आपके क़दमों तले ज़मीन सरकती सी महसूस होगी।
गया के इस सराय मुहल्ले का अपना एक इतिहास और गौरवशाली अतीत है। बताया जाता है कि वर्ष 1587 से 1594 के बीच राजा मान सिंह ने इस इलाक़े की बुनियाद डाली थी और अपने सिपहसालारों के मनोरंजन के लिए यहां तवायफ़ों को बसाया था। कभी यहां नृत्य, गीत और संगीत की शानदार महफि़लें सजा करती थीं। तब सराय की गिनती शहर के खास मोहल्लों में की जाती थी। सुर और सौंदर्य की सरिता में सराबोर होने शौक़ीन रईसजादे यहां अपनी शामें बिताने आया करते थे। सूरज ढलते ही यहां की फिज़ां में बेला और गुलाब की खुशबू तैरने लगती थी। लेकिन बदलते वक्त के साथ यहां की रौनक अतीत की गर्द में दफन हो गई। सराय आज देह की मंडी में बदल गया है। कभी रईस घरानों के लड़के यहां के कोठों पर तहज़ीब और अदब सीखने आते थे। लेकिन, अब यहां सिर्फ और सिर्फ हवस मिटाने वालों की ही भीड़ उमड़ती है। यह वही सराय मोहल्ला है, जहां प्रसिद्ध अभिनेत्री नरगिस की मां जद्दन बाई, छप्पन छुरी एवं सिद्धेश्वरी बाई जैसी उम्दा कलाकारों की महफि़लें सजा करती थीं। इसी शहर में जद्दन बाई ने नरगिस को जन्म दिया था। कला के प्रति जब यहां उपेक्षा का भाव देखने को मिला तो वह मुंबई चली गईं। अस्सी वर्षीय सिद्धेश्वरी बाई कहती हैं कि अब यहां के कोठों पर तहज़ीब और कला के क़द्रदान नहीं, बल्कि शरीर पर नजऱ रखने वाले ही अधिक आते हैं। आज़ादी मिलने के पहले और उसके बाद के कुछ वर्षों तक सराय में नृत्य एवं संगीत की स्वस्थ परंपरा जीवित थी और क़द्रदान भी बरकऱार थे, लेकिन बाद में धीरे-धीरे इस जगह का नाम देह व्यापार के अड्डों में शामिल हो गया।
हालांकि सराय की कई तवायफ़ों ने शादी-विवाह एवं अन्य अवसरों के माध्यम से अपनी पुरानी परंपरा क़ायम रखने की भरसक कोशिश की, लेकिन रईसों, नवाबों, ज़मींदारों और बाहुबलियों ने उन्हें रखैल बनने पर मजबूर कर दिया। बीसवीं सदी के आते-आते नक्सलियों के फरमान के कारण शादी-विवाह और बारात में जाने की परंपरा भी खत्म हो गई। ज़मींदारी प्रथा के उन्मूलन के बाद रोज़ी-रोटी की चिंता ने तवायफ़ों को मध्यमवर्गीय समाज के बीच लाकर खड़ा कर दिया। नाच-गाने की आड़ में वे देह व्यापार के धंधे में लिप्त हो गईं। गया के रेड लाइट एरिया में आज दो-ढाई सौ लड़कियां-औरतें देह व्यापार के धंधे में मन-बेमन से शामिल हैं। यह बात स्थानीय पुलिस खुद स्वीकार करती है। देह व्यापार के धंधे में पुलिस की संलिप्तता से भी इंकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह बस्ती कोतवाली थाना से महज़ कुछ ही दूरी पर स्थित है। गया में एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट भी सक्रिय है, लेकिन इस धंधे से लड़कियों को निकालने और उन्हें पुनर्वासित कर समाज की मुख्य धारा से जोडऩे का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। पिछले पांच सालों के दौरान यहां कई बार छापामारी की गई, जिनमें कई लड़कियां पकड़ी गईं, लेकिन वे पुलिस को चकमा देकर फरार हो गईं। जानकार बताते हैं कि एक संगठित गिरोह बेबस और गरीब परिवारों की महिलाओं एवं लड़कियों को बहला-फुसलाकर यहां लाता है और उन्हें देह व्यापार के लिए मजबूर करता है। यहां बंगाल, नेपाल और सीमावर्ती क्षेत्रों से भगा कर लाई गई लड़कियों की संख्या ज़्यादा है। कई बार तो देह व्यापार में लिप्त महिलाएं और लड़कियां पकड़े जाने के बाद खुद सवाल करने लगती हैं कि सभ्य समाज में उन्हें आ़खिर कौन स्वीकार करेगा?
समाज की मुख्यधारा से इन्हें जोडऩे की कोई सार्थक पहल नहीं की जा सकी है। इस धंधे में लिप्त महिलाओं का कहना है कि पहले के जमाने में तवायफों के नृत्य पर लोग हजारों लुटा देते थे, पर अब लोग केवल जिस्म की बात कहते हैं। इनका कहना है कि शरीर देखने वालों की संख्या ज्यादा है। मजबूरी को समझने वाला कोई नहीं। सूबे के रेडलाईट एरिया की तस्वीर और तकदीर बदलने के प्रयास में लगी एक स्वयंसेवी संस्था बामाशक्ति वाहिनी की संचालिका मधु का कहना है कि तवायफों को अगर रोजगार मिल जाये तो इनकी तस्वीर बदल जायेगी। राज्य के नेताओं की निष्क्रियता के कारण रेडलाईट एरिया के विकास के लिये बनी करोड़ो रुपये की योजना दिल्ली वापस चली गई। वहीं परचम नामक संस्था के सचिव नसिमा हार नहीं मानी और ठंढे बस्तों में पड़ी इन फाइलों की गरमाहट देकर इस एरिया के विकास के लिये कोशिश में हैं।
गौरतलब है कि तत्कालीन सहायक पुलिस अधीक्षक दीपीका सुरी और पुलिस उपमहानिरीक्षक गुप्तेश्वर पाण्डेय ने चर्तुभुज स्थान स्थित तवायफों के विकास के लिये कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम चलाये थे। एएसपी और डीआईजी ने अपने कार्यकाल के दौरान इन इलाकों में बाजार लगाकर तवायफों को व्यवसाय के प्रति जागरुक किया था, वहीं डीआईजी पाण्डेय ने इनके बच्चों को स्वयं स्कूल तक पहुँचाया था। परन्तु इन दोनों के तबादले के साथ ही फिर से यह मंडी तवायफ मंडी के रूप में बदल गई और खुलेआम जिस्मफरोसी का धंधा चलने लगा। इधर, गुप्तेश्वर पाण्डेय को मुजफ्फरपुर का आईजी बनाये जाने पर इन नर्तकियों को अपनी तकदीर बदलने की आस जगी है। इस बावत पूछे जाने पर आईजी पाण्डेय ने बताया कि देह व्यापार का धंधा छोटे से बड़े स्तर तक विशाल रैकेट के रूप में फैला हुआ है जिसके लिये जन जागरण की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि मुजफ्फरपुर के नर्तकियों के लिये पुन: एक टीम गठित कर अभियान चलाकर इनकी तकदीर और तस्वीर बदलने का प्रयास शीघ्र शुरू किया जायेगा वहीं इनके बच्चों को स्कूल तक भेजने की पूरी व्यवस्था की जायेगी।
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