पन्ना राष्ट्रीय उद्यान से बाघों के गायब होने मामले में नया मोड़
वन मंत्री सरताज सिंह के कड़े रुख से पन्ना राष्ट्रीय उद्यान से बाघों के गायब होने का मामला एक बार फिर सुर्खियों में है। उन्होंने यह मामला सीबीआई को सौंपने का निर्णय लिया है और इससे संबंधित प्रस्ताव विभाग की ओर से राज्य सरकार के पास भेज भी दिया गया है। श्री सिंह का कहना है, उचेहरा में एक बाघ के शिकार तथा पकड़े गए आरोपी के भाग जाने का मामला सीबीआई को सौंपने का निर्णय लिया गया था लेकिन यहां तो कम से कम 20 और ज्यादा से ज्यादा 34 बाघों के गायब होने का सवाल है जिनकी आज तक लाश तक नहीं मिली। इसलिए उचेहरा प्रकरण के साथ इसे भी जोड़ दिया गया। सरताज सिंह का कहना है, पन्ना से बाघों के गायब होने का प्रकरण इतना गंभीर है कि इसे बहुत पहले सीबीआई को सौंप देना चाहिए था। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि जिस दौरान बाघ गायब हुए, भले मौजूदा मुख्य सचिव अवनि वैश्य तब वन विभाग के प्रमुख सचिव थे लेकिन मुझे नहीं लगता कि उन्हें सीबीआई जांच में कोई आपत्ति होगी। बहरहाल, राज्य सरकार सीबीआई जांच के लिए यह मामला भेजती है या नहीं और सीबीआई इसे जांच के लिए स्वीकार करती है या नहीं, यह बात अलग है लेकिन फिलहाल वनमंत्री के कदम से वन महकमे के उन आला अफसरों में हड़कंप की स्थिति है जो इस मामले से किसी न किसी रूप में जुड़े रहे हैं। जुड़े हो सकते हैं अंतर्राष्ट्रीय तस्कर वन मंत्री ने कहा कि गणना में बाघों की संख्या 20 रही हो या 34 लेकिन वे गायब हुए इसलिए मामला बड़ा और गंभीर है। फिर किसी बाघ की कोई बाडी नहीं मिली, कोई पकड़ा नहीं गया, इसलिए इस मामले से अंतर्राष्ट्रीय तस्करों के जुड़े होने से इंकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट विरोधाभाषी है और सीबीआई जांच होने पर सारी स्थिति अपने आप स्पष्ट हो जाएगी। वैसे भी जनता को इस मामले की सच्चाई जानने का अधिकार है।
ऐसा लगता है, वन मंत्री सरताज सिंह ने अब चौके-छक्के लगाने का मन बना लिया है। यही वजह है कि पहले उन्होंने प्रदेश के सबसे चर्चित पन्ना राष्ट्रीय उद्यान से बाघों का खात्मा मामले की सीबीआई से जांच कराने का निर्णय लिया और दूसरा, विभिन्न मामलों में आरोपों से घिरे कोई 67 वन अफसरों पर नजर गड़ा दी। ये वे अफसर हैं, जिनके ऊपर अलग-अलग तरह के आरोप हैं लेकिन पहले तो इन्हें आरोप पत्र देकर विभागीय जांच बैठाने में देर की गई और इसके बाद मामले का निराकरण करने में विलंब किया गया। सरताज सिंह का कहना है कि मैंने सभी मामलों की फाइलें अपने पास बुला ली हैं। इनका परीक्षण किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जो दोषी हैं उनके खिलाफ तो कार्रवाई होगी ही, इसके साथ जिन अफसरों ने इन्हें बचाने के उद्देश्य से जांच बैठाने तथा प्रकरण का निराकरण करने में विलंब किया उन्हें भी नोटिस जारी किए जाएंगे। जिन अफसरों के खिलाफ प्रकरण लंबित हैं उनमें एक दर्जन से ज्यादा आईएफएस अफसरों के साथ राज्य वन सेवा के अफसर तथा अन्य वन कर्मचारी शामिल हैं। सूत्रों का कहना है कि ये मामले लंबे समय से लंबित हैं, इनमें कई अफसर सेवानिवृत्त भी हो गए लेकिन उनके खिलाफ जांच का निराकरण नहीं हुआ। वन मंत्री श्री सिंह सभी प्रकरणों का परीक्षण करा रहे हैं। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि प्रकरणों के निराकरण में बहुत विलंब हुआ है इससे स्पष्ट है कि दोषियों को बचाने की कोशिश हुई। उन्होंने कहा कि प्रकरणों का निराकरण समयसीमा में कराया जाएगा और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई भी की जाएगी।
वनमंत्री ने भले ही दागी अफसरों की फाइलें तलब कर ली हो, लेकिन अभी तक इन अफसरों पर कोई मंत्री लगाम नहीं कस सकाह है। वन विभाग में आधा दर्जन से अधिक अधिकारियों पर आर्थिक गड़बड़ी सहित अन्य आरोप लगे हैं और इसके बावजूद ये भारतीय वन सेवा के अधिकारी मनचाहा पद प्राप्त करने में सफल रहे हैं।
वन विभाग में आधा दर्जन से अधिक अधिकारियों ने अनुशासहीनता सहित अन्य मामलों में फंसे हैं, लेकिन विभागीय जांच का हवाला देकर इन मामलों को ठंडे बस्ते में भेज दिया गया। यहां तक विभाग की जांच शाखा ने वन मुखिया को दागी अफसरों पर कार्रवाई करने के लिए पत्र लिखा तो उल्टा उन्हीं पर विभाग के मुखिया ने कार्रवाई कर दी और उनकी शाखा ही बदल दी। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हाल ही में वन विभाग के मुख्य वन संरक्षक जेपी शर्मा है। जिनका तबादला सिर्फ इसी कारण से किया गया कि उन्होंने वन मुखिया को दागी अफसरों पर कार्रवाई करने के लिए पत्र लिखा था।
डाबास ने फिर लिखा पत्र
वर्तमान में झाबुआ में पदस्थ एएस डाबास ने एक बार फिर विभाग की पोल खोल दी है। उन्होंने एक पत्र वन मुखिया को लिखा है, जिसमें उन्होंने यह बताया है कि वन विभाग की कोई भी योजना जमीनी स्तर झाबुआ में क्रियान्वित नहीं हुई। सभी योजनाएं विफल है और भ्रष्टाचार जारी है।
ये विभाग के दागी अफसर
एके दुबे, पीसीसीएफ, वन विभाग – वर्तमान में वन विभाग के दागी अफसरों में वन मुखिया एके दुबे स्वयं ही शामिल है। इनके खिलाफ लोकायुक्त में एक प्रकरण दर्ज है। इसके बावजूद भी शासन द्वारा इनको मुखिया बनाया गया। फिलहाल जांच प्रक्रिया में है।
रविन्द्र सक्सेना, एपीसीसीएफ, वन विभाग – ज्वाइंट फारेस्ट मैनेजमेंट के एपीसीसीएफ रविन्द्र सक्सेना पर आर्थिक अनियमितता सहित कई आरोप लगे हैं। वर्ष 1993 में उनके कार्यकाल में डेम के निर्माण, फोन बिल में सहित अन्य मामले में अनियमितता उजागर हुए। विभागीय जांच में भी सही पाया गया, लेकिन अभी तक इन पर कार्रवाई नहीं हुई। बकायदा शासन द्वारा इन्हें पदोन्नति दी गई।
अनिल ओबेराय, एपीसीसीएफ आईटी – पीडीए क्रय खरीदी हुई गड़बड़ी सहित अन्य आरोप लगे हैं, लेकिन विभागीय जांच के बाद इसको दबा दिया गया। जबकि पीडीए क्रय खरीदी के पेपर ही इनकी करतूत बयां करता है, लेकिन आला अफसरों का सहयोग होने के कारण पूरा मामला ठंडे बस्ते में है। खास बात यह है कि साहब का कोई भी प्रोजेक्ट जमीनी स्तर पर सफल नहीं है।
भानु गुप्ता, सीसीएफ, जनसंपर्क, वन विभाग – सागर में सीसीएफ पद पर पदस्थ भानु गुप्ता को विभाग की विजीलेंस शाखा ने एक मामले में उनका वेतन काट लेने के निर्देश दिए थे, लेकिन वन मुखिया में कोई कार्रवाई नहीं। वर्ष 2009 में भानु गुप्ता द्वारा एक ट्रक सामान सागर से भोपाल भेजा जा रहा था। जिसे नाका चेकिंग में पकड़ लिया गया और उक्त अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करने की जगह विभाग ने पूरा मामला ही दबा लिया।
सत्येंद्र बहादुर, सीसीएफ, सिवनी – खंडवा में पदस्थापना के दौरान अवैध वनों की कटाई का मामला ईओडब्ल्यू में दर्ज है, लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। साहब अभी भी सर्किल में पदस्थ है।
आरडी महला – एक करोड़ रुपए की वर्गीकरण की क्षतिपूर्ति का मामला वर्ष 2002 में दर्ज हुआ, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई।
आशीष गोपाल, सीसीएफ मंत्रालय वित्त सचिव – डीएफओ सिवनी में पदस्थापना के दौरान परिवहन अनुज्ञा पत्र के मामले में आरोप पत्र जारी हुआ, लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं।
आरजी सोनी, सीसीएफ, बालाघाट – विधानसभा में गलत जानकारी देने, पेंशन में लाखों रुपए का घोटाला। इसके बावजूद भी सर्किल में पदस्थ है।
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