मध्यप्रदेश में अब तक 250 अधिकारयों कर्मचारियों के फर्जी जाति प्रमाण पत्र से सरकारी नौकरी हासिल करने का पता चला है। इनमें डॉक्टर, इंजीनियर, इनकम टैक्स आफसर, एसडीओ और थानेदार से लेकर रेल, वन और भेल में ऊंचे पदों पर बैठे अफसर तक शामिल हैं। प्रदेश के ये 250 फर्जी अफसर सरकार पर भारी पड़ रहे हंै। पहले इन्होंने फर्जी प्रमाण पत्र से सरकारी नौकरियां हासिल की और अब ऊंचे ओहदों पर पहुंचकर सरकार को अंगुलियों पर नचा रह हैं। उनके फर्जी होने के प्रमाण मिलने के बाद भी न तो शासन उन्हें बर्खास्त कर पा रहा है और न ही उनसे वसूली।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गठित उच्च स्तरीय छानबीन समति इनमं से 21 को नौकरी से निकालने और उस पर अपराध दर्ज करने के निर्देश दे चुकी है। हालही में हाईकोर्ट ने भी शासन को फटकार लगाई और कार्रवाई के लिए 21 दिन का अल्टीमेटम दिया है। बावजूद अफसरों के कानों पर जूं नहीं रेंग रही।
सूत्र बताते हैं कि इनमें से 21 उच्च और निम्न अधिकारियों के खिलाफ 20 सितंबर 06 को ही उच्च स्तरीय छानबीन समिति ने बर्खास्त कर अपराध दर्ज कराने, फर्जी जाति प्रमाण पत्र और उनके माध्यम से बनवाए गए दस्तावेज जब्त करने और सरकारी सुविधाओं का लाभ उठाने के बदले वसूली करने के आदेश जारी कर दिए थे। प्रमुख सचिव पिछड़ा वर्ग एवं विकास विभाग की अध्यक्षता वाली इस समिति के निर्देशों को जिला कलेक्टर, एसपी और संबंधित विभाग प्रमुखों ने रद्दी की टोकरी में डाल दिया है। इन पर कार्रवाई हो भी नहीं पाई और समिति के पास अन्य 65 लोगों के फर्जी प्रमाण पत्र के सहारे नौकरी में आने की शिकायत मिल गई। छानबीन समिति को जांच में इनके खिलाफ भी प्रमाण मिल गए हैं। समिति के निर्देश के बावजूद कार्रवाई नहीं होने पर पिछले महीने उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका लगाई। इस पर मुख्य न्यायाधीश आनंद कुमार पटनायक ने शासन को जमकर फटकार लगाते हुए 21 दिन में कार्रवाई कर रिपोर्ट मांगी है हाईकोर्ट द्वारा दी गई समय-सीमा भी गत दिवस समाप्त हो गई लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
उच्च स्तरीय छानबीन समिति ने कोलार नगर पालिका के वार्ड क्रमांक आठ के कांग्रेस पार्षद भैरो सिंह यादव और नगर पालिका अध्यक्ष मुन्नी यादव के पति मंगल सिंह के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज करने के निर्देश के बाद फर्जी प्रमाण पत्र से आरक्षित सीट पर चुनाव लडऩे का धोखाधड़ी करने का प्रकरण कोलार थाने में दर्ज किया गया है।
मंत्रालय के 39 अधिकारी-कर्मचारी जांच के घेरे में
फर्जी जाति प्रमाण-पत्र को लेकर जारी जांच को पलीता लगाने राज्य मंत्रालय के आला अफसर सक्रिय हैं। फलत: शिकायत के पौने तीन वर्ष बाद भी जांच की गति बेहद मंथर है, जबकि शीर्ष अदालत के निर्देश पर ऐसे मामलों के त्वरित निराकरण के लिए एक उच्चस्तरीय समिति गठित है, लेकिन प्रकरण का निपटारा वह भी आदर्श समय में कर पाने में असहाय साबित हुई है। यह मामला 14 दिसम्बर, 2006 को तब आरंभ हुआ, जब सत्तारूढ़ दल भाजपा के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने शिकायत की कि वल्लभ भवन में 39 शासकीय सेवक अनुसूचित जनजाति फर्जी प्रमाण-पत्र के आधार पर सेवारत हैं। इससे सचिवालय हरकत में तो आया, लेकिन उसके बाद प्रकरण शनै: शनै: दबता रहा। इसका कारण यह भी है कि शिकायत में दस आला अफसर भी आरोपित हैं। लिहाजा शिकायत को मरणासन्न बनाए रखने हेतु उच्च स्तर पर कवायद जारी है, बावजूद इसके गत मई माह में सामान्य प्रशासन विभाग ने गोपनीय रूप से एक आवश्यक जांच बिठा दी। संगणकीय कूट संकेत पीजी 9337146/06/15 पर दर्ज जनशिकायत के आधार पर जारी इस जांच के दौरान मंत्रालय में कम से कम एक दर्जन अन्य अधिकारी-कर्मचारियों के जाति प्रमाण-पत्र विवादों और आरोपों के घेरे में आ चुके हैं, लेकिन सचिवालय अभी तक कोई भी ऐसी पारदर्शितापूर्ण प्रक्रिया या कार्रवाई अंगीकार नहीं कर सका है, जिससे संदेह के बादल छंट सकें और मंत्रालय के इतिहास में यह पहली बार है, जब सैकड़ों की संख्या में जाति प्रमाण-पत्र शंकाओं के घेरे में आ चुके हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें