सोमवार, 15 सितंबर 2014
प्रज्ञा और जोशी को हैवान बनाया असीमानंद ने
vinod upadhyay
भोपाल। 2007 में हुई आरएसएस प्रचारक सुनील जोशी की हत्या का मामला एक बार फिर सुर्खियों में है। इस मामले में लंबे समय से जांच कर रही राष्ट्रीय जांच एजेंसी(एनआईए)ने 19 अगस्त को भोपाल में स्पेशल जज विजय कुमार पांडे की अदालत में प्रज्ञा ठाकुर सहित 8 आरोपियों के खिलाफ चालान पेश कर दिया। इस मामले में एनआईए ने अपनी हालिया रिपोर्ट में कहा है कि जोशी की हत्या की एक वजह साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के प्रति उनका यौन आकर्षण हो सकता है। लेकिन 2011 में देवास पुलिस और एनआईए की जांच और गवाहों के बयान में यह बात सामने आ चुकी है कि जोशी और साध्वी प्रज्ञा एक-दूसरे से प्यार करते थे। दोनों को धर्म और राष्ट्रीयता की राह से भटकाकर असीमानंद ने हैवान बना दिया। इस कारण दोनों के बीच लगातार दूरिया बढ़ती गई और नौबत यहां तक आ गई की एक दिन साध्वी प्रज्ञा को मजबुर होकर जोशी की हत्या करानी पड़ी।
जोशी मर्डर केस की जांच में 2011 के बाद तब बदलाव आया, जब मालेगांव ब्लास्ट मामले में मध्य प्रदेश के महू में कुछ गिरफ्तारियां हुईं और देवास पुलिस ने पहली चार्जशीट दाखिल की। एनआईए द्वारा गिरफ्तार किए गए चार लोगों- राजेंद्र चौधरी, लोकेश शर्मा, जीतेंद्र शर्मा (भारतीय जनता युवा मोर्चा के नेता) और बलबीर सिंह को अब प्रज्ञा ठाकुर के साथ जोशी हत्याकांड मामले में आरोपी बनाया गया है। जांच एजेंसी का दावा है कि राजेंद्र और लोकेश ने ही 29 दिसंबर 2007 की रात जोशी का कत्ल किया था। जीतेंद्र शर्मा ने इसके लिए पिस्तौल मुहैया कराई थी और बलबीर सिंह ने इसे छिपाया था। एनआईए, देवास पुलिस और स्थानीय लोगों से मिली जानकारी के अनुसार, प्रज्ञा और जोशी के पतन की कहानी कुछ इस तरह है।
प्रज्ञा और जोशी का अतिवाद बना खतरनाक
धर्म हो या फिर आध्यात्मिकता या फिर राष्ट्रीयता अगर इनको अतिवाद के साए में पोषित किया जाए तो वह खतरनाक हो सकता है और इसका सबसे ताजा और बड़ा प्रमाण हैं साध्वी प्रज्ञा चंद्रपाल सिंह ठाकुर और सुनिल जोशी। एक अध्यात्म तो दूसरा राष्ट्रीयता के सहारे अपने पथ पर गतिमान थे कि इनके बीच आ गए अतिवादी असीमानंद। फिर क्या था धर्म और अध्यात्म की चितेरी साध्वी प्रज्ञा और राष्ट्रीयता के ओज से भरे सुनील जोशी अपना पथ भटक गए। साध्वी प्रज्ञा देखते ही देखते एक दिन देश की कुख्यात आतंकवादी मान ली जाएंगी ऐसा कभी स्वयं उन्होंने भी नहीं सोचा होगा और बेचारे जोशी तो अब रहे नहीं।
हिन्दुत्व पर आतंकवाद का धब्बा लगाने वाले प्रज्ञा और सुनील जोशी मध्य प्रदेश के निवासी थे। वर्ष 2003 में इंदौर में आयोजित एक कार्यक्रम में दोनों की मुलाकात हुई। अपनी आकर्षक छवि के कारण प्रज्ञा उसी दिन से सुनील जोशी के मन मंदिर में बस गई। मूलत: मध्य प्रदेश की निवासिनी 40 वर्षीय प्रज्ञा के अभिभावक कुछ साल पहले गुजरात के सूरत में जाकर बस गए थे इस लिए इनकी मुलाकात कम ही हो पाती थी। जहां एक तरफ जोशी प्रज्ञा से शादी करने का ख्वाब संजोए हुए था वहीं प्रज्ञा को जानने वाले बताते हैं कि उसे बचपन से ही जगत की भौतिकता से एलर्जी सी हो गई थी। हालांकि साध्वी ने वर्ष 2003 में ही साध्वी का चोला धारण करना शुरू कर दिया था लेकिन उन्होंने कोर्ट में प्रस्तुत अपने हलफनामें में कहा है कि वे 30 जनवरी 2007 को संन्यासिन बनी। बताते है कि प्रज्ञा चंद्रपाल सिंह ठाकुर संन्यासिन तो बन गई लेकिन उनमें आध्यात्मिकता का गुण नहीं समा सका। बात-बात में आक्रोशित होना उनके ठाकुरपन को दर्शाता था। उन्हें यह बात अच्छी तरह मालुम थी कि अध्यात्म का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण सूत्र है संयम। अध्यात्म का मार्ग बहुत लम्बा और साधना का मार्ग है, किन्तु संयम का पालन कर अध्यात्म की साधना व्यवहार के धरातल पर भी की जा सकती है। बस सीमाकरण कर दो। हिंसा को कम करने का, कलह और संघर्ष को मिटाने का एक महत्वपूर्ण सूत्र है संयम,जिसकी कमी साध्वी होने के बाद भी उनमें नजर आती थी।
सुनिल की रॉबिनहुड छवि की कायल थी साघ्वी
सुनील जोशी मध्यप्रदेश के देवास में एक बेहद गरीब परिवार से जन्मा था लेकिन उसकी महत्वकांक्षाएं बड़ी थी। 1999 में वह महू जिले में संघ का जिला प्रचारक बन गया, जहां कुछ ही समय में वह कट्टर हिंदुत्ववादी के रूप में पहचाना जाने लगा। संघ में उसे गुरूजी के नाम से जाना जाता था। सुनील बचपन से ही अति उत्साही प्रवृति का था जो जवानी में और भी परवान चढ़ी। उसकी इसी रॉबिनहुड वाली छवि की साध्वी भी कायल थी। प्रज्ञा जबसे सन्यासिन बनी उनका अधिकत्तर समय जबलपुर के आश्रम में बीतता था। इस दौरान सुनील जोशी भी उनके संपर्क में रहता था। मेल- मुलाकातों का सिलसिला ऐसा चला कि सुनील जोशी के एक तरफा प्यार का अहसास साध्वी को भी होने लगा और वह भी उसे प्यार करने लगी।
दोनों का प्यार कुछ इस कदर परवान चढ़ा की प्रज्ञा धर्म और अध्यात्म को तो जोशी हिन्दुत्ववादी राष्ट्रीयता को भूल गया। जोशी एक पल के लिए भी प्रज्ञा से अलग नहीं होना चाहता था लेकिन अध्यात्मिकता का चोला ओढ़े प्रज्ञा के लिए यह संभव नहीं था।
साध्वी ने जोशी को मिलवाया था असीमानंद से
2003 में ही प्रज्ञा सिंह ने सुनील जोशी का संपर्क असीमानंद से कराया। पहली मुलाकात में ही जोशी अपनी हिन्दुत्ववादी आक्रामक छवि के कारण असीमानंद की पसंद बन गया। असीमानंद 2002 में हिन्दू मंदिरों पर हुए धमाकों से वे बहुत विचलित थे और प्रज्ञा सिंह और सुनील जोशी के अंदर अपने जैसी सोच देखकर उन्होंने उनके सामने अपनी मंशा जाहिर कर दी। स्वामी असीमानंद मूलत: पश्चिमी बंगाल के हुगली के हैं। ऊंची तालीम हासिल असीमानंद कभी नब कुमार थे, फिर उन्हें पुरुलिया में काम करते देखा गया। स्वामी वर्ष 1995 में गुजरात के आहवा में अवतरित हुए और हिंदू संगठनों के साथ हिंदू धर्म जागरण और शुद्धिकरण का काम शुरू किया। मगर वो कम से कम दो दशक से मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में ही सक्रिय रहे। स्वामी असीमानंद ने मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के कोई 12 जिलों में अपने हिंदू प्रभाव का तानाबाना बुन रखा था। वे अपना कामकाज दक्षिण गुजरात के पांच जिलों- डांग और खेड़ा, उत्तरी महाराट्र के नंदनवार और पश्चिमी मध्य प्रदेश के झाबुआ में फैला रखा था, मगर उनका केंद्र गुजरात के डांग जिले में आहवा था। यहीं उन्होंने शबरी माता का मंदिर बनाया और शबरी धाम स्थापित किया।
हिन्दू धार्मिक स्थलों पर हुए धमाकों का बदला लेने के लिए असीमानंद काफी उतावले थे। अपनी इस रणनीति को अंजाम तक पहुंचाने के लिए असीमानंद को वर्ष 2004 में उज्जैन के सिंहस्थ कुंभ में मौका मिल गया। वहां एक बैठक हुई जिसमे प्रज्ञा सिंह, सुनील जोशी, रामजी कलसंगरा, देवेन्द्र गुप्ता और अन्य अनेक लोग मौजूद थे। इस बैठक में हिंदू धर्मस्थलों पर मुस्लिम चरमपंथियों के हमलों पर गुस्सा जाहिर किया गया और कहा सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठे है, लिहाजा खुद के दम पर कुछ किया जाए। यहीं वह बैठक थी जहां पर सुनील जोशी हिन्दुत्ववादी राष्ट्रीयता के भ्रामक छलावे में आ गया और उसकी आदते बिगडऩे लगी।
...और अपराध की राह पर चल पड़ा जोशी
इस बैठक में असीमानंद ने जोशी का इस तरह माईंड वाश किया कि वह अपराध की डगर पर चल पड़ा। देवास के कुछ आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों से उसकी नजदीकी बढ़ी। वह लोगों को डरा-धमका कर पैसा उगाहने लगा। जोशी की पैसा कमाने की ललक ने प्रज्ञा बहुत आहत थी। उसने इसके लिए कई बार जोशी को रोकने की कोशिश की लेकिन वह माना नहीं। बताते हैं कि वह पैसा कमाने के पीछे इस कदर पागल हो गया था कि वह प्रज्ञा को भी प्रताडि़त करने से नहीं चुकता था।
उधर असीमानंद बराबर इनके संपर्क में रहते थे। धीरे-धीरे मुलाकातों का जब दौर बढ़ा तो देश भर में बम धमाकों की साजिश रची गई। हैदराबाद, अजमेर, मालेगांव और समझौता एक्सप्रेस में बम रखने का फैसला इन्हीं मुलाकातों के दौर में किया गया। असीमानंद के अनुसार जोशी 2006 के मालेगांव बम धमाके की साजिश में भी शामिल था और हैदराबाद की मक्का मस्जिद, अजेमर और समझौता एक्सप्रेस में हुए ब्लॉस्ट में भी उसका पर्दे के पीछे बड़ा रोल था। मालेगांव ब्लास्ट के बाद से जोशी और आक्रामक हो गया था। निनामा हत्याकांड के बाद से ही फरार चल रहे सुनील जोशी उर्फ गुरुजी ने इस अवधि में लगभग 1 करोड़ से अधिक की संपत्ति इक_ा कर ली थी। शराब व्यवसाय, सोना-चांदी के अलावा वायदा सौदे में भी गुरुजी ने लाखों रुपए निवेश किए थे। निनामा हत्याकांड के बाद से फरार हुए जोशी ने 4 वर्ष में 1 करोड़ से अधिक की संपत्ति बना ली थी। देवास की चूना खदान क्षेत्र में रहने के दौरान जोशी ने विभिन्न स्रोतों से धन एकत्रित करना शुरू कर दिया था। रामचरण खाती के साथ मिलकर उसने ग्राम पालनगर में खली-बीज का व्यवसाय शुरू किया था। वासुदेव परमार के साथ मिलकर उसने परमार के फोटो स्टूडियो के पास एक दुकान भी खरीद ली थी। जितेंद्र निवासी डकाच्या और शिवम धाकड़ के साथ मिलकर जोशी ने शराब के दो ठेके भी ले लिए थे। इतना ही नहीं, उसने आनंदराज कटारिया के साथ मिलकर वायदा सौदों और सोने-चांदी के व्यवसाय में लाखों रुपए निवेश कर दिए थे।
नवंबर-दिसंबर 2007 में हत्या के कुछ समय पहले ही उसने आनंदराज और वासुदेव के साथ मिलकर फस्र्ट फ्लाइट कोरियर सर्विसेज की फ्रेंचाइजी ले ली थी। जोशी के भतीजे अश्विन और मेहुल उर्फ घनश्याम को गीता भवन क्षेत्र स्थित फस्र्ट फ्लाइट कोरियर पर प्रशिक्षण के लिए भेजा था। इंदौर में भी परफेक्ट कोरियर एजेंसी संचालन के लिए आनंदराज कटारिया की दुकान का इस्तेमाल किया था। दुकान के बदलाव सहित फर्नीचर आदि पर भी जोशी ने ही भारी धनराशि खर्च की थी। 2007 में इसका उद्घाटन भी जोशी और उसके साथियों ने किया था। इसके अलावा आनंदराज के साथ ही जोशी ने व्यावसायिक गतिविधियों के लिए बोलेरो गाड़ी भी खरीद ली थी।
जोशी से आजिज आ चुकी थी प्रज्ञा
जोशी द्वारा लगातार परेशान प्रज्ञा उसके पैसा कमाने की भूख से भी परेशान थी। कुछ समय पहले तक सबके ऊपर अपना हुकुम चलाने वाली साध्वी जोशी के होते हुए अपना वर्चस्व स्थापित नहीं कर पा रही थी लिहाजा प्रज्ञा सिंह ने सुनील जोशी की हत्या की साजि़श रच डाली। पुलिस की चार्जशीट में बताया गया कि जोशी ने साध्वी के साथ व्यक्तिगत तौर पर बुरा बर्ताव किया था, इसलिए भी साध्वी उससे नाराज थी। इस बात का खुलासा इसी माह एनआईए की एक रिपोर्ट में भी हुआ है। जिसमें कहा गया है कि संघ प्रचारक जोशी की हत्या की एक वजह साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के प्रति उनका कथित यौन आकर्षण हो सकता है। एनआईए के अनुसार, प्रज्ञा को इस बात की चिंता सताती रहती थी कि कहीं सुनील जोशी आतंकी वारदात को अंजाम देने के लिए बनाईं गईं योजनाओं का खुलासा न कर दें।
साथ ही जोशी पार्टी और दूसरे स्रोतों से मिले पैसे का भी दुरुपयोग करता था। चार्जशीट के मुताबिक, जोशी हर्षद मेहुल, राकेश और उस्ताद के साथ भी बुरा बर्ताव करता था। ये लोग बेस्ट बेकरी केस में फरार थे। 1 मार्च 2002 को इस मामले में 14 लोग जिंदा जल गए थे। ये चारों जोशी के साथ देवास में छिपे थे। ये कुछ कारण थे जिसके कारण 2006 में जोशी और साध्वी के बीच विवाद हो गया।
दोनों लव कपल थे
2011 में सुनील जोशी की भतीजी चंचल जोशी ने पुलिस की चार्जशीट पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि चाचा की हत्या से कुछ महीनों पहले तक साध्वी प्रज्ञा और सुनील जोशी में बातचीत नहीं हुई। प्रज्ञा दीदी का घर आना भी कम हो गया था। चंचल के अनुसार, उसके चाचा अश्लील हरकत नहीं कर सकते क्योंकि वे दोनों अच्छे फ्रेंड थे लव कपल थे। चंचल के अनुसार सुनील की मां दोनों की शादी करना चाहती थी। साध्वी प्रज्ञा और सुनील जोशी दोनों की शादी के लिए दादी की इच्छा थी लेकिन सुनील चाचा का मन नहीं था। उनके संबंध ब्वायफ्रेंड और गर्लफ्रेंड की तरह थे। चंचल के अनुसार,परिवार में सुनील जोशी की मां को यह शक था कि प्रज्ञा ने ही उसे मारा होगा वे गुस्से में कहती रहती थी कि प्रज्ञा आज कल आती नहीं है चाचू थे तब आती थी। चंचल ने बताया कि सुनील चाचा की मौत से पहले दोनों के बीच किसी पर्सनपल मैटर को लेकर लड़ाई हो गयी थी।
दिल्ली में बनी हत्या की प्लानिंग
2011 में देवास पुलिस द्वारा कोर्ट में पेश चार्जशीट के मुताबिक सालभर पहले तक जोशी की करीबी रही प्रज्ञा उसकी अमर्यादित हरकतों से नाराज हो हिमालय आश्रम चली गई थी, लेकिन जोशी की मौत के बिना उसके दिल को सुकून नहीं था। इसलिए अगस्त 2007 में वह दिल्ली लौट गई और सुनील जोशी की हत्या की प्लानिंग शुरू कर दी।
प्लान को अंजाम तक पहुंचाने के लिए दिल्ली में वह आनंदराज कटारिया से मिली। यहीं पर उसने कटारिया के समक्ष जोशी को रास्ते से हटाने का इरादा जाहिर किया। अक्टूबर 2007 से वह अपने प्लान को अंजाम तक पहुंचाने के लिए इंदौर आ गई। यहां वह किराए के फ्लैट में रहने लगी। इस दौरान वह जोशी के रिश्तों व उसकी गतिविधियों पर नजर रखती रही। फिर उसने जोशी के करीबी रहे मेहुल उर्फ घनश्याम से संपर्क किया। मेहुल का विश्वास जीतकर उसने जोशी के साथ रहने वाले राज उर्फ हर्षद सोलंकी व मोहन उर्फ रमेश को भी जोशी की हत्या का साझेदार बनाया। 14 दिसंबर को इंदौर में प्रज्ञा के फ्लैट में एक गुप्त बैठक हुई। इस बैठक में वासुदेव परमार, आनंदराज कटारिया, मेहुल उर्फ घनश्याम,राज उर्फ हर्षद सोलंकी भी शामिल हुए। उसी दिन जोशी की मौत का प्लान बनाया गया जिसके बाद कटारिया, मेहुल, राज और वासुदेव परमार को काम बांटे गए। 29 दिसंबर 2007 को कत्ल का दिन भी आ गया। साध्वी के पास था मोबाइल नंबर 9425056114। इस फोन नंबर पर आनंदराज सुबह से ही लगातार प्रज्ञा सिंह से दिशा निर्देश लेता रहा। आनंद राज ने 4 बार प्रज्ञा सिंह को योजना के अंजाम देने की खबर दी।
चंचल के अनुसार,जिस रात चाचा की हत्या हुई, उस रात वे घर से चावल खाकर गए थे। वे मोटर साइकिल से बाहर निकले थे, मगर थोडी देर बाद वापस आ गए, क्योंकि गाड़ी पंचर हो गई थी। उसी वक्त उनके मोबाइल पर एक फोन आया तो उन्होंने जवाब दिया कि वे आ रहे हैं, मगर उसके बाद उनकी लाश आई। चंचल ने बताया कि जिस दिन चाचा की हत्या हुई, उस दिन घर पर संघ का एक व्यक्ति रुका था। उसने कहा कि चाचा की हत्या के बाद प्रज्ञा दीदी घर आई थी। उस वक्त घर पर वह और उसकी छोटी बहन ही थी।
सुनील जोशी की जन्म और कर्मभूमि देवास के लोगों का कहना है कि जोशी ने संघ द्वारा संचालित सरस्वती शिशु मंदिर में शिक्षा प्राप्त की थी। 1999 में वह महू जिले में संघ का जिला प्रचारक बन गया, जहां कुछ ही समय में वह कट्टर हिंदुत्ववादी के रूप में पहचाना जाने लगा। संघ में उसे गुरूजी के नाम से जाना जाता था। सुनील बचपन से ही अति उत्साही प्रवृति का था। अपनी कुशाग्र बुद्धि के कारण वह हमेशा कुछ अलग करने की सोचता रहता था। जोशी को बचपन से जानने वाले 72 वर्षीय श्याम नारायण शर्मा कहते हैं कि उसमें देश भक्ति कुट-कुट कर भरी हुई थी। वह वीर सावरकर का अनुयायी था। हमेशा उनकी पंक्तियां दोहराया करता था। इसका प्रमाण उसकी डायरी में भी मिलता है। उसने लिखा भारत अपना हो महान, ये हर व्यक्ति का सपना है। औरों को मत देखो, सोचो योगदान क्या अपना है। जोशी की डायरी में उसके ज्योतिषाचार्य बनने का सपना भी नजर आता है। उसने ज्योतिष का अध्ययन भी किया। इसमें ग्रह, नक्षत्रों और कुंडली बनाने तक की जानकारियां हैं। सुनील जोशी उर्फ मनोज ने हिसाब की एक डायरी के शुरूआती पन्नों में चंद शेर, श्लोक और पंक्तियां लिखकर खुद को सही ठहराने का प्रयास भी किया। इस डायरी को जोशी ने हत्या से करीब दस माह पहले तक लिखा है। इसके आगे उसने लिखा मैं जो कर रहा हूं वह, ईश्वर के द्वारा ही निर्दिष्ट है। ईश्वर प्रदत्त शक्ति से ही मैं इस कार्य को सम्पन्न कर पा रहा हूं। जोशी ने अण्डमान से हटाई गई पट्टिका पर लिखी वीर सावरकर की पंक्तियां भी डायरी में लिखी हैं। इसमें लिखा देशभक्ति का यह व्रत हमने आंखें मूंदकर नहीं लिया है। इतिहास की प्रखर ज्योति में हमने इस मार्ग की परख की है। दृढ़ प्रतीक्षित होकर दिव्य अग्नि में जलने का निश्चय जानबूझकर किया है। हमने व्रत लिया है, आत्म बलिदान का।
देवास में जोशी का अपना अलग ही रूतबा था। लेकिन जब से उसकी हत्या हुई है लोग उसकी बात भी करने से कतराते हैं। ऐसे ही कुछ लोगों को जब विश्वास में लेकर उसके अतीत के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि सुनील जोशी, हिंदुत्ववादियों की आतंकी साजिश का केंद्र बिंदु था। 2007 में देवास में जब उसके घर के बाहर रहस्यमय तरीके से उसकी हत्या कर दी गई तब उसकी उम्र पैंतालीस साल थी। लेकिन तब तक भी वह कट्टरता के गहरे हिंसक निशान छोड़ चुका था।
2000 में जोशी और संघ के दो अन्य कार्यकर्ता संदीप डांगे और रामचंद्र कालसांगरा गहरे दोस्त बन गए। डांगे शाजापुर में तो कालसांगरा इंदौर में संघ का प्रचारक था। तीनों की यह दोस्ती आगे बड़े घातक गुल खिलाने वाली थी। असीमानंद के इकबालिया बयान में 2006 के बाद हुए लगातार बम धमाकों में जोशी का नाम मुख्य षड्यंत्रकारी के रूप में सामने आया है। लेकिन जोशी का रिश्ता इससे भी पहले अपराधों से जुड़ चुका था। जोशी ने डांगे के साथ मिलकर स्थानीय मुस्लिमों को फंसाने और हिंदू-मुसलिम दंगे भड़काने के लिए महू के मंदिरों में कई बार बम धमाके करने की कोशिशें की। यह बात तब सामने आई जब सीबीआई ने महू से संघ के कार्यकर्ता और जोशी के घनिष्ठ मित्र राजेश मिश्रा पर शिकंजा कसा। मिश्रा महू के पास पीथमपुरा में लोहे के पाइप बनाने की फैक्टरी चलाता है। 2001 में जोशी ने संघ के विशेष कामों के लिए उससे 15 पाइप बनवाए, जिसमें अंदर की ओर खांचे वाली धारियां और बीच में एक छेद बनवाया गया। अप्रैल 2002 में जोशी और डांगे ने महू में हनुमान मंदिर और स्वर्ग मंदिर के पास कम शक्ति वाले बम धमाके किए जिनमें एक व्यक्ति को मामूली चोटें आईं। दिसंबर, 2002 में भोपाल में हुए इज्तीमें से करीब आधा दर्जन जिंदा पाइप बम बरामद हुए। मिश्रा ने टीवी पर बमों की तस्वीरें देखीं। ये हूबहू वैसे ही थे जो उसने जोशी को मुहैया करवाए थे। उसने घबराहट में जोशी को फोन किया, लेकिन उसे कहा गया कि घबराने की कोई बात नहीं है।
अगस्त, 2003 में एक विवाद के बाद जोशी और डांगे ने कांग्रेस के आदिवासी नेता प्यारे सिंह निनामा और उनके बेटे दिनेश की हत्या कर दी। परिवारवालों ने एफआरआई में जोशी, मिश्रा और सात अन्य का नाम संदिग्धों के रूप दर्ज कराया। मिश्रा को गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन जोशी के खिलाफ पुख्ता सबूत होने के बावजूद पुलिस ने उसे गिरफ्तार नहीं किया। हालांकि संघ ने उसे निकाल दिया। मिश्रा ने पुलिस को महू के मंदिरों और भोपाल में बम धमाके करने की नाकाम कोशिशों के पीछे जोशी का हाथ होने की बात बताई। पुलिस ने इस मामले में मिश्रा को तो आरोपित किया लेकिन जोशी का नाम शामिल नहीं किया। जोशी को कानून के शिकंजे से बच निकलने की खुली छूट दे दी गई। इसने उसे बाद में और बम धमाके करने का मौका दिया जिनमें दर्जनों महिलाएं, पुरुष और बच्चे मारे गए।
फरवरी, 2010 में सीबीआई की टीम ने देवास पहुंचकर स्थानीय पुलिस से जोशी की डायरी और उसके द्वारा बनाए रेखाचित्र हासिल किए जो हत्या के बाद उसकी जेब से बरामद हुए थे। सीबीआई को यह भी पता चला कि जोशी का मोबाइल, बंदूक और दूसरी कईं निजी चीजें उसकी हत्या के बाद उसके घर से हटा ली थीं।
असीमानंद ने सीबीआई को दिए अपने बयान में दावा किया है कि कुछ दिनों बाद उसके पास भरतभाई का फोन आया कि सुनील जोशी का मर्डर हो गया है। असीमानंद ने इसके बाद फौरन लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित को फोन किया। जवाब में पुरोहित ने बताया कि सुनील जोशी ने किसी का मर्डर किया था। ऐसा लगता है कि किसी ने उसी हत्या का बदला लिया है।
क्या कहता है एनआईए का चालान
सुनील जोशी हत्याकांड मामले में एनआईए द्वारा पेश पूरक चालान में इस बात का खुलासा हुआ है कि जोशी जेल में बंद प्रज्ञा सिंह से नजदीकी बनाना चाहता था। मालेगांव और अजमेर शरीफ बम ब्लास्ट में शामिल राजेन्द्र चौधरी और लोकेश शर्मा प्रज्ञा सिंह को छोटी बहन मानते थे। इसके अलावा प्रज्ञा, राजेन्द्र और लोकेश को आशंका थी कि सुनील जोशी बम ब्लास्ट मामले की पुलिस को जानकारी दे सकता है। इसके चलते तीनों ने सुनील जोशी की साजिश रच कर हत्या की थी।
हत्या के दौरान प्रज्ञा इंदौर में थी। हत्या की सूचना मिलने पर प्रज्ञा सुनील जोशी को देखने पहले देवास के एमजीएच अस्पताल पहुंचीं, बाद में जोशी के घर भी गई थीं। विशेष सत्र न्यायाधीश वीके पांडे की अदालत में पेश चालान में तीनों के खिलाफ हत्या, साजिश, साक्ष्य छुपाने और आम्र्स एक्ट के अन्तर्गत चालान पेश किया गया। जितेन्द्र शर्मा पर आरोप है कि हत्या में इस्तेमाल की गई दो पिस्तौल को छुपाने के लिए दिलीप जगताप को दी। एनआईए ने फिलहाल मामले में अन्य आरोपी बलवीर सिंह के खिलाफ चालान पेश नहीं किया है। दिलीप जगताप को सरकारी गवाह बना लिया गया है । पूर्व मे देवास पुलिस ने हर्षद सोलंकी, वासुदेव परमार, आनन्द राज कटारिया, रामचरण पटेल और प्रज्ञा सिंह के खिलाफ चालान पेश किया था। बाद में मामले की जांच एनआईए को सौंपी गई थी।
दो पिस्तोल से मारी गोली
सुनील जोशी की हत्या के पहले राजेन्द्र चौधरी ने मामले में अन्य आरोपी वासुदेव परमार के साथ मिलकर सुनील जोशी की लोकेशन, मोबाइल कॉल डिटेल और अन्य जानकारी ली थी। घटना की रात मोटरसाइकिल पर सवार होकर लोकेश शर्मा और राजेन्द्र चौधरी सुनील जोशी का पीछा कर रहे थे। लोकेश मोटर साइकिल चला रहा था। मौका मिलते ही राजेन्द्र चौधरी ने सुनील जोशी पर दो पिस्तोलों से गोली मारी थी। हत्या के बाद दोनों इन्दौर स्थित ग्वाल बस स्टैण्ड के पास फ्लैट में रूके थे। प्रज्ञा ने दोनों से मिलकर काम पूरा होने की बधाई दी थी।
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