सोमवार, 15 सितंबर 2014

शिवराज के दागदार सारथी

vinod upadhyay
भोपाल। चाल,चेहरा और चरित्र की बात करने वाली भाजपा के मंत्रियों और नेताओं ने मप्र को इस कदर लूटा है कि प्रदेश कंगाल हो गया है। भाजपा के पिछले शासनकाल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, उनके मंत्रियों, भाजपा नेताओं ने भ्रष्टाचारियों और सत्ता के दलालों से सांठगांठ कर एक लाख छियालिस हजार सत्ततर करोड़ का घोटाला कर मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार का एक नया इतिहास बनाया। प्रदेश के इतिहास में इस सबसे बड़े घोटाले की शिवराज सरकार ने प्रदेश को ब्यानवे हजार करोड़ रूपए का कर्जदार बना दिया। स्वर्णिम मध्यप्रदेश बनाने का दावा करने वाले खुद स्वर्णिम बन गए और प्रदेश को कंगाल बना दिया। भाजपा के भ्रष्टाचार की परते धीरे-धीरे खुलने लगी है। व्यापमं घोटाले में भाजपा के पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा जेल में हैं,वहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित कई वर्तमान और पूर्व मंत्री आरोपों के घेरे में हैं। यही नहीं वर्तमान 4 मंत्रियों बाबूलाल गौर, कैलाश विजयवर्गीय, जयंत मलैया,गौरीशंकर बिसेन और 8 पूर्व मंत्रियों लक्ष्मीकांत शर्मा, अजय विश्नोई, अनूप मिश्रा, चौधरी चन्द्रभान सिंह, अखंड प्रताप सिंह, महेन्द्र हार्डिया, कमल पटैल व राघवजी के खिलाफ लोकायुक्त में मुकदमा दर्ज है। लेकिन सत्ता के रसूख के कारण अभी लोकायुक्त संगठन भी इनकी ढाल बना हुआ है। हालांकि हालही में जबलपुर उच्च न्यायालय ने कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन के खिलाफ मामला दर्ज कर जांच करने का निर्देश लोकायुक्त को दिया है। भाजपा के इन वर्तमान और पूर्व मंत्रियों के अलावा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह,नरोत्तम मिश्रा, गोपाल भार्गव,पारस जैन,राजेंद्र शुक्ला, जगदीश देवडा, तुकोजीराव पवार, जगन्नाथ सिंह, डॉ. रामकृष्ण कुसमारिया, नागेन्द्र सिंह और अर्चना चिटनिस भी विभिन्न भ्रष्टाचार और घोटालों में आरोपी हैं। साप्ताहिक खबरयार ऐसे ही कुछ दागदार वर्तमान और पूर्व मंत्रियों द्वारा किर गए भ्रष्टाचार और घोटाले की रिपोर्ट यहां प्रस्तुत कर रहा है।
- शिवराज सिंह चौहान
लोकायुक्त संगठन में प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं उनकी पत्नी साधना सिंह के खिलाफ 15 नवम्बर 2007 को भोपाल जिला न्यायालय के आदेश पर डंपर खरीदी मामले में प्रकरण कायम किया गया था। मुख्यमंत्री ने पुराने मित्र पूर्व केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल ने डंपर खरीदी मामला उठाया था। इस प्रकरण में मुख्यमंत्री अथवा उनकी पत्नी को बयान देने के लिए लोकायुक्त संगठन में कभी नहीं बुलाया गया है। बल्कि संगठन के एक अधिकारी ने मुख्यमंत्री निवास पहुंचकर मुख्यमंत्री एवं उनकी पत्नी के बयान दर्ज करने की औपचारिकता पूरी कर ली है तथा मामले में उन्हें क्लीन चिट दे दी गई। इस घोटाले से जैसे-तैसे निकले मुख्यमंत्री और उनकी पत्नी का नाम अब व्यापमं घोटाले में भी सामने आया है।
-लक्ष्मीकांत शर्मा
पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा अभी व्यापमं घोटाले में एसटीएफ की कस्टडी में हैं। देश के सबसे बड़ा यह घोटाला इन्हीं के कार्यकाल में हुआ है। इस घोटाल से पहले इन पर 25 जुलाई 05 में खनिज लीज घोटाले में लोकायुक्त में मामला दर्ज है। हाईकोर्ट के कई निर्देश के बाद भी लोकायुक्त संगठन जांच में कोताही बरतता रहा। लेकिन 2013 में विधानसभा चुनाव हारने के बाद इनका रसूख जाता रहा और इनके उच्च और तकनीकी शिक्षा मंत्री रहते व्यापमं में हुए घोटाले में दोषी पाए जाने पर हाईकोर्ट की फटकार के बाद उन्हें एसटीएफ ने गिरफ्तार किया है। स्पेशल टास्क फोर्स के पास मौजूद सबूतों में यह पता चला है कि पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने 40 से अधिक सिफारिशें की थीं। इसमें संघ से जुड़े लोगों के अलावा उनके विधानसभा क्षेत्र के कार्यकर्ताओं के नाम भी शामिल हैं। इसमें से चार कार्यकर्ताओं को वे पिछली पूछताछ में पहचान चुके थे। एसटीएफ ने पूर्व मंत्री की सिफारिश से पास हुए सिरोंज निवासी तीन लोगों को एसटीएफ ने गिरफ्तार किया था।
पुजारी से लेकर मंत्री तक का सफर
पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा पहले पुजारी थे। इसके बाद वे सरस्वती स्कूल में शिक्षक बने। चार सौ रूपए की तनख्वाह पाने वाले शर्मा की राजनीतिक इच्छा शक्ति जागी। उन्होंने इसके लिए स्कूल के माध्यम से संघ का रास्ता चुना। 1993 में सिरोंज से विधायक चुने गए। ओपी शुक्ला को शर्मा ही डेपुटेशन पर लेकर आए थे। इसके साथ ही उन्होंने पंक ज त्रिवेदी का व्यापमं में पदस्थापना कराई। इन दोनों तैनाती को लेकर शर्मा पर आरोप लगते रहे हैं। शर्मा पिछले वर्ष विधानसभा चुनाव हार गए। इसके बाद वे सागर से लोकसभा का टिकट मांग रहे थे। एक वक्त में सीएम की दौड़ में रहे लक्ष्मीकांत शर्मा आज सलाखों के पीछे पहुंच गए हैं।
संघ पदाधिकारियों का नाम!
पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा पर दूसरी परीक्षाओं में सिफारिश करने के आरोप लगे हैं। बताया जाता है कि उनका नाम नाप-तौल और पीएमटी परीक्षा में सिफारिश करने में भी है। नाप-तौल परीक्षा के एक अभ्यर्थी मिहिर की सिफारिश संघ नेता ने की थी। इसका खुलासा पूर्व मंत्री के ओएसडी रहे ओपी शुक्ला ने किया था। इस महाघोटाले में संघ के एक बड़े पदाधिकारी का भी नाम सामने आ रहा है। हालांकि एसटीएफ इस बात से इनकार कर रही है।
-जयंत मलैया
वित्त मंत्री जयंत मलैया पर लोकायुक्त में चार मामले दर्ज हैं। पहला 19 मार्च 2007 पद को दुरूपयोग का। दूसरा 31 मार्च 2008 को बिल्डर को 20 करोड़ का लाभ पहुंचाने का। तीसरा 2 मई 2008 श्रीराम बिल्डर को अवैध लाभ पहुंचाने का, और चौथा 9 जून 2008 पद के दुरूपयोग का। हालांकि इनमें से तीन मामलों में लोकायुक्त ने उन्हें क्लीनचीट दे दिया है। मलैया भाजपा के पिछले शासनकाल में जब आवास एवं पर्यावरण मंत्री थे तब उन पर इंदौर में एक बिल्डर को अपने पद का दुरूपयोग कर जमीन आवंटित करने का आरोप है। कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता केके मिश्रा ने लोकायुक्त से शिकायत कर मलैया सहित पांच अन्य लोगों के खिलाफ मामला दर्ज करने की मांग की। लोकायुक्त से की गई शिकायत में कहा गया है कि इंदौर की विकास योजना क्रमांक 54 में बस टर्मिनल और बस स्टेंड हेतु दस एकड़ जमीन आरक्षित की गई थी। इस जमीन में लगभग चार एकड़ भूमि बस स्टैंड का एकीकृत भाग रखते हुए व्यवसायिक निर्माण की अनुमति दी गई थी। शिकायत में कहा गया है कि यह भूमि बस स्टैंड तथा ट्रान्सपोर्ट नगर के मास्टर प्लान में होने के बावजूद इसे आवासीय बताकर कॉलोनी के लेआउट को स्वीकार किया गया है। इस सारी कवायद के जरिए श्रीराम बिल्डर्स को सौ करोड़ रुपए का लाभ हुआ है।
-कैलाश विजयवर्गीय
इंदौर के करीब 100 करोड़ के बहुचर्चित सुगनी देवी जमीन घोटाले में मई 2013 में लोकायुक्त ने भले ही नगरीय प्रशासन और विकास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को क्लीनचीट दे दिया,लेकिन इसके दाग अभी भी उन पर हैं। कांग्रेस नेता सुरेश सेठ कहते हैं कि लोकायुक्त ने जानबुझकर कैलाश विजयवर्गीय को बचा लिया, जबकि इस मामले में विजयवर्गीय ही प्रमुख आरोपी हैं। मामला सन 2004 का है जब कैलाश विजयवर्गीय महापौर थे। इंदौर नगर निगम के आधिपत्य की 3 एकड़ जमीन की लीज खत्म होने के बाद धनलक्ष्मी केमिकल के मालिकों ने इसे निगम के पास सरेंडर करने की बजाए रमेश मंदोला की नंदानगर साख संस्था को सौंप दी। जमीन के इस अवैध हस्तातरंण में नगर निगम इंदौर के तत्कालीन मेयर इन काउंसिल ने भी अपनी सहमति दी थी। इस जमीन की बाजार कीमत 100 करोड़ रुपया है। 5 अगस्त 2010 को लोकायुक्त पुलिस ने मामले में एफआईआर दर्ज की। इसमें मौजूद तथ्य बताते हैं कि पूरे मामले में कैलाश विजयवर्गीय की अहम भूमिका थी। विवाद और कैलाश विजयवर्गीय एक दूसरे के पर्याय विवाद और कैलाश विजयवर्गीय एक दूसरे के पर्याय हो गये हैं। विजयवर्गीय को विवादों में रहना रास आने लगा है। यही वजह है कि उनके बयान किसी न किसी विवाद को नया जन्म दे रहे हैं। उनका राजनीतिक सफर विवादों से भरा पड़ा है। कभी वे मोदी के निकट होने का दिखावा करते हैं, तो कभी शिवराज सिंह चौहान को प्रदेश का सबसे बड़ा नेता बताने में कोताही नहीं बरतते हैं।
-गौरीशंकर बिसेन
मप्र की भाजपा सरकार में गौरीशंकर बिसेन सबसे विवादास्पद मंत्री रहे हैं। इन पर कई संगीन आरोप लगे हैं। अभी हालही में हाईकोर्ट ने एक पुरानी याचिका को संज्ञान में लेते हुए कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन के खिलाफ लोकायुक्त जांच के आदेश दिए हैं। पूर्व विधायक किशोर समरीते ने 2012 में यह याचिका कोर्ट में लगाई थी और बिसेन पर आय से अधिक संपत्ति और भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। बिसेन ने विभिन्न पदों पर रहते हुए भ्रष्टाचार के द्वारा भारी संपत्ति अर्जित की। याचिका में आरोप लगाया गया था कि बिसेन ने 1984 से लेकर अभी तक बेहिसाब संपत्ति अर्जित की। याचिका में बताया गया था कि बिसेन के पास 50 लाख का फ्लैट पूना में (बेटी मौसमी के नाम), बीवी के नाम पर भी 90 लाख का फ्लैट, बालाघाट में कलेक्ट्रेट के सामने ढ़ाई करोड़ की जमीन, पत्नी के नाम पर काफी जमीन, सेनेटरी पाइप की एक फैक्ट्री जो 90 लाख में खरीदी है। याचिका दायर करने के बाद पैरवी नहीं करने से मामला ठंडे में पड़ा रहा, कोर्ट के सामने याचिका आई तो कोर्ट ने स्वत: संज्ञान में लिया और लोकायुक्त जांच के आदेश दे दिए। संपत्ति के ब्यौरे को बनाया आधार- 19 जून को मुख्य न्यायाधीश अजय माणिकराव खानविलकर व जस्टिस आलोक आराधे की युगलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान हाईकोर्ट का ध्यान जनहित याचिकाकर्ता किशोर समरीते द्वारा आरटीआई के जरिए हासिल किए गए मंत्री गौरीशंकर बिसेन के संपत्ति के ब्यौरे की ओर आकृष्ट कराया गया। इसके जरिए स्पष्ट किया गया कि मंत्री बिसेन ने 2004 से 2012 के बीच अपनी वास्तविक आय से 2 करोड़ रुपये अधिक की सपंत्ति अर्जित कर ली है। लिहाजा, लोकायुक्त जांच की मांग मंजूर किए जाने योग्य है।
भ्रष्टाचारपूर्वक अर्जित संपत्तियां-
मंत्री बिसेन के खिलाफ जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि उन्होंने पद का दुरूपयोग करते हुए खुद, पत्नी व बच्चों के नाम पर करोड़ों की संपत्तियां अर्जित की हैं। 1- बेटी के नाम पर पुणे में 50 लाख का मकान। 2- बालाघाट में खुद के नाम का ढाई करोड़ का मकान। 3- पत्नी के नाम पर बालाघाट में 91 लाख का एक और मकान। 4- पाइप बनाने की 90 लाख की फैक्टरी।
कैबिनेट मंत्री गौरीशंकर बिसेन की आय से अधिक संपत्ति के मामले को हाईकोर्ट ले जाने वाले पूर्व विधायक किशोर समरीते ने जांच के दायरे में उनके रहते हुए सभी ठेकों को लेने की मांग की है। समरीते ने बताया कि बिसेन ने करीब दो हजार करोड़ रुपए की नामी-बेनामी संपत्ति बनाई है। पत्नी, बेटी, साले और दूरदराज के रिश्तेदारों के नाम पर भूमि में बड़ा निवेश किया है। कुछ कंपनियों में घोषित व अघोषित हिस्सेदारी भी है। जब बिसेन सहकारिता मंत्री थे तब गृह निर्माण समिति की जांच आदि के मामले में करोड़ों के वारे-न्यारे किए। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री रहते हुए चार करोड़ से अधिक की जल आवद्र्घन योजनाओं के ठेकों में कमीशनबाजी हुई है। पाइप खरीदी से लेकर ड्रिलिंग मशीन की खरीदी में खेल हुआ है। कृषि मंत्री रहते हुए कागजों पर ही पूरा काम हो रहा है। हाईकोर्ट ने लोकायुक्त को जांच के आदेश दिए हैं। जांच के दायरे में बिसेन के मंत्रित्वकाल में हुए ठेकों की भी जांच होनी चाहिए। साथ ही मुख्यमंत्री को इन्हें पद से बर्खास्त करना चाहिए। समरीते ने बिसेन के स्टाफ को भी कटघरे में खड़ा किया है।
-पारस जैन
वर्तमान स्कूल शिक्षा मंत्री पारस जैन जब पिछली सरकार में खाध एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री थे तब उनके खिलाफ भी एक 25 करोड़ के बड़े भूमि घोटाले को लेकर लोकायुक्त में प्रकरण दर्ज हुआ है। पारस जैन और उनके परिजनों पर दबाव डालकर नियम विरूद्व उज्जैन जिले में सीलिंग की सरकारी भूमि हथियाने का गंभीर आरोप लगा है। चिमनगंज 26 जुलाई 84 के अनुसार कस्बा उज्जैन की भूमि रकबा 1.786 हेक्टेयर तथा ग्राम पंडयाखेड़ी की भूमि सर्वे क्र. 6,8,9 व 7 पेकी 2.282 हेक्टेयर का कब्जा धारा 10 (6) के अंतर्गत दिनांक 11 सितम्बर 86 को लिया था। उक्त भूमि का बाजार मूल्य तकरीबन 25 करोड़ रूपए है। पारस जैन ने इन भूमियों के नाम पर राजनैतिक दबाव में कब्जा करके मोहनलाल जाट से फर्जी अनुबंध लेख दिनांक 20 मई 74 को करना बता कर तत्कालीन तहसीलदार नित्यानंद पांडे से उसका नामांतरण अपने नाम से भूमि स्वामी बतौर 26 सितंबर 2005 को करा लिया। साथ ही उन्होंने कस्बा उज्जैन की 1.787 हेक्टेयर भूमि पर भी कब्जा कर रखा है। इस भूमि घोटाले में मंत्री पारस जैन के अलावा उनकी पत्नी श्रीमती अंगूरबाला जैन, भाई विमलकुमार जैन, पूर्व राजस्व मंत्री कमल पटेल तथा तत्कालीन तहसीलदार नित्यानंद पांडे को आरोपी बनाया गया है।
-अजय विश्रोई
पूर्व मंत्री अजय विश्रोई भी हमेशा विवादों में रहे हैं। जब वे स्वास्थ्य मंत्री थे तब उनके खिलाफ 29अप्रैल 2008 को दवा खरीदी में घोटाला के मामले में लोकायुक्त में मामला दर्ज है। उसके बाद जब वे पिछली सरकार में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री थे तब उन पर आरोप लगा कि उन्होंने एक अफसर को पोस्टिंग देने के लिए एक बिचौलिए के जरिए उनकी पत्नी की मांग कर डाली। वक्फ बोर्ड कमेटी के पूर्व सीईओ डॉ. सैयद मुजाहिद हुसैन जैदी ने विश्नोई के खिलाफ व्यवहार न्यायाधीश वर्ग-2 की अदालत में इस आरोप का परिवाद पेश किया था। परिवाद में डॉ. हुसैन ने कहा था कि विभागीय मंत्री की मांग उनके बंगले में मौजूद शौकत खान नामक व्यक्ति के माध्यम से आई थी। डॉ. हुसैन ने इस मामले की शिकायत भाजपा के आला पदाधिकारियों को भी की। विश्नोई पर ये आरोप भी है कि अल्पसंख्यक कल्याण विभाग संभाल रहे विश्नोई का आदेश न मानने पर हुसैन को प्रताडि़त किया गया। वक्फ बोर्ड में मुख्य कार्यपालिक अधिकारी का दायित्व संभाल रहे सैय्यद मुजाहिद हुसैन जैदी का न केवल तबादला हुआ, बल्कि उनके खिलाफ विभागीय जांच भी करवाई गई। वेतन भी रोक लिया गया। इतना ही नहीं जिन लोगों ने जैदी की मदद की उन्हें भी प्रताडि़त किया गया।
-अर्चना चिटनीस
पूर्व शिक्षा मंत्री चिटनिस के खिलाफ अपने कार्यक्षेत्र के बाहर जाकर एक किताब को अनुदान देने और ब्लैकबोर्डो को काले से हरे रंग का किए जाने के मामले में लोकायुक्त में शिकायत दर्ज है। उन पर आरोप है कि प्रदेश स्तर पर ग्रीन बोर्ड पुतवाने में बड़ी गड़बड़ी हुई है। साथ ही एनसीईआरटी के नियमों को ताक पर रखकर आरएसएस से संबंधित संस्था की 'देवपुत्रÓ किताब खरीदा है। साथ ही इसे अगले 15 साल तक खरीदने के लिए करीब 13 करोड़ रुपए का अग्रिम भुगतान भी कर दिया गया है। मजेदार बात तो यह है कि मिडिल स्कूल स्तर की यह किताब प्राइमरी के बच्चों को उपलब्ध कराई गई। देवपुत्र के कारण ही एनसीईआरटी की बरखा सीरीज की उन किताबों को नकार दिया गया, जो वाकई उपयुक्त हैं। जिम्मेदारों का तर्क था कि देवपुत्र से पहली और दूसरी कक्षा के बच्चों में पढऩे और समझने की आदत बढ़ेगी। लेकिन हकीकत में ये व्यावसायिक मासिक पत्रिका है, जिसमें मध्यप्रदेश और छग सरकार के विज्ञापन छपे हैं। दरअसल 'देवपुत्रÓ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अनुषांगिक संगठन विद्या भारती से संबद्ध पत्रिका है। आरोप है कि पूर्व स्कूल शिक्षा विभाग की मंत्री अर्चना चिटनीस ने आरएसएस को उपकृत करने के लिए 'देवपुत्रÓ को स्कूलों के लिए खरीद लिया है। इस किताब के प्रकाशक एवं संपादक कृष्ण कुमार अष्ठाना हैं। अष्ठाना आरएसएस मालवा प्रांत के संघ चालक रहे हैं।
-राघव जी
प्रदेश के पूर्व मंत्री राघव जी पर अप्राकृतिक कृत्य का आरोप लगा है। इस कारण उनकी कुर्सी तो गई ही उन्हें जेल भी हुई और पार्टी से भी निकाल दिया गया। राघव जी पर उनके नौकर राजकुमार दांगी आरोप लगाया था। उसका आरोप था राघवजी ने उसे शराब कम्पनी सोम डिस्टलरी में नौकरी लगवा दी। वह मंडीदीप से आना जाना करता था, वह राघवजी के घर जाता तो वह उससे हाथ पैर दबवाते, उसके बाद गुप्तांगों पर मालिश करवाते और अप्राकृतिक कृत्य भी करते। राजकुमार का आरोप है कि राघवजी उसे लगातार नौकरी का प्रलोभन देते रहे, इतना ही नहीं अपनी कारगुजारियों को उजागर करने पर जान से मारने की धमकी देते थे। यही कारण रहा कि वह चाहकर भी राघवजी के कारनामे उजागर नहीं कर पाया। लगभग साढ़े तीन साल तक यह सिलसिला चला। राजकुमार का आरोप है कि राघवजी उससे लगातार नई-नई लड़कियां लाने और दोस्ती कराने की बात कहते थे और भरोसा दिलाते थे कि जो काम कहोगे करा देंगे। वे अश्लील बातें भी करते थे और एसएमएस भी। इसके अलावा उनके कई महिलाओं व नए लड़कों से भी सम्बंध हैं। वे यह सब वर्षों से करते आ रहे हैं। इस मामले के उजागर होने के बाद प्रदेश में जमकर बवाल मचा था।
-नागेंद्र सिंह
पूर्व मंत्री और वर्तमान सांसद नागेंद्र सिंह पर आरोप है कि लोक निर्माण मंत्री रहते उन्होंने विभाग में तीन अधीक्षण यंत्रियों को मुख्य अभियंता पद पर पदोन्नति में नियमों की अवहेलना कर करोड़ों रूपयों का लेन-देन किया था। यह आरोप पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने लगाया था। आरोपा है कि 19 सितम्बर 2013 को लोक निर्माण विभाग ने अधीक्षण यंत्री के पद पर पदस्थ जी.पी. कटारे, पी.के. श्रीवास्तव एवं जी.पी. मेहरा को मुख्य अभियंता के पद पर पदोन्नति के आदेश जारी किया जिसमें से जिन दो अधिकारियों की सी.आर. प्रमुख सचिव लोक निर्माण के.के. सिंह ने इनके प्रतिकूल काम-काज के चलते ''क'' प्लस से ''क'' कर दी थी, उसे लोक निर्माण मंत्री ने नियम विरूद्ध ''क'' प्लस करके उन्हें पदोन्नति दिला दी। इन पदों के लिए डी.पी.सी. उस समय की गई जब प्रमुख सचिव लोक निर्माण प्रशिक्षण पर गए हुए थे। आचार संहिता लगने से पहले ताबड़तोड़ विभाग के उच्च पदों के लिए जो डी.पी.सी. की गई उसमें न प्रमुख सचिव उपस्थित थे और न ही विभाग के उपसचिव थे। विभाग के उपसचिव को भी जिस दिन डी.पी.सी. थी उस दिन उन्हें छुट्टी पर भेज दिया गया। डी.पी.सी. में शासन की तरफ से विभाग के ओर से अंडर सेकेट्री ने प्रतिनिधित्व किया। नियमानुसार मंत्री को अधीक्षण यंत्री की सी.आर. लिखने की भी पात्रता नहीं है। यही नहीं पूर्व मंत्री ने अपने चहेते अधिकारियों को एप्को और मंडी बोर्ड में मुख्य अभियंता के रिक्त पदेां के विरूद्ध पदोन्नति दिलाई।
-कमल पटेल
दुर्गेश हत्याकांड के चलते अपना मंत्री पद गंवाने वाले कमल पटेल को जेल में भी रहना पड़ा। मार्च 2008 में हरदा जिले के देवतालाब इलाके में पूर्व मंत्री पटेल के बेटे सुदीप का कांग्रेस नेता राजेंद्र पटेल से विवाद हुआ था, जिसमें गोलीबारी हुई थी। इस गोलीबारी में सुदीप का साथी दुर्गेश जाट घायल हुआ था। उसके बाद से दुर्गेश का कोई पता नहीं है। उच्च न्यायालय के आदेश पर सीबीआई इस मामले की जांच कर रही। जांच में सीबीआई ने पाया कि दुर्गेश को घायल होने के बाद अस्पताल न ले जाकर पटेल के बंगले पर ले जाया गया, जहां उसकी मौत हो गई। बाद में शव को नष्ट कर दिया गया। इतना ही नहीं राजेंद्र पटेल के घर हमला करने और घायल दुर्गेश को लाने में जिस वाहन का उपयोग किया गया था, उसके कलपुर्जे और पर्दे बदल दिए गए। इसमें पूर्व मंत्री शामिल रहे। इसी आधार पर उनकी गिरफ्तारी सीबीआई ने की थी। इस मामले में जैसे-तैसे बाहर आए कमल पटेल पर लोकायुक्त में भी एक मामला दर्ज हो गया है। उज्जैन में कथित तौर पर फर्जी तरीके से सीलिंग की जमीन को बंधन मुक्त कराकर दूसरे के नाम कराए जाने के मामले में लोकायुक्त ने तत्कालीन राजस्व मंत्री कमल पटेल के खिलाफ की गई शिकायत दर्ज कर ली है। लोकायुक्त से की गई शिकायत में कहा गया है कि पूर्व राजस्व मंत्री कमल पटेल के कारण मंत्री पारस जैन ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर ग्राम पांडयाखेड़ी और उज्जैन कस्बे की लगभग 4000 हेक्टेयर भूमि को किसान मोहनलाल जाट से वर्ष 1974 में अनुबंध होना बताकर वर्ष 2005 में तत्कालीन तहसीलदार डॉ. नित्यानंदन पांडे से नामांतरण करवा लिया। सरकारी से निजी घोषित की गई जमीन मंत्री जैन की पत्नी व भाई के नाम हो गई है। शिकायत में बताया गया है कि यह जमीन शासन ने धारा 10 (छह) के तहत 1984 में ही अपने कब्जे में ले ली थी। भूपेंद्र दलाल की ओर से की गई शिकायत में साफ कहा गया है कि उज्जैन के तत्कालीन जिलाधिकारी ने भी इस जमीन को सरकारी जमीन माना था, मगर मंत्री ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर तत्कालीन तहसीलदार से मिली भगत कर जमीन को अपनी पत्नी व भाई के नाम करवा लिया।
शिवराज का जीरो टालरेंस दिखावा
कांग्रेस का आरोप है कि भ्रष्टाचार के मामले में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान जनता के सामने एलान कर चुके है कि वह जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाएंगे लेकिन देखने में यह आ रहा है कि वह खुद भ्रष्टाचारियों के सरताज बनते हुए दिखाई दे रहे है। उनके मंत्रिमंडल में कई ऐसे दागी चेहरे है जिनके लिए लोकायुक्त बरसों से कार्रवाई के लिए राज्य सरकार से अनुमति मांग रहा है और सरकार है कि इन भ्रष्ट मंत्रियों की ढाल बनी हुई है। लोकायुक्त कई बार अपना दर्द सार्वजनिक कर चुके है। शिवराज में मंत्री और पूर्व मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले लोकायुक्त में कई सालों से लटके हैं। हैरानी की बात ये है कि कुछ मंत्रियों के खिलाफ जांच इसलिए आगे नहीं बढ़ पा रही है, क्योंकि राज्य सरकार जरुरी कागजात ही मुहैया नहीं कराती। ऐसे में सवाल ये पैदा होता है अगर राज्य सरकारें इच्छा शक्ति नहीं दिखाएंगी तो अकेला लोकायुक्त भ्रष्टाचार खत्म कैसे कर देगा। शिवराज के मंत्रियों के खिलाफ लोकायुक्त की जांच कछुए की चाल क्यों चलती रही इस सवाल का जवाब लोकायुक्त पीपी नावेलकर के बयान में ही छुपा है। लोकायुक्त की टीम कुछ मंत्रियों के खिलाफ जांच इसलिए पूरी नहीं कर पा रही है क्योंकि सरकारी विभाग इस मामले से जुड़े कागजात ही नहीं दे पा रहे हैं। शिवराज से उनके मंत्रियों के खिलाफ लोकायुक्त में चल रहे मामलों पर जीरो टॉलरेंस कहकर अपना पल्ला झाडऩे में लगे हुए है। तो अब सवाल ये है कि आखिर परिणाम आएगा कैसे। अगर जांच के लिए जरुरी कागजात ही लोकायुक्त को नहीं मिलेंगे तो जांच आगे बढ़ेगी कैसे।
भाजपा के घोटालों की लंबी फैहरिस्त
काग्रेस द्वारा पूर्व मंत्री नागेन्द्र सिंह के भतीजों द्वारा मनरेगा में तीस करोड़ रूपये का घोटाला, बिना टेंडर की बिजली खरीदी में बत्तीस हजार एक सौ नौ करोड़ रूपये का घोटाला, समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदी में सवा तीन करोड़ रुपये का घोटाला, पिछले तीन साल में पड़े छापों में एक हजार इकत्तीस करोड़ रुपये की काली कमाई, लोक निर्माण विभाग में बीस करोड़ का घोटाला, कुपोषण दूर करने के नाम पर छ: सौ करोड़ रुपये का घोटाला, अवैध उत्खनन कर पचास हजार करोड़ की काली कमाई, सरकारी खजाने में 50 हजार करोड़ की हेराफेरी, दीनदयाल उपचार योजना में पैंसठ करोड़ रुपये का घोटाला, स्वास्थ्य विभाग में पांच सौ करोड़ का दवा घोटाला, किसानों की कर्ज माफी में एक सौ आठ करोड़ रूपये का घोटाला, जल संसाधन विभाग में नियम विरुद्ध टेंडर मंजूर करने में पांच हजार करोड़ रुपये का घोटाला, मुख्यमंत्री के स्वेच्छानुदान में छियात्तर करोड़ रुपये का घोटाला, गेमन इंडिया को सरकारी जमीन देने में पांच हजार दो सौ पचास करोड़ रुपये का घोटाला, तेंदूपत्ता बोनस वितरण में दो सौ साठ करोड़ रुपये का घोटाला, देवपुत्र और ब्लेक बोर्ड पुताई में पच्चीस करोड़ रुपये घोटाले के साथ ही चुनाव के मात्र एक हफ्ते पूर्व पंचायत विभाग में एक हजार करोड़ घोटाला करने का आरोप भाजपा पर लगाया गया है। साथ ही मुख्यमंत्री की पत्नी द्वारा विदिशा में अवैध रूप से गोदाम बनाने, डम्पर के नाम पर भ्रष्ट कमाई करने, मुख्यमंत्री के साले और भतीजे द्वारा नियम विरुद्ध ठेकेदारी का पंजीयन कराने, साले द्वारा कौडिय़ों के मोल लाखों का बंगला खरीदने गृह निर्माण सोसायटी के अवैधानिक रुप से लोगों के प्लाट हड़पने और बुधनी में मुख्यमंत्री के भाई, भतीजों द्वारा आदिवासियों एवं अनुसूचित जाति के लोगों की जमीन जबरन खरीदने का आरोप लगाया गया है।

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