गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011
टीम भूरिया में टसन
विनोद उपाध्याय
मध्य प्रदेश में दो साल पहले की सत्ता का संग्राम शुरू हो गया है। प्रदेश में पहली बार करीब 8 साल तक सत्ता से दूर रहने के कारण कांग्रेस में सत्ता हथियाने की ललक देखी जा रही है। लेकिन प्रदेश में भाजपा की स्थापित सरकार को हटाने का सपना देख रही कांग्रेस आलाकमान ने छह महीने के इंतजार के बाद प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया को जो टीम दी है उसको लेकर बवाल मचा हुआ है। आलम यह है कि जिन नेताओं को भाजपा से लडऩा था वे अपने में ही जूझ रहे हैं।
कागज ही नहीं धरातल पर भी कांग्रेस से कई गुना मजबूत भाजपा से मुकाबला करने कांतिलाल भूरिया को जो टीम मिली है उसमें 11 उपाध्यक्ष, 16 महामंत्री और 48 सचिव बनाए गए हैं। कहा जा रहा है कि मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी में पहली बार कांतिलाल भूरिया ने बरसों पुरानी चली आ रही परिपाटी को बदलने की हिम्मत जुटाकर ज्यादातर युवाओं को अपनी टीम का हिस्सा बनाया है, जिनमें कुछ तो काम के हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश नाम कांगे्रसियों के लिए संभवत: एकदम नए हैं। चूंकि भूरिया को काम इन्हीं से चलाना पड़ेगा, लिहाजा उन्हें इन्हीं चेहरों को काम वाला बनाना पड़ेगा। मिशन-2013 के लिए भूरिया को कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह, केंद्रीय मंत्री द्वय कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, वरिष्ठ नेता सुरेश पचौरी जैसे नेताओं को साथ रखना अनिवार्य होगा। यानी यवाओं के नाम पर भले ही भूरिया को नई टीम सौंप दी गई है लेकिन काम दिग्गजों को ही करना होगा। लेकिन कार्यकारिणी में अपने समर्थकों की उपेक्षा होने के कारण ये नेता भूरिया का साथ देंगे या नहीं यह शोध का विषय है।
कांग्रेस की कार्यकारिणी घोषित होने के बाद अनेक पार्टीजनों में पैदा असंतोष दूर होने का नाम नहीं ले रहा है। केंद्रीय नेताओं को चि_ियां लिखी जा रही हैं और राजधानी भोपाल में पर्चेबाजी हो रही है। कई तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं। अपनी वरिष्ठता के मुताबिक पद नहीं मिलने से नाराज कुछ पदाधिकारी कांग्रेस दफ्तर में फटक तक नहीं रहे। उन्हें दिलासा दिया जा रहा है कि सूची में जल्द संशोधन होगा। हालांकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया की तरफ से इस तरह के कोई संकेत नहीं दिए जा रहे हैं। भूरिया छह माह पहले अप्रैल में प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष मनोनीत किए गए थे। उनकी टीम बनते-बनते छह माह का वक्त लग गया। उम्मीद की जा रही थी कि गुटीय न सही मगर क्षेत्रीयता और वरिष्ठता के लिहाज से पदाधिकारियों की सूची संतुलित होगी, मगर ऐसा नहीं हो पाया। पदाधिकारियों, विशेष आमंत्रित सदस्यों और अन्य समितियों में समायोजित किए गए कुछ चेहरे तो ऐसे हैं, जो वर्षो से घर बैठे थे। ऐसा लगता है कि उन्हें झाड़-फूंक के पद दे दिया गया है।
प्रदेश में अन्य कांग्रेसी नेता भूरिया का साथ दे या न दे दिग्विजय सिंह का उन्हें भरपूर सहयोग मिलेगा। इस बात का संकेत इससे भी मिलता है कि नवगठित प्रदेश कांग्रेस कार्यकारिणी में अधिकतर दिग्विजय समर्थकों का ही दबदबा है। एक तरफ जहां पार्टी के तीन प्रमुख पदों पर दिग्विजय समर्थकों का कब्जा है वहीं नवगठित कार्यकारिणी में उनके समर्थकों की भरमार है। वहीं जिला इकाइयां भी दिग्विजय सिंह समर्थकों की मु_ी में हैं। राज्य के अन्य प्रमुख नेता केंद्रीय मंत्री कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थकों को अहम जिम्मेदारी दिलाने में कामयाब नहीं हो पाए हैं। असंतोष की आवाज प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया के जिले और नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के करीबी लोगों से आई है। सचिव बनाए गए रतलाम के राजेंद्र सिंह गेहलोत ने पद लेने से इंकार कर दिया है। भूरिया रतलाम के सांसद हैं। प्रदेश कांग्रेस सेवादल के अध्यक्ष और कांग्रेस कमेटी के सचिव रहे गेहलोत को भूरिया ने महासचिव बनाने का वादा किया था, लेकिन दिल्ली से जो सूची आयी उसमें गेहलोत सचिव बनाए गए। इससे दुखी गेहलोत ने भूरिया को फोन कर सचिव का पद लेने से इंकार कर दिया है। यही हाल सचिव बने महेंद्र सिंह चौहान का है। वे नेता प्रतिपक्ष सिंह के करीबी हैं। उन्हें भी महासचिव या उपाध्यक्ष बनने की आस थी, लेकिन वे भी इस पद को लेने से मान कर रहे हैं। उनके साथ छात्र राजनीति करने वाले कई नेता महासचिव और उपाध्यक्ष बनाए गए जबकि चौहान को सचिव बना कर संतुष्ट करने का प्रयास किया गया।
नए पदाधिकारियों में से कुछ नाम ऐसे हैं, जिनकी पहचान का संकट मीडिया में ही नहीं, पार्टी में भी है। मसलन भोपाल की तनिमा दत्ता को महासचिव बनाया गया है। उन्हें भोपाल जिला कांग्रेस में कोई पहचानता नहीं है। प्रबंध समिति के साथ उन्हें प्रवक्ता भी बनाया गया है। बताया जाता है कि वे युवक कांग्रेस नेता रहे अश्विनी श्रीवास्तव की नजदीकी रिश्तेदार हैं। उन्हें कैप्टन जयपाल सिंह ने भूरिया से मिलवाया था। दत्ता तो महासचिव बन गई, लेकिन गृहमंत्री रहे कैप्टन को कुछ नहीं मिला है। मगर अब तक प्रदेश कार्यालय में संगठन का कागजी काम देखते रहे केप्टन जयपाल सिंह की क्या भूमिका रहेगी, यह स्पष्ट नहीं किया गया है। वह अब तक महामंत्री का दायित्व निभा रहे थे। अंग्रेजी ज्ञान अच्छा होने के कारण पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सुरेश पचौरी ने भी उन्हें अपनी टीम में बरकरार रखा था। बल्कि उनकी गिनती पचौरी के निकटतम सिपहसालारों में होने लगी थी। उन्हें तत्कालीन अध्यक्ष सुभाष यादव ने प्रदेश कांग्रेस दफ्तर में जगह दी थी। इसी तरह भूरिया के नजदीकी शांतिलाल पडिय़ार का नाम भी नहीं है। पडिय़ार अब तक प्रभारी महामंत्री की भूमिका में काम कर रहे थे। भूरिया ने अपने दौरों का काम देखने के लिए भोपाल के जिस संजय दुबे को कांग्रेस दफ्तर में टेबिल कुर्सी मुहैया कराई थी, वह भी सूची से नदारद हैं। देखा जाए तो भूरिया की कोर टीम में से सिर्फ प्रमोद गुगालिया ही एकमात्र ऐसे शख्स हैं, जिन्हें प्रवक्ता बनने में कामयाबी मिल सकी है। यह अलग बता है कि भूरिया ने अध्यक्ष बनते ही उनको मीडिया प्रभारी बनाया था। बहरहाल ऐसा क्यों हुआ, इसके कारण तलाशे जा रहे हैं।
भोपाल में केरोसिन का कारोबार करने वाले अब्दुल रज्जाक और निजामुद्दीन अंसारी चांद को सचिव बनाया गया है। रज्जाक के बारे में कहा जाता है कि वे भूरिया को चेहरा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे, यहां तक कि भूरिया की यात्राओं के दौरान वे साथ रहने की गरज से रेल या प्लेन का टिकट लेने से भी नहीं हिचकते थे। चांद और ईश्वर सिंह चौहान पिछले चुनावों में कांग्रेस की खिलाफत कर चुके हैं। यही स्थिति एक अन्य महामंत्री जीएम राईन भूरे पहलवान को लेकर है। नई सूची में पदाधिकारी बने एक नेता ने कहा, आपकी तरह हमारे लिए भी ये दोनों नाम खोज का विषय हैं। प्रदेश सचिव बने रज्जी जॉन और जैरी पॉल के मामले में भी ऐसी ही स्थिति है। कांग्रेसी ही सवाल कर रहे हैं कि कौन हैं ये लोग? प्रभारी महासचिव और मुख्य प्रवक्ता रह चुके मानक की 2009 लोकसभा चुनाव के बाद कार्यालय में वापसी हुई है।
उधर उज्जैन से सासद प्रेमचंद गुड्डïू ने भूरिया के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। भूरिया से नाराज कई नेता गुड्डïू से जुड़ गए हैं। भूरिया के प्रदेश कार्यकारिणी बनाने के बाद गुपचुप बैठकों के दौर तो शुरू हो गए थे। मगर अब जल्दी ही खुलकर बगावत के आसार बन रहे हैं। कभी कमलनाथ के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले गुड्डïू के घर कमलनाथ समर्थक भी पहुंच रहे हैं। गुड्डïू ने भी नाराज काग्रेसियों से बात करना शुरू कर दिया है। मालवा-निमाड़ के सभी दिग्गज भूरिया के फैसले से नाराज तो थे, मगर विरोध करने की पहल से बच रहे थे। मगर खुद के समर्थकों को दरकिनार करने के बाद गुड्डïू ने भूरिया विरोध की कमान संभाल ली है। बताया जा रहा है कि कमलनाथ के विरोध के कारण जो सज्जन सिंह वर्मा कभी गुडू से खार खाते थे वो भी गुड्डïू के साथ जा खड़े हुए हैं। कांग्रेस नेता पंकज संघवी, विधायक अश्र्विन जोशी भी गुड्डïू के साथ भूरिया विरोध की तैयारियों में जुट गये हैं। वहीं महेश जोशी, शोभा ओझा, सत्यनारायण पटेल की भी गुड्डïू से इस सम्बन्ध में बात हुई है। गुड्डïू सिंधिया खेमे के विरोधी माने जाते हैं। मगर जिन सिंधिया समर्थकों को घर बैठा दिया गया है वो भी गुड्डïू से हाथ मिलाने के लिये तैयार हैं। माना जा रहा है कि आने वाला वक्त भूरिया और प्रदेश काग्रेस के लिए सुकून भरा नहीं होगा।
सबसे ज्यादा हैरानी बुंदेलखंड की स्थिति को लेकर है। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने बुंदेलखंड के पिछड़ेपन को दूर करने केंद्र सरकार से अड़तीस सौ करोड़ रुपये का विशेष पैकेज तो दिला दिया, मगर जब पार्टी संगठन में इलाके को प्रतिनिधित्व देने का मौका आया तो धेला नहीं मिला। प्रदेश पदाधिकारियों की 75 लोगों की सूची में से सिर्फ पांच नाम बुंदेलखंड से हैं। यदि प्रवक्ता को भी जोड़ लिया जाए तो यह संख्या छह हो जाती है। इसमें भी वरिष्ठता का ख्याल नहीं रखा गया। बुंदेलखंड में छह जिले हैं। मगर सभी को तरजीह देने के बजाए दमोह और सागर से पांच नाम ले लिये गए। दमोह की हटा तहसील से दो लोगों को शामिल किया गया है। दिग्विजय सिंह के मंत्रिमंडल में रहे राजा पटेरिया को प्रवक्ता जैसा मामूली पद दिया गया, जबकि उनसे बहुत जूनियर मनीषा दुबे महामंत्री बना दी गई। दोनों ही ब्राह्मंाण हैं। सागर जिले की बात करें तो बीना के अरुणोदय चौबे उपाध्यक्ष और राजेन्द्र सिंह ठाकुर सचिव बनाए गए हैं।
तीन लोकसभा और 23 विधानसभा क्षेत्र वाले इस इलाके में जातीय समीकरणों का हमेशा महत्व रहा है। मगर कांग्रेस की सूची में इसका भी ख्याल नहीं किया गया। वोटों में भागीदारी के लिहाज से देखें तो लगभग 30 प्रतिशत अनुसूचित जाति, 28 प्रतिशत ओबीसी, पांच फीसदी ब्राह्मंाण, पांच प्रतिशत ठाकुर, चार प्रतिशत मुस्लिम सहित अन्य अल्पसंख्यक, 15 प्रतिशत आदिवासी और बारह प्रतिशत वैश्य समाज है। मगर दलित, आदिवासी, ओबीसी और वैश्य कांग्रेस की सूची में जगह बनाने में कामयाब नहीं हो सके।
सूत्रों का कहना है कि बुंदेलखंड में कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की दिलचस्पी के कारण इलाके के कांग्रेसी इस उम्मीद में हैं कि इस विसंगति की तरफ उनका ध्यान जाएगा तो सूची में सुधार जरूर होगा। जानकारों का कहना है कि इसके पूर्व सुरेश पचौरी के कार्यकाल में बुंदेलखंड से ग्यारह पदाधिकारी थे। भूरिया तो पुराने आंकड़े को ही बरकरार नहीं रख पाए। बहरहाल, कांग्रेसजन किसी तरह राहुल के पास वस्तुस्थिति पहुंचाने में लगे हैं ताकि इस पिछड़े इलाके की भलाई के लिए उन्होंने प्रधानमंत्री से विशेष पैकेज दिलवाने में जो भावना दिखाई, उसकी एक झलक कांग्रेस की लिस्ट में भी दिखाई पड़े।
प्रदेश कांग्रेस कमेटी को लेकर भले ही कांग्रेसी हल्ला मचा रहे हो, लेकिन कप्तान भूरिया तो गदगद हैं और वे गर्व से कह रहे है कि इससे अच्छी कार्यकारिणी नहीं बन सकती थी। कांतिलाल भूरिया से जब उनकी टीम को लेकर बात की, तो कहने लगे कि आम कांग्रेसी खुश है। मैंने सबको जगह देने की कोशिश की है। पहली 33 फीसदी महिलाओं को पद दिए हैं। जब उनसे कहा कि टीम का तो विरोध हो रहा है? तो वे बोले - किस बात का विरोध? सभी नेताओं से बात की थी। बड़े नेताओं से नाम लिए थे, जो पंद्रह-बीस साल से काम कर रहे हैं, उनको भी भाव दिया है, सीनियर नेताओं को अनुभव के लिए साथ में रखा। युवाओं को दौडऩे के लिए बनाया। उन महिला नेत्रियों को मौका दिया, जो पहले से महिला कांग्रेस में काम कर रही थी। पार्षद, विधायक और जिला पंचायत प्रतिनिधि रही।
नए चेहरों के पास अनुभव की कमी है, तो अनुभवियों के पास कोई अधिकृत पद नहीं है, ऐसी स्थिति में अब प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष पर ये लोग दवाब बढ़ा सकते हैं। जानकारों का कहना है कि कांगे्रस ने बरसों बाद उन कांगे्रसियों की भी सुध ली है, जो हासिए पर थे। युवा कंधों पर बूढ़ी कांगे्रस का भार मिशन-2013 में कांगे्रस को कितनी मजबूती दे पाता है, यह तो आने वाला वक्त बताएगा, मगर सबसे खास यह होगा कि कांगे्रस अध्यक्ष भूरिया को अब इन्हीं नए और गैरअनुभवी चेहरों के अनुभव को बढ़ाते हुए इस चुनावी रणभूमि में जंग के लिए उतरना होगा।
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