मंगलवार, 11 अक्तूबर 2011
2जी में डूबा 4जी का सपना
विनोद उपाध्याय
कभी-कभी ऐतिहासिक पात्र किस तरह वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिक होकर भविष्य की इबारत तय करते हैैं इसे सन 1735 में दिल्ली में कत्लेआम मचाकर उसे लूटने वाले नादिरशाह के उदाहरण से समझा जा सकता है... नादिर शाह ने सिर्फ दिल्ली लूटी थी और मुगलिया सल्तनत के प्रतीक तख्ते-ताउस को लूटकर ईरान ले गया था लेकिन दिल्ली की गद्दी पर बैठे सोनिया गांधी के नादिरशाहों ने तो पूरे देश को दिल्ली समझकर जिस तरह लूट-खसोट का कत्लेआम मचाया है उसने कांग्रेस के तख्तो ताज के लुट जाने की नींव रख दी है।
सेकेंड जनरेशन 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले सहित कई दूसरे घोटालों ने जनता के विश्वास को खोदकर इतनी गहरी खाई बना दी है कि उसमें न सिर्फ कांग्रेस के दफन होने की इबारत लिख दी हैै बल्कि नेहरू, इंदिरा, राजीव के बाद फोर्थ जनरेशन (4जी) का प्रतिनिधित्व कर रहे राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने का सपना 2जी घोटाले की खाई में दफन होना तय है। कांग्रेस के 4जी यानी राहुल की ताजपोशी का सपना लिए शतरंजी चालें चल रहीं राजमाता (सोनिया गांधी) और उनके दिग्गज - दिग्विजय सिंह, अहमद पटेल जैसे सिपहसालार जब मीडिया मैनेजमेंट के साथ राजकुमार की इमेज गढऩे की तैयारी में भट्टा परसौल से लेकर बुंदेलखंड के बुधिया की खाट पर रात बिताने की स्क्रिप्ट लिखते रहे और इधर ए राजा, कनिमोझी, मारन, चिदंबरम् जैसे लोगों की करतूतें कांग्रेस की खटिया उलाट करने की इबारत लिखती रहीं। भटï्टा परसौल में राख के ढेर से 4जी याने राहुल के लिए राजनीतिक फायदे का जिन्न भले ही न जागा हो लेकिन जैसा कि मोबाइल तरंगों की प्रकृति है, उसी तर्ज पर अलीबाबा और उनके 67 चोरों वाली मंडली की करतूतें जरूर देश के कोने-कोने में मोबाइल सिग्रल से ज्यादा तेजी से फैलाकर जनता को जगाने में जरूर कामयाब हो गई है।
जब कांग्रेस का राजकुमार मीडिया मैनेजमेंट के साथ उत्तर प्रदेश के बांदा में बलात्कार पीडि़ता के घर जाकर उसे न्याय दिलाने की नौटंकी कर रहा था उसी समय कांग्रेस की यूपीए सरकार के फरमाबरदार देश के खजाने के साथ सामूहिक बलात्कार में जुटे हुए थे। आखिरकार पाप के घड़ों को एक न एक दिन फूटना ही था, सो अब भ्रष्टïाचार के मवाद से भरे घड़े एक-एक कर फूटना शुरू हो गये हंै... इसी सड़ांध से राजमाता से लेकर राजकुमार तक का दामन बदबू से सराबोर हो चुका है... जनता जानती है कि देश की सत्ता से कांग्रेस के कपड़े को उतार फेंकना स्थाई हल भले ही न हो लेकिन तात्कालिक राहत तो मिल ही जाएगी।
2जी घोटाले के चलते देश में बनते जा रहे इसी जनमानस के जलजले में 4जी यानी नेहरू की विरासत के फोर्थ जनरेशन के दावेदार राहुल गांधी के सपनों का भी जलना तय है। दिल्ली का ताज 2जी लुट चुका है और 4जी के पास बची सिर्फ हसरत। सोनिया की भ्रष्टाचारियों पर चुप्पी और मनमोहन की कायरता की चादर ओढ़े ईमानदारी तो राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने के सपनों को दफन करने के लिए जिम्मेदार है ही उससे कहीं ज्यादा जिम्मेदार है उनके राजनीतिक सिपहसालार। विचारक मेकियावेली ने अपनी प्रसिद्घ किताब 'द पॉलिटिक्सÓ में कहा हैै कि राजा की सफलता उसके राजनीतिक सलाहकारों को चुनने की क्षमता में निहित होती है। 2जी घोटाले की गहराई को कम आंकना अब महंगा पड़ रहा है। राजनैतिक सलाहकार अन्ना के आंदोलन के समय नेतृत्व विहीन युवा के सामने राहुल का विकल्प खड़ा करने में असफल रहे। वे अन्ना की बाल सुलभ मुस्कान का मुकाबला मनीष तिवारी, कपिल सिब्बल, दिग्विजय सिंह जैसे लोगों की कुटिलता से करने की रणनीति चलाते रहे, नतीजा सामने है, आज अन्ना हीरो है और कांग्रेस जीरो।
जानकारों की मानें तो सोनिया गांधी जिस मंशा से प्रधानमंत्री पद का त्याग कर नेहरू-गांधी परिवार की 4जी यानी चौथी पीढ़ी के युवराज राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की रणनीति के तहत अराजनीतिक व्यक्ति मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनवाया था उनका वही हथियार यूपीए सरकार के लिए परेशानी का सबब बन गया है। यूपीए के पहले कार्यकाल में परदे के पीछे से सत्ता चलाने की कांग्रेस की तरकीब काम कर गयी थी, लेकिन अब यही ताकत उसकी बड़ी कमजोरी बन गयी है। मौजूदा यूपीए सरकार 2जी के बवंडर में दिन-ब-दिन घिरती जा रही है। सरकार की साख दांव पर है। सरकार आज जिस दोराहे पर खड़ी दिख रही है, वह उसके मंत्रियों के बीच आंतरिक मतभेद के कारण है। सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों के बीच खींचतान से मंत्रिमंडल की सामूहिक जिम्मेदारी की नीति पर सवाल खड़ा हो गया है। मंत्रियों की इस करतूत के बीच प्रधानमंत्री असहाय दिख रहे हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार सामूहिक जिम्मेदारी की नीति से चलती है और उसका नेतृत्व प्रधानमंत्री करता है। लेकिन 2जी मामले में नित नये खुलासों से प्रधानमंत्री की भूमिका भी संदेहास्पद हो गयी है।
सरकार में शामिल मंत्रियों ने पद का दुरुपयोग कर सरकारी राजस्व को नुकसान पहुंचाया है। यह काम मंत्री रहते हुए किया गया। मंत्रियों को इतना अधिकार नहीं होता है कि नीति संबंधी फ़ैसले वे अपनी मर्जी से कर सकें। इससे जाहिर होता है कि 2जी मामले में जो भी फ़ैसले लिये गये, उसकी जानकारी प्रधानमंत्री को भी हर स्तर पर रही होगी। 2जी के लाइसेंस देने की प्रक्रिया में संचार मंत्री, वित्त मंत्री से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक शामिल रहा है। ऐसे में अगर चिदंबरम पर सवाल उठता है तो इसकी आंच प्रधानमंत्री तक पहुंचना तय है। इसमें चिदंबरम ही नहीं, प्रधानमंत्री की भी जिम्मेदारी बनती है। किसी मंत्री पर निगरानी रखने का काम उसके मुखिया का होता है। लेकिन प्रधानमंत्री अपने मंत्रियों के कुकृत्य पर निगरानी रखने में असफ़ल रहे। यह मौजूदा राजनीतिक स्थिति की सबसे बड़ी विडंबना है कि क्षेत्रीय दल अपने राजनीतिक हैसियत के लिहाज से मंत्रालय पाते हैं और फिऱ अपनी मर्जी से नीतियों का निर्धारण करते हैं। सरकार मुखिया गठबंधन की आड़ में मंत्रियों की करतूतों से अनजान बनी रहती है। यह देश के लिए दु:खद और विकट स्थिति है।
यूपीए सरकार में पहले भी कई दागी मंत्री शामिल रहे हैं। सांसद शिबू सोरेन भी मनमोहन कैबिनेट में कोयला मंत्री रह चुके हैं। उन पर जो आरोप लगे थे वे उनके मंत्री बनने से पहले के थे। लेकिन राजा ने मंत्री रहते 2जी के लाइसेंस अपनी मर्जी से बांटे। इसकी जानकारी होने के बावजूद उन्हें दोबारा वही मंत्रालय सौंप दिया गया। राजा की इस करतूत का पर्दाफ़ाश प्रधानमंत्री ने नहीं, बल्कि जांच एजेंसियों ने किया। मंत्री पद और गोपनीयता की शपथ सरकारी कामकाज के निर्वहन के लिए लेता है, और यदि वह इस मर्यादा को अपने फ़ायदे के लिए ताक पर रखने लगे तो प्रधानमंत्री को उस पर निगरानी रखनी चाहिए।
हालिया घटनाक्रम का दूसरा पहलू यह है कि मनमोहन सिंह राजनीतिक व्यक्ति नहीं हैं। कांग्रेस में कई कद्दावर नेताओं को दरकिनार कर उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठाया गया है। उनकी पहली ताजपोशी के पीछे कई कारण रहे थे। लेकिन दोबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद उम्मीद थी कि वे राजनीतिक नेता का कद हासिल करने में सफ़ल रहेंगे। परंतु अब उनकी सबसे बड़ी पूंजी व्यक्तिगत ईमानदारी ही सवालों के घेरे में आ गयी है। कांग्रेस के कद्दावर नेता शुरू से ही उनका नेतृत्व मन से स्वीकार नहीं कर रहे थे। यही कारण है कि मनमोहन सिंह को अब तक के सबसे सफल प्रधानमंत्री होने का तमगा मिलने के बाद भी 10 जनपथ के नेता राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की वकालत करते फिरते थे।
राजनतिक विश£ेषकों का कहना है कि 2जी घोटाला अन्य बड़े घोटालों की तरह फाइलों में दब कर रह जाता लेकिन जिस तरह 10 जनपथिया नेताओं ने पार्टी में अनुभवी और योग्य नेताओं को आहत करते हुए राहुल गांधी में एक योग्य प्रधानमंत्री की छवि देखकर उन्हें प्रधानमंत्री बनाने की लॉबिंग कर रहे थे उससे इस घोटाले की परतें एक-एक करके खुलने लगी और आज स्थिति यह है कि नेहरू-गांधी परिवार की फोर्थ जनरेशन का प्रधानमंत्री बनने का सपना धूमिल होता नजर आ रहा है।
धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि अन्याय, अत्याचार जैसे पाप कर्म का विरोध करना प्रत्येक व्यक्ति का परम धर्म है। यदि राजा या प्रशासक किसी के दबाव या भय से अन्याय करने वालों की अनदेखी करता है, तो वह भी उस पाप का भागी माना जाता है। शास्त्रों की इन पंक्तियों की नजर से अगर केंद्र की कांग्रेसनीत संप्रग सरकार को देखें तो पूरी की पूरी सरकार पाप की पूर्ण भागीदार है और इस सरकार का सबसे बड़ा पाप है भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना। संप्रग सरकार के काल में सार्वजनिक धन की जिस तरह लूट मची उसकी परतें अब प्याज के छिलकों की तरह उघड़ती जा रही हैं। जिसके कारण सरकार संकट में है। उधर संकटग्रस्त सरकार के लिए सबसे बड़ी परेशानी यह है कि अब तक जो व्यक्ति (प्रणव मुखर्जी) संकटमोचक था वही संकट का कारण बन गया है। उधर आईपीएल, राष्ट्रमंडल खेल, 2जी स्पेक्ट्रम, सेटेलाइट स्पेक्ट्रम, आदर्श सोसाइटी घोटाला, केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के पद पर दागदार व्यक्ति की नियुक्ति और भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे के आंदोलन को हासिल हुए जनसमर्थन के साथ सियासी बवंडर के बीच नाव खे रहे प्रधानमंत्री की ईमानदार छवि भी दागदार हो गई है।
दरअसल जिस 2जी घोटाले के कारण पूर्व संचार मंत्री ए राजा, द्रविड़ मुनेत्र कडग़म (डीएमके) प्रमुख एम.करुणानिधि की बेटी और सांसद कनिमोझी और कई कंपनियों के अधिकारी इन दिनों तिहाड़ जेल में बंद हैं उसी 1.75 लाख करोड़ रुपये के घोटाले के तार अब प्रधानमत्री और तत्कालीन वित्तमत्री पी. चिदंबरम से जुड़ रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ता विवेक गर्ग द्वारा सूचना के अधिकार से जुटाई गई जानकारी के अनुसार 2जी स्पेक्ट्रम को सरकार किस तरह बेचे, इसका निर्णय मत्रियों के समूह को करना था, परंतु प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप के कारण यह काम तत्कालीन सचार मंत्री दयानिधि मारन को सौंपा गया। इस कदम के कारण ही मारन और उनके उत्ताराधिकारी ए. राजा जनवरी, 2007 में 2जी स्पेक्ट्रम सन् 2001 की दरों पर बेचने का दु:साहस कर पाए।
जनवरी 2006 में प्रधानमंत्री ने दूरसंचार कंपनियों के लिए रक्षा मंत्रालय से अतिरिक्त स्पेक्ट्रम खाली करवाने के मामले में जीओएम के गठन को मंजूरी दी थी। जीओएम के सामने सिफारिशों पर विचार करने के विषय विस्तृत थे। इसमें दुर्लभ 2जी स्पेक्ट्रम की कीमतों के निर्धारण पर भी चर्चा होनी थी। एक फरवरी 2006 को तत्कालीन दूरसंचार मंत्री दयानिधि मारन ने प्रधानमंत्री से मुलाकात की। इसके बाद उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा। 28 फरवरी 2006 को तत्कालीन दूरसंचार मंत्री और द्रमुक नेता दयानिधि मारन ने प्रधानमंत्री को अर्धशासकीय पत्र (डीओ नंबर एल-14047/01/06-एनटीजी) लिखा। मारन ने 'गोपनीयÓ पत्र में लिखा, 'आपको याद ही होगा कि एक फरवरी 2006 की मुलाकात में हमने रक्षा मंत्रालय द्वारा स्पेक्ट्रम खाली करने के मुद्दे पर गठित जीओएम पर चर्चा की थी। आपने मुझे आश्वस्त किया था कि जीओएम के टीओआर हमारी इच्छानुसार तैयार होंगे। यह जानकर आश्चर्य हुआ कि जीओएम के सामने जो विषय रखे गए हैं, वे बहुत व्यापक हैं। ऐसे मामलों का परीक्षण किया जा रहा है, जो मेरे अनुसार मंत्रालय स्तर पर किए जाने वाले कार्यों में अतिक्रमण है। विचार के इन बिंदुओं में हमारी सिफारिशों के आधार पर बदलाव किया जाए।Ó मारन ने पत्र के साथ जीओएम के लिए कार्यवाही के बिंदुओं का नया प्रस्ताव भी भेजा। पहले जीओएम को छह बिंदुओं पर चर्चा के लिए कहा गया था। इनमें स्पेक्ट्रम का मूल्य निर्धारण शामिल था। मारन ने प्रस्तावित एजेंडे में से उसे हटा दिया। सिर्फ चार विषयों को ही प्रस्तावित कार्यवाही के बिंदुओं में शामिल किया। यह सभी रक्षा मंत्रालय से अतिरिक्त स्पेक्ट्रम खाली कराने से जुड़े थे। प्रधानमंत्री ने जवाबी पत्र में मारन का पत्र मिलने की पुष्टि की। इसमें शायद ही किसी को संदेह हो कि मनमोहन सरकार अपनी ही जनता की नजरों में गिर गई है। देश में यह धारणा गहराती जा रही है कि इस सरकार ने अपने कर्मों से अपनी जैसी दुर्गति कर ली है उसे देखते हुए भगवान ही उसका मालिक है।
सरकार के समक्ष उभरे संकट की गंभीरता चिदंबरम के चेहरे की रंगत ने भी बयान की है और उनके बचाव में उतरने वाले दिग्विजय सिंह ने भी। क्या इससे दयनीय और कुछ हो सकता है कि चिदंबरम को अब उस दिग्विजय सिंह के प्रमाणपत्र की जरूरत पड़ रही है जो उन्हें कुछ दिन पहले ही आंतरिक सुरक्षा में नाकामी के लिए जिम्मेदार ठहरा चुके हैं-और वह भी लिखित रूप में। इसके पहले वह लिखित रूप में ही उन्हें बौद्धिक रूप से अहंकारी बता चुके हैं। चिदंबरम के बचाव में उतरे दिग्विजय सिंह ने हमेशा की तरह कुतर्कों का सहारा लिया। उनकी मानें तो भाजपा इसलिए उनके पीछे पड़ी है, क्योंकि वह कथित संघी आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं। समस्या यह है कि इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है कि प्रणब मुखर्जी चिदंबरम के पीछे क्यों पड़े? आखिर उनके मंत्रालय को यह नोट लिखने की जरूरत क्यों पड़ी कि यदि चिदंबरम चाहते तो 2जी स्पेक्ट्रम का आवंटन नीलामी के जरिये हो सकता था? चूंकि प्रधानमंत्री को भेजे गए इस नोट के बारे में यह भी स्पष्ट है कि उसे वित्तमंत्री ने देखा था यानी स्वीकृति दी थी इसलिए इस बहाने से भी बात बनने वाली नहीं कि उसे तो एक कनिष्ठ अधिकारी ने लिखा था। यह नोट इसलिए रहस्यमय है, क्योंकि उसे इसी वर्ष मार्च में लिखा गया। इस समय तक ए. राजा गिरफ्तार हो चुके थे। वित्त मंत्रालय की ओर से भेजे गए इस नोट का मकसद कुछ भी हो, उसने चिदंबरम की खोट उजागर कर दी है।
एक अन्य नोट भी सरकार के खोट को उजागर कर रहा है। यह स्पेक्ट्रम की कीमत तय करने संबंधी राजा और चिदंबरम की मुलाकात से संबंधित है। अभी तक सरकार की ओर से यह बताया जा रहा था कि राजा और चिदंबरम की यह मुलाकात औपचारिक किस्म की थी और इसीलिए उसके ब्यौरे को दर्ज करने की जरूरत नहीं समझी गई। इस बारे में पवन बंसल ने सफाई पेश करते हुए यह भी समझाने का प्रयास किया था कि मंत्रियों के बीच इस तरह की मुलाकातें होती रहती हैं। इस सफाई के बाद देश ने भी यह समझ लिया था कि राजा और चिदंबरम की मुलाकात वाकई औपचारिक किस्म की रही होगी और इसीलिए उसका ब्यौरा भी तैयार नहीं किया होगा, लेकिन पिछले हफ्ते वह नोट सामने आ गया जिसमें इस मुलाकात का ब्यौरा दर्ज है। यह ब्यौरा किसी और ने नहीं तात्कालिक वित्त सचिव और रिजर्व बैंक के मौजूदा गवर्नर डी. सुब्बाराव ने तैयार किया था। इसका सीधा मतलब है कि सरकार झूठ बोलकर देश को गुमराह कर रही थी। क्या कोई बताएगा कि इस नोट के अस्तित्व से क्यों इंकार किया जा रहा था? आखिर किस झूठ को छिपाने के लिए झूठ पर झूठ बोले जा रहे हैं? अभी तक आम धारणा यह थी कि स्पेक्ट्रम आवंटन में जो भी बंदर-बांट हुई वह ए. राजा ने अपने दम पर की, लेकिन अब तो यह लग रहा है कि उन्हें कोई और बल प्रदान कर रहा था। आखिर कौन था वह शख्स? नि:संदेह वित्त मंत्रालय के नोट से यह साबित नहीं होता कि 2जी स्पेक्ट्रम के मनमाने तरीके से आवंटन के लिए चिदंबरम उतने ही दोषी हैं जितने कि ए. राजा, लेकिन यह नोट उन्हें निर्दोष होने का प्रमाणपत्र भी नहीं देता। प्रधानमंत्री ने महज एक वक्तव्य देकर चिदंबरम से इस्तीफे की विपक्ष की मांग खारिज कर दी, लेकिन वह जनता के मन में घर कर गए संदेह को इतनी आसानी से दूर नहीं कर सकते-यह इसलिए भी संभव नहीं, क्योंकि उनकी साख पर बटï्टा लग चुका है?
अब यह स्थापित सत्य है कि प्रधानमंत्री ने ही इस घोटाले की नींव रखी, क्यों? सर्वोच्च न्यायालय में 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के सदर्भ में पेश एक हलफनामे में कहा गया है कि प्रणब मुखर्जी ने 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में तत्कालीन वित्तमंत्री पी. चिदंबरम की भूमिका पर सवाल उठाया था। इस बारे में वित्त मंत्रालय ने प्रधानमंत्री को पत्र भी भेजा था। दस पृष्ठ के उक्त नोट मे कहा गया है कि यदि तत्कालीन वित्तमंत्री चिदंबरम ने जोर दिया होता तो दूरसंचार मंत्रालय 2जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस के आवंटन के लिए नीलामी की प्रक्रिया अपना सकता था, किंतु उन्होंने तत्कालीन संचार मंत्री ए. राजा को पुरानी दरों पर स्पेक्ट्रम बेचने की इजाजत दी। जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रह्मण्यम स्वामी ने प्रणब मुखर्जी का यह पत्र सर्वोच्च न्यायालय में दस्तावेज के तौर पर पेश किया है। स्वामी के अनुसार स्पेक्ट्रम का मूल्य तय करने के लिए चार बैठकें हुईं, जिसमें से अंतिम बैठक में चिदंबरम और ए. राजा प्रधानमत्री के साथ शामिल हुए थे। यह स्थापित सत्य है कि संप्रग सरकार में हुए कई अन्य घोटालों की तरह राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन और 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में हुई सार्वजनिक धन की लूट की खबर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को भी थी।
आईपीएल, राष्ट्रमंडल खेल, 2जी स्पेक्ट्रम, सेटेलाइट स्पेक्ट्रम, आदर्श सोसाइटी घोटाला, केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के पद पर दागदार व्यक्ति की नियुक्ति और इन सब घोटालों से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अनजान होने की मासूम दलील से मनमोहन सिंह के साथ-साथ समूची संप्रग सरकार की विश्वसनीयता धुल चुकी है। इसके कारण पूरी दुनिया में भारत को एक भ्रष्ट देश के रूप में देखा जा रहा है, जिसे कल तक एक अत्यंत ऊर्जावान और उदीयमान सशक्त अर्थव्यवस्था के रूप में दुनिया सम्मान के भाव से देख रही थी और देश-विदेश के निवेशक यहा पूंजी निवेश के लिए उत्सुक थे। इस छवि को जो क्षति पहुंची है, क्या उसके लिए एक लचर व अक्षम नेतृत्व जिम्मेदार नहीं है? क्या इस परिस्थिति में संप्रग सरकार के हाथों में भारत की 120 करोड़ जनता का भविष्य सुरक्षित है?
ऐसे में कांग्रेस का राहुल को प्रधानमंत्री बनाने का सपना ध्वस्त होता नजर आ रहा है। कांग्रेस के रणनीतिकार इस 2जी के मामले को नेहरू-गांधी परिवार के 4जी (फोर्थ जनरेशन) को प्रधानमंत्री बनाने के लिए तीन वर्षों से अच्छे-भले ठीक-ठाक मैनेज करते आ रहे थे, परन्तु एकाएक सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 'लक्ष्मण रेखा पारÓ करने की वजह से अब आगे बात बनना बहुत मुश्किल हो गया है।
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