शुक्रवार, 9 सितंबर 2011
विवाद का दूसरा नाम बिसेन
विनोद उपाध्याय
इसे विडम्बना कहे या दुर्भाग्य की कभी भारतीय राजनीति में अपने चाल चरित्र, अनुशासन की पहचान रखने वाली भारतीय जनता पार्टी पर सत्ता का मद इस तरह चढ़ा की उसकी नैतिकता स्वाहा हो गई और वह भी कांग्रेस के उसी ढर्रे में चल रही है जिसके लिये वह कांग्रेस को दिन रात कोसती रहती है। एक दौर थी जब आरोपों से ही मंत्री अपने पद से त्याग पत्र दे दिया करते थे परन्तु एक दौर आज का है जहां सार्वजनिक रूप से एक समाज विशेष के प्रति नकारात्मक नजरिये प्रस्तुत करने और सरकार की योजनाओं को अमलीजामा पहनाने के लिये जमीनी स्तर पर काम करने वाले कर्मचारी को सरेआम बेइज्जत किया जाता है फिर भी श्रेष्ठ अनुशासन की बात करने वाली भाजपा उस मंत्री का बाल बांका भी नहीं कर पाती।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भले ही सहज और व्यवहार कुशलता के लिये प्रख्यात हो परन्तु पार्टी के भीतर वह एक बेबश असहाय मुख्यमंत्री की हैसियत रखते है। क्योंकि उनके पास इतना अधिकार नहीं है कि जो मंत्री उनकी सरकार को अपने कामों से जनता के बीच में थू-थू करवा रहा है। उसके खिलाफ कुछ कर सके। हर काम के लिये केन्द्र की सरकार को कोस कर अपने दामन को पाकसाफ बताने की सरकारी नीति को प्रदेश की जनता अब असानी से समझने लगी है। क्योंकि मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार उनके लोग कर रहे है ना कि केन्द्र में बैठे लोग।
शिवराज मंत्रीमंडल के विवादास्पद मंत्रियों की सूची का एक नाम सहकारिता एवं लोक स्वास्थ्य विभाग के मंत्री गौरीशंकर का भी है। जिन्होंने मंत्री पद पर आने के बाद हर एक-दो माह में ऐसा कुछ जरूर किया है जिसकी वजह से पार्टी को जनता के बीच में सफाई देनी पड़ी या फिर दुर्भाग्यजनक परिस्थितियों का सामना करना पड़ा है। देखा जाए तो मंत्री गौरीशंकर बिसेन लोकप्रियता में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बाद दूसरे नंबर पर आते हैं,परन्तु अपनी बयान बाजी को लेकर वे हमेशा विरोधियों के निशाने पर रहते है। अभी ताजा मामला पन्ना के कोऑपरेटिव बैंक अध्यक्ष संजय नगाइच से जुड़ा हुआ है जिस मामले को निपटाने के लिए कुछ बीजेपी नेता पन्ना पहुंचने वाले हैं। मंत्री गौरीशंकर बिसेन से जुड़े विवादों के विपरीत अगर देखे तो वे लोकप्रियता में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बाद दूसरे नंबर पर है। इसका कारण हैं प्रदेश भर में अपने विभाग पर पकड़। अगर प्रदेश में दौरों को लेकर देखा जाए तो सबसे ज्यादा दौरे करने में सीएम शिवराज के बाद उनका दूसरा नंबर है। और इस दौरान हुए विवादों को हम पीछे मुड़कर बिसेन से जोड़कर देखते है इनमें कहीं न कहीं सिस्टम सुधारने की झालक हमें दिखती है।
ताजे मामले को ही हम ले जो पन्ना कोऑपरेटिव बैंक अध्यक्ष संजय नगाइच से जुड़ा हुआ है। सूत्र बताते है कि नगाइच की मनमानी, नियम विरूद्ध काम से बैंक को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। वहां का स्टाफ भी इनके सामने मुंह बंद करने को मजबूर है इसी आवाज को बिसेन ने खोला है। सहकारिता मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने कहा कि पन्ना जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष संजय नगाइच ने कार्रवाई से बचने के लिए झूठा आरोप लगाया है। उन्हें हटाने पर फैसला एक सप्ताह में ले लिया जाएगा। वहीं, नगाइच का कहना है कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने जांच कमेटी बनाई है। हम अपना पक्ष कमेटी के सामने रखेंगे। दरअसल, पूरा विवाद भाजपा में गुटबाजी की वजह से माना जा रहा है।
उधर ब्राह्मण एकता अस्मिता सहयोग व संस्कार मंच ने अध्यक्ष राकेश चतुर्वेदी की मौजूदगी में डाक भवन के सामने बिसेन का पुतला फूंक कर भाजपा को सबक सिखाने की बात कही गई। ब्राह्मण समाज उत्थान संस्थान एवं भारतीय ब्राह्मण मंच ने मुख्यमंत्री और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के नाम ज्ञापन सौंपा। दूसरी तरफ, अभा क्षत्रिय महासभा के महासचिव कीर्ति सिंह चौहान ने बिसेन को ईमानदार बताते हुए कहा कि उनके खिलाफ षडयंत्र रचा जा रहा है। वहीं, प्रदेश कांग्रेस चुनाव प्रबंधन एवं दौरा कार्यक्रम प्रभारी संजय दुबे ने भी राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा।
सहकारिता मंत्री बिसेन और जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष नगाइच के बीच उठे विवाद के पीछे भाजपा की अंतर्कलह को जिम्मेदार माना जा रहा है। नगाइच को पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव एवं पूर्व मंत्री कुसुम मेहदेले का समर्थक बताया जा रहा है। जबकि बिसेन के साथ कृषि राज्य मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह और पन्ना जिला भाजपा अध्यक्ष जयप्रकाश चतुर्वेदी व अन्य पदाधिकारी हैं। बताया जाता है कि बिसेन के सामने ही भार्गव और नगाइच जिंदाबाद नारे लगाए जाने से भी बिसेन नाराज हो गए थे। नगाइच का कहना है कि सहकारिता मंत्री क्यों नाराज हैं मैं नहीं जानता। वे मुझे निशाना बनाने का मन बनाकर आए थे। मेरे ऊपर आरोप की बात है तो कोई भी जांच हो जाए, अनियमितता मिली तो पार्टी छोड़ दूंगा। नगाइच के खिलाफ चल रही जांच सहायक पंजीयक अखिलेश निगम कर रहे हैं।
इस मामले में जब प्रदेश भाजपा ने जांच की घोषणा की तो राजनीतिक हलकों में आश्चर्य जाहिर किया गया। लेकिन इसके पीछे कारण यह है कि पार्टी इस मामले में वरिष्ठ मंत्रियों और नेताओं के जुड़े होने से चिंतित है। यही वजह है कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा ने आनन-फानन में जांच की घोषणा कर दी। पन्ना जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष को कथित तौर पर पंडित तू चोर है कहने वाले सहकारिता मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने फिलहाल अपने दौरों पर रोक लगा दी है। राजनीतिक क्षेत्रों में उनके अचानक ब्रेक लगाने की वजह तलाशी जा रही है। भाजपा सूत्रों का कहना है कि पार्टी ने उनसे कहा है कि कुछ दिनों के लिए वह जिलों का दौरा बंद कर दें, मगर खुद बिसेन इससे इनकार कर रहे हैं। उनका कहना है, च्मंत्री अपने विवेक से काम करता है। पार्टी या सरकार का उस पर कोई दबाव नहीं होता।
दरअसल, पन्ना जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष संजय नगाइच को चोर कहकर संबोधित करने के मामले के तूल पकडऩे के बाद से बिसेन बैकफुट पर हैं। उन्होंने इस घटना के बाद से ही अपने दौरों पर रोक लगा दी है। कहा जा रहा है कि पार्टी के आदेश पर उन्होंने ऐसा किया है। वह पिछले छह दिनों से कहीं नहीं गए हैं। इस बीच, उनकी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान व संगठन महामंत्री अरविंद मेनन से जरूर मुलाकातें हुई हैं। यह पूछने पर कि पार्टी ने उनके दौरों पर क्या रोक लगा दी है, बिसेन ने कहा कि ऐसा नहीं है। कुछ ब्रेक जरूर दिया है पर वह जल्द ही दौरा प्रारंभ करेंगे। उन्होंने बताया कि राज्य विधानसभा का मानसून सत्र खत्म होते ही वह जिलों के दौरों पर निकल गए थे, और लगभग एक माह में 27 जिला सहकारी बैंकों के कार्यक्रमों में जा चुके हैं। ग्यारह जिले शेष हैं, जहां का कार्यक्रम अगले माह बनेगा। बिसेन के ये दौरे किसानों को क्रेडिट कार्ड बांटने के सरकारी कार्यक्रम को गति देने के लिए हो रहे थे। इस दौरान उन्होंने सहकारिता विभाग के साथ-साथ बैंकों के कामकाज की समीक्षा भी की। लेकिन सिवनी, छिंदवाड़ा, होशंगाबाद व बड़वानी जिलों में अपनी टिप्पणियों के कारण वह विवादों में घिर गए।
सूत्रों का कहना है कि हाल में पन्ना जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष के साथ हुए विवाद को बिसेन पार्टी की सियासत की देन बता रहे हैं। उन्होंने पार्टी नेतृत्व को पन्ना के उस रात्रि भोज की सीडी भी सौंपी है, जहां के घटनाक्रम को आधार बनाकर बिसेन की घेराबंदी की जा रही है। जानकारों के मुताबिक बिसेन ने दोनों नेताओं से कहा है कि संजय नगाइच के खिलाफ अनियमितता के एक मामले की जांच में आरोप सही पाए गए हैं, लिहाजा कार्रवाई से बचने के लिए वह उन पर दबाव बनाने में लगे हैं। बिसेन के नजदीकी लोगों के अनुसार भाजपा के सहकारिता प्रकोष्ठ से जुड़े कुछ बड़े नेता सहकारिता विभाग से उनकी छुट्टी कराना चाहते हैं।
मंत्री बिसेन अपनी विवादास्पद टिप्पणियों के कारण अक्सर सुर्खियों में रहते हैं। भाजपा नेता कमलाकर चतुर्वेदी के साथ भी उनका इसी तरह का विवाद हुआ था। जून, 2009 में बिसेन ने कमलाकर के लिए जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल किया था। हाल में एक आदिवासी पटवारी से कान पकड़कर उठक-बैठक लगाने के मामले ने तो इतना तूल पकड़ा कि प्रदेश भर के पटवारी हड़ताल पर चले गए थे। इससे पहले बिसेन ने अपने जन्मदिन कार्यक्रम में भी खुलेआम फायरिंग कराई थी, तब भी विवाद खड़ा हुआ था। हाल ही में घटित सिवनी जिले के एक गांव में पटवारी को सार्वजनिक रूप से जनता के सामने उठक-बैठक लगवाना, माफी मंगवाने और जाति सूचक शब्द के उपयोग करने की घटना ने पूरे प्रदेश में एक नया आंदोलन को जन्म दिया है। इस प्रकार के सार्वजनिक अपमान के प्रकरण अपनी जन अदालतों में करते है जहां पर वह जनता की ओर जिस व्यक्ति की शिकायत करते है उसको सभी के सामने प्रताडि़त करते है या माफी मंगवाते है। इस पूरे मामले में चूंकि कांग्रेस प्रदेश की प्रमुख विपक्षी पार्टी है और उनका प्रदेश अध्यक्ष भी आदिवासी है इसलिये मुद््दों के अभाव में भटकती कांग्रेस को सहकारिता मंत्री ने एक ऐसा नाजूक मुद पकड़ा दिया है जिसका दूरगामी राजनीतिक प्रभाव मध्यप्रदेश की राजनीति में निश्चित रूप से देखने मिलेगा। कारण यह है कि भारतीय जनता पाटी के आदिवासी मंत्री, सांसद और विधायक भी खुलकर गौरीशंकर के कदम का समर्थन नहीं कर पाये और मौन साधे बैठे है।
मध्यप्रदेश की राजनीति की दिशा तय करने में आदिवासी वोटों का बहुत बड़ा महत्व है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता। मध्यप्रदेश में संभवत: पहला अवसर था जब कलेक्टर को छोड़कर उससे नीचे के सारे अधिकारी विशेष कर राजस्व से जुड़े अधिकारियों ने गौरीशंकर के कदम के विरोध स्वरूप एक दिन का अवकाश लिया। चूंकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लगता है विधानसभा चुनाव को अभी बहुत दिन है। इसलिये आदिवासी समाज से जुड़ा यह मुद्दा ज्यादा प्रभावी नहीं कर पायेगा पर इतिहास गवाह है भारतीय मतदाता चुनाव में हमेंशा वह परिणाम देता है जिसकी कल्पना नहीं की जाती। पटवारी कांड विधान सभा चुनाव 2013 पर भाजपा के लिये धीमा जहर साबित होगा तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। आदिवासियों को खिलौना समझ कर कोरे आश्वासनों का झुनझुना पकड़ा कर उनकी उन्नति व विकास की बातें करने वाली भाजपा ने जितने हल्के स्तर पर पटवारी कांड को लिया है उसका उन्हें कहीं न कहीं राजनीति नुकसान जरूर उठाना पडेगा।
उधर जानकार बताते हैं कि सहकारिता मंत्री गौरीशंकर बिसेन विवाद के जरिये सुर्खिया में रहकर प्रदेश की राजनीति में अपनीे पैठ व पहचान बनाने के लिये लगातार प्रयासरत है। वह जानबूझकर वह सब करते है जिसको मीडिया में ज्यादा जगह मिले। लगातार विवादों में रहने के बाद भी मुख्यमंत्री द्वारा उन पर नकेल न कसा जाना यह दर्शाता है कि शिवराज पर गौरीशंकर पूरी तरह भारी है। इस बात में कोई शक नहीं कि राजस्व विभाग में निचला तबके का कर्मचारी पटवारी की कार्यप्रणाली हमेेशा से ही विवादों का विषय रही है। परन्तु हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि जिनके खूद के घर शीशे को उन्हें दूसरों के घर पर पत्थर नहीं फेकना चाहिए। जो आज भाजपा कर रही है। प्रायोजित ढंग से पटवारियों को विरोध करने के लिये जो किसान आज सड़कों पर आये वह अब कहां सोये पड़े थे। पटवारी वर्ग का गुस्सा भले ही बाहरी रूप से ठंडा दिखाने दे रहा हो पर आन्तरिक तौर पर वह प्रदेश के भीतर अपमानित जरूर महसूस कर रहे है। अतीत के पन्ने पलटाया जाये तो हमने देखा है कि 2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने एक मुद्दा उछाला कि तत्कालिन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कहते है कि कर्मचारी वोट नहीं देगा तो हमें कोई फर्क नहीं पडेगा। ये बात दिग्गी राजा ने कहां कही, किसके सामने कही इसकी तथ्यात्मक पुष्टि आज तक नहीं हो पाई। परन्तु एक अफवाह की बयार चली और उसमें कांग्रेस को भारी कीमत चुनाव में चुकानी पड़ी। जबकि सहकारिता मंत्री ने जो कुछ कहा और जो कुछ करवाया वह सब लाखों आंखों ने टी.व्ही. पर नजारे को देखा है। वैसे भी पहली बार मंत्री बने गौरीशंकर के पास अच्छे राजनीतिक सलाहकर की कमी है। इसके नकचढ़े स्टाफ के भ्रष्टाचार भी भाजपा के कार्यकर्ताओं पर चर्चा का विषय बने हुए है। इन विषम परिस्थितियों में गोरीश्ंाकर अच्छा करने के चक्कर में वह कर जाते है जो उनके खुद के पार्टी के लिये सिर दर्द बन जाता है। जहां तक गौरीशंकर के विभागों की बात है तो उसमें इस बात को कहने में कोई संकोच नहीं है कि मध्यप्रदेश के भ्रष्टतम विभागों में सहकारिता विभाग व पी.एच.ई. विभाग का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। व्यक्तिगत तौर पर गौरीशंकर भले ही सहज जनप्रतिनिधि माने जाते हैं पर एक मंत्री के रूप में वह अवसरवादियों से घिरे हुए है और भारतीय राजनीति का इतिहास गवाह है कि विवादों के रथ पर सवार होकर राजनीति करने वाले जनप्रतिनिधियों को एक समय के बाद जनता नकार देती है। आर्थिक सम्पन्नता के बल पर चुनाव जीतने की कल्पना भारतीय राजनीति में दिवास्वप्न है। एक मंत्री के रूप में दुर्भाग्यजनक बात यह है कि गौरीशंकर अपने विधान सभा क्षेत्र से बाहर नहीं निकल पा रहा हैं। जब इन्हें मंत्री बनाया गया था तो यहीं कल्पना थी कि एक लंबे संघर्ष के बाद मंत्रीमंडल में पहली बार स्थान मिला है तो जरूर ये अपने कामों से एक अच्छे राजनेता की छवि निर्मित करेगें। परन्तु इनकी छवि एक विवादास्पद जनप्रतिनिधि के रूप में ही बन पायी है, जो इनके उज्जवल राजनैतिक भविष्य की ओर संकेत नहीं करती। राजनीति में महत्वकांक्षाएं होना अच्छी बात है पर अति महत्वकांक्षा व्यक्ति को ह्रास की ओर ले जाती है ।
विवादों से बिसेन का पुराना नाता है। सहकारिता मंत्री बनने के बाद जून 2009 में उन्होंने भोपाल में आयोजित बैठक में सतना जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष कमलाकर चतुर्वेदी को पोंगा पंडित कह दिया था। लोकसभा चुनाव के दौरान बिसेन घडिय़ां बांटने के आरोप में आचार संहिता के उल्लंघन के दायरे में आए थे। बीते माह होशंगाबाद में सहकारी बैंक के महाप्रबंधक आरके दुबे से सार्वजनिक मंच पर माफी मंगवाई। सिवनी जिले के छिंदा गांव में उन्होंने आदिवासी पटवारी को सार्वजनिक रूप से उठक-बैठक लगवाई तथा कथित तौर पर जाति को इंगित कर टिप्पणी भी की थी।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें