भारतीय जनता पार्टी की नाम राशि धनू है। इस राशि का स्वामी गुरु है लेकिन मध्य प्रदेश के संदर्भ में इनदिनों इस पार्टी में कन्या(राशि) का प्रभाव बढ़ा है। जहां पार्टी की कमान कन्या राशि वाले प्रभात झा के हाथ में है वहीं कई कदावर मंत्रियों और नेताओं की पत्नियों और बहुओं ने उनका संरक्षण पाकर अपनी अलग राजनीतिक पहचान बनाते हुए महत्वपूर्ण पदों पर काबिज हैं। इसमें सबसे तेजी से जो नाम उभर कर सामने आया है वह है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पत्नी साधना सिंह का। इसकी शुरूआत तब हुई जब महिला सम्मेलन में भाग लेने आईं भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष स्मृति ईरानी ने मीडिया के सामने ही साधना सिंह से कह दिया था कि भाभी, मैं आपको संगठन में खींच लूंगी, मुझे आपकी जरूरत है। यह सुनकर साधना सिंह के चेहरे पर जो मुस्कुराहट थिरकी थी, उसे देखने के बाद इस बात में रंचमात्र भी संशय नहीं रह गया था कि साधना सिंह जल्दी ही सक्रिय राजनीति में प्रवेश करने वाली हैं। 11 अक्टूबर 2010 को प्रदेश भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष नीता पटेरिया ने जब कार्यकारिणी घोषित करते हुए साधना सिंह को उपाध्यक्ष बनाया तो सक्रिय राजनीति में साधना सिंह का औपचारिक रूप से प्रवेश हो गया और इसके ठीक एक माह बाद साधना सिंह को होशंगाबाद जिले का प्रभारी बनाए जाने के साथ ही इन चर्चाओं ने भी जोर पकड़ लिया कि वे आगामी लोकसभा चुनावों में होशंगाबाद सीट से भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ सकती हैं।
वैसे साधना सिंह की राजनीतिक दिलचस्पी भी किसी से छुपी नहीं है। जब शिवराज विदिशा से सांसद थे तो कार्यकर्ताओं के बीच साधना सिंह पति के निर्वाचन क्षेत्र की चिंता करती थीं। मुख्यमंत्री बनने के बाद से की साधना सिंह का राजनीतिक ग्राफ लगातार ऊपर उठ रहा है। मुख्यमंत्री बनने के बाद जब शिवराज ने लोकसभा से इस्तीफा दिया तो उपचुनाव के लिए वरुण गांधी के साथ साधना सिंह का नाम भी उछला था लेकिन शिवराज सिंह ने अपने आलोचकों को ध्यान में रखते हुए अपने मित्र रामपाल सिंह को मौका दिया। जब 2009 में लोकसभा के आमचुनाव हुए तब भी कहा गया कि साधना सिंह को विदिशा से लोकसभा में भेजकर शिवराज अपना विकल्प सुरक्षित रखना चाहते हैं लेकिन इस बार लोकसभा की नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज पहुंच गईं। अब श्रीमती इस सीट को छोडऩे के मूड में नहीं है। वह भारी व्यस्तता के बावजूद जिस तरह से विदिशा संसदीय क्षेत्र को वक्त दे रही हैं, उससे साफ है कि सुषमा जी आगे भी अपनी संसदीय पारी विदिशा से ही जारी रखना चाहेंगी। ऐसे में साधना सिंह की निगाह होशंगाबाद संसदीय सीट पर है। यह सीट पिछले चुनाव में भाजपा के हाथ से छिनकर कांग्रेस के खाते में जा चुकी है। इस साल जनवरी में मुख्यमंत्री ने अपने गृह ग्राम जैत में स्वामी अवधेशानंद जी के प्रवचन कराए थे। इस हाई प्रोफाइल प्रवचन में सबसे ज्यादा फोकस होशंगाबाद क्षेत्र को ही किया गया था।
मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री के साथ ही यदि मंत्रियों की ओर निगाह दौड़ाई जाए तो उसमें सबसे ज्यादा प्रभावी जल संसाधन विकास मंत्री जयंत मलैया की पत्नी सुधा मलैया का नाम आता है। सुधा मलैया की सक्रियता राजनीति से लेकर पत्रकारिता और पुरातत्व प्रेम से लेकर इंजीनियरिंग कॉलेज के संचालन तक कहीं भी देखी जा सकती है। भाजपा संगठन में कई ओहदों के साथ वह राष्टï्रीय महिला आयोग की भी सदस्य रह चुकी है। श्रीमती मलैया की इच्छा भी चुनाव लडऩे की रही है लेकिन जयंत मलैया की दमोह विधानसभा क्षेत्र में गहरी पैठ और लगातार चुनाव जीतने के कारण उन्हें अब तक मौका नहीं मिला है।
प्रदेश के तेजतर्रार नेता और उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय की पत्नी आशा विजयवर्गीय अपने-अपने पति के राजनीतिक काम में सीधे कोई दखल नहीं देती, लेकिन वह घर पर मोर्चा संभालते हुए श्री विजयवर्गीय के समर्थकों और कार्यकर्ताओं का खुद ध्यान रखती है। उन्होंने सीधे राजनीति में आने के बजाए एक स्वयं सेवी संस्था आशा फाउंडेशन एसोसिएशन आफ सेल्फ हेल्प एक्शन के जरिये समाज सेवा का बीड़ा जरूर उठा रखा है। यह संस्था इंदौर में गरीबों के लिए काम करने वाली संस्थाओं को मदद करती है। खासियत यह है कि इसने सरकार से मदद के नाम पर फूटी कौड़ी भी नहीं ली, लेकिन जरूरतमंद बच्चों को कापी किताबों से लेकर गरीब लड़कियों के विवाह में मदद करने में आशा फाउंडेशन आगे है। जब इंदौर में भाजपा का तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ था तब हजारों लोगों के लिए मालवी भोज की जिम्मेदारी यानी कैटरिंग व्यवस्था उद्योगमंत्री की पत्नी आशा विजयवर्गीय ने बखूबी निभाई। मालवा के जायकेदार पकवान खा कर नेतागण उंगली चाटते दिखाई दए। दाल-बाफलों ने तो सबका मन हर लिया।
प्रदेश के आदिवासी कल्याण मंत्री कुंवर विजय शाह की पत्नी भावना शाह भी अपने पति के चुनाव क्षेत्र की देखभाल करते-करते खुद भी राजनीति में आ गई है। वह खंडवा की महापौर है और अपने पति से भी दो कदम आगे बढ़कर काम कर रही है। मध्यप्रदेश के खंडवा शहर की मेयर भावना शाह कुछ वर्ष पूर्व एक घरेलू महिला थीं। परिवार की राजनीतिक पृष्ठभूमि ने उन्हें समाज सेवा की तरफ मोड़ दिया। सामाजिक कार्यो में सक्रिय भागीदारी के कारण उन्हें मेयर का चुनाव लडऩे का मौका मिला। अब वह घर व शहर दोनों की जिम्मेदारी बड़े ही सलीके से संभाल रही है।
लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री गौरीशंकर बिसेन की पत्नी रेखा बिसेन की राजनीति में सक्रिय रह चुकी है। वह बालाघाट की जिला पंचायत अध्यक्ष भी रह चुकी है। बिसेन जब लोकसभा में थे तब वह विधानसभा चुनाव के लिए टिकट की दौड़ में भी रह चुकी है। अभी वह प्रदेश भाजपा महिला मोर्चे की कोषाध्यक्ष है।
बाबूलाल गौर की पत्नी और बेटे तो राजनीतिक फलक पर कभी सक्रिय नहीं दिखे लेकिन गौर के बेटे पुरुषोत्तम गौर की असामयिक मृत्यु के बाद उनकी पत्नी कृष्णा गौर राजनीति में जरूर सक्रिय हुईं। गौर ने मुख्यमंत्री रहते हुए उनको राज्य पर्यटन विकास निगम का अध्यक्ष बनाकर सबको चौंका दिया था पर विरोध के कारण उन्हें यह पद छोडऩा पड़ा। मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद उन्होंने कृष्णा गौर को न सिर्फ भोपाल की महापौर का टिकट दिलाया बल्कि जिताया भी। आज कृष्ण गौर एक परिपक्व नेत्री के रूप में अपनी पहचान बना चुकी हैं।
लोक निर्माण मंत्री नागेन्द्र सिंह की पत्नी पद्यमावती सिंह राजनीति के सीधे तौर पर सक्रिय तो नहीं है लेकिन उनकी पुत्रवधु सिमरन सिंह नागौद नगर पंचायत अध्यक्ष है। ग्वालियर के वरिष्ठï भाजपा नेता नरेश गुप्ता अपने पुत्र को तो आगे नहीं बढ़ा सके लेकिन उन्होंने भी अपनी पुत्रवधु समीक्षा गुप्ता को ग्वालियर का महापौर बनवाया है। वित्त मंत्री राघवजी ने तमाम विरोध के बाद भी बेटी ज्योति शाह को नगरपालिका अध्यक्ष बनाने में सफल रहे।
प्रदेश भाजपा में पुरुष नेताओं से उलट ऐसी नेत्री भी रही हैं जिन्होंने अपने पति को या तो पीछे छोड़ा या उन्हें आगे बढ़ाया। भाजपा के पूर्व मंत्री ध्यानेंद्र सिंह की पत्नी माया सिंह तो अपने पति को भी राजनीति में पीछे छोड़ते हुए राज्यसभा के जरिए केंद्रीय राजनीति में पहुंच गईं जबकि पति पूर्व मंत्री से पूर्व विधायक की स्थिति में चले आए। इसके विपरीत पटवा काबीना में संसदीय सचिव रहीं रंजना बघेल ने शिवराज काबीना में महिला एवं बाल विकास विभाग की मंत्री का ओहदा पाया। उन्होंने अपने पति मुकाम सिंह किराड़े को विधायक बनवाकर ही दम लिया। रंजना ने उन्हें धार से 2009 के लोकसभा का टिकट दिलाया था लेकिन वह हार गए तो जमुना देवी के निधन के बाद उन्हें विधानसभा उपचुनाव का टिकट मिला।
कुछ ऐसे मंत्री भी हैं जिन्होंने अपनी पत्नियों को राजनीति से बिल्कुल दूर रखा है। इनमें सबसे पहला नाम है गोपाल भार्गव। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पिछले साल करवा चौथ पर सारे मंत्रियों को अपनी पत्नियों के साथ मुख्यमंत्री निवास पर भोजन के लिए बुलाया था तो भार्गव सहित कुछ मंत्री अकेले ही वहां पहुंच गए थे। शिवराज ने उनको तब इस बात पर चटखारे भी लिए थे लेकिन सच तो यही है कि पिछले सात सालों में केवल एक मौका ही ऐसा आया जब भार्गव की पत्नी गढ़ाकोटा से भोपाल आईं और उनके सरकारी बंगले में रुकीं। नरोत्तम मिश्रा, राजेंद्र शुक्ल और पारस जैन आदि भी ऐसे मंत्री हैं जो पत्नियों को राजनीति के चमक-दमक भरे माहौल से दूर रखते हैं।
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मुख्यमंत्रियों की पत्नियों की राजनीतिक महत्वकांक्षा
मध्य प्रदेश की राजनीति में मुख्यमंत्रियों की पत्नियों की राजनीतिक महत्वकांक्षा किसी से छिपी नहीं है। इस प्रदेश का जो भी मुख्यमंत्री हुआ है यहां के राजनीतिक और प्रशासनीक वीथिका में उनकी पत्नी का प्रभावी हस्तक्षेप रहा है। मोतीलाल वोरा और दिग्विजय सिंह जरूर ऐसे अपवाद रहे हैं जिन्होंने अपनी पत्नी शांति वोरा और आशा सिंह को राजनीति के जंजाल से दूर रखा। जबकि श्यामाचरण शुक्ल के मुख्यमंत्रित्व काल में उनकी पत्नी पद्मिनी शुक्ल का दबदबा था। प्रकाशचंद्र सेठी के आने के बाद इस पर विराम लगा लेकिन अर्जुन सिंह के दौर में उनकी पत्नी सरोज सिंह का वजन होता था। एक ब्यूरोक्रेट ने तो उनके घरेलू नाम (बिट्टन) पर बाजार का नाम ही रख दिया था। बहुत कम लोगों को यह बात पता है कि नए भोपाल का मशहूर बिट्टन मार्केट सरोज सिंह के नाम पर ही है। यह नामकरण भी देश के ईमानदार प्रशासकों में शुमार हासिल एमएन बुच ने किया था। सुंदरलाल पटवा की पत्नी फूलकुंअर पटवा तो गाहे-बगाहे ही अपने पति के साथ किसी राजनीतिक कार्यक्रम में दिखीं लेकिन कैलाश जोशी की पत्नी तारा जोशी ने पूरी शिद्दत के साथ भाजपा की राजनीति में शिरकत की थी।
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