धर्म हो या फिर आध्यात्मिकता या फिर राष्ट्रीयता अगर इनको अतिवाद के साए में पोषित किया जाए तो वह खतरनाक हो सकता है और इसका सबसे ताजा और बड़ा प्रमाण हैं साध्वी प्रज्ञा चंद्रपाल सिंह ठाकुर और सुनिल जोशी। एक अध्यात्म तो दूसरा राष्ट्रीयता के सहारे अपने पथ पर गतिमान थे कि इनके बीच आ गए अतिवादी असीमानंद। फिर क्या था धर्म और अध्यात्म की चितेरी साध्वी प्रज्ञा और राष्ट्रीयता के ओज से भरे सुनील जोशी अपना पथ भटक गए। साध्वी प्रज्ञा देखते ही देखते एक दिन देश की कुख्यात आतंकवादी मान ली जाएंगी ऐसा कभी स्वयं उन्होंने भी नहीं सोचा होगा और बेचारे जोशी तो अब रहे नहीं।
हिन्दुत्व पर आतंकवाद का धब्बा लगाने वाले प्रज्ञा और सुनील जोशी मध्य प्रदेश के निवासी थे। वर्ष 2003 में इंदौर में आयोजित एक कार्यक्रम में दोनों की मुलाकात हुई। अपनी आकर्षक छवि के कारण प्रज्ञा उसी दिन से सुनील जोशी के मन मंदिर में बस गई। मूलत: मध्य प्रदेश की निवासिनी 40 वर्षीय प्रज्ञा के अभिभावक कुछ साल पहले गुजरात के सूरत में जाकर बस गए थे इस लिए इनकी मुलाकात कम ही हो पाती थी। जहां एक तरफ जोशी प्रज्ञा से शादी करने का ख्वाब संजोए हुए था वहीं प्रज्ञा को जानने वाले बताते हैं कि उसे बचपन से ही जगत की भौतिकता से एलर्जी सी हो गई थी। हालांकि साध्वी ने वर्ष 2003 में ही साध्वी का चोला धारण करना शुरू कर दिया था लेकिन उन्होंने कोर्ट में प्रस्तुत अपने हलफनामें में कहा है कि वे 30 जनवरी 2007 को संन्यासिन बनी। बताते है कि प्रज्ञा चंद्रपाल सिंह ठाकुर संन्यासिन तो बन गई लेकिन उनमें आध्यात्मिकता का गुण नहीं समा सका। बात-बात में आक्रोशित होना उनके ठाकुरपन को दर्शाता था। उन्हें यह बात अच्छी तरह मालुम थी कि अध्यात्म का सबसे बडा और महत्वपूर्ण सूत्र है संयम। अध्यात्म का मार्ग बहुत लम्बा और साधना का मार्ग है, किन्तु संयम का पालन कर अध्यात्म की साधना व्यवहार के धरातल पर भी की जा सकती है। बस सीमाकरण कर दो। हिंसा को कम करने का, कलह और संघर्ष को मिटाने का एक महत्वपूर्ण सूत्र है संयम,जिसकी कमी साध्वी होने के बाद भी उनमें नजर आती थी।
सुनील जोशी मध्यप्रदेश के देवास में एक बेहद गरीब परिवार से जन्मा था लेकिन उसकी महत्वकांक्षाएं बड़ी थी। 1999 में वह महू जिले में संघ का जिला प्रचारक बन गया, जहां कुछ ही समय में वह कट्टर हिंदुत्ववादी के रूप में पहचाना जाने लगा। संघ में उसे गुरूजी के नाम से जाना जाता था। सुनील बचपन से ही अति उत्साही प्रवृति का था जो जवानी में और भी परवान चढ़ी। उसकी इसी रॉबिनहुड वाली छवि की साध्वी भी कायल थी। प्रज्ञा जबसे सन्यासिन बनी उनका अधिकत्तर समय जबलपुर के आश्रम में बीतता था। इस दौरान सुनील जोशी भी उनके संपर्क में रहता था। मेल- मुलाकातों का सिलसिला ऐसा चला कि सुनील जोशी के एक तरफा प्यार का अहसास साध्वी को भी होने लगा और वह भी उसे प्यार करने लगी।
दोनों का प्यार कुछ इस कदर परवान चढ़ा की प्रज्ञा धर्म और अध्यात्म को तो जोशी हिन्दुत्ववादी राष्ट्रीयता को भूल गया। जोशी एक पल के लिए भी प्रज्ञा से अलग नहीं होना चाहता था लेकिन अध्यात्मिकता का चोला ओढ़े प्रज्ञा के लिए यह संभव नहीं था।
इसी दौरान 2003 में ही प्रज्ञा सिंह ने सुनील जोशी का संपर्क असीमानंद से कराया। पहली मुलाकात में ही जोशी अपनी हिन्दुत्ववादी आक्रामक छवि के कारण असीमानंद की पसंद बन गया। असीमानंद 2002 में हिन्दू मंदिरों पर हुए धमाकों से वे बहुत विचलित थे और प्रज्ञा सिंह और सुनील जोशी के अंदर अपने जैसी सोच देखकर उन्होंने उनके सामने अपनी मंशा जाहिर कर दी।
स्वामी असीमानंद मूलत: पश्चिमी बंगाल के हुगली के हैं। ऊंची तालीम हासिल असीमानंद कभी नब कुमार थे, फिर उन्हें पुरुलिया में काम करते देखा गया। स्वामी वर्ष 1995 में गुजरात के आहवा में अवतरित हुए और हिंदू संगठनों के साथ हिंदू धर्म जागरण और शुद्धिकरण का काम शुरू किया। मगर वो कम से कम दो दशक से मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र्र जैसे राज्यों में ही सक्रिय रहे। स्वामी असीमानंद ने मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के कोई 12 जि़लों में अपने हंदू प्रभाव का तानाबाना बुन रखा था। वे अपना कामकाज दक्षिण गुजरात के पांच जि़लों- डांग और खेड़ा, उत्तरी महाराष्ट्र्र के नंदनवार और पश्चिमी मध्य प्रदेश के झाबुआ में फैला रखा था, मगर उनका केंद्र गुजरात के डांग जि़ले में आहवा था। यहीं उन्होंने शबरी माता का मंदिर बनाया और शबरी धाम स्थापित किया।
हिन्दू धार्मिक स्थलों पर हुए धमाकों का बदला लेने के लिए असीमानंद काफी उतावले थे। अपनी इस रणनीति को अंजाम तक पहुंचाने के लिए असीमानंद को वर्ष 2004 में उज्जैन के सिंहस्थ कुंभ में मौका मिल गया। वहां एक बैठक हुई जिसमे प्रज्ञा सिंह, सुनील जोशी, रामजी कलसंगरा, देवेन्द्र गुप्ता और अन्य अनेक लोग मौजूद थे। इस बैठक में हिंदू धर्मस्थलों पर मुस्लिम चरमपंथियों के हमलों पर गुस्सा जाहिर किया गया और कहा सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठे है, लिहाजा खुद के दम पर कुछ किया जाए। यहीं वह बैठक थी जहां पर सुनील जोशी हिन्दुत्ववादी राष्ट्रीयता के भ्रामक छलावे में आ गया और उसकी आदते बिगडऩे लगी।
सूत्र बताते हैं कि इस बैठक में असीमानंद ने जोशी का इस तरह माईंड वाश किया कि वह अपराध की डगर पर चल पड़ा। देवास के कुछ आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों से उसकी नजदीकी बढ़ी। वह लोगों को डरा-धमका कर पैसा उगाहने लगा। जोशी की पैसा कमाने की ललक ने प्रज्ञा बहुत आहत थी। उसने इसके लिए कई बार जोशी को रोकने की कोशिश की लेकिन वह माना नहीं। बताते हैं कि वह पैसा कमाने के पीछे इस कदर पागल हो गया था कि वह प्रज्ञा को भी प्रताडि़त करने से नहीं चुकता था।
उधर असीमानंद बराबर इनके संपर्क में रहते थे। धीरे-धीरे मुलाकातों का जब दौर बढ़ा तो देश भर में बम धमाकों की साजिश रची गई। हैदराबाद, अजमेर, मालेगांव और समझौता एक्सप्रेस में बम रखने का फैसला इन्हीं मुलाकातों के दौर में किया गया। असीमानंद के अनुसार जोशी 2006 के मालेगांव बम धमाके की साजिश में भी शामिल था और हैदराबाद की मक्का मस्जिद, अजेमर और समझौता एक्सप्रेस में हुए ब्लॉस्ट में भी उसका पर्दे के पीछे बड़ा रोल था।
बताते हैं कि मालेगांव ब्लास्ट के बाद से जोशी और आक्रामक हो गया था। निनामा हत्याकांड के बाद से ही फरार चल रहे सुनील जोशी उर्फ गुरुजी ने इस अवधि में लगभग 1 करोड़ से अधिक की संपत्ति इक_ा कर ली थी। शराब व्यवसाय, सोना-चाँदी के अलावा वायदा सौदे में भी गुरुजी ने लाखों रुपए निवेश किए थे। निनामा हत्याकांड के बाद से फरार हुए जोशी ने 4 वर्ष में 1 करोड़ से अधिक की संपत्ति बना ली थी। देवास की चूना खदान क्षेत्र में रहने के दौरान जोशी ने विभिन्न स्रोतों से धन एकत्रित करना शुरू कर दिया था। रामचरण खाती के साथ मिलकर उसने ग्राम पालनगर में खली-बीज का व्यवसाय शुरू किया था। वासुदेव परमार के साथ मिलकर उसने परमार के फोटो स्टूडियो के पास एक दुकान भी खरीद ली थी। जितेंद्र निवासी डकाच्या और शिवम धाकड़ के साथ मिलकर जोशी ने शराब के दो ठेके भी ले लिए थे। इतना ही नहीं, उसने आनंदराज कटारिया के साथ मिलकर वायदा सौदों और सोने-चाँदी के व्यवसाय में लाखों रुपए निवेश कर दिए थे।
नवंबर-दिसंबर 2007 में हत्या के कुछ समय पहले ही उसने आनंदराज और वासुदेव के साथ मिलकर फर्स्ट फ्लाइट कोरियर सर्विसेज की फ्रेंचाइजी ले ली थी। जोशी के भतीजे अश्विन और मेहुल उर्फ घनश्याम को गीता भवन क्षेत्र स्थित फर्स्ट फ्लाइट कोरियर पर प्रशिक्षण के लिए भेजा था। इंदौर में भी परफेक्ट कोरियर एजेंसी संचालन के लिए आनंदराज कटारिया की दुकान का इस्तेमाल किया था। दुकान के बदलाव सहित फर्नीचर आदि पर भी जोशी ने ही भारी धनराशि खर्च की थी। 2007 में इसका उद्घाटन भी जोशी और उसके साथियों ने किया था। इसके अलावा आनंदराज के साथ ही जोशी ने व्यावसायिक गतिविधियों के लिए बोलेरो गाड़ी भी खरीद ली थी। जोशी की जिंदगी में अभी तक सब कुछ ठीक था कि 29 दिसंबर 2007 को देवास के चूना खदान क्षेत्र में उनकी की गोली मारकर हत्या कर दी गई। जोशी की हत्या से पहले पुलिस उसे सिर्फ निनामा हत्याकाण्ड का आरोपी मानती रही, लेकिन अब तीन साल बाद जोशी की हत्या हिन्दुस्तान की तमाम जांच एजेंसियों के लिए रहस्य है।
सूत्र बताते हैं कि आरएसएस प्रचारक सुनील जोशी की हत्या की वजह एक महिला बनी थी। उस महिला से संबंधों को लेकर जोशी और उनके साथियों के मध्य मतभेद थे। इधर जोशी और प्रज्ञा में आपसी मतभेद भी हो गए थे, जो पैसों को लेकर और बढ़ गए थे। जोशी के होते हुये प्रज्ञा सिंह अपना वर्चस्व स्थापित नहीं कर पा रही थी लिहाजा प्रज्ञा सिंह ने सुनील जोशी की हत्या की साजि़श रच डाली। पुलिस की चार्जशीट में बताया गया कि जोशी ने साध्वी के साथ व्यक्तिगत तौर पर बुरा बर्ताव किया था, इसलिए भी साध्वी उससे नाराज थी। साथ ही जोशी पार्टी और दूसरे स्रोतों से मिले पैसे का भी दुरुपयोग करता था। चार्जशीट के मुताबिक, जोशी हर्षद मेहुल, राकेश और उस्ताद के साथ भी बुरा बर्ताव करता था। ये लोग बेस्ट बेकरी केस में फरार थे। 1 मार्च 2002 को इस मामले में 14 लोग जिंदा जल गए थे। ये चारों जोशी के साथ देवास में छिपे थे। ये कुछ कारण थे जिसके कारण 2006 में जोशी और साध्वी के बीच विवाद हो गया।
जोशी की भतीजी चंचल के अनुसार महीनों तक साध्वी प्रज्ञा और सुनील जोशी में बातचीत नहीं हुई। प्रज्ञा दीदी का घर आना भी कम हो गया था चंचल ने कहा कि उसके चाचा अश्लील हरकत नहीं कर सकते क्योंकि वे दोनों अच्छे फ्रन्ड थे लव कपल थे। सुनील जोशी की भतीजी चंचल जोशी ने पुलिस की चार्जशीट पर टिप्पणी करते हुए किया है। चंचल के अनुसार सुनील की मां दोनो की शादी करना चाहती थी। साध्वी प्रज्ञा और सुनील जोशी दोनों की शादी के लिए दादी की इच्छा थी लेकिन सुनील चाचा का मन नहीं था सुनीता के अनुसार उनके संबंध बायफ्रेन्ड गर्लफ्रेन्ड की तरह थे चंचल के परिवार में सुनील जोशी की मां को यह शक था कि प्रज्ञा ने ही उसे मारा होगा वे गुस्से में कहती रहती थी कि प्रज्ञा आज कल आती नहीं है चाचू थे तब आती थी। चंचल ने बताया कि सुनील चाचा की मौत से पहले दोनों के बीच किसी पर्सनपल मेटर को लेकर लड़ाई हो गयी थी।
देवास पुलिस द्वारा कोर्ट में पेश चार्जशीट के मुताबिक सालभर पहले तक जोशी की करीबी रही प्रज्ञा उसकी अमर्यादित हरकतों से नाराज हो हिमालय आश्रम चली गई थी, लेकिन जोशी की मौत के बिना उसके दिल को सुकून नहीं था। इसलिए अगस्त 2007 में वह दिल्ली लौट गई और सुनील जोशी की हत्या की प्लानिंग शुरू कर दी।
प्लान को अंजाम तक पहुंचाने के लिए दिल्ली में वह आनंदराज कटारिया से मिली। यहीं पर उसने कटारिया के समक्ष जोशी को रास्ते से हटाने का इरादा जाहिर किया। अक्टूबर 2007 से वह अपने प्लान को अंजाम तक पहुंचाने के लिए इंदौर आ गई। यहां वह किराए के फ्लैट में रहने लगी। इस दौरान वह जोशी के रिश्तों व उसकी गतिविधियों पर नजर रखती रही। फिर उसने जोशी के करीबी रहे मेहुल उर्फ घनश्याम से संपर्क किया। मेहुल का विश्वास जीतकर उसने जोशी के साथ रहने वाले राज उर्फ हर्षद सोलंकी व मोहन उर्फ रमेश को भी जोशी की हत्या का साझेदार बनाया। 14 दिसंबर को इंदौर में प्रज्ञा के फ्लैट में एक गुप्त बैठक हुई। इस बैठक में वासुदेव परमार,आनंदराज कटारिया,मेहुल उर्फ घनश्याम,राज उर्फ हर्षद सोलंकी भी शामिल हुए। उसी दिन जोशी की मौत का प्लान बनाया गया जिसके बाद कटारिया, मेहुल, राज और वासुदेव परमार को काम बांटे गये। 29 दिसंबर 2007 को कत्ल का दिन भी आ गया। साध्वी के पास था मोबाइल नंबर 9425056114। इस फोन नंबर पर आनंदराज सुबह से ही लगातार प्रज्ञा सिंह से दिशा निर्देश लेता रहा। आनंद राज ने 4 बार प्रज्ञा सिंह को योजना के अंजाम देने की खबर दी।
इस मामले में चंचल ने कहा कि चाचा की मौत के बाद पूरा परिवार बिखर गया। दादी चाचा (सुनील) की मौत का सदमा नहीं बर्दाश्त कर सकी और उनकी मौत हो गई। उसने आगे कहा कि जब तक इस बात का खुलासा नहीं हुआ था कि चाचा की हत्या में संघ के लोगों का हाथ है, तब तक वे उनके यहां आया जाया करते थे, लेकिन जब से यह बात सामने आई है, उनका आना-जाना बन्द हो गया। इस बार 29 दिसम्बर को तो कोई तस्वीर पर हार तक चढ़ाने नहीं आया। चंचल ने कहा कि उसे यह जानकर दुख हुआ है कि उसके चाचा की हत्या उन लोगों ने की है, जो उनके साथ दिन रात रहते थे। अब उसे आरएसएस से नफरत है। चंचल ने कहा कि जिस रात चाचा की हत्या हुई, उस रात वे घर से चावल खाकर गए थे। वे मोटर साइकिल से बाहर निकले थे, मगर थोडी देर बाद वापस आ गये, क्योंकि गाड़ी पंचर हो गई थी। उसी वक्त उनके मोबाइल पर एक फोन आया तो उन्होंने जवाब दिया कि वे आ रहे हैं, मगर उसके बाद उनकी लाश आई।
चंचल ने कहा कि जिस दिन चाचा की हत्या हुई, उस दिन घर पर संघ का एक व्यक्ति रुका था। उसने कहा कि चाचा की हत्या के बाद प्रज्ञा दीदी घर आई थी। उस वक्त घर पर वह और उसकी छोटी बहन ही थी। चंचल ने कहा कि चाचा की मौत के बाद पूरा परिवार बिखर गया। दादी चाचा (सुनील) की मौत का सदमा नहीं बर्दाश्त कर सकी और उनकी मौत हो गई। चंचल ने कहा कि जिस रात चाचा की हत्या हुई, उस रात वे घर से चावल खाकर गए थे। वे मोटर साइकिल से बाहर निकले थे, मगर थोडी देर बाद वापस आ गये, क्योंकि गाड़ी पंचर हो गई थी। उसी वक्त उनके मोबाइल पर एक फोन आया तो उन्होंने जवाब दिया कि वे आ रहे हैं, मगर उसके बाद उनकी लाश आई। चंचल ने कहा कि जिस दिन चाचा की हत्या हुई, उस दिन घर पर संघ का एक व्यक्ति रुका था। उसने कहा कि चाचा की हत्या के बाद प्रज्ञा दीदी घर आई थी।
सुनील जोशी की भतीजी चंचल जोशी कहना है कि साध्वी प्रज्ञासिंह मास्टर माइंड हो सकती है ? क्योंकि वह हत्या वाली रात उनके घर आई थी और परिजनों को बिना कुछ बताये वो अटैची लेकर भी गयी थी चंचल का यह भी आरोप है कि मेहूल और राज को भगाने में भी उनका हाथ हो सकता है? अब पुुलिस ने जोशी हत्याकांड में न्यायालय में आरोप-पत्र दाखिल कर दिया है। पुलिस ने प्रज्ञा सिंह ठाकुर, वासुदेव परमार, आनंदराज कटारिया, राज उर्फ हर्षद सोलंकी पर जोशी हत्या का षड्यंत्र रचने और हत्या करने का आरोप लगाया है। इसके साथ ही रामचरण पटेल पर साक्ष्य नष्ट करने का आरोप लगाया गया है। पुलिस ने प्रज्ञा सिंह सहित पाँचों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया जबकि मोहन उर्फ मेहुल उर्फ घनश्याम घटना के बाद से ही फरार है।
चार्जशीट में यह भी दावा किया गया है कि जोशी के मर्डर के दिन प्रज्ञा इंदौर में ही थी। उसके मोबाइल के कॉल डिटेल बताते हैं कि वह इन आरोपियों से लगातार संपर्क बनाए हुए थी। पुलिस का कहना है कि जोशी को हर्षद सोलंकी ने दूसरों की मौजूदगी में एक वीरान ईंट भ_े पर गोली मारी थी। इसके बाद सभी लोग आनंद राज द्वारा मुहैया कराई गाड़ी में बैठकर चले गए।
देवास पुलिस ने आरएसएस कार्यकर्ता सुनील जोशी की हत्या के मामले में हाल ही में चार्जशीट फाइल की है, जिसमें साध्वी प्रज्ञा सिंह की साथी रही नीरा नरवर का भी पूरा बयान शामिल है। नरवर काफी समय साध्वी के साथ रहीं और उन्होंने विस्तार से पुलिस को जानकारी दी हैं। साध्वी की करीबी रहीं नरवर ने 29 दिसंबर 2007 को हुई सुनील जोशी की हत्या के बारे में कहा कि साध्वी उन्हें उस दिन अपने साथ देवास ले गईं। उन्होंने कहा कि यह वे दावे से नहीं कह सकतीं कि साध्वी हत्या में शामिल थीं या नहीं, लेकिन वे काफी परेशान थीं। वे लगातार किसी व्यक्ति से पूछ रहीं थीं कुछ मिला क्या। नरवर के अनुसार वे दोनों उसी रात को इंदौर लौट आए। साध्वी सुबह करीब 4 बजे कुछ देर के लिए किसी से मिलने बाहर गईं। उन्होंने राज मेहुल और मोहन के सिम कार्ड लेने के प्रयास भी किए। ये तीनों जोशी हत्याकांड में आरोपी हैं।
समझौता ब्लास्ट, अजमेर ब्लास्ट और नांदेड़ ब्लास्ट में साध्वी प्रज्ञा का शामिल होना और स्वामी असीमानंद के खुलासे के बाद बड़ी जांच एजेंसियों का ध्यान अब इस एंगल पर है कि कैसे वे सभी लोग जो साध्वी प्रज्ञा, असीमानंद, कर्नल पुरोहित और सुनील जोशी से जुड़े थे, या तो उनका कत्ल हो गया या वे गायब हो गए। जांच से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि उच्चस्तर पर सारा ध्यान अब इस बिंदू पर केंद्रित है कि साध्वी प्रज्ञा के लिए खतरनाक साबित होने वाला हर संभावित व्यक्ति, कैसे, कब और क्यों गायब हो गया। एजेंसियां यह जांच कर रही है कि सोलंकी द्वारा मामूली बात पर जोशी की हत्या करना, कलोदा की लाश मिलना, गवाह पवार का गायब होना, रामजी कलसांगरा, संदीप डांगे और मनीष कालानी की गुमशुदगी की कड़ी कहीं आपस में जुड़ी हुई तो नहीं है। बताया जा रहा है कि रामजी के बाद संदीप डांगे अहम नाम के रूप में सामने आया है, जो घटनाएं हुर्इं उनमें रामजी के बाद डांगे को ही ज्यादा जानकारी थी।
मालेगांव-अजमेर ब्लास्ट के सूत्रधार और आरएसएस के पूर्व प्रचारक सुनील जोशी मर्डर केस की फिर से जांच के सवाल पर राज्य सरकार का फिलहाल मूड आफ है। दरअसल नेशनल इन्वेस्टिगेटिव एजेंसी (एनआईए) अब इस मामले क ी जहां अपने स्तर पर जांच करना चाहती है वहीं राज्य सरकार इसके लिए राजी नहीं है। डीजीपी एसके राउत दो टूक कहते हैं,जांच पूरी हो चुकी है और चालान कोर्ट में है। ऐसे में फिर से जांच का औचित्य नहीं है। सूत्रों के मुताबिक इसके विपरीत जोशी मर्डर केस पर एनआईए को अभी भी एक बड़ी मिस्ट्री दिखती है। रहस्य आखिर क्या है?
जानकारों के अनुसार वैसे भी ऐसे किसी मामले में एनआईए एक्ट के तहत केंद्र को राज्य से अनुमति लेकर जांच नेशनल इन्वेस्टिगेटिव एजेंसी को सौंपने की जरूरत नहीं होती है तब केंद्र के इशारे पर एनआईए प्रदेश सरकार से जांच सुपुर्द करने का स्वांग क्यो रच रही है? गौरतलब है, केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम पहले ही जोशी मर्डर केस की जांच नेशनल इन्वेस्टिगेटिव एजेंसी से कराने का एलान कर चुके हैं।
केंद्र को अगर जोशी मर्डर केस में मिस्ट्री दिखती है तो इसमें अनुचित कुछ भी नहीं है। इस मामले में एनआईए से जुडेÞ सूत्रों के इस दावे में दम है कि संघ के पूर्व प्रचारक सुनील जोशी का नाम अजमेर और हैदराबाद ही नहीं समझौता बम धमाकों से भी जुड़ा था। लेकिन तीनों ब्लास्ट की जांच कभी भी एक साथ एक ही एजेंसी ने नहीं की है।
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