जुगलबंदी वाले होंगे सत्ता से बाहर
एक तो करौला ऊपर से नीम चढ़ा वाली कहावत इन दिनों मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार के मंत्रियों पर खरी उतर रही है। यानी पहले से ही विवादित (करैलानुमा) कुछ मंत्रियों को ऐसे अफसरों (नीमनुमा )का साथ मिल गया है जिससे सरकार की छवि दागदार हो रही है। इससे भाजपा में शुद्धिकरण के सारे प्रयास विफल हो रहे हैं। ऐसा भी नहीं की इसकी भनक सरकार और संगठन को नहीं है। अपने कदावर मंत्रियों की करतूते जानने के बाद भी सरकार मजबूर है लेकिन संगठन ने शुद्धिकरण के लिए किसी भी हद तक जाने का मन बना लिया है।
सत्ता पाते ही राम को धोखा देने वाले भाजपाईयों की लूटखसोट को लेकर अब पार्टी के सत्ता वाले प्रदेशों में चल रहे गफलत को लेकर पार्टी हाईकमान न केवल चिंतित है बल्कि कड़ाई बरतने का संकेत दिया है। बताया जाता है कि मध्यप्रदेश में इन दिनों मंत्रियों कि करतूतों को लेकर उच्च स्तर पर जबरदस्त बवाल मचा है। ्रसूत्र बताते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा, संगठन महामंत्री अरविन्द मेनन और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की नई तिकड़ी इस मामले में परफार्मेंस और पार्टी के प्रति निष्ठा को आधार बनाकर बड़े निर्णय ले सकती है। भारत-श्रीलंका के बीच हुए क्रिकेट विश्व कप फाइनल के दौरान तीनों नेताओं की एक साथ उपस्थिति से अटकलों का बाजार गर्म है कि मंत्रिमंडल में फेरबदल कर या उनके विभाग बदल कर इन विवादित मंत्रियों को सबक सिखाया जा सकता है ताकि मंत्रियों और अधिकारियों की जुगलबंदी से निजात मिल सके। सत्ता और संगठन की बक्र दृष्टि जिन मंत्रियों पर पडऩे की संभावना व्यक्त की जा रही है उनमें रामकृष्ण कुसमरिया, राजेंद्र शुक्ला, रंजना बघेल,जगदीश देवड़ा,पारस जैन और करण सिंह वर्मा का नाम शामिल है।
शिवराज सिंह चौहान सरकार पर मंत्रियों के विभाग और की निजी स्थापना में पदस्थ अधिकारी भारी पड़ रहे हैं। मुख्यमंत्री ने खुद स्वीकार किया है कि उनकी कैबिनेट के तीन सहयोगियों के विशेष सहायकों के खिलाफ लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू जांच कर रहा है। इस स्वीकारोक्ति के बाद भी ये अधिकारी मंत्रियों के खासमखास बने हुए हैं। सरकार के कामकाज में पारदर्शिता और स्वच्छता की वकालत के बीच मंत्रियों के निज सचिव, निज सहायक और विशेष सहायक जब-तब भ्रष्टाचार और अनियमितता को लेकर सुर्खियां बटोरते रहे हैं। इस मामले में दो मंत्रियों के विशेष सहायकों को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को खुद पहल कर हटवाना भी पड़ा था। भाजपा संगठन की नजर भी इस मामले में कुछ विशेष सहायकों पर टेढ़ी थी, लेकिन अभी भी तीन मंत्रियों के विशेष सहायक ऐसे हैं जिनके खिलाफ गंभीर मामलों में लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू में प्रकरण दर्ज है।
प्रदेश में दूसरी बार भाजपा की सरकार बनने के बाद मंत्रियों के निजी स्टाफ में पदस्थ होने वाले अधिकारियों एवं कर्मचारियों के बारे में संगठन ने गाइडलाइन जारी की थी। पचमढ़ी में हुए मंत्रियों के चिंतन शिविर में मंत्री स्टाफ को प्रशिक्षण देने का निर्णय लिया गया था, लेकिन उस पर अमल नहीं हो सका। अपने पीए की कारगुजारियों के कारण जो मंत्री सरकार के लिए संकट खड़ा कर रहे हैं उनमें रामकृष्ण कुसमरिया, राजेंद्र शुक्ला, जगदीश देवड़ा, रंजना बघेल के काम-काज की भी संगठन अपने स्तर पर जांच करा चुका है और इन मंत्रियों को सफाई देने के लिए प्रदेश अध्यक्ष के दरबार में जाना पड़ा। विवादित बयानों और अक्षम कार्यशैली के चलते कृषि मंत्री कुसमरिया पहले से ही किसान संघ के सीधे निशाने पर हैं।
विवादित जोडिय़ां———-
रामकृष्ण कुसमरिया और उमेश शर्मा-
अपनी बेबाक टिप्पणी के लिए बदनाम रामकृष्ण कुसमरिया और उमेश शर्मा की जोड़ी हमेशा विवादों में रहती है। बाबाजी के नाम से जाने वाले कुसमरिया अपने पीए के कारण बदनामी और तमाम आरोप झेल रहे हैं। उन पर पीए के माध्यम से वसूली के आरोप हैं। पशुपालन मंत्री रहते हुए मछली ठेके गलत तरीके से दिए, जिस पर विवाद हुआ। इसी वजह से उनसे विभाग छिना। पिछले दो साल से जैविक नीति का राग अलाप रहे हैं, लेकिन आज तक नीति का अता-पता नहीं। मंत्री से पहले जब सांसद थे, तब मिस्टर टेन परसेंट कहलाते थे। मंत्री के रूप में भी यही पहचान। अधिकारियों में नूरा-कुश्ती कराने में माहिर।
वहीं उनके पीए उमेश शर्मा मूलत डीएसपी हैं, लेकिन किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री रामकृष्ण कुसमरिया उन्हें अपना विशेष सहायक बनाए हुए हैं। कहा जाता है कि कृषि विभाग में शर्मा की मर्जी के बिना पत्ता तक नहीं खड़कता। उन्हें विशेष सहायक बनाने का मामला खासा चर्चित रहा था, लेकिन अंतत: कुसमरिया की जिद मानी गई। शर्मा के खिलाफ 18 जून 1010 को ईओडब्ल्यू में प्रकरण दर्ज हुआ।
राजेंद्र शुक्ल और रमेश पाल
खनिज मंत्री राजेंद्र शुक्ल और रमेश पाल की जोड़ी भी खुब चर्चा में हैं। मंत्री पर खनिज माफिया को संरक्षण देने का आरोप है। अपने गृह जिले रीवा के पड़ोसी जिले सतना में समर्थकों को खनिज लूट की खुली छूट दी। कटनी और अन्य स्थानों पर खनिज चोरी पर आंखें बंद किए हुए हैं। बताया जाता है को मंत्री को यह सब आईडिया उनके पीए रमेश पाल ने ही दिए हैं। ये महाशय एडीशनल कलेक्टर कटनी के पद पर पदस्थ थे। इससे पहले मंत्रालय में नगरीय प्रशासन विभाग के उपसचिव जैसे मलाईदार पद पर रहे हैं। मंत्री की निजी पदस्थापना के लिए सरकार ने बातें तो बड़ी-बड़ी की, लेकिन विभागीय जांच से घिरे होने के बावजूद पाल को मंत्री का विशेष सहायक बना दिया गया। अपर कलेक्टर स्तर के राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रमेश पाल को भी खनिज एवं ऊर्जा राज्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल तमाम आरोपों के बावजूद अपना विशेष सहायक बनाए हुए हैं। पाल के खिलाफ छह दिसंबर 2010 को लोकायुक्त संगठन और 18 अगस्त 2010 को ईओडब्ल्यू में प्रकरण दर्ज हुआ। कहा जाता है कि खनिज विभाग में कोई भी निर्णय उनकी सहमति के बिना नहीं होता।
रंजना बघेल और अरूण निगम
प्रदेश में भाजपा की सरकार बनते ही संगठन ने मंत्रियों के निज स्टाफ में पदस्थ होने वाले अधिकारियों के कार्यों की जांच कराने के बाद ही इन्हें रखने के निर्देश दिए थे। खासकर कुछ मंत्रियों के स्टाफ में संघ से जुडे कार्यकर्ताओं को भी निज सहायक एवं निज सचिव बनाया गया है, लेकिन महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार श्रीमती रंजना बघेल एक ऐसे शिक्षक को पाल रही हैं जो कि भष्टाचार के मामले में गले-गले फंसे हुए हैं। वहीं रंजना बघेल पर कुपोषण के कलंक से परेशान सरकार ने पूरा भरोसा जताया,लेकिन धांधली के एक नहीं दर्जनों आरोप उन पर हैं। आरोप है कि विभाग को उनके पीए अरूण निगम चला रहे हैं। अधिकारियों की पोस्टिंग विभाग का सबसे अहम काम बना हुआ है। पोषण आहार सप्लाई के ठेके में भारी भ्रष्टाचार। अपने गृह जिले धार के ठेकेदारों को ही सर्वाधिक ठेके देने के आरोप उन पर हैं। कुपोषण के निपटने के तमाम प्रयास विफल हुए। अब अटल बाल आरोग्य मिशन में कुपोषण से निपटने के तरीकों से बजट खर्च करने की योजना पर ध्यान है। महिला एवं बाल विकास मंत्री रंजना बघेल के पीए अरुण निगम शिक्षा विभाग के भ्रष्ट अफसरों की सूची में शामिल रहे हैं। इन पर स्कूलों में होने वाले नलकूप खनन में लाखों रुपए की हेराफेरी के आरोप लगे हैं। इनकी शिकायत खरगोन के पूर्व सांसद इंदौर के मेयर कृष्णमुरारी मोघे ने इंदौर संभागायुक्त से की थी। बीते साल इंदौर संभागायुक्त ने निगम को तत्काल सेवा से बर्खास्त करने के लिए कलेक्टर खरगोन को सिफारिश भेजी थी। इनके खिलाफ पुलिस प्रकरण दर्ज करने के भी निर्देश दिए गए। मामला अदालत भी पहुंचा। अदालत ने संभागायुक्त के फैसले को सही ठहराया पर निगम सुरक्षित स्थान पर पहुंच ही गए हैं। भष्टाचार के आरोप में फंसे महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती रंजना बघेल के निज सहायक की विभागीय जांच शुरू हो गई है।
जगदीश देवड़ा और राजेन्द्र सिंह
जेल मंत्री जगदीश देवड़ा के विशेष सहायक राजेंद्र सिंह गुर्जर को सीएम के निर्देश पर पिछले साल ही पद से हटा कर मूल विभाग भेजा गया है। देवड़ा के साथ बीते छह-सात साल से जुड़े रहे राजेंद्र को हटाने की वजह खाचरौद जेल से सिमी के कार्यकर्ताओं को रिहा करने में उनकी भूमिका थी। लेकिन बताया जाता है कि इनको हटाने के लिए मंत्री पर पहले से ही दबाव था। वैसे तो राजेन्द्र सिंह कुछ समय पहले ही पदोन्नत होकर राजपत्रित हुए हैं, लेकिन देवड़ा जी के यहां ये ही सर्वशक्तिमान थे। इनके हाल ये थे कि मंत्री जी के निर्देशों का भी इन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था। परिवहन विभाग में एक साल में जितने लोग डेपुटेशन पर गए, उनके लिए लाइजनींग इन्होंने ही की थी।
पारस जैन और राजेंद्र भूतड़ा
खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति राज्यमंत्री पारस जैन शकर एवं दाल खरीदी के मामले के बाद अब फोर्टिफाइड आटे को लेकर गंभीर आरोपों से घिरे हैं। इनके विशेष सहायक राजेंद्र भूतड़ा ने मंत्री जी के नाम पर ठेकेदारों और अफसरों से जमकर वसूली की है। एक खाद्य निरीक्षक द्वारा आत्महत्या किए जाने को लेकर उसकी पत्नी ने भूतड़ा पर तबादले के लिए रिश्वत लेने के आरोप लगाए थे। इंस्पेक्टर के परिजनों ने मंत्री पर अरोप लगाए। लेकिन भूतड़ा को कुछ माह पहले मुख्यमंत्री के निर्देश पर हटाया गया था।
करण सिंह वर्मा अजय कुमार शर्मां
ईमानदारी के लिए मिसाल के तौर पर पहचाने जाने वाले राजस्व एवं पुनर्वास राज्यमंत्री करण सिंह वर्मा ने अजय कुमार शर्मां अपना विशेष सहायक बना रखा है। राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी शर्मा के खिलाफ 12 जनवरी 2009 को लोकायुक्त संगठन में प्रकरण दर्ज हुआ और जांच चल रही है।
पूर्व मुख्यमंत्री और नगरीय प्रशासन मंत्री बाबूलाल गौर पर एक बार फिर दबाव बनाया जा रहा है कि नगरीय प्रशासन विभाग छोड़ें, लेकिन गौर हर पखवाड़े केंद्रीय नेताओं से मिलकर अपना दबदबा जाहिर करते रहे हैं। दूसरी ओर अंत्योदय मेले के दौरान जिन राज्यमंत्रियों ने शिवराज सिंह का दिल जीता है उन्हें पदोन्नति का इंतजार है। इस सूची में बृजेंद्र प्रताप सिंह और हरिशंकर खटीक का नाम सबसे ऊपर है। यही नहीं, अजय विश्नोई के लिए भी कई केंद्रीय नेताओं का दबाव है। ग्वालियर का प्रतिनिधित्व करने वाले अनूप मिश्रा की वापसी के लिए मैदानी फील्ंिडग जम चुकी है, लेकिन राह में रोड़े अटकाने वालों की भी कमी नहीं है। मुख्यमंत्री से लेकर प्रदेश अध्यक्ष तक अनूप के प्रति सहानुभूति जता चुके हैं, लेकिन लंबे समय से अधर में है।
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