शनिवार, 29 नवंबर 2014
मोदी के निशाने पर दागी और नाकारा नौकरशाह
776 अफसरों पर गिरेगी गाज
-सक्रिय हुई जांच एजेंसियां...डरे बड़े नौकरशाह
-पीएम मोदी की हिट लिस्ट में मप्र कैडर के दो अफसरों सहित 34 आईएएस शामिल
-पिछले 10 साल में 157 आईएएस पर दर्ज हुए हैं भ्रष्टाचार के मामले
-71 की जांच कर रही सीबीआई
भोपाल। पिछले 10 साल में भ्रष्टाचार के मामलें में फंसे मप्र के 32 अधिकारियों सहित 776 नौकरशाहों पर कभी भी गाज गिर सकती है। केंद्र और विभिन्न राज्यों में पदस्थ इन अफसरों द्वारा किए गए भ्रष्टाचार की फाइल प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ ) और डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनेल ऐंड ट्रेनिंग (डीओपीटी)में खंगाली जा रही है। खासकर कांग्रेस नीत यूपीए सरकार के 10 साल के शासनकाल में हुए 38 घोटालों की जांच गंभीरता से हो रही है। इन तमाम घोटालों के सूत्रधार रहे नौकरशाहों की कुंडली पीएमओ द्वारा बना ली गई है। साथ ही केंद्र सरकार ने अब उन नाकारा अफसरों को घर बैठाने का मानस बना लिया है, जो कि किसी भी प्रकार के कामकाज करने की जरूरत तक महसूस नहीं करते। केंद्र सरकार के इस रूख से अफसरों में दहशत की स्थिति है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वरिष्ठ नौकरशाहों को संरक्षण प्रदान करने वाली दिल्ली स्पेशल पुलिस इस्टेबलिशमेन्ट कानून की धारा 6-ए को असंवैधानिक घोषित किए जाने और केंद्र में सत्ता परिवर्तन के बाद से ही नौकरशाही और जांच एजेंसियोंं की कार्यशैली का परिदृश्य भी बदलने लगा है। इसकी झलक पिछले कुछ दिनों के दौरान जांच ब्यूरो और प्रवर्तन निदेशालय के कदमताल से मिलती है। कल तक सत्ता तक पहुंच रखने वाले प्रभावशाली व्यक्तियों के मामले में ढुलमुल रवैया अपनाने वाली जांच एजेंसियां अचानक ही उन पर बेफिक्र होकर हाथ डाल रही हैं।
उल्लेखनीय है कि केंद्र के साथ ही विभिन्न राज्यों में पदस्थ 4619 आईएएस अफसरों में से 1476 किसी न किसी भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए हैं। सबसे पहले केंद्र में हुए भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों लिस्ट तैयार की गई है,उसके बाद राज्यों की। पहली लिस्ट में यूपीए सरकार के शासनकाल के मोस्ट करप्ट 34 अफसर मोदी सरकार के निशाने पर आए हैं। इसमें से दो अफसर मप्र कैडर के हैं। उसके बाद प्रदेशों में हुए भ्रष्टाचार के दोषी पाए गए अधिकारियों में से 738 को छांटा गया है जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर मामले सामने आए हैं। इसमें मप्र के 32 अधिकारियों के नाम शामिल हैं।
अगर पिछले दस साल का रिकार्ड देखें तो इस दौरान 157 आईएएस अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया गया है, जिसमें से 71 की जांच सीबीआई कर रही है। अपने लगभग पांच माह के शासनकाल में मोदी सरकार ने अभी तक कोई बड़ी उपलब्धि भले ही हासिल न की है,लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक्शन लेना शुरू कर जनता को भविष्य के लिए शुभ संकेत जरूर दिया है। भ्रष्टाचार के खात्मे और सुशासन देने का वादा कर सत्ता में आई मोदी सरकार ने अब भ्रष्ट अधिकारियों की एक लिस्ट तैयार कर ली है। लिस्ट में उन अधिकारियों के नाम शामिल है जिन पर यूपीए सरकार के 10 साल के शासनकाल में भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। ये 34 अधिकारी विभिन्न मंत्रालयों और सरकारी विभागों में कार्यरत बताए जा रहे है। मोदी सरकार की इस सूची से अधिकारियों में हडकंप मचा हुआ है तो वहीं भ्रष्टाचार के आरोप में फंंसे अफसरों को बुरे दिन का भय सता रहा है।
पीएमओ और डीओपीटी कर रहा जांच
हाल ही में पीएमओ और डीओपीटी के अधिकारियों की मीटिंग में भ्रष्टाचार का यह मसला उठा था। पीएमओ ने डीओपीटी से ऐसे करीब 200 केसों की रिपोर्ट 31 अगस्त तक मांगी थी। इसमें बताना था कि जांच हुई, तो उसमें क्या मिला और जांच रुकी, तो किस वजह से। डीओपीटी ने अपनी रिपोर्ट तैयार कर पीएमओ को सौंप दी है और अब उसकी जांच हो रही है। गौरतलब है कि नियुक्ति की कैबिनेट कमिटी के प्रमुख प्रधानमंत्री हैं और तमाम ट्रांसफर-पोस्टिंग में अंतिम फैसला उन्हीं का होता है। ऐसे में पीएमओ अफसरों का पूरा ब्योरा रख रहा है। सबसे बड़ी बात यह है की केंद्र के विभिन्न मंत्रालयों में पिछले 10 साल में पदस्थ रहे अधिकारियों के साथ ही प्रदेशों में पदस्थ रहे उन सभी आईएएस की फाइल खंगाली जा रही जो घोटालों में आरोपी बनाए गए हैं।
भ्रष्टाचार में हमारे अफसर तीसरे पायदान पर
पीएमओ और डीओपीटी द्वारा 1476 भ्रष्ट अधिकारियों में से जिन 776 अधिकारियों को दोबारा जांच के लिए जो सूची बनाई गई है उसमें सबसे अधिक उत्तर प्रदेश के अधिकारी हैं,जबकि दूसरे स्थान पर महाराष्ट्र के और तीसरे स्थान पर मप्र के अफसर हैं। उल्लेखनीय है कि भ्रष्टाचार के मामले में प्रदेश के 160 आईएएस अधिकारियों की फाइल को जांच के लिए पीएमओ और डीओपीटी द्वारा तलब की गई थी। प्रारंभिक जांच में प्रदेश के 32 अफसरों के मामलों को दूसरी जांच के लिए लिया गया है। इस जांच में जितने अधिकारी दोषी पाए जाएंगे,उन पर कार्रवाई की जा सकती है। यहां यह बताना उचित होगा कि केंद्र की मोदी सरकार ने सभी जांच एजेंसियों के साथ मिलकर नौकरशाहों की बेनामी और अवैध कमाई वाली संपत्ति जब्त करने की तैयारी कर रही है। इसके तहत मप्र के 302 आईएएस अधिकारियों की करीब 22,000 करोड़ की संपत्ति भी है,जिसका जिक्र इन अधिकारियों ने अपनी संपत्ति के ब्यौरे में नहीं दिया है। अधिकारियों की देश-विदेश में स्थित संपत्ति की पड़ताल के लिए आईबी, आयकर विभाग, सीबीआई सहित अन्य प्रादेशिक ईकाइयों को सक्रिय कर दिया गया है। उल्लेखनीय है कि मप्र के नौकरशाहों में से जिन 289 अफसरों ने अपनी संपत्ति का ब्यौरा दिया है उससे पीएमओं और केंद्रीय कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग संतुष्ट नहीं है। इसलिए जांच एजेंसियों से पड़ताल कराई जा रही है कि आखिरकार ये अफसर रातों-रात अमीर कैसे बन गए और इन्होंने अपनी संपत्ति कहां और किसके नाम से दबाई है। इनमें से कुछ तो सचिव स्तर के अधिकारी हैं। इनकी संपत्ति और आय के स्रोत की छानबीन से सरकार चलाने वाले इन ब्यूरोक्रेटों की रातों की नींद उड़ गई है।
ज्ञातव्य है कि पिछले तीन साल में देश भर में 39 आईएएस, 7आईपीएस समेत अब तक 54 नौकरशाह विभिन्न मामलों में दोषी पाए जा चुके हैं जबकि 260 से अधिक नौकरशाहों के खिलाफ मुकदमें चल रहे हैं। यह आकड़े 2010 से लेकर 6 अगस्त 2014 तक के हैं। इनमें ज्यादातर मामले भ्रष्टाचार से जुड़े हैं। 6 अगस्त तक भारतीय प्रशासनिक सेवा के 19, भारतीय पुलिस सेवा के 3 और संबद्ध केन्द्रीय सेवाओं के 67 अधिकारियों के खिलाफ जांच लंबित है। इसके अलावा भारतीय प्रशासनिक सेवा के 154, भारतीय पुलिस सेवा के 15 और अन्य संबद्ध केंद्रीय सेवाओं के 102 अधिकारियों के खिलाफ 180 मामलों में मुकदमें चल रहे हैं।
ईडी ने अफसरों का ब्योरा मांगा
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी)ने मप्र के करीब 70 अधिकारियों-कर्मचारियों सहित देशभर के करीब 2,455 अधिकारियों-कर्मचारियों के यहां मारे गए छापे का विवरण और संपत्ति की जानकारी मांगी है। ईडी मुख्यालय ने लोकायुक्त पुलिस संगठन से आय से अधिक संपत्ति के मामलों में 20 लाख रुपए से ज्यादा की संपत्ति के प्रकरणों की जानकारी उपलब्ध कराने को कहा है। ईडी ने पिछले तीन साल की यह जानकारी मांगी है। मप्र में सभी संभागीय लोकायुक्त इकाइयों द्वारा पिछले तीन साल में भ्रष्ट अफसर तथा कर्मचारियों के यहां की गई छापों की कार्यवाही की जानकारी एकत्र कराई गई है। करीब 70 अधिकारियों की करोड़ों रुपए की आय से अधिक के ये मामले शीघ्र ही ईडी को सौंपे जाने हैं। इनमें कई चर्चित मामले भी शामिल हैं। ईडी इन मामलों में अर्जित संपत्ति के स्रोत के बारे में नोटिस जारी कर संबंधितों से स्पष्टीकरण लेगी। संतोषजनक जवाब नहीं आने पर ईडी द्वारा अधिकारी-कर्मचारी की आय से अधिक संपत्ति अटैच कराई जाएगी।
अफसरों की संपत्ति पर लोकपाल की नजर
केंद्रीय लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम की नजरें भारतीय प्रशासनिक सेवा के सभी अधिकारियों पर गड़ी हैं। अधिकारियों को एक अगस्त तक स्थिति के मुताबिक संपत्ति का संशोधित ब्योरा 15 सितंबर से पहले वेबसाइट पर अपलोड किया जाएगा। वहीं राज्य सरकार ने भी अपने समूह क, ख और ग कार्मिकों को अपनी सपंत्ति का ब्योरा प्रति वर्ष 31 जुलाई की स्थिति के मुताबिक 31 अगस्त तक उपलब्ध कराने के निर्देश दिए हैं।
भ्रष्टों पर मुकदमा करने के लिए एसवीएस
अब सीबीआई को भ्रष्ट नौकरशाह पर केस चलाने के लिए उनके आकाओं की अनुमति के लिए वर्षों इंतजार नहीं करना पड़ेगा। सिंगल विंडो सिस्टम (एसवीएस) के तहत किसी भी आईएएस या आईपीएस के खिलाफ भ्रष्टाचार से सम्बंधित मुकदमा दर्ज करने की अनुमति सिर्फ भारत सरकार के कार्मिक प्रशिक्षण विभाग से मिलेगी। किसी भी राज्य में कार्यरत नौकरशाहों के लिए अनुमति सम्बंधित राज्य के मुख्य सचिव देंगे वो भी तीन महीने के भीतर, अगर अनुमति नहीं मिलती है तो फिर कार्मिक प्रशिक्षण विभाग भारत सरकार उस पर फैसले लेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल में उपरोक्त प्रस्ताव को हरी झंडी दी है और इसपर त्वरित गति से काम शुरू करने को कहा है।
सरकारी संरक्षण में भ्रष्ट अधिकारियों की संख्या बढ़ी
पीएमओ और डीओपीटी की अब तक की पड़ताल में यह बात सामने आई है कि यूपीए शासनकाल में सरकारी संरक्षण में भ्रष्टाचार की राह चलने वाले अफसरों की संख्या बढ़ती गई। साल 2012 में ऐसे अधिकारियों की संख्या तीन गुना से भी ज्यादा बढ़ गई। ये वे भ्रष्ट अधिकारी हैं जिनके खिलाफ जांच पूरी कर सीबीआई आरोप पत्र दाखिल करना चाहती थी, लेकिन यूपीए सरकार ने इसके लिए जरूरी अनुमति नहीं दी। इसके बाद सीबीआई ने 31 दिसंबर 2012 को ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों की सूची जारी की, जिनमें उनकी संख्या बढ़कर 99 हो गई। ये सभी अधिकारी कुल 117 मामलों में फंसे हुए थे। लेकिन सीबीआई द्वारा सूची जारी कर देने भर से भ्रष्ट अधिकारियों को मिल रहा सरकारी संरक्षण कम नहीं हुआ। सीबीआई की ताजा सूची में ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों की संख्या बढ़कर 165 हो गई है। इन 165 अधिकारियों के खिलाफ कुल 331 केस दर्ज हैं, जिनकी जांच पूरी हो चुकी है। यदि भ्रष्ट अधिकारियों और उनके खिलाफ दर्ज मामलों का अनुपात निकाला जाए तो एक भ्रष्ट अधिकारी औसतन भ्रष्टाचार के दो मामलों में लिप्त है। जांच एजेंसी को ठेंगा दिखाने वाले भ्रष्ट अधिकारियों में कस्टम व एक्साइज विभाग के अधिकारी अव्वल हैं। 165 अधिकारियों की सूची में अकेले कस्टम व एक्साइज विभाग के 70 अधिकारी हैं।
5 साल में 25,840 भ्रष्ट अफसरों पर मामला
केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) में वर्ष 2009 से लेकर 2013 तक 25,840 अधिकारियों के खिलाफ शिकायत पहुंची। जिनकी जांच में ये दोषी पाए गए और सीवीसी ने इनके विभागों को कार्रवाई करने का निर्देश दिया था। लेकिन कई विभागों ने भ्रष्ट अफसरों के प्रति नरम रवैया अपनाया। खास कर विदेश मंत्रालय और ओएनजीसी समेत कई सरकारी संस्थानों द्वारा भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ नरमी बरतने पर सीवीसी ने नाराजगी जताई। सीवीसी ने कहा कि भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई नहीं होने से अन्य अफसरों के हौसले भी बुलंद होंगे। सीवीसी द्वारा वर्ष 2013 के लिए तैयार की गई रिपोर्ट के मुताबिक गत वर्ष 17 मामलों में संबंधित संस्थानों ने भ्रष्ट अधिकारियों को दंडित नहीं किया या हल्की-फुल्की कार्रवाई कर छोड़ दिया। इनमें चार दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए), तीन रेल मंत्रालय, दो-दो दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) व ओएनजीसी के अधिकारी शामिल हैं। इसके अलावा केंद्रीय लोक निर्माण विभाग, दिल्ली जल बोर्ड, एलआइसी हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड, विदेश मंत्रालय, एसबीआई और भारतीय मानक ब्यूरो के एक-एक भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ भी पक्षपाती रवैया अपनाया गया।
सोशल साइट पर भी होगा भ्रष्ट अधिकारियों का ब्यौरा
भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार सख्ती के साथ ही भ्रष्टाचार करने वाले अधिकारियों का ब्यौरा विभाग की बेवसाइट से लेकर फेसबुक जैसी सोशल साइट पर भी डालने की तैयारी कर रही है। हालांकि इसमें पुराने मामलों को अपलोड नहीं किया जाएगा। हालांकि अभी पीएमओ और डीओपीटी के बीच इस पर विचार-विमर्श चल रहा है। उधर,भ्रष्टाचार रोकने और भ्रष्टाचारियों को सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा करने की मुहिम के तहत महाराष्ट्र एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी)ने तो सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर पेज बनाने की तैयारी शुरू कर दी है, जिस पर रिश्वत लेने वालों के फोटो डाले जाएंगे। एसीबी महानिदेशक प्रवीण दीक्षित ने बताया, भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी मुहिम तेज करने और ऐसे लोगों तक पहुंचने के लिए हम फेसबुक का मंच इस्तेमाल करने की योजना बना रहे हैं। एसीबी के प्रमुख प्रवीण दीक्षित ने भ्रष्टाचारियों पर नकेल कसने के लिए सरकारी दफ्तरों के बाहर एसीबी की मोबाइल वैन भी खड़ी करनी शुरू की है। ताकि लोगों तक पहुंचा जा सके और उनसे संवाद स्थापित किया जा सके। ऐसा होने से ज्यादा से ज्यादा लोग भ्रष्टाचार से जुड़ी अपनी शिकायतें एसीबी तक पहुंचा सकेंगे।
फेसबुक के जरिए ज्यादा लोगों तक पहुंचने की कवायद हालांकि एसीबी पहले भी भ्रष्ट अधिकारियों की फोटो अपनी वेबसाइट पर लगाती रही है, पर वह सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक के जरिए ज्यादा लोगों तक पहुंचना चाहती है। कई बार देखा गया है कि एक बार रिश्वत लेते पकड़े गए लोग जब दोबारा नौकरी पर आते हैं तो फिर घूसखोरी में लग जाते हैं। एसीबी के मुताबिक उनका यह निर्णय रिश्वतखोरी की घटनाओं को रोकने में मदद करेगा। एसीबी अधिकारियों का कहना है कि हम युवाओं से इस साइट को देखने को भी कहेंगे, ताकि भ्रष्ट अधिकारियों की फोटो उनके बच्चों तक भी पहुंचे और उन्हें यह पता लगे कि उनके अभिभावक कौन सा काम करते हैं। फोटो के साथ वेबसाइट पर यह भी लिखा जाएगा कि आरोपी अधिकारी कितने रुपए की रिश्वत लेते पकड़ा गया है और छानबीन के दौरान आरोपी के घर से कितने गहने व कितने नकद रुपए बरामद हुए हैं। एसीबी ने इस वर्ष 16 अगस्त तक भ्रष्टाचारियों को पकडऩे के लिए 744 व्यूह रचे, जो पिछले वर्ष की तुलना में 114 फीसदी अधिक है। इस दौरान 1009 सरकारी कर्मचारियों और उनके सहयोगियों को गिरफ्तार किया। गत वर्ष इसी अवधि के दौरान एसीबी ने 344 व्यूह रचे, जिनमें 452 लोगों को गिरफ्तार किया था।
शिवराज के राज में सबकी चूनर पर दाग
नौकरशाहों पर भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर मप्र भले ही तीसरे स्थान पर है लेकिन यहां के हर चौथे अधिकारी-कर्मचारी पर कोई न कोई आरोप है। पिछले 10 साल से जिस तरह के मामले उजागर हो रहे हैं, उनसे इतना तो साफ है कि चाहे नौकरशाही हो या फिर अन्य अधिकारी-कर्मचारी सबके सब भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं। पंचायत के सचिव से लेकर सरकार के बड़े अफसरों तक के यहां पड़े छापों में जो सच्चाई सामने आई है वह आंखें खोलने के लिए काफी है। हजारों कमाने वाला पंचायत सचिव करोड़ों का मालिक निकला तो लाखों कमाने वाला अफसर अरबों का। इस तरह के कर्मचारियों और राज्य स्तर के अधिकारियों की एक लंबी सूची है। राज्य सरकार दावा करती है कि प्रदेश में भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम उठाए जा रहे हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि अपने छापों को लेकर चर्चा में रहने वाला लोकायुक्त भी भ्रष्टाचार के मामलों में खुद को असहाय पाता है। आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों में तो लोकायुक्त के हाथ वैसे ही बंधे हुए हैं। इन वर्गों के अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए उसे केंद्र सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है। लेकिन राज्य सरकार के कर्मचारियों और अधिकारियों के मामले में भी हालात कमोबेश ऐसे ही हैं। लोकायुक्त के ताजा आंकड़े बताते हैं कि करीब 150 मामलों में भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए उसे प्रशासनिक स्वीकृति का इंतजार है। लोकायुक्त द्वारा समय-समय पर याद दिलाए जाने के बाद भी राज्य सरकार की तरफ से मंजूरी न दिया जाना सरकार की नीयत पर सवाल खड़ा करता है।
प्रदेश में हो रहें भ्रष्टाचार का आंकलन इससे भी किया जा सकता है कि पिछले 9 माह में प्रदेश में करीब 302 करोड़ की अवैध कमाई का खुलासा हुआ है। लोकायुक्त के छापे में अफसरों के घर, बैंक और तिजोरियों ने करोडों की संपत्ति उगली हैं। छापों में करोड़ों के सोने-चांदी के जेवरात, लाखों रुपए की नकदी और अकूत मात्रा में अचल संपत्ति मिली है। यही नहीं अदने से सरकारी कर्मचारियों से लेकर अधिकारियों के घर-परिवार में ऐसे ऐशोआराम-भोगविलासिता के सामान मिले हैं जो शायद अरबपति घरानों के यहां मिलते हैं। इंदौर संभाग के अलग-अलग सरकारी महकमों में भ्रष्टाचार का खुलासा करते हुए लोकायुक्त पुलिस ने पिछले 7 महीने में 46 कारिंदों को रिश्वत लेते रंगे हाथों धर दबोचा। एसपी (लोकायुक्त) वीरेन्द्र सिंह ने बताया, हमने जनवरी से जुलाई के बीच मिली शिकायतों के आधार पर 15 पटवारियों और 9 पुलिसकर्मियों समेत 46 सरकारी कर्मचारियों को रिश्वत लेेते रंगे हाथों गिर तार किया। उन्होंने बताया कि पिछले 7 महीने में लोकायुक्त पुलिस की इंदौर शाखा ने पांच सरकारी कर्मचारियों के ठिकानों पर छापे मारे और उनकी कुल 16 करोड़ रुपए की बेहिसाब संपत्ति का खुलासा किया। सिंह ने बताया कि लोकायुक्त पुलिस की इंदौर शाखा ने जनवरी से जुलाई के बीच भ्रष्टाचार के कुल 68 मामले दर्ज किए। इनमें सरकारी कर्मचारियों के आय के ज्ञात स्त्रोतों से ज्यादा संपत्ति रखने के पांच मामले शामिल हैं।
नाकारा नौकरशाहों की भी मंगाई रिपोर्ट
केंद्र सरकार दागी अफसरों के साथ ही अब नाकारा अफसरों पर भी नकेल कसने जा रही है। इसके लिए मोदी सरकार वर्ष 2011 दिसंबर महीने में मनमोहन सरकार द्वारा राज्यों को भेजे गए उस परिपत्र को आधार बना रही है जिसेअक्षम और नकारा नौकरशाहों की छुट्टी करने के लिए राज्य सरकार को भेजा था और जानकारी मांगी गई थी कि उनके राज्य में कितने अफसर नकारा है। उस समय इस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई और न ही केंद्र को रिपोर्ट भेजी गई। अब फिर से केंद्र सरकार ने राज्यों को याद दिलाया है कि वे अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों के कामकाज की समीक्षा करें और जो नकारा एवं अक्षम हैं उन्हें सेवानिवृत्त किया जाए। कम से कम 15 साल की सेवा करने वाले अधिकारियों की समीक्षा करने के निर्देश दिए हैं। इस आदेश के चलते अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों में हड़कंप मच गया है और वह अपने अपने हिसाब से रास्ते तलाश रहे हैं।
मप्र के दो दर्जन अफसर निशाने पर
केंद्र सरकार के नए निर्देश के बाद मप्र के करीब दर्जनभर नौकरशाह निशाने पर आ गए हैं। प्रदेश के कई नौकरशाहों पर भ्रष्टाचार के प्रकरण लोकायुक्त एवं आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो में चल ही रहे हैं इसके साथ ही एक दर्जन से अधिक अफसरों की गोपनीय चरित्रावली भी गड़बड़ है। इन अफसरों ने राष्ट्रपति तक दस्तक दी हुई है। सीआर खराब होने के चलते अधिकारियों को अब प्रमोशन में काफी दिक्कतें आती हैं। इसके साथ ही करीब एक दर्जन से अधिक और अधिक नौकरशाहों पर भी ऐसे सवाल खड़े हुए हैं जिनके खिलाफ विभिन्न आरोप एवं प्रत्यारोप जहां-तहां दर्ज हैं।
शिवराज सरकार बोली नाकारा नहीं है हमारे नौकरशाह
नाकारा अफसरों की छुट्टी किए जाने संबंधी केंद्र्र सरकार के फरमान से देश के नौकरशाहों में भले ही खलबली मची हो, लेकिन मध्यप्रदेश के नौकरशाहों को टेंशन लेने की जरूरत नहीं है क्योंकि सरकार ने यहां के किसी भी नौकरशाह को नाकारा नहीं मानती। सरकार की नजर में सभी का काम-काज बेहतर है। इसके पीछे मुख्य वजह है सरकार और नौकरशाहों की जुगलबंदी और अधिकारियों की कमी। मप्र में शिवराज सरकार की हैट्रिक का जितना श्रेय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता को दिया जा रहा है, उतने की ही भागीदार प्रदेश की नौकरशाही भी कही जा रही है। मुख्यमंत्री को लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचाने वाली योजनाएं बनाने से लेकर उन्हें क्रियान्वित करने वाले प्रदेश के नौकरशाहों की पीठ भी खुद मुख्यमंत्री थपथपा चुके हैं। इस बीच उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि प्रदेश में आईएएस अफसरों का जबर्दस्त टोटा है। दस-बीस नहीं 98 आईएएस अफसरों की कमी मप्र में है। मप्र कैडर में वर्तमान में 417 पद हैं। इनमें से 302 पद भरे हुए हैं। 115 पद अब भी खाली हैं। हालांकि इनमें वे 17 आईएएस अधिकारी शामिल हैं जो हाल ही राज्य प्रशासनिक सेवा से भारतीय प्रशासनिक सेवा में पदोन्नत किए गए हैं। यदि इन्हें भी शामिल कर लिया तो कैडर में अब भी 98 अफसरों की कमी है। मप्र कॉडर के 302 आईएएस अफसरों में से भी तीन अधिकारी, अरविंद जोशी, टीनू जोशी और शशि कर्णावत सस्पेंड हैं। शेष बचे अफसरों में से करीब 40 अफसर केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ हैं। इस तरह प्रदेश में केवल 259 आईएएस अफसर काम कर रहे हैं। ऐसे में प्रदेश सरकार नहीं चाहती है कि किसी नौकरशाह पर गाज गिरे।
बताते हैं कि केंद्र के निर्देश का अनुपालन करते हुए प्रदेश में आईएएस अफसरों की एसीआर का काम लगभग पूरा हो चुका है। एसीआर में ज्यादातर के काम-काज को बेहतर माना गया है। इसमें आउट स्टेंडिंग और गुड-वैरीगुड वालों की संख्या अधिक है। औसत एसीआर वालों की संख्या नगण्य है। ऐसा नहीं है प्रदेश में सभी आईएएस अफसर बेतहर है। कईयों के खिलाफ लोकायुक्त संगठन जांच कर रहा है तो कुछ के मामले ईओडब्ल्यू में चल रहे हैं। विभागीय जांच के घेरे में भी कई अफसर फंसे हैं। इसके बाद भी संबंधितों पर कार्यवाही नहीं हो रही है। आश्चर्य यह है कि बावजुद इसके सभी अफसरों के काम-काज को बेहतर माना गया है। इसके पीछे मप्र सरकार की एक दलील यह भी है कि अगर हमारे अफसर योग्य नहीं होते तो उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें अपनी महत्वपूर्ण योजनाओं की जिम्मेदारी क्यों सौंपते।
मोदी राज में मप्र के अफसरों की बहार
केंद्र के मंत्रालयों में मप्र कैडर के आईएएस अफसरों को जिस तरह तवज्जो मिली है उससे तो यही साबित होता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मप्र के अफसरों पर खासा भरोसा है। उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार में मंत्रियों के साथ मंत्रालयों के सचिवों को भी बराबर की तवज्जे दी जा रही है। मंत्रालयों के सचिव और आईएएस सीधे पीएम से मिल सकते हैं। केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर प्रदेश के तीन दर्जन से अधिक आईएएस पदस्थ हैं। इसमें से कुछ मोदी के करीबी हैं। पीएमओ में सचिव आर. रामानुजम की कार्यप्रणाली से मोदी इतने अधिक प्रभावित हैं कि सेवानिवृत्ति के बाद भी उनकी सेवाएं निरंतर रखी हैं। मोदी के कोर एजेंडे में शामिल कई योजनाओं को अमलीजामा पहनाने का श्रेय भी मप्र के अफसरों को जाता है। प्रधानमंत्री जनधन योजना को तैयार करने और उसके क्रियान्वयन में अनुराग जैन की महत्वपूर्ण भूमिका है। मोदी ने इन्हें योजना (मिशन) के निदेशक पद की जिम्मेदारी दी है। मध्यप्रदेश में नगरीय प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव रहे एसपीएस परिहार अब कैबिनेट सेक्रेटिएट में संयुक्त सचिव के तौर पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। कृषि को लाभ का धंधा बनाना भी सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट है। इसके लिए कृषि मंत्रालय की महत्वपूर्ण भूमिका है, यहां राघवचंद्रा संयुक्त सचिव पद की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। इनके अलावा स्नेहलता श्रीवास्तव अतिरिक्त सचिव वित्त मंत्रालय, राजन कटोच सचिव भारी उद्योग मंत्रालय, जेएस माथुर अतिरिक्त सचिव सूचना प्रसारण मंत्रालय,पीडी मीना विशेष सचिव भू-प्रबंधन, विमल जुल्का सचिव सूचना प्रसारण मंत्रालय,स्वर्णमाला रावला सचिव सार्वजनिक उपक्रम,प्रवेश शर्मा प्रबंध निदेशक लघु कृषक, कृषि व्यापार अल्पकालीन मंत्रालय,रश्मि शुक्ला शर्मा संयुक्त सचिव पंचायती राज,विजया श्रीवास्तव संयुक्त सचिव ग्रामीण विकास मंत्रालय,मनोज झालानी संयुक्त सचिव स्वास्थ्य,संजय बदोपाध्याय संयुक्त सचिव परिवहन,प्रमोद अग्रवाल संयुक्त सचिव परिवहन के पद पर पदस्थ हैं।
यही नहीं मध्य प्रदेश कैडर की आईएएस अधिकारी अलका सिरोही को अगले माह संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की नई अध्यक्ष बनाने की तैयारी है। यह पद संभालने वाली मप्र कैडर की वे पहली महिला आईएएस अधिकारी होंगी। वे वर्तमान अध्यक्ष रजनी राजदान का स्थान लेंगी। सिरोही इस समय आयोग की सबसे वरिष्ठ सदस्य हैं। आयोग की परंपरा रही है कि सबसे वरिष्ठ सदस्य ही आयोग का अध्यक्ष बनता है। अलका सिरोही जनवरी 2017 तक आयोग की अध्यक्ष रहेंगी। जनवरी 2012 में आयोग की सदस्य बनने से पहले वे कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के अधीन कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग की सचिव, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के खाद्य और सार्वजनिक विभाग की सचिव रह चुकी हैं। उन्होंने योजना आयोग के प्रधान सलाहकार के पद पर भी काम किया है।
मप्र में मोदी के निर्देर्शों की निकली हवा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशभर के नौकरशाहों को अपनी कार्यशैली में ढालने के लिए 11 सूत्रीय निर्देश दिए थे। प्रधानमंत्री के हवाले से कैबिनेट सचिव अजीत सेठ ने वर्किंग कल्चर और कार्यालय के वातावरण को और बेहतर करने के लिए वे 11 सूत्र वाले निर्देश सभी केंद्रीय सचिवों और प्रदेशों के मुख्य सचिवों को भेजा 5 जून को भेजा था तथा उन निर्देशों का तत्काल पालन करने को कहा था। लेकिन चार माह से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी मप्र में उनका पालन नहीं कराया जा सका।
पीएम मोदी का सबसे पहला निर्देश था कि सभी कार्यालयों की सफाई। कार्यालयों के गलियारों-सीढियों की साफ-सफाई। इन जगहों पर कार्यालय संबंधी सामाग्री या आलमारी नहीं दिखनी चाहिए। दूसरा यह कि कार्यालयों के अंदर फाइलों और कागजों को व्यवस्थित करके रखा जाए, जिससे काम करने का सकारात्मक माहौल बने। तीसरा यह कि कार्यालयों के साज-सज्जा और उसकी सफाई के संदर्भ में की गई कार्रवाई की रिपोर्ट हर रोज जीएडी के पास पहुंचनी चाहिए। चौथा यह कि सभी विभागों से कहा गया था कि वे उन 10 नियमों को बताएं या खत्म करें, जो अनावश्यक हैं, जिनका कोई मतलब नहीं है और उनको हटाने से कामकाज पर कोई प्रभाव नहीं पडेगा। पांचवा यह कि सभी विभागों के सचिवों को फॉर्म को छोटा करने का निर्देश दिया गया था। हो सके तो संबंधित विभागों के फॉर्म एक पेज का किया जाए। छठवां यह कि किसी भी काम पर निर्णय लेने की प्रकिया चार चरण से अधिक नहीं होनी चाहिए। सातवां काम को लटकाने की प्रवृत्ति खत्म की जाए। किसी भी फाइल या पेपर को तीन से चार सप्ताह के अंदर क्लियर किया जाए। आठवां नौकरशाह पावर प्वाईंट प्रजेंटेशन बनाएं, संक्षिप्त व प्रभावी नोट तैयार करें। फाइलों को भारी भरकम बनाने से बचें। नवां सभी सचिवों से 2009-14 के लिए तय किए गए लक्ष्य और उसकी वर्तमान स्थिति के बारे में विश्लेषण करने को कहा गया था। इसकी रिपोर्ट प्रधानमंत्री को दी जाएगी। दसवां सभी विभागों को एक टीम की तरह काम करने को कहा गया था। सभी स्तर पर नए विचारों का स्वागत किया जाए और ग्यारहवां यह कि सचिवों से सहयोगपूर्ण निर्णय लेने की प्रक्रिया की आवश्यकता बताई गई है। जैसे अगर कोई विभाग किसी मसले को सुलझा नहीं पाता है तो वे वरिष्ट अधिकारियों से संपर्क करें। लेकिन इसका अनुपालन मप्र में कहीं भी दिखाई नहीं देता। इसका खुलाशा मंत्रालय में सामान्य प्रशासन विभाग के मंत्री लालसिंह आर्य और अपने-अपने विभागों में महिला एवं बाल विकास मंत्री माया सिंह, उद्योग मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया, परिवहन मंत्री भूपेंद्र सिंह और पिछड़ा वर्ग मंत्री अंतर सिंह आर्य की छापामार कार्रवाई में सामने आ चुका है। इसलिए अब स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पीएम मोदी के निर्देशों का पालन कराने की ठानी है। उन्होंने इसके लिए विभागीय प्रमुखों को आवश्यक निर्देश भी दे दिया है।
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