शनिवार, 29 नवंबर 2014
5 साल में फर्जी कागजों पर बांट दिया 7200 करोड़ का लोन!
नान परफार्मिंग एसेट्स की आड़ में बैंकों में चल रहा लोन का खेल
-प्रदेश में बैंकों की 2207 शाखाएं शक के दायरे में
-सरकारी बैंकों के लोन प्रक्रिया पर सीबीआई की नजर
-सीबीआई कर रही सरकारी बैंकों के एनपीए की निगरानी
-हर साल बैंकों का चार खरब से ज्यादा पैसा डूब जाता
भोपाल। मप्र सहित देशभर की बैंकों में फर्जी कागजात से लोन बांटकर हर साल सरकार को चार खरब से अधिक का चूना लगाया जा रहा है। यह तथ्य अगस्त के पहले सप्ताह में सिंडीकेट बैंक में लोन घोटाले का प्रकरण सामने आने के बाद विभागीय और सीबीआई की जांच में सामने आया है। अकेले मप्र में पांच साल में करीब 7200 करोड़ रूपए अवैध तरीके से अपात्र लोगों या कंपनियों को लोन बांट दिया गया है। इस मामले में प्रदेश की 2207 शाखाओं को शक के दायरे में लिया गया है। मामला सीबीआई ने अपने हाथ में लिया है और वह सरकारी बैंकों के लोन प्रक्रिया पर नजर गड़ाए हुए है और बैंकों के एनपीए (नान परफार्मिंग एसेट्स यानी डूब सकने वाले कर्ज ) की निगरानी कर रही है। इस मामले में जल्दी ही कई बैंक अधिकारी, उद्योगपति, राजनेता और दलालों के नाम सामने आने वाले हैं। बैंकों में हो रहे घपलों की बात करें तो फर्जी कागजात से लोन हड़पने के मामले सर्वाधिक हैं। एसबीआई के एक अधिकारी के मुताबिक विभागीय जांचों में इसी तरह के मामले सबसे ज्यादा हैं। वह भी ऐसे जिनमें अधिकारियों, कर्मचारियों ने फर्जी नाम से लोन अप्रुव कराए और फिर उन्हें 'बैड लोनÓ में दिखा दिया। एनपीए यानी नान परफार्मिंग एसेट्स की आड़ में खेल काफी समय से हो रहा है। सीबीआई इसकी जांच कर रहा है।
दरअसल, सरकारी बैंकों में सुनियोजित तरीके से लोन के नाम पर फर्जीवाड़ा किया जा रहा है। अगस्त के प्रथम सप्ताह में जब सीबीआई ने सिंडीकेट बैंक के चेयरमैन और एमडी सुधीर जैन को उनके रिश्तेदार समेत चार अन्य लोगों के साथ गिर तार किया तो यह तथ्य पूरे देश के सामने आया की किस तरह नियमों को ताक पर रख रसूखदारों को लोन देने का खेल खेला जा रहा है। सीबीआई ने पहली बार आंतरिक जांच के आधार पर ऐसा कदम उठाया था और दो निजी कंपनियों प्रकाश इंडस्ट्रीज और भूषण स्टील की क्रेडिट लिमिट बढ़ाने के लिए 50 लाख की रिश्वत मामले में सिंडीकेट बैंक के चेयरमैन और एमडी सुधीर जैन को उनके दो रिश्तेदारों, प्रकाश इंडस्ट्रीज के चेयरमैन वीपी अग्रवाल समेत भूषण स्टील के नीरज सिंघल को भी हिरासत में ले लिया। सिंडिकेट बैंक में लोन की धांधली आने के बाद
के बाद अब यूको बैंक में बड़ी धांधली का पर्दाफाश हुआ है। यूको बैंक में करीब 6000 करोड़ रुपए के लोन बांटने में घोटाला हुआ है। इस घोटाले के सामने आते ही सरकार ने बैंकों पर नजर रखने और लोन मामलों की जांच करने की जि मेदारी सीबीआई को सौंप दी है। यही नहीं सरकार ने बैंकों की कुछ गैर निष्पादित आस्तियों (एनपीए) की सीमित फारेंसिक ऑडिट का आदेश दिया है, ताकि ऋण स्वीकृति में किसी तरह की अनियमितता का पता लगाया जा सके।
पांच साल में डूब चुके हैं 2,04,549 करोड़
देश में बैंकों में लोन का खेल किस तरह चल रहा है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले पांच वर्षो में बैंक 2,04,549 करोड़ रुपए के कर्ज को बट्टेखाते(डूबत खाते ) में डाल चुके हैं। इसका अर्थ है कि हर साल बैंकों का चार खरब से ज्यादा पैसा डूब जाता है। अकेले मप्र में ही इन पांच साल में करीब 7200 करोड़ का लोन डूबत खाते में पहुंच गया है। अब इन मामलों की फाइल फिर से खुली है। आल इंडिया बैंक इंप्लाइज एसोसिएशन का कहना है कि भ्रष्टाचार और राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण बैंकिंग सेक्टर लहूलुहान है। पिछले पांच साल में सार्वजनिक बैंकों की अनुत्पादक परिसंपत्तियों (एनपीए) में चार गुना इजाफा हो चुका है। अकेले वर्ष 2012-13 में बैंकों के 1.64 लाख करोड़ रुपए फंसे पड़े थे जो कोयला और टूजी घोटाले की रकम को टक्कर देते हैं। फिलहाल बैंकों के पास जनता के कुल 78,67,970 करोड़ रुपए जमा हैं जिनमें से 60,36,080 करोड़ रुपए उन्होंने बतौर कर्ज दे रखा है। कर्जे का बड़ा भाग कॉरपोरेट घरानों और बड़े उद्योगों के पास है। अनेक बड़े उद्योगों ने बैंकों से अरबों रुपए का ऋण ले रखा है जिसे वे लौटा नहीं रहे हैं। इसी कारण बैंकों की एनपीए 4.4 फीसद के खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी है। आल इंडिया बैंक इंप्लाइज एसोसिएशन ने हाल ही में एक सूची जारी की जिसमें एक करोड़ रुपए से ज्यादा रकम के 406 बकाएदारों के नाम हैं। इस सूची में अनेक प्रतिष्ठित लोगों और संगठनों के नाम शामिल हैं। सार्वजनिक बैंक किसान, मजदूर या अन्य गरीब वर्ग को कर्ज देते समय कड़ी शर्त लगाते हैं और वसूली बड़ी बेदर्दी से करते हैं। लेकिन जिन बड़े घरानों पर अरबों रुपए की उधारी बकाया है उनसे नरमी बरती जाती है। सीबीआई के निदेशक रंजीत सिन्हा ने तो यह बात सार्वजनिक मंच से कही है। उन्होंने कहा कि बैंक अपने बड़े अकाउंट धारकों की जालसाजी बताने में हिचकिचाते हैं, ऋण पुनर्निर्धारित कर उन्हें बचाने का प्रयास किया जाता है। बैंकों में जालसाजी के बढ़ते मामले इस बात का प्रमाण हैं कि यह धंधा सुनियोजित है।
पिछले तीन साल में गलत कर्ज मंजूरी और जालसाजी से बैंकों को 22,743 करोड़ रुपए का चूना लग चुका है। मतलब यह कि हर दिन बैंकों का 20.76 करोड़ रुपया डूब जाता है।
एक तरफ घोटाले दूसरी तरफ बढ़ रही शाखाएं
लोन घोटालों में सामने आने के बाद मप्र की 2207 बैंक शाखाएं सीबीआई की राडार पर हैं। इन सब के बावजुद प्रदेश में बैंक शाखाओं में लगातार वृद्धि हो रही है। वर्ष 2013 की तुलना में वर्ष 2014 के मार्च तक 466 नई बैंक शाखा खुलीं। इनमें ग्रामीण क्षेत्रों में 182, अर्ध-शहरी क्षेत्रों में 136 तथा शहरी क्षेत्रों में 148 शाखा शामिल हैं। वर्तमान में प्रदेश में कुल 6415 बैंक शाखा हैं। इनमें 2730 ग्रामीण क्षेत्रों में, 1975 अर्ध-शहरी तथा 1710 शहरी क्षेत्रों में हैं। बैंक शाखाओं में से 4102 वाणिज्यिक बैंक, 1121 सहकारी बैंक तथा 1192 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक हैं। प्रदेश की इन बैंक शाखाओं में मार्च 2014 की स्थिति में 2 लाख 49 हजार 525 करोड़ रुपए जमा हैं। यह पिछले वर्ष 2013 में जमा 2 लाख 20 हजार 689 करोड़ की तुलना में 28 हजार 836 करोड़ अधिक है। यह प्रदेश की आर्थिक प्रगति का सूचक है। इससे यह भी पता चलता है कि लोगों के पास पहले की तुलना में ज्यादा पैसा आ रहा है। घरेलू बचत के प्रोत्साहन तथा बैकिंग के जरिए उसके वित्तीय बाजार में संचार में वृद्धि का भी पता चलता है।
यही नहीं मप्र में मार्च 2014 की स्थिति में साख जमा अनुपात 66 प्रतिशत है, जो राष्ट्रीय मानक 60 प्रतिशत से अधिक है। इसी तरह कुल अग्रिम का प्राथमिक क्षेत्र में अग्रिम राष्ट्रीय मानक 40 प्रतिशत की तुलना में 59 प्रतिशत है। कुल अग्रिम में कृषि अग्रिम राष्ट्रीय मानक 18 प्रतिशत की तुलना में 34 प्रतिशत है। प्रदेश में कुल अग्रिम में कमजोर वर्गों को दिया गया अग्रिम कुल अग्रिम का 13 प्रतिशत है, जबकि इसका राष्ट्रीय मानक 10 प्रतिशत है।
प्रदेश में मार्च 2014 तक एक लाख 64 हजार 877 करोड़ का अग्रिम दिया गया इसमें 55 हजार 681 करोड़ कृषि क्षेत्र को, 22 हजार 937 लघु उद्योग क्षेत्र को तथा 21 हजार 271 करोड़ कमजोर वर्गों को दिया गया अग्रिम शामिल है।
प्रदेश में जिस तेजी से बैंकों का विस्तार हो रहा है उसी तेजी से इनमें घपले-घोटाले भी हो रहे हैं। बैंकों की शाखाओं का विस्तार आम आदमी के लिए हो रहा है, लेकिन उसका फायदा रसूखदार उठाते हैं। आम आदमी को लोन के लिए वेरिफिकेशन के नाम पर एडिय़ां घिसवा देने वाले बैंकों में गड़बडिय़ों का ग्राफ जांचने चलेंगे तो चौंक जाएंगे। अपने रीजन में ही विभिन्न बैंकों में छोटी-बड़ी गड़बडिय़ों की ढाई हजार से अधिक विभागीय जांचें चल रही हैं। कई पूरी भी हो चुकी हैं। सीबीआई तक तो एक करोड़ से अधिक के घोटाले ही पहुंचते हैं। जानकार बताते हैं कि लोन प्रभारी, मैनेजर की मिलीभगत के बगैर घोटाला बेहद मुश्किल है। सर्वेयर की रिपोर्ट पर भी सवाल उठते रहे हैं। कई घोटाले उच्चाधिकारियों के इशारे पर किसी न किसी लालच में अंजाम दिए जाते हैं। ऐसे में बैंकों की शाखाओं के विस्तार पर भी सवाल उठने लगे हैं।
जानकारों को कहना है कि जान-बूझकर बड़े कर्जदारों को बचाने की बैंकों की कोशिश पर अंकुश लगाने के लिए वित्त मंत्रालय को जरूरी कदम उठाने चाहिए। बड़े कर्जदार ऋण लेते वक्त जो परिस पत्ति रहन रखते हैं उसे लोन न चुकाने पर तुरंत जब्त किया जाना चाहिए। ऋण लेने वाले के समर्थन में गारंटी देने वालों के खिलाफ भी कार्रवाई की जानी चाहिए। बड़ी बात यह है कि बैंकों के हर मोटे कर्जे को उनका बोर्ड मंजूरी देता है इसलिए वसूली न होने पर बोर्ड के सदस्यों की जवाबदेही तय की जानी चाहिए। अपना मुनाफा बढ़ाने की होड़ में अक्सर बैंक किसी प्रोजेक्ट का मूल्यांकन करते वक्त उसकी कई खामियों की अनदेखी कर देते हैं, जिसका दुष्परिणाम उन्हें बाद में भुगतना पड़ता है।
सहकारी बैंकों के 286 करोड़ डूब गए
प्रदेश के सभी जिलों में कार्यरत जिला सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों के 286 करोड़ रूपए से अधिक की रकम डूब गई है। एनपीए के दायरे में आ चुकी इस मोटी रकम को वसूलने में बैंकों की लाचारी के चलते अब इन बैंकों का प्रदेश कार्यालय राज्य सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक वसूली के नए रास्ते तलाशने में जुटा है। इस बैंक का एनपीए अमाउंट घटने के बजाय बढ़ रहा है जो वर्तमान में 286 करोड़ 48 लाख रुपए हो चुका है। इसकी रिकवरी की संभावना नहीं है। इसलिए इस राशि को डूबती राशि के दायरे में शामिल कर लिया गया है। इतना ही नहीं यह तथ्य भी सामने आया है कि वर्ष 2012-13 में बैंक को 139.88 करोड़ रुपए की हानि का सामना करना पड़ा है, जिसकी भरपाई नहीं हो पा रही है। माना जा रहा है कि सहकारी बैंकों में राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते यह राशि डूब रही है और वसूली के विकल्प तलाशने में अफसरों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। बैंक की वसूली की डिमांड 1189 करोड़ 44 लाख रुपए है,जबकि 30 जून तक सिर्फ 4 फीसदी वसूली की जा सकी है। बैंक इस अवधि में कुल 25 करोड़ 77 लाख रुपए ही वसूल पाया है।
हर दिन 5 कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई
लोन की आड़ में बैंकों में पैसा हड़पने का गोरखधंधा किस तेजी से पनप रहा है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले 3 साल में बैंकों में जालसाजी और पद के दुरुपयोग के आरोप में 6000 अधिकारियों-कर्मचारियों को निलंबित किया जा चुका है। यानी हर दिन पांच से ज्यादा कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई हुई है। इन कर्मचारियों में बैंक अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक तक शामिल हैं। पिछले साल इंडियन ओवरसीज बैंक के चेयरमैन व सीएमडी को दोषी ठहराया गया था और इस साल सिंडीकेट बैंक के चेयरमैन और एमडी सुधीर जैन पकड़े गए हैं। एक बात तो तय है कि बिना राजनीतिक संरक्षण के इतने बड़े पैमाने पर हेराफेरी असंभव है। रिजर्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर केसी चक्रवर्ती ने अपने शोध पत्र में बताया है कि अधिकांश सार्वजनिक बैंक कर्ज वसूल न कर पाने के कारण आज भारी घाटा उठा रहे हैं। एनपीए को कम करने के लिए ऋण पुनर्निर्धारण (लोन रीस्ट्रक्चरिंग) का मार्ग अपनाया जा रहा है जो बैंकों की सेहत के लिए ठीक नहीं है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब नेशनल बैंक, इलाहाबाद बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, सेंट्रल बैंक और बैंक ऑफ बडौदा की अनुत्पादक परिसंपत्तियों में पिछले तीन साल में तेजी से वृद्धि हुई है। बैंकों की बैलेंस शीट देखकर वित्त मंत्रालय के कान खड़े हो गए और सरकार ने सीबीआई को मामले की जांच का जि मा सौंपा।
महाघोटाले में कई रसूखदार भी शामिल
इस महाघोटाले में बैंकों के बड़े अधिकारी, प्रभावशाली नौकरशाह और राजनेता शामिल हैं। इसी कारण कर्ज लेकर न लौटाने वाले लोगों और उद्योगों का नाम छुपाया जाता है। देश के सभी बैंकों का नियामक रिजर्व बैंक है और कायदे से उसे ही बड़े कर्जदारों की सूची जारी करनी चाहिए। लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है। केंद्र सरकार से वसूली कानून स त बनाने की मांग भी लंबे समय से की जा रही है। साथ ही जान-बूझकर या आदतन बैंक कर्ज न लौटाने को दंडनीय अपराध घोषित किए जाने का मुद्दा भी उठाया जा रहा है। पानी सिर से गुजर जाने के बाद अब वित्त मंत्रालय ने इनकम टैक्स विभाग को दोषी लोगों की संपत्ति की जानकारी बैंको को देने का आदेश दिया है। आशा है इस कदम से स्थिति कुछ सुधरेगी।
सीबीआई की अब सीडीआर पर नजर!
सीबीआई की नजर सभी सरकारी बैंको की कर्ज प्रकिया पर है। सिंडिकेट बैंक मामले के बाद सीबीआई उन कंपनियों और कॉरपोरेट की जानकारी जुटा रही है जिन्हें बैंकों से कॉरपोरेट डेट रीस्ट्रकचरिंग (सीडीआर) की मंजूरी मिली है। सीबीआई की नजर सरकारी बैंकों के लोन प्रक्रिया पर है। सीबीआई सरकारी बैंकों के एनपीए की निगरानी कर रही है। सीबीआई ने बैंकों से सीडीआर में जाने वाली कंपनियों की जानकारी मांगी है। 2-3 सालों में जिन कंपनियों को सीडीआर में भेजा गया उन पर सीबीआई की नजर है। सूत्रों का कहना है कि सीबीआई को सीडीआर के गलत इस्तेमाल का शक है। सीबीआई को सीडीआर के जरिए पैसे कहीं और भेजने का शक है। सीबीआई जानना चाहती है कि लोन माफ करने की वजह क्या है।
बड़े अफसरों पर सीबीआई की नजर
हालांकि नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स यानी डूब सकने वाले कर्ज की मात्रा और भारी-भरकम घोटालों के सरकारी बैंकों के टॉप अधिकारियों पर सीबीआई की नजर है। सीबीआई का कहना है कि बैंकों में फर्जीवाड़ा आम हो चुका है। पिछले साल सीबीआई ने ऐसे 13 बड़े मामले दर्ज किए, जिनमें सरकारी बैंकों के मैनेजर लेवल के अधिकारियों ने नियमों को धता बताकर लोन दिए थे। सीबीआई के शिकंजे में एसबीआई, पीएनबी, बैंक ऑफ बड़ौदा, केनरा बैंक, इंडियन ओवरसीज बैंक, इलाहाबाद बैंक और यूबीआई के अधिकारी फंसे थे।
2010 में इन बैंकों का कुल एनपीए 59,924 करोड़ रुपए था, जो 2012 में 1,17,262 करोड़ रुपए हो गया। संसद में हाल ही दी गई जानकारी के मुताबिक इस वर्ष 31 मार्च को यह रकम 1,55,000 करोड़ रुपए थी, जो जून के अंत में 1,76,000 करोड़ रुपए हो गई। सीबीआई के मुताबिक बैंकों ने धोखाधड़ी के कारण जो रकम गंवाई, उसमें पिछले तीन वर्षों में 324 प्रतिशत का इजाफा हुआ है।
50 करोड़ रुपए से अधिक रकम वाले बैंक धोखाधड़ी के मामलों में दस गुना बढ़ोतरी हुई है। यह सब इतने बड़े पैमाने पर हो और वर्षों तक अनियंत्रित जारी रहे, तो संदेह पैदा होना लाजिमी है। यह तो साफ है कि बैंक अधिकारी कर्जदार की चुकाने की क्षमता या इच्छा का बिना ठोस आकलन किए कर्ज मंजूर करते चले गए। सीबीआई के मुताबिक बैंक अधिकारी लक्षण साफ दिखने के बावजूद डूबे कर्जों को धोखाधड़ी घोषित करने में जरूरत से ज्यादा देर करते रहे हैं, जिससे समय पर कार्रवाई शुरू नहीं हो पाती।
गौरतलब है, बैंक आम लोगों के धन से कारोबार करते हैं। लोग भरोसे के आधार पर अपना पैसा वहां रखते हैं। बैंक अधिकारी अगर उन पैसों को लेकर घपले में शामिल होने लगें, तो यह देश में बैंकिंग व्यवस्था की साख पर घातक प्रहार होगा। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष सी. रंगराजन का कहना है कि जब अर्थव्यवस्था बदहाल हो तो सारे डूबे कर्ज को घपला मान लेना सही नहीं होगा। इस बात में भी दम हो सकता है, लेकिन अब अगर सीबीआई ने जांच शुरू की है तो उसे इसमें पूरी स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। कर्ज न चुकाने के उचित कारणों और बदनीयती में फर्क जरूरी है, लेकिन बदहाल अर्थव्यवस्था की आड़ में रसूखदार लोग बच न निकलें, इसे सुनिश्चित करना होगा।
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