नई दिल्ली. गुरुवार रात राज्यसभा में लोकपाल बिल पर मतदान से पीछे हटी कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार पर शुक्रवार को हमले तेज हो गए हैं। एक तरफ से मुख्य विपक्षी दल बीजेपी ने सरकार से इस्तीफा मांगा है तो वहीं, टीम अन्ना ने अब सिर्फ लोकपाल के लिए नहीं बल्कि लोकतंत्र को बचाने के लिए आंदोलन शुरू करने का ऐलान किया है। टीम अन्ना के वरिष्ठ सदस्य शांति भूषण ने गुरुवार रात राज्यसभा में प्रधानमंत्री की चुप्पी पर सवाल उठाते हुए कहा कि गुरुवार रात जितने लोग भी टीवी देख रहे थे, उन्होंने देखा कि द्रौपदी का चीरहरण होता रहा और धृतराष्ट्र बैठे रहे।
टीम अन्ना के सदस्य अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, 'सरकार का मजबूत लोकपाल लाने का दावा खोखला साबित हुआ। लोकसभा के अंदर जो कानून आया, वह बहुत कमजोर था। उसका कोई फायदा नहीं था। बहुमत का गलत इस्तेमाल करके गलत बिल पास करवा लिया गया। लेकिन सरकार का राज्यसभा में बहुमत नहीं है। विपक्ष ने187 संशोधन दिए। लेकिन मोटे तौर पर 3 संशोधनों पर आम राय थी। इसमें सीबीआई को लोकपाल के दायरे में लाना, लोकपाल का चयन और हटाना और लोकायुक्त को इस कानून से बाहर रखा जाए। अगर गुरुवार को वोटिंग होती तो तीनों पास हो जाते। अगर ऐसा होता तो एक ऐसा लोकपाल निकल सकता था, जो शुरुआत करने लायक लोकपाल होता। लेकिन सरकार की मंशा कुछ और थी। लालू प्रसाद यादव और आरजेडी को सामने किया गया। शाम से ही टीवी चैनलों पर आने लगा कि सदन की कार्यवाही बाधित की जाएगी। बयानों को लंबा खींचा गया और सदन की कार्यवाही होते-होते 12 बज गए। संसदीय प्रावधानों का गलत इस्तेमाल करके संसद की कार्यवाही बाधित की। यह पूरी तरह से सरकार की साजिश थी। यह संसद और इस देश की जनता के साथ साजिश है।'
दूसरी तरफ, बीजेपी ने राज्यसभा की कार्यवाही स्थगित होने के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। अरुण जेटली ने कहा कि मजबूत लोकपाल बिल पारित करना सरकार का वादा था लेकिन कांग्रेस और यूपीए ने देश को एक मजबूत लोकपाल से वंचित किया। जेटली ने कहा, 'बीजेपी ने सरकार के कमजोर बिल का समर्थन नहीं किया और कहा था कि इसमें संशोधन कर पारित करेंगे। बीजेपी ने अपनी रणनीति पहले ही तय कर दी थी। तीन मुद्दों पर पूरा सदन एकमत था। जब सरकार के वरिष्ठ नेता यानी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी संसद में मौजूद थे, ऐसे में सरकार लोकपाल पर वोटिंग से भागने का प्रयास करती है। यह विचित्र स्थिति है। सरकार ने रुकावट पैदा कर खुद को बचाया है।'
सुषमा स्वराज ने कहा कि सदन का सत्र खत्म होने के बाद दोनों सदनों के नेताओं के संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस की परंपरा है लेकिन इस सत्र में सरकार की किरकिरी हुई और जाते जाते यह सरकार की मुंह पर कालिख पोत गया। उन्होंने राज्यसभा में गुरुवार की रात हुई घटना को ‘लोकतंत्र का चीरहरण’ करार दिया। मैं तो यहां तक कहता हूं कि इस साजिश में प्रधानमंत्री भी शामिल थे। उन्होंने कहा कि सरकार के पास तीन विकल्प थे। सबसे सहज यह कि ज्यादा संशोधन आए तो सेलेक्ट कमेटी के पास भेजने का विकल्प है। सरकार इस बिल को लाना ही नहीं चाहती है। सरकार को तुरंत इस्तीफा देना चाहिए और नए चुनाव कराने चाहिए।
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