शनिवार, 24 दिसंबर 2011
जल, जंगल और आसमान सब खा रहे हैं शिवराज चौहान
विनोद उपाध्याय
चाल, चरित्र और चेहरा जैसी नैतिक बातें करने वाली भाजपा और शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली इस सरकार की चाल लडखड़़ा चुकी है। चरित्र, कांग्रेसियों से ज्यादा बिगड़ चुका है और असली चेहरा भी धीरे-धीरे सामने आ चुका है। इसी सरकार से जुड़े लोग, मसलन प्रदेश के मंत्री, निगम-मंडल अध्यक्ष, विधायक और सांसद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व भ्रष्टाचार की वैतरणी में कूद-कूद कर डुबकियां लगा रहे हैं।
मध्य प्रदेश में जब शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने थे तो उन्होंने प्रदेश में सुशासन लाने के लिए सात तरह के माफियाओं पर अंकुश लगाने की कार्ययोजना बनाई थी लेकिन शासन और प्रशासन की मिलीभगत से प्रदेश में जमीन, शराब, वन, ड्रग, खनिज, गोवंश और गरीबों को मिलने वाले केरोसिन और अन्य सामग्री को पात्र व्यक्तियों तक नहीं पहुंचने देने वाले जैसे सात तरह के माफिया लूट मचाए हुए है। तमाम सेक्टरों में भ्रष्टाचार के बड़े मामलों के साथ ही प्रदेश में खनिज माफिया ने भी इस सरकार के राज में अपने आप को स्थापित कर लिया है। प्रदेश में अब करीब दस हजार करोड़ का खनिज घोटाला सामने आया है जिसमें न सिर्फ बड़ी माइनिंग कंपनियों ने बल्कि भाजपा के छोटे-बड़े नेताओं ने भी करोड़ों के खेल कर दिए हैं। पूरे प्रदेश में माइनिंग माफिया सक्रिय है। माफिया में केवल खनिज के कारोबारी ही नहीं हैं। बल्कि प्रदेश के अधिकांश मंत्री, भाजपा विधायक, सांसद और संगठन के पदाधिकारियों और उनके रिश्तेदार नेता से बड़े व्यापारी बन गए हैं।
मध्य प्रदेश में खनिज माफिया का कहर सबसे अधिक बुंदेलखंड के पठार पर पड़ रहा है। बुंदेलखंड इलाके की सबसे बड़ी कही जाने वाली सिद्धबाबा की पहाड़ी कभी समुद्र तट से 1,772 मीटर ऊंची हुआ करती थी, लेकिन इसके भीतर छिपे फौलादी ग्रेनाइट के खजाने के कारण इसे पाताल तक खोदा जा रहा है। आधिकारिक तौर पर महोबा से सालाना 65 करोड़ रुपए का ग्रेनाइट कारोबार होता है, लेकिन कबरई मंडी को करीब से जानने वाले बताते हैं कि यह मंडी साल में कम से कम 250 करोड़ रुपए पत्थर सप्लाई करती है। इसे महज आंकड़ों का फर्क मान कर खारिज नहीं कर सकते। हिंदी पट्टी के पांच राज्यों में पड़ताल से पता चलता है कि महोबा का हाइवे नंबर 76 तो अवैध खनन की महज एक मिसाल है।
मध्य प्रदेश विधानसभा में पेश सीएजी की एक रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2005-06 से 2009-10 के दौरान प्रदेश में खनन से जुड़ी गड़बडिय़ों के कारण प्रदेश सरकार को 6,906 मामलों में 1496.29 करोड़ रुपए राजस्व का नुक्सान हुआ। मध्य प्रदेश में पिछले छह साल में अवैध खनन के 24,630 मामले सामने आए। 23,393 मामले अदालतों में दर्ज हुए हैं, यह देश के अन्य सभी राज्यों की तुलना में सर्वाधिक है। मध्य प्रदेश देश का सबसे प्रमुख हीरा उत्पादक राज्य है। इसके अलावा यहां कॉपर (तांबे) के आधिक्य वाला पाइरोफाइलाइट और डाइसपोर भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। माफिया साढ़े 37 लाख घन मी. पत्थर रोजाना पहाड़ों से निकालते हैं। इसके लिए वह एक इंच होल में विस्फोटक के बजाय छ: इंच बड़े होल में बारूद भरकर विस्फोट करते हैं। जब यह विस्फोट होते हैं तो आस-पास 15-20 किमी की परिधि में बसने वाले वन क्षेत्रों के वन्य जीव इन धमाके की दहशत से भागने लगते हैं व कुछ की श्रवण क्षमता पूरी तरह नष्ट हो जाती है। इसके अतिरिक्त विस्फोट से स्थानीय जमीनों में जो दरारें पड़ती हैं उससे ऊपरी सतह का पानी नीचे चला जाता है और भूगर्भ जल बाधित होता है।
इस संपूर्ण बुन्देलखंड ग्रेनाइट करोबार जो कि यहां कुटीर उद्योग के नाम से चल रहा है, में 1500 ड्रिलिंग मशीनें, पांच सैकड़ा जेसीबी, 20 हजार डंपर, 2000 बड़े जनरेटर, 50 क्रेन मशीन और हजारों चार पहिया ट्रेक्टर प्रतिदिन 6 करोड़ 83 लाख, पांच सौ लीटर डीजल की खपत करके और ओवरलोडिंग करते हैं। इन विस्फोटों से रोजाना 30-40 टन बारूद का धुआं यहां के वायुमंडल में घुलकर बड़ी मात्रा में सड़क राहगीरों व खदानों के मजदूरों को हृदय रक्तचाप, टीबी, श्वास-दमा का रोगी बना रहा हैं। इसके साथ-साथ 22 क्रशर मशीनों के प्रदूषण से प्रतिदिन औसतन 2 लोग की आकस्मिक मृत्यु, 2 से तीन लोग अपाहिज व 6 व्यक्ति टीबी के शिकार होते हैं।
जल, जंगल, ज़मीन और आसमान। ऐसी कोई जगह नहीं जो घोटालेबाज़ों और माफियाओं की गिद्ध दृष्टि से बची हो। प्राकृतिक संसाधनों की लूट के इस खेल में सरकार, विपक्ष, पूंजीपतियों समेत हर वह आदमी शामिल है जिसके संबंध सत्ता में बैठे लोगों से हैं और जिनके पास धनबल, बाहुबल है। मध्य प्रदेश में ऐसे ही खनिज माफिया और घोटालेबाजों ने सरकारी तंत्र की मिलीभगत से 10,000 करोड़ रूपए से अधिक का अवैध उत्खनन किया है और उनकी लूट का सिलसिला अभी भी जारी है।
सुशासन की दुहाई देने वाली शिवराज सरकार भी अवैध खनन के धंधे में दागदार साफ-साफ दिख रही है। शिवराज के दो मंत्रियों पर खनन माफिया को खुलेआम संरक्षण देने का आरोप है। साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि ये अवैध खनन करा रहे हैं। ये दोनों मंत्री शिवराज के चहेते भी हैं। कोई विभाग खनिज माफिया पर कार्रवाई नहीं कर पा रहा है। तमाम आरोपों के बावजूद तमाम स्तरों पर सत्यता साबित होने पर भी शिवराज सिंह चौहान अपने इन मंत्रियों को बचाने की कोशिश में लगे हैं। सतना के वन अधिकारी के मुताबिक उचेहरा और नागौद वनक्षेत्र में पचास सालों से अवैध उत्खनन होता आ रहा है। जब भी वन विभाग का अमला कार्रवाई करने जाता है तो वनकर्मियों पर हमला कर दिया जाता है। वन अधिकारियों के मुताबिक यहां कानून का नहीं बल्कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीबी मंत्री नागेंद्र सिंह के भतीजे का राज चलता है। सूबे में भाजपा के लोक निर्माण मंत्री नागेंद्र सिंह और खनिज मंत्री राजेंद्र शुक्ला पर आरोप है कि इनकी मिलीभगत से अवैध खनन का कारोबार रफ्तार से चल रहा है। इस मामले के शिकायतकर्ता के मुताबिक, बरसों से अवैध उत्खनन चल रहा है। मंत्री नागेन्द्र सिंह के भतीजे रूपेन्द्र सिंह उर्फ बाबा राजा जिन पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।
शिवराज के सुराज में करोड़ों की अवैध खुदाई हो रही है। वन विभाग के एडिशनल चीफ कंजरवेटर जगदीश प्रसाद शर्मा ने अवैध खनन पर राज्य के चीफ फॉरेस्ट कंजर्वेटर को सौंपी रिपोर्ट में बाबा राजा का जिक्र किया है। जांच रिपोर्ट के मुताबिक सतना के जंगलों में बाबा राजा का काम चल रहा है। बाबा राजा यानी एमपी के पीडब्लूडी मंत्री नागेन्द्र सिंह का भतीजा। इलाके में पत्थर का अवैध खनन बगैर वन अधिकारियों की मिलीभगत के मुमकिन नहीं। रिपोर्ट में लिखा है कि इस खनन की जांच अगर कर्नाटक के बेल्लारी केस की तर्ज पर की जाए तो वन क्षेत्र में करोड़ों रुपए के पत्थरों की चोरी और रॉयल्टी चोरी के रूप में सरकार को पहुंचाया गया करोड़ों का नुकसान उजागर हो सकता है। एसीएफओ की इस रिपोर्ट से हड़कंप है। शिकायतकर्ता ने इस मामले की सीबीआई जांच की मांग की है। मामले की परतें खुली तो कुछ और सफेदपोशों के नाम सामने आने से भी इनकार नहीं किया जा सकता। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पास एक महीने से रिपोर्ट पड़ी है लेकिन मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई अब तक नहीं की गई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का कहना है कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। मैं पूरी रिपोर्ट जब तक नहीं देख लेता, तब तक कुछ नहीं कह सकता।
मध्य प्रदेश कांगे्रस के मीडिया विभाग के अध्यक्ष माणक अग्रवाल ने कहा कि कांग्रेस के प्रदेश प्रतिनिधि मनोज पाल सिंह ने जबलपुर जिले की सिहोरा तहसील के ग्राम झींटी में 600 करोड़ के अवैध खनन के घोटाले की लोकायुक्त कार्यालय को शिकायत की है। 205 पेज के महत्वपूर्ण दस्तावेज सहित सात पृष्ठों की शिकायत में लोकायुक्त जांच की मांग की गई है। इसमें तथ्यों के आधार पर कहा गया है कि मध्यप्रदेश में कर्नाटक के बेल्लारी खनिज घोटाले से भी बड़ा घोटाला संबंधित मंत्रियों और अधिकारियों की मिलीभगत से हुआ है। तथ्यों से इस बात की पुष्टि होती है कि स्वीकृति से कई गुना अधिक लौह अयस्क निकाला गया है। वन क्षेत्र में तथा आदिवासियों की जमीनों पर भी मनमाना खनन कर सरकार और आदिवासियों को करोड़ों की हानि पहुंचाई गई है। भ्रष्टाचार के इस बड़े खेल में रॉयल्टी वसूली की आड़ में करोड़ों के अवैध खनन को रफा-दफा कर पट्टाधारियों को अनुचित लाभ भी पहुंचाया गया है।
अग्रवाल के मुताबिक ग्राम झींटी के इस खनिज घोटाले के संबंध में कार्रवाई के लिए कांगे्रस ने 14 अक्टूबर 2011 को श्यामला हिल्स थाने में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों और अधिकारियों के विरूद्ध एफआईआर दर्ज कराई थी। इसके बाद 19 अक्टूबर 2011 को इस बारे में न्यायालय में भी एक परिवाद दाखिल किया गया है। कांगे्रस नेता मनोज पाल सिंह ने इस प्रकरण के कुछ और महत्वपूर्ण दस्तावेज प्राप्त कर 11 नवंबर को लोकायुक्त को शिकायत सौंपी है। इस शिकायत में खनिज घोटाले के भीतर की गहरी परतों को खोला गया है। शिकायत में उल्लेख किया गया है कि संबंधित कंपनियों और व्यक्तियों को खनिज उत्खनन के पट्टे देने की प्रक्रिया भी दोषपूर्ण रही है। प्रदेश में खनिज आधारित उद्योग लगाने के मौखिक आश्वासन पर आवेदकों की आर्थिक स्थिति की जांच पड़ताल किए बिना उत्खनन की स्वीकृतियां जारी की गई हैं। ऐसा लगता है, इस घोटाले को पट्टेधारियों से सांठगांठ करके मंत्रियों और अधिकारियों ने काफी सुनियोजित ढंग से अंजाम दिया है।
कांगे्रस के मीडिया विभाग के अध्यक्ष का कहना है कि इस बात के पुष्ट प्रमाण है कि खनिज पट्टेधारियों ने अनुमति से अधिक क्षेत्र में खनिज का उत्खनन कर बेजा लाभ कमाया है। अवैध उत्खनन के क्षेत्र में वन भूमि और आदिवासियों की भूमि भी शामिल है। इस तरह खनिज पट्टाधारियों ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम और मप्र भू-राजस्व संहित की धारा 165 का भी उल्लंघन किया है। संबंधित अधिकारियों द्वारा पट्टाधारियों की इस मनमानी की व्यापक स्तर पर अनदेखी की जाकर भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया गया है। अवैध खनन, जो कि कानूनी अपराध की श्रेणी में आता है, को नाम मात्र रॉयल्टी लेकर नियमित मान लेने में अधिकारियों के स्तर पर भारी भ्रष्टाचार की बू आ रही है। इस प्रकरण में अधिकारियों ने अपने पद का भारी दुरुपयोग कर पट्टाधारियों को आर्थिक लाभ पहुंचाया है। ग्राम झींटी में हुआ खनिज घोटाला कितना बड़ा है, उसका अनुमान इसी एक तथ्य से लगाया जा सकता है कि चार पट्टाधारियों को हर साल 80,640 मैट्रिक टन औसतन खनन की अनुमति दी गई थी। किंतु मई 2011 तक इन्होंने 11,96,000 मैट्रिक टन खनिज निकाला, जो स्वीकृत सीमा से लगभग 12 गुना अधिक है।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें