मध्य प्रदेश भाजपा के नए संगठन महामंत्री की कुर्सी संभालने वाले अरविंद मेनन के सामने चुनौती बाहर से ही नहीं, बल्कि पार्टी के अंदर से भी है। चुनौती यदि कांग्रेस को लगातार तीसरी बार सत्ता से दूर रखने के लिए संगठन को मजबूत कर उसे संघ की विचारधारा के तहत आगे बढ़ाने की है तो भाजपा में अपनी स्वीकायर्ता बढ़ाने के साथ-साथ सत्ता और संगठन में बेहतर समन्वय बनाने की भी है।
मेनन के पास संगठन का दीर्घ अनुभव है तो पार्टी में उनके शुभचिंतक की भी ऐसी लंबी फेहरिस्त है, जिनकी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं आपस में टकराती रहीं और विशेष मौकों पर एक-दूसरे के पूरक साबित होते रहे। अरविंद मेनन के संगठन महामंत्री बनने के बाद यह तय हो गया है कि विभाग और जिला स्तर पर संघ की पृष्ठभूमि वाले संगठन मंत्रियों की भूमिका भी आने वाले समय में बदलेगी। मेनन नीचे से सफलता की पायदान चढ़ते हुए उस मुकाम पर पहुंचे हैं, जहां पहुंचने के सपने हर कोई देखता है। उन्होंने मालवा, महाकौशल के साथ प्रदेश के पूरे जिलों की भाजपा की राजनीति को संघ के आईने से देखा है। फेरबदल से पहले कई संगठन मंत्री उनके भरोसेमंद समर्थक रहे तो इस महत्वपूर्ण दायित्व को निभा रहे कई संगठन मंत्रियों की निष्ठा भाजपा से ज्यादा माखन और माथुर के प्रति भी रही है। नई भूमिका में मेनन को इनकी योग्यता और अनुभव कितना भाएगा, कहना जल्दबाजी होगी। बनते-बिगड़ते नए समीकरणों के बीच कुछ संगठन मंत्री उनके निशाने पर जरूर आ गए होंगे।
अरविंद मेनन के सामने बड़ी चुनौती मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा दोनों को संतुष्ट करना ही नहीं, उनके बीच समन्वय बनाना भी है। जिसके बाद ही कांग्रेस को मात देने और भाजपा के तीसरी बार सत्ता में आने का मार्ग प्रशस्त होगा। ऐसा नहीं है कि सत्ता और संगठन में समन्वय नहीं है, लेकिन बड़ा सच यह भी है कि दोनों एक-दूसरे की कार्यप्रणाली पर पर्दे के पीछे ही सही उंगली उठाते रहे हैं। भाजपा में बदल रहे समीकरणों के बीच मेनन की नई भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। उनके सामने चुनौती संघ की उस लाइन को आगे बढ़ाने की भी है, जो समिधा से निकलती है। संघ के क्षेत्रीय और प्रांत प्रचारक की भूमिका भी उसकी होली वार्षिक बैठक के बाद नए सिरे से तय की जा सकती है। संघ के इन नेताओं ने मेनन को प्रचारक घोषित कराने में छह माह पहले ही निर्णायक भूमिका निभाई थी, जिसके बाद उनके संगठन महामंत्री बनने का मार्ग प्रशस्त हुआ। अरविंद मेनन के शुभचिंतकों की कमी नहीं है। वे शिवराज सिंह चौहान के सबसे विश्वसनीय होकर उभरे हों, लेकिन सरकार में नंबर दो पर अपना दबदबा साबित करते रहे उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय से अरविंद मेनन की निकटता जगजाहिर है। ऐसे में मेनन के लिए बड़ी चुनौती दोनों को विश्वास में लेने के साथ उन्हें संतुष्ट करने की भी होगी।
संगठन महामंत्री रहते कप्तान सिंह के साथ मेनन ने लंबे समय तक काम किया और उन्हें वे बड़े सम्मान की दृष्टि से देखते रहे। कप्तान सिंह का खुला समर्थन कैलाश विजयवर्गीय को हमेशा रहा है, जबकि परिस्थितियों ने उन्हें प्रदेश की राजनीति से दूर होने को मजबूर कर दिया था, बदली भूमिका में कप्तान और कैलाश की जुगलबंदी प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री को कितना भाएगी, कहना कठिन है। मेनन ने सह संगठन महामंत्री रहते तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर के साथ भी काम किया है, जिनकी गिनती शिवराज के करीबी लोगों में होती है। ऐसे में प्रभात और शिवराज के बीच समन्वय बनाने में जुटे मेनन के लिए बड़ी चुनौती नरेन्द्र के अस्तित्व को भी सम्मान देने की होगी। राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल ने अरविन्द मेनन के लिए प्रदेश की राजनीति में रोड़ा साबित होने वाले उनके वरिष्ठ माखन सिंह और भगवतशरण माथुर को राज्य से दूर करने में बड़ी भूमिका निभाई है, जबकि मेनन की गिनती पर्दे के पीछे सक्रिय पूर्व संगठन महामंत्री संजय जोशी के करीबी में होती है। जोशी और रामलाल को संतुष्ट करना भी उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा।
प्रदेश भाजपा कार्यसमिति में राज्य के साथ केंद्र सरकार के सौतेलेपन को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा के रवैये में जो विरोधाभाष उभरकर सामने आया उसने एक बार फिर सत्ता और संगठन के मुखियाओं के बीच मतभेद को हवा दे दी। शिवराज सिंह ने उज्जैन में इस मुद्दे पर सीधे पीएम को घेरने में कोताही बरती, लेकिन प्रभात झा ने पीएम के नाम खुली चि_ी जारी कर यह जता दिया कि सरकार की भले ही सीमाएं हों, लेकिन केंद्र को सबक सिखाने के लिए पूरी पार्टी इकाई दिल्ली जाकर हल्ला बोल सकती है।
उज्जैन कार्यसमिति में अनंत कुमार के सुर बदलने और अरुण जेटली के सत्ता और संगठन में जोश भरने के बावजूद केंद्र से मध्यप्रदेश की अपेक्षाओं को लेकर शिवराज-प्रभात की राह तथा रणनीति जुदा नजर आई। यूं तो उपवास के उपहास एपीसोड के समय शिवराज सिंह और प्रभात झा के बीच समन्वय-सामंजस्य को लेकर सवाल उठे थे, लेकिन उस वक्त शीर्ष नेताओं के हस्तक्षेप के बाद बात आई-गई हो गई थी। दोनों ने पार्टी को सर्वोपरि मानते हुए कुक्षी और सोनकच्छ की जीत के जश्न की आड़ में 'हम एक हैंÓ का नारा देकर मतभेदों को नकार दिया था। इस बार उज्जैन कार्यसमिति में बाकी सभी मुद्दों पर केन्द्र के प्रति सरकार और संगठन के रुख में मतभिन्नता नजर आई।
विधानसभा में राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के कार्यक्षेत्र और उनकी भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा था कि दोनों किसी दल तक सीमित नहीं रहते हैं। शिवराज सिंह को उपवास से पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भले ही शिकायतें रहीं और विभिन्न मंचों पर वे भेदभाव और सौतेलेपन के आरोप लगाते रहे, लेकिन विधानसभा में उन्होंने जो कुछ कहा उसका यही अर्थ निकाला गया कि पिछले प्रधानमंत्रियों की तरह मनमोहन सिंह भी दृष्टि दलीय नहीं है। उज्जैन कार्यसमिति के दौरान पीएम पर सीधा निशाना न साधकर उन्होंने इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। कारण साफ है कि ऐनटाइम पर शिवराज सिंह के उपवास का इरादा टालने के पीछे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बड़ी भूमिका रही, जिन्होंने राज्यपाल के हस्तक्षेप के बाद शिवराज सिंह को छोटे भाई का सम्मान दिया था। लेकिन कार्यसमिति में ही प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा के तेवर जिस तरह एक बार फिर तीखे नजर आए और उन्होंने प्रदेश सरकार के प्रति केंद्र को घेरने की चेतावनी दी उसने भाजपा में एक नई बहस जरूर छेड़ दी है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री को लिखी चि_ी में उन सारी योजनाओं का बिन्दुवार ब्योरा दिया है, जिनको लेकर शिवराज सिंह स्वयं प्रधानमंत्री और उनके सहयोगी मंत्रियों से मुलाकात कर कई बार रिमाइंडर भी दे चुके हैं। प्रधानमंत्री और उनकी केंद्र सरकार को विभिन्न मंचों से आरोपों के कटघरे में खड़ा करने वाले शिवराज सिंह चौहान ने जिस तरह नरम रुख अपनाया और उनकी जगह प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा ने सख्त चेतावनी दी, वह आपसी मतभेद की बजाय भाजपा की सोची-समझी राजनीति का हिस्सा भी हो सकती है। बड़ा सवाल यह है कि क्या संवैधानिक दायित्व से बंधे होने के कारण शिवराज सिंह ने अपने कदम पीछे खींचकर संगठन को आगे आने के लिए प्रेरित किया है या फिर पार्टी ने सरकार पर चाबुक चलाते हुए स्वयं फ्रंट फुट पर आकर केंद्र को घेरने की रणनीति बनाई है? सवाल यह भी है कि क्या उपवास के तौर-तरीकों को लेकर संगठन की कसक बरकरार है और उसने पार्टी को सर्वोपरि बताते हुए सरकार को बाध्य किया है कि वह अपनी सोच भले ही बदल दे, लेकिन संगठन इस लड़ाई को जनता के हक के लिए मुकाम तक ले जाएगा। लाख टके का सवाल यह भी है कि क्या बतौर प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनके सलाहकारों को यह संदेश दे दिया है कि उपवास के दौरान जिस तरह संगठन की उपेक्षा हुई उसे पार्टी हित में भले ही उस वक्त नजरअंदाज कर दिया गया, लेकिन संगठन बढ़ते हुए कदमों को पीछे खींचने को तैयार नहीं है? यह देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र के खिलाफ दिल्ली में हल्ला बोल की रणनीति भाजपा की कितनी और कब तक कारगर होती है तथा इससे शिवराज-प्रभात में से राजनीतिक कद किसका बढ़ता है?
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