विवादों की देवी के रूप में विख्यात बुकर विजेता अरुंधति रॉय की कुंडली में विद्यमान ग्रह नक्षत्रों का चाल इनदिनों टेढ़ी हो गयी है यही कारण है कि विवादों से उनका पीछा छुट ही नहीं रहा है। पहले नक्सलियों और बाद में कश्मीर मामले को लेकर दिए गए बयान पर मचा बवाल थमा ही नहीं है कि अब वे पचमढ़ी स्थित बंगले को लेकर विवादों में फंस गई हैं। जिस तरह कायदे-कानून को ताक पर रखकर प्रतिबंधित क्षेत्र में उनका बंगला बना है उससे तो यही लगता है कि उनका यह आशियाना शीघ्र ही उजड़ जाएगा।
फिल्मकार प्रदीप कृष्ण सूद सेे जनवरी, 1994 में विवाह रचाने वाली अरुंधति राय शादी के साथ ही पचमढ़ी के जंगलों में अपने बंगले को लेकर विवादों में घिर गई हैं। अरुंधति और उनके पति बंगले की जमीन को वन के बजाय राजस्व का बताकर अपना दामन पाक-साफ बताने की कोशिशें करते रहे हैं लेकिन पचमढ़ी के पास उनके बंगलों को देखकर किसी को यह जानने के लिए कानून की किताबों में सिर खपाने की जरूरत नहीं होगी कि वह जंगल की जमीन है या राजस्व विभाग की। फिर कानूनी तौर पर भी यहां स्वाभाविक उत्तराधिकार के अतिरिक्त किसी अन्य तरीके से जमीन का नामांतरण नहीं हो सकता। जाहिर है, जब बंगला बनाया गया था तब भी पचमढ़ी प्रशासन ने नोटिस भेजे थे और अब उनकी जमीन की रजिस्ट्री और उसका नामांतरण खारिज करने वाले नायब तहसीलदार के फैसले पर पिपरिया के एसडीएम ने भी सहमति की मुहर लगा दी है। एसडीएम कोर्ट ने साफ कर दिया कि उक्त मामले में जमीन अगर पिता से पुत्र के पास जाती है तो उसे नामांतरित किया जा सकता है। लेकिन किसी बाहरी या दूसरे व्यक्ति को संरक्षित क्षेत्र में आने वाली जमीन नामांतरित नहीं की जा सकती। इस बंगले को बचाने के लिए अब अरुंधति राय ने भोपाल एवं होशंगाबाद के संभागायुक्त मनोज श्रीवास्तव की कोर्ट में दस्तक दी है।
भोपाल से पचमढ़ी के रास्ते में पचमढ़ी से ठीक पहले एक खूबसूरत कुदरती झील के किनारे बारीआम गांव है। बारीआम के लोग इस सघन वन क्षेत्र में होने के बावजूद सरकारी दस्तावेजों में राजस्व ग्राम के तौर पर दर्ज है। इस गांव से सटे ही सघन जंगल में अरुंधति राय के पति तथा तीन और लोगों ने बंगले बनाए हैं। बंगले के चहुंओर जंगल इतना सघन है कि बंगले में दिन में भी बत्ती की जरूरत रहती है। ठेठ आदिवासी गांव बारीआम के पास की इस जमीन पर प्रदीप कृष्ण से पहले शरीफ अहमद और उसके भाई रईस अहमद के साथ अब्दुल रफीक काबिज था। इनके पूर्वज पहले यहां से मांस की सप्लाई करते थे। इस जमीन पर लंबे समय से पचमढ़ी इलाके के रेंजर रह चुके निशिकांत जाधव की निगाह थी। जाधव पचमढ़ी के डीएफओ भी रहे। इधर प्रदीप कृष्ण ने अपनी कुछ डाक्यूमेंटरी फिल्मों की शूटिंग यहां की थी। मित्रता के चलते जाधव ने खुद जमीन खरीदने से पहले इसका एक हिस्सा (करीब चार हजार वर्ग फुट) 24 मार्च, 1992 को प्रदीप कृष्ण को दिला दिया। बाद में जाधव ने 20 सितंबर, 1993 को पास ही अब्दुल रफीक की करीब सवा चार हजार वर्ग फुट जमीन पत्नी आशा लता जोजे के नाम से खरीदी। इसी दिन उन्होंने प्रदीप कृष्ण से उनके हिस्से की भूमि में से कुछ हिस्सा पचमढ़ी के पुलिस ट्रेनिंग सेंटर के डॉक्टर जगदीश चंद्र शर्मा को भी दिला दिया। उधर रफीक से इतनी ही भूमि मशहूर लेखक विक्रम सेठ की बहन और पीटर लानस्की की पत्नी आराधना सेठ को भी 17 जनवरी, 1994 को दिलाई।
जाहिर है कि जंगल की इस जमीन के खरीद-फरोख्त के केन्द्र में जाधव ही थे। अरुंधति की मित्रता आराधना सेठ से थी। इसलिए वह भी यहां आ गईं। डॉ. शर्मा ने भी जाधव के मित्र होने के नाते वहां जमीन खरीदी। वैसे अभी डॉ. शर्मा ही वह शख्स हैं जो इस बंगले में सबसे ज्यादा वक्त व्यतीत कर रहे हैं। यह क्षेत्र पचमढ़ी वन्यजीव अभयारण्य का हिस्सा है और केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने इसे पर्यावरण संरक्षण कानून के तहत इको-संवेदी क्षेत्र घोषित कर रखा है। प्रदीप किशन ने यहां 1992 में जमीन खरीदी थी और 1993 में यह घर बनकर तैयार हो गया था।
इस मामले में पचमढ़ी स्पेशल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (साडा) का कहना है कि प्रदीप किशन ने इस जमीन का लैंड यूज (भू-उपयोग) गलत तरीके से बदलवाया था। इस बीच वन विभाग ने भी घर को अभयारण्य क्षेत्र में होने के कारण अवैध करार दे दिया था।
दरअसल, पचमढ़ी के वन क्षेत्र को सतपुड़ा नेशनल पार्क का दर्जा 13 अक्टूबर 1981 को मिला। फिर 25 दिसंबर, 2007 को सतपुड़ा नेशनल पार्क, बोरी तथा सतपुड़ा वन्य प्राणी अभयारण्य को मिलाकर सतपुड़ा टाइगर रिजर्व बनाया गया। जहां बंगले बनाए गए हैं वह भूमि अभयारण्य क्षेत्र में आती है। वन्य प्राणी संरक्षण कानून के तहत इन क्षेत्रों में भूमि का मालिकाना हक उत्तराधिकारियों यानी संतान को ही दिया जा सकता है और वह इसे किसी और को नहीं बचे सकता। इसी आधार पर 2 मई, 2003 को नायब तहसीलदार ने बंगले की जमीन के नामांतरण को गैरकानूनी करार देते हुए रद्द कर दिया। इस फैसले के खिलाफ अरुंधति राय और प्रदीप कृष्ण ने हाईकोर्ट में दस्तक दी थी लेकिन हाईकोर्ट ने 8 फरवरी, 2010 को उन्हें यह कहकर लौटा दिया कि इस मामले में एसडीएम अपील सुनने के लिए सक्षम है। युवा आईएएस वी किरण गोपाल (एसडीएम पिपरिया) के यहां की गई अपील भी खारिज कर दी गई और कहा गया कि नायब तहसीलदार का फैसला सही था। नामांतरण रद्द होने के बाद कानूनी तौर पर उनकी रजिस्ट्री भी अवैध घोषित हो चुकी है। कुल मिलाकर बंगलों की शामत आ चुकी है।
बचाव पक्ष के वकील सुशील गोयल ने बताया कि तत्कालीन नायब तहसीलदार ने पटवारी की रिपोर्ट पर सभी बंगलों को रिजर्व फॉरेस्ट में मान लिया और 31 मार्च 2005 में नायब तहसीलदार ने एसडीएम को नामांतरण निरस्त करने की अनुशंसा की, एसडीएम ने नामांतरण निरस्त करने की अनुशंसा पारित कर दी और नायब तहसीलदार ने अपना फैसला सुनाते हुए आर्डर कर दिए।
Bahut achchee khabar . net journalism kaa bhawishy ujjwal hai. badhaaee
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