भले ही गंगा मैली हो गई हो और यमुना काली, मगर नर्मदा माई की पवित्रता आज भी बरकरार है। निर्मल जलधारा और मनोहर घाट। देखकर रोम-रोम पुलकित हो उठता है।Ó मगर जब अपनी आंखों से इसे देखें तो महसूस होता है कि जितना सुनने को मिलता है वह कितना कम है। नर्मदा नदी की तारीफ में गढ़े गए कशीदे उसकी गरिमा और सौंदर्य को व्यक्त करने में कितने अक्षम थे।
मध्यप्रदेश के निमाड़ क्षेत्र में महेश्वर अपनी खास पहचान रखता है। अहिल्या बाई होल्कर की नगरी के नाम से पुकारा जाने वाला यह कस्बा नर्मदा नदी के तट पर बसा है। यह कस्बा धार्मिक कारणों से तो प्रसिद्ध है ही, बड़े बांधों के विरोध में नर्मदा बचाओ आंदोलन का एक प्रमुख केंद्र होने के कारण भी अक्सर सुर्खियों में रहता है। सुबह नर्मदा स्नान और शाम को तटों की खूबसूरती निहारने का अपना अनूठा अनुभव है। ऐसा प्रतीत होता है कि उस दौर में जहां विकास के नाम पर हर खूबसूरत चीज पर कालिख पोती जा रही है, वहां कम से कम कोई तो ऐसी जगह है जहां का माहौल शांत, सुंदर और स्निग्ध है। मगर यहीं कुछ ऐसे नजारे भी देखने को मिलेंगे जो आप को झकझोरने में सक्षम हैं। अनायास सामने आए ऐसे नजारे मन पर पड़ी नर्मदा की पवित्र छाप को मटियामेट करने के लिए पर्याप्त है। ठीक उसी तरह जैसे एक सुंदर चेहरे पर किसी शैतान ने तेजाब फेंक दिया हो।
सामने ढ़ोल की आवाज पर तलवार लेकर नाच रही महिलाओं को देखकर भले ही लगे कि यह सब निमाड़ क्षेत्र की खूबसूरत संस्कृति का हिस्सा है। देवी अहिल्या की नगरी में नर्मदा माई को रिझाने का एक पारंपरिक अनुष्ठान है। मगर जैसे-जैसे ढोलक की थाप तेज होती है तलवार लेकर नाचने वाली औरतों का नृत्य जुनून में बदलते समय नहीं लगता। नाच रही महिलाएं रह-रहकर उन्मत्त हो उठती हैं। रह-रहकर चीखने की आवाजें, आवेग में पूरे शरीर को झुमाना सामान्य व्यक्ति को असहज करने के लिए पर्याप्त है। आसपास खड़े लोग चारो तरफ घेरकर गोला बना लेते हैं जैसे कोई बड़ा रोचक तमाशा हो रहा हो। यह तमाशा देखने वाले बताते हैं कि इन पर देवी सवार है। यह देवी एक महिला के सिर पर सवार भूत को भगाएंगी। फिर उस महिला को लाया गया जिस पर भूत सवार होने का अंदेशा जताया जा रहा होता है। पहली नजर में वह महिला मानसिक रूप से पीडि़त नजर आ रही थी। लोगों ने बताया कि भूत ने उसे कुछ इस तरह कब्जे में ले लिया है कि वह अपने बच्चों तक पर ध्यान नहीं देती। महिला को एक अन्य बूढ़ी महिला ने उन दोनों नाचने वाली महिलाओं के हवाले कर दिया, बूढ़ी महिला संभवत: उसकी सास होगी। इसके बाद उन दोनों महिलाओं ने भूत उतारने के नाम पर पीडि़त महिला के साथ जो कुछ करती है वह रोंगटे खड़े कर देने वाला होता है। मगर शारिरिक अत्याचार की पद्धतियां इतनी खतरनाक है कि कहीं पीडि़त महिला की मौत न हो जाए। जब कभी कोई संगठन इस गोरखधंधे को रोकने की कोशिश करता है तो स्थानीय लोग कहते हैं कि आप लोग तनाव न लें। इस बीच वह विश्वास भी दिलाते हैं कि इन्हें कुछ नहीं होता, वह जल्द ठीक होकर अपने घर चली जाती हैं।
दरअसल माना जाता है कि नर्मदा माई के पानी में इतनी ताकत है कि यहां स्नान करने से भूत-पे्रत का साया उतर जाता है। इसलिए अमरकंटक से लेकर गुजरात तक नर्मदा नदी के तट पर इस तरह के अनुष्ठान चलते ही रहते हैं। नर्मदा के तट पर प्रेतबाधा मुक्ति के जबरदस्त अनुष्ठानों का दौर चलाना कोई नई बात नहीं है। भूतड़ी आमावश्या के नाम पर जगह-जगह ओझाओं की दुकानें लग गई हैं। पूरे मध्यप्रदेश से लाखों की संख्या में लोग प्रेतबाधा से मुक्ति के लिए ओझाओं के शरणागत हो जाते हैं। चौदस और अमावश्या की दरमियानी रात कई घाटों पर तंत्र पूजा होती है और भजन-कीर्तन, गम्मत और कथाओं के बीच पूरी रात ओझाओं और तांत्रिकों की दुकानदारी प्रशासनिक सुरक्षा के बीच निर्बाध रूप से चलती रहती है।
सौंदर्य की इस नदी के किनारे बरसों से चल रहे इस घिनौने कारोबार पर यह सोचकर हैरत होती है कि अंधविश्वास और शारिरिक यंत्रणा के इन अनुष्ठानों पर सवाल उठाना तो दूर इसकी कहीं चर्चा तक नहीं होती। नर्मदा नदी को साबुन के झागों तक से बचाने में जुटा प्रशासन भी इसकी छवि को कलंकित करने वाले इन कृत्यों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करता। और न ही इस नदी का गुण गाने वाला मध्यप्रदेश का बुद्धिजीवी ही इसके खिलाफ कोई मुहिम चलाने को तैयार नजर आता है। उद्योग का प्रतिरूप बन चुकीं इस तरह की प्रथाओं को बंद करने के बाजाय मीडिया में तथाकथित बाबा सिर्फ सात घंटे में समस्या का 101 प्रतिशत समाधान। गारंटी कार्ड के साथ बाबा मिलते हैं। कोई गलत साबित कर दे तो मुंहमांगा ईनाम। जैसे लोकलुभावन विज्ञापनों की भरमार कर अंधविश्वासियों की तलाश जारी रखते हैं।
अखबारों और लोकल टीवी चैनलों पर इस तरह के विज्ञापनों की तादाद रोज-ब-रोज बढ़ रही है। इसके चलते कई इनके चंगुल में फस कर बरबाद हो जाते है। एक पढ़े लिखे परिवार ने इसी तरह के एक बाबा के दरबार की शरण ली थी। उसकी समस्या थी कि उनकी बेटी को ससुराल में उतना सुख नहीं मिल रहा था, जितनी उनकी अपेक्षा थी।
बाबा 51 रुपये से शुरू हुए और 11 हजार रुपये तक पहुंच गये। उसके बाद 11-11 हजार रुपये की तीन और विशेष पूजा हुई लेकिन बेटी को मां-बाप की इच्छा अनुरूप सुख नहीं मिला। इधर जब बैंक बैलेंस निल हो गया तो मां-बाप को लगा कि कहीं वह ठगी के शिकार तो नहीं हुए हैं लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। पुलिस की भी मदद ली लेकिन पुलिस भी क्या करती। रिपोर्ट दर्ज की। गिरफ्तारी की औपचारिकता पूरी की। बाबा को जमानत मिल गई। वह फिर अपनी दुकान पर बैठने लगे। मां-बाप को अब अपनी लड़की के सुख की चिंता कम इस बात की चिंता ज्यादा खाये जा रही है कि पेट काट-काट कर उन्होंने पचास-साठ हजार रुपये जो बैंक में जमा किए थे, वह खत्म हो गए हैं। अब उनके परिवार के समक्ष कोई ऐसी जरूरत आन पड़ी, जिसमें फौरी पैसों की जरूरत हो तो फिर वह इसका इंतजाम कैसे करेंगे? इसी तरह कुछ समय पहले ऐसे ही एक तांत्रिक बाबा ने एक महिला को अपने जाल में फंसा उसकी इज्जत से खिलवाड़ करने की भी कोशिश कर डाली। इस तरह के कोई एक-दो उदाहरण नहीं है बल्कि जब-तब अखबारों में इस तरह की ठगी खबर हिस्सा बनती है। इस तरह के बाबाओं की तादाद बढ़ती ही जा रही है। कोई भी शहर या जिला ऐसा नहीं है जहां इस तरह की दुकानें न खुल गई हों और स्वयंभू तंत्र सम्राट गारंटी कार्ड के साथ केवल कुछ घंटों के भीतर आपकी किसी भी समस्या का समाधान सौ प्रतिशत नहीं बल्कि 101 प्रतिशत करने का दावा न कर रहे हों। एक व्यवसायी की तरह इन बाबाओं में भी अपने प्रतिद्वंद्वी को पिछाड़ कर खुद आगे निकल जाने की होड़ है। वे विज्ञापनों पर मोटी रकम खर्च करते हैं। इन्होंने खूबसूरत लड़कियों को अपनी रिसेप्शनिस्ट बना रखा है। यही रिसेप्शनिस्ट पहले आपकी समस्या नोट करेंगी, उसके बाद बाबा से आपकी मुलाकात कराएगी। सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें ज्यादातर बाबाओं का अतीत दागी है। कइयों के खिलाफ चार सौ बीसी, हत्या के प्रयास, दंगा भड़काने जैसे संगीन मामलों में मुकदमे चल रहे हैं। बाबजूद इसके कि गली मुहल्लों में चल रही दुकाने नर्मदा के पवित्र तटों को भी नहीं बक्श पा रही है।
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