रविवार, 7 फ़रवरी 2016
हेल्थ के करप्शन का कब होगा 'ट्रीटमेंटÓ
6000000000 के भ्रष्टाचार के बाद भी नहीं सुधरे हालात
नकली दवाएं कब तब करती रहेंगी जान से खिलवाड़
भोपाल। आठ हजार करोड़ रूपए के बजट वाला स्वास्थ्य विभाग हमेशा से ही भ्रष्टाचारियों का स्वर्ग रहा है। आलम यह है कि पिछले 12 साल में विभाग में 6000000000 रूपए का भ्रष्टाचार हुआ है, कई अफसरों पर गाज गिरी है, लेकिन विभाग के हालात सुधरे नहीं है। मध्य प्रदेश के स्वाथ्य विभाग में भ्रष्टाचार इस कदर पैठ गया है कि हर साल हजारों लोगों की मौत केवल अमानक और नकली दवाओं से हो रही है। कभी गर्भाशय कांड, कभी नसबंदी कांड तो अब बड़वानी का आंखफोड़वा कांड इस बात का प्रतीक है कि विभाग में किस तरह फर्जीवाड़ा चल रहा है।
दरअसल, मध्यप्रदेश का स्वास्थ्य महकमा एक ऐसा पारस का पत्थर है कि जो जिस भी अधिकारी या मंत्री को स्पर्श करता है वह तर जाता है। पिछले सालों का इतिहास देखें तो इस महकमें में कई अफसर रातों-रात कुबेर हो गए। हर साल बजट का एक बड़ा हिस्सा खर्च करने के बावजूद प्रदेशवासियों का स्वास्थ्य कितना सुधरा यह बात दीगर है, लेकिन महकमें से जुड़े अफसरों, कर्मचारियों और नेताओं की आर्थिक स्थिति ऐसी सुधरी है की उनके घरों में करोड़ों रूपए तो बिस्तर से निकल जाते हैं। दरअसल, विभाग में भ्रष्टाचार, घोटाला, घपला और कमीशनखोरी इस कदर है कि बिना कमीशन के सरकारी अस्पताल में तो सूई भी नहीं लगती। ऐसे में सहज में ही अनुमान लगाया जा सकता है कि दवा और उपकरण खरीदी का क्या आलम होगा? इसी कमीशनखोरी का परिणाम है बड़वानी आंखफोड़वा कांड।
बड़वानी के जिला अस्पताल में आंखों के ऑपरेशन के बाद 47 लोगों की आंख खराब होने के लिए ऑपरेशन करने वाले डॉ. आरएस पलोड़द्व, ओटी इंचार्ज लीला वर्मा, नर्स माया चौहान, विनीता चौकसे, शबाना मंसूरी व नेत्र सहायक प्रदीप चौकड़े के अलावा बड़वानी के सिविल सर्जन डॉ. अमर सिंह विश्नार को निलंबित कर दिया गया है, जबकि जांच में पाया गया है कि आई ड्राप अमानक था। ऐसे में सवाल उठता है कि सरकार दवा खरीदने वाले अफसर और सप्लाई करने वाली कंपनी के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि जिस कंपनी पर से एक साल पहले ही पांच साल का प्रतिबंध हटा था, उसी कंपनी को करीब 12 करोड़ रुपए का दवा सप्लाई का ठेका दे दिया। ये वही कंपनी है, जिसने दवा सप्लाई में देरी कर दी थी और हैजा से पीडि़त लोगों की वक्त पर दवा नहीं मिल पाने के कारण मौत हो गई थी। इसमें स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा और एमपीपीएचसीएल के एमडी फैज अहमद किदवई की भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं। बैरल ड्रग कंपनी के डायरेक्टर और चेयरमैन सुधीर सेठी और एमडी संजय सेठी हैं। सुनील जैन, हेमंत जैन, अविनाश शर्मा और बागचंद जैन इंडीपेंडेंट डायरेक्टर और स्वर्णा सियाल नॉन एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर है। ये सभी रसूखदार हैं। इनकी कंपनी अमानक दवाइयों के मामले में पहले भी शंका के घेरे में आई थी।
सरकार ने दवाइयों की खरीदी के लिए मध्यप्रदेश पब्लिक हेल्थ सर्विस कार्पोरेशन लिमिटेड (एमपीपीएचसीएल) का गठन किया है। कंपनी के माध्यम से 8 जनवरी 2015 को आईवी फ्लूड के सप्लाय का 11.80 करोड़ में ऑर्डर दिया था। कंपनी ने ठेका देने के पहले बैरल के पुराने रिकॉर्ड को नजरअंदाज कर दिया। इसके चेयरमैन प्रमुख सचिव गौरी सिंह तथा एमडी फैज अहमद किदवई है। इस तरह की खरीदी में मंत्री की सहमति ली जाती है। स्वास्थ्य विभाग ने 4 फरवरी 2015 को स्पष्ट आदेश जारी किए थे। इसके मुताबिक प्रदेश में कोई भी दवा जिलों में प्राप्ति के बाद तीन दिन के भीतर इसकी अधिकृत 8 लैब में से कहीं भी जांच कराना होगी। इसकी रिपोर्ट की जानकारी संचालनालय को भेजना होगी। सूत्रों के मुताबिक लैब में दवा के उपयोग के पहले जांच ही नहीं कराई गई है।
अस्पतालों में 222 अमानक दवाओं की सप्लाई
प्रदेश में मरीजों के साथ सरकारी अस्पतालों में किस तरह अमानक दवाएं देकर उनकी जान से खिलवाड़ किया जा रहा है। इसका खुलासा महालेखाकार की रिपोर्ट से भी हुआ है। जिसमें दवा खरीदी से लेकर उसकी जांच तक में लापरवाही बरतने की बात कही गई है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा यह दवाएं स्थानीय वितरकों से खरीदी गई हैं। खास बात यह है कि इन दवाओं का निधारित मानकों पर टेस्ट ही नहीं कराया और बगैर जांच कराए अस्पतालों में भेज दिया। इस मामले का खुलासा हुआ है महालेखाकार की ऑडिट रिपोर्ट में वर्ष 2010-13 के बीच प्रदेशभर में सीएमएचओ व सिविल सर्जन को जिला अस्पतालों में वितरण के लिए 21.70 करोड़ रुपए मूल्य की दवाएं भेजी गई थीं। महालेखाकार ने नियंत्रक खाद्य एवं औषधि प्रशासन, भोपाल के अभिलेखों की जांच (नवंबर 2013) के दौरान पाया कि इनमें से 222 औषधियों के नमूने अमानक पाए गए हैं। इनमें से 45 नमूनों का दो तरफ सत्यापन किया गया। जांच में यह भी पाया गया कि वर्ष 2010-13 की अवधि के दौरान 28 बैचों में तमिलनाडु चिकित्सा सेवा निगम फार्मों द्वारा सप्लाई की गई दवाएं खाद्य एवं औषधि प्रशासन द्वारा अमानक पाई गई थीं। इसी तरह 17 बैचों में स्थानीय वितरक से क्रय की गई 10.46 लाख रुपए की खाद्य एवं औषधि प्रशासन द्वारा अमानक पाई गई थीं। विभाग ने 65.95 लाख रुपए की अमानक दवाइयां स्वीकार कर वितरित कर दीं। वैसे तो अमानक दवाओं की खरीद प्रदेश के सभी जिलों में की गई है, फिर भी महालेखाकार की रिपोर्ट में 20 जिलों का ऑडिट किया गया, जिसमें 21.70 करोड़ रुपए कमी अमानक दवाओं का पेमेंट पाया गया है।
30 करोड़ के घटिया पायरेथ्रम ने छिनी 546 जिंदगी
पिछले साल तो घटिया पायरेथ्रम के चक्कर में 546 लोगों की जान ही चली गई थी। स्वास्थ्य विभाग में 30 करोड़ की जो पायरेथ्रम खरीदा था वह इतना घटिया था की उसका मच्छरों पर असर ही नहीं हुआ। मप्र स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में वर्ष 2009 में पहली बार डेंगू का मामला सामने आया था। इस साल प्रदेशभर में 1467 मामले सामने आए थे, जिसमें से अकेले भोपाल में 32 लोगों की मौत हुई थी। तब से लेकर डेंगू का डंक लोगों को मौत के घाट उतार रहा है, लेकिन उस पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। आलम यह है कि दो साल पहले देश में डेंगू पॉजीटिव के आधार पर मप्र 16 वें क्रम पर था। इस साल प्रदेश में डेंगू पॉजीटिव के मामले में मप्र पांचवें स्थान पर आ गया है वहीं मौत के मामले में तो प्रदेश पिछले दो साल से दिल्ली से आगे निकल रहा है।
दरअसल, मप्र में विगत 5 वर्षों से राज्य सरकार व स्वास्थ्य विभाग द्वारा अमानक व घटिया दवाओं की खरीदी की जा रही है। इस बात खुलासा विगत मेडिकल डॉक्टर्स एसोसिएशन ने करते हुए बताया था कि राज्य सरकार की ड्रग टेस्टिंग, लेबोरेटरी में ही जिन सैकड़ों दवाओं के नमूनों को अमानक माना उन्हीं की सप्लाई प्रदेश में लगातार की जाती रही। इस तरफ प्रदेश में अमानक स्तर की मच्छर नाशक दवा, पायरेथ्रम, एक्सट्रेक्ट-2 की खरीदी की जाकर छिड़काव किया जाता रहा जिसके परिणाम स्वरूप सैकड़ों लोग डेंगू और चिकिनगुनिया की बीमारी से पीडि़त होकर मौत के शिकार हुए। जब अस्पतालों में अमानक दवाईयां पहुंचेंगी तो बड़वानी जैसे आंखफोड़वा कांड होंगे हीं।
अस्पतालों में पड़ी करोड़ों रूपए की दवाओं पर बैन
बड़वानी नेत्र शिविर में 47 लोगों की आंख की रोशनी खोने के बाद मध्य प्रदेश स्वास्थ्य विभाग ने 19 दवाओं पर असुरक्षित और घटिया क्वालिटी के होने के आधार पर बैन लगा दिया है। विभिन्न फार्मास्यूटिकल्स की ये बैन लगाई गई दवाएं राज्य के कई सरकारी अस्पतालों और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में सप्लाई की गई थी। मध्यप्रदेश लोक स्वास्थ्य सेवा निगम के आदेश के अनुसार करोड़ों रूपए की इन दवाओं का स्टॉक राज्य के सरकारी अस्पतालों में रख गया था और अगले साल ये ऐक्सपायर होने वाली थीं। इसके अलावा वे असुरक्षित और घटिया क्वालिटी की थीं। मुख्य चिकित्सा स्वास्थ्य अधिकारी और सिविल सर्जन को इन दवाओं के मौजूदा स्टॉक को तुरंत सील करने के निर्देश दिए गए हैं। इसके साथ ही पेशेंट्स और स्टोर कीपर्स के लिए इन दवाओं को प्रेस्क्राइब करने से मना किया गया है। इंदौर डीवीजऩ के स्वास्थ्य संयुक्त निदेशक, डॉ. शरद पंडित ने बताया कि हमें मध्यप्रदेश लोक स्वास्थ्य सेवा निगम के महाप्रबंधक डॉ. विनय कुमार दुबे की तरफ से एक लेटर मिला है जिसमें 19 दवाओं की एक सूची शामिल है जिन्हें बैन किया जाना है। सूची में देश भर के फार्मास्यूटिकल्स द्वारा उपलब्ध दवाओं की सूची थी, जिसमें धार की बेरिल ड्रग्स लिमिटेड की चार दवाएं शामिल थीं, जिसके सेलाइन को बड़वानी केस के लिए जांच एजेंसियों ने जिम्मेदार ठहराया है। दूसरी कंपनियां जिनकी एक से ज्यादा दवाएं सूची में शामिल हैं वो हैं केयर ग्रुप वडोदरा, जावा फार्मास्यूटिकल्स, जयपुर और अमंता हेल्थ केयर लिमिटेड।
बैन की गई फर्मों की सूची
प्लोय्मर टेक्नोलॉजीज, वडोदरा
सिप्ला लिमिटेड, हरिद्वार
केयर ग्रुप, वडोदरा
केयर ग्रुप, वडोदरा
सनवेज इंडिया, अहमदाबाद
जावा फार्मास्यूटिकल्स, जयपुर
बेरिल ड्रग्स लिमिटेड, धार
आईवीईएस ड्रग्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, धार
अमंता हेल्थकेयर लिमिटेड, गुजरात
श्रेया लाइफ सांइस, औरंगाबाद
नंदिनी मेडिकल लैबोरेट्रीज, इंदौर
एफडीसी लिमिटेड, औरंगाबाद
बजट का अधिकांश हिस्सा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा
जहां स्वास्थ्य विभाग वर्ष 2003-04 में 664.78 करोड़ रुपए स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च करता था, वहां 12 साल बाद वह बढ़कर करीब 8 हजार रूपए हो गई है। उधर अमले के वेतन-भत्तों पर एक दशक पूर्व जहां 296 करोड़ रुपए खर्च हुआ करता था वहां यह बढ़कर 1369 करोड़ हो गया है। इसके बावजुद बीते कुछ वर्षों में इस राशि का लाभ जनता की अपेक्षा इसका संचालन करने वाले अफसरों की हेल्थ सुधारने पर ज्यादा खर्च हुआ। अनाप-शनाप फर्जी ढंग से हुई दवा खरीदी, उपकरणों की खरीदी, अफसरों की सुख-सुविधाओं में बढ़ोतरी, ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों का नहीं जाना, नि:शुल्क मिलने वाली गरीब मरीजों की दवाओं के टोटे ने स्वास्थ्य की छवि को बिगाड़ दिया। केंद्र की एनआरएचएम, आरएमएनसीएच तथा आरसीएच जैसी योजनाओं में भ्रष्टाचार हुआ। दवा खरीदी ही नहीं, बल्कि अफसरों ने मच्छरदानी खरीदी में हुए भ्रष्टाचार के मामले लोकायुक्त तथा ईओडब्ल्यू में दर्ज किए गए। इस भ्रष्टाचार की गर्त में फंसे तीन स्वास्थ्य संचालकों में एक निलंबित और दो बर्खास्त चल रहे हैं। वर्तमान में भ्रष्टाचार के आरोपों में 20 अफसरों के विरुद्ध प्रकरण या तो न्यायालय में लंबित हैं या फिर लोकायुक्त, ईओडब्ल्यू में। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि स्वास्थ्य विभाग के मूल अफसरों ने ही विभाग का कितना दोहन किया।
चाहें वे केंद्र की राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, मातृ स्वास्थ्य, शिशु स्वास्थ्य, शिशु एवं बालपोषण, किशोर प्रजनन एवं यौन स्वास्थ्य, आशा, ग्राम आरोग्य केंद्र, हमारा स्वास्थ्य हमारा दायित्व, स्वस्थ ग्राम समिति, समुदाय आधारित स्वास्थ्य सेवाओं की निगरानी, दीनदयाल चलित अस्पताल योजना, संजीवनी 108, शहरी स्वास्थ्य कार्यक्रम, राष्ट्रीय परिवार कल्याण, राष्ट्रीय टीकाकरण, पल्स पोलियो अभियान, शीत श्रृंखला प्रणाली, राष्ट्रीय वैक्टर जनित रोग नियंत्रण आदि योजनाएं हो या राज्य सरकार द्वारा लागू सरदार वल्लभभाई पटेल नि:शुल्क दवा वितरण, नि:शुल्क चिकित्सकीय जांच योजना, दीनदयाल अंत्योदय उपचार योजना, मप्र जनसंख्या नीति, मप्र राज्य बीमारी सहायता, मुख्यमंत्री बाल हृदय उपचार योजना, संक्रामक रोगों की रोकथाम, सूचना शिक्षा संचार गतिविधियां आदि सबका भरपूर दोहन किया गया है।
कई डॉक्टरों पर लगे आरोप
दवा और उपकरण खरीदी, मच्छरदानी खरीदी में घोटाले के चलते लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू ने कई डॉक्टरों के विरुद्ध एफआरआई दर्ज कर कई अपराधों में न्यायालय में चालान भी प्रस्तुत किए। इनमें बर्खास्त तत्कालीन संचालक डॉ. योगीराज शर्मा को जहां हाईकोर्ट ने क्लीनचिट देते हुए उनकी बर्खास्तगी को गलत ठहराया, वहीं तत्कालीन संचालक डॉ. अमरनाथ मित्तल निलंबित चल रहे हैं। डॉ. अशोक शर्मा को सरकार ने एक दिन पहले ही बर्खास्त किया है। भ्रष्टाचार के आरोपों में डॉ. एसके खरे, डॉ. शरद पंडित, डॉ. एसके शर्मा, डॉ. बीएल मिश्रा, डॉ. श्रीमती रेनू, डॉ. प्रदीप शुक्ला, डॉ. बीएन शर्मा के विरुद्ध ईओडब्ल्यू में मामले दर्ज हुए थे। इनमें से कुछ को क्लीनचिट भी मिल चुकी है।
सबसे दूधारू महकमा
मध्यप्रदेश का स्वास्थ्य विभाग सबसे दूधारू विभाग माना जाता है। विभाग में 75 हजार कर्मचारी है, जो 51 जिला अस्पताल, 65 सिविल अस्पताल, 333 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, 1152 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तथा 8859 उपस्वास्थ्य केंद्रों सहित अन्य जगह पदस्थ हैं। शहरी क्षेत्र में इसके अतिरिक्त 80 डिस्पेंसरियां भी हैं। बावजुद इसके प्रदेश में अन्य प्रदेशों की अपेक्षा स्वास्थ्य सुविधाएं बदहाल हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है भ्रष्टाचार। बीते 10 साल के दौरान इसी विभाग से 600 करोड़ रुपये से अधिक की काली कमाई छापों में मिली है। अब तक पूर्व स्वास्थ्य मंत्री अजय विश्नोई के अलावा एक स्वास्थ्य आयुक्त और तीन संचालकों पर आय से कई गुना अधिक संपत्ति पाए जाने का आरोप है। दरअसल घोटालों का यह सिलसिला 2005 में केंद्र के राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के साथ ही शुरू हो गया था। इस कड़ी में सबसे पहले 2007 में तत्कालीन स्वास्थ्य संचालक डॉ. योगीराज शर्मा और उनके करीबी बिजनेसमैन अशोक नंदा के 21 ठिकानों पर आयकर विभाग ने छापे मारे और गद्दों के अंदर से करोड़ों रुपए बरामद किए। इसके बाद स्वास्थ्य संचालक बने डॉ. अशोक शर्मा के ठिकानों पर 2008 और अमरनाथ मित्तल के ठिकानों पर आयकर छापे पड़े और इनके यहां भी करोड़ों की अवैध संपत्ति मिली। 2005 से अब तक स्वास्थ्य विभाग में घोटालों का लंबा पुलिंदा है जिसमें फिनाइल, ब्लीचिंग पाउडर से लेकर मच्छरदानी, ड्रग किट, कंप्यूटर और सर्जिकल उपकरण खरीद से जुड़े करोड़ों रुपए के काले कारनामे छिपे हैं। इसी कड़ी में केंद्र की दीनदयाल अंत्योदय उपचार योजना में विभाग के अधिकारियों ने मिली भगत करके दवा-वितरण में लगभग 658 करोड़ रुपए का चूना लगाया है। नौकरशाही ने पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था को इस हद तक बीमार बना दिया है कि अधिकारी ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरुस्त बनाने के लिए केंद्र से भेजे गए 725 करोड़ रुपए का फंड भी खर्च नहीं कर पा रहे हैं। दिलचस्प है कि मप्र में हर साल स्वास्थ्य के लिए आवंटित इस बजट के एक चौथाई हिस्से का उपयोग ही नहीं हो पा रहा है। भ्रष्टाचार की हालत यह है कि इस विभाग के अधिकारियों के खिलाफ सबसे अधिक 42 प्रकरण लोकायुक्त में लंबित हैं।
स्वास्थ्य विभाग में पिछले दस सालों में हुए भ्रष्टाचार का ब्यौरा
छापा: पूर्व स्वास्थ्य मंत्री वर्तमान में पशुपाल मंत्री के भाई अभय विशनोई सहित, तत्कालीन स्वास्थ्य आयुक्त डॉ. राजेश राजौरा, स्वास्थ्य संचालक डा. योगीराज शर्मा के यहां छापे। छापे दवा खरीदी में हुए घोटाले के संदर्भ में अभय विश्नोई के यहां छापे में 1.88 करोड़ रूपये की संपत्ति का पता चला। छापे में तत्कालीन स्वास्थ्य संचालक डा. योगीराज शर्मा के यहां 1.25 करोड़ रूपये नगद मिले जो गद्दों में, वाशिंग मशीन के अंदर से बरामद हुए और एक नोट गिनने की मशीन बरामद हुई। कुल बारह करोड़ रूपये की अघोषित संपत्ति का पता चला।
स्वास्थ्य आयुक्त डा. राजेश राजौरा पर आयकर विभाग ने अघोषित संपत्ति पर 5 करोड़ रूपये के कर चोरी का निर्धारण किया।
डॉ. आशोक शर्मा स्वास्थ्य संचालक के यहां पड़े छापे में 75 लाख रूपए मिले।
डॉ. ए.एन. मित्तल एवं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान के कथित मामा गणेश सिंह किरार के यहां से सवा सौं करोड़ रूपये की सम्पत्ति मिली।
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के खिलाफ सर्वाधिक 42 प्रकरण लोकायुक्त में दर्ज।
पल्स पोलियों टीकाकरण अभियान मे 2 करोड़ 65 लाख 85 हजार रूपये का भ्रष्टाचार हुआ।
पल्स पोलियों टीकाकरण अभियान विज्ञापन प्रसारण एवं होर्डिंग में 38 लाख 88 हजार 286 रूपये का भ्रष्टाचार।
राष्ट्रीय पल्स पोलियो टीकाकरण अभियान के बैनर मुद्रण में 1 करोड़ 35 लाख 6800 रूपये का भ्रष्टाचार।
महामारी के नाम पर दवा एवं सामग्री खरीदी में 4 करोड़ की अनियमितता।
स्वास्थ्य शिविर लगाने के नाम पर 32 लाख रूपये का घोटाला।
जननी एक्सप्रेस योजना में अलीराजपुर और होशंगाबाद में घोटाले की शिकायत अलीराजपुर में 20 कि.मी. दूर सोरवा को 70 कि.मी. बताया।
इसी तरह बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में महामारी को रोकने के लिए दवा खरीदी में साढ़े पांच करोड़ रूपये का भ्रष्टाचार
दवाओं की खरीदी में वर्ष 2006 में दस करोड़ के क्रय आदेश बगैर अनुमोदन के भुगतान भी किया।
वर्ष 2007 में फिर से 3 करोड़ 56 लाख 53 हजार की दवाएं बगैर शीर्ष अधिकारियों के अनुमोदन के क्रय की गई।
जिलों की बजट आवंटन में करोड़ों रूपये का भ्रष्टाचार।
प्रशिक्षण के नाम पर भ्रष्टाचार।
गांवो में साफ-सफाई और अन्य कार्य के लिए दिए गए 10 हजार रूपये की राशि में से प्रत्येक आशा कार्यकर्ता से तीन-तीन हजार रूपये कमीशन के रूप में वसूला गया। इस तरह 20 लाख रूपये का घोटाला।
केन्द्र सरकार की दीनदयाल अन्त्योदय उपचार योजना में 6597.54 लाख रूपये का घोटाला।
जबलपुर हाईकोर्ट ने दवा घोटाले की एक याचिका पर प्रदेश सरकार को 5 सौ करोड़ के दवा घोटाले की लोकायुक्त को विधि अनुसार जांच करने के निर्देश।
जयपुर राजस्थान ड्रग फार्मास्यूटिकल लिमिटेड कंपनी से दवा खरीदी में करोड़ों रूपये का घोटाला।
एनआरएचएम में कम्प्यूटर सहित अन्य उपकरणों की खरीदी में सरकार को लगाया चूना: दोगुनी कीमत में की डेढ़ करोड़ का घोटाला।
465 में खरीदी 217 की मच्छरदानी में 1 करोड़ 31 लाख रूपये का भ्रष्टाचार।
ड्रग किट खरीदी में 25 करोड़ रूपये की अनियमित खरीदी।
लेप्रोस्कोप खरीदी में करीब पांच करोड़ रूपये खर्च कर अमानक और अधिक मूल्य की खरीदी।
एंटी टीवी ड्रग खरीदी लगभग 70 लाख रूपये का घोटाला।
कार्ड प्रिटिंग में दीनदयाल अंत्योदय उपचार योजना के तहत सवा दो करोड़ रूपये का अनियमित भुगतान।
मलेरिया के रोकथाम के लिए टेमीफास खरीदी में 50 लाख का भ्रष्टाचार।
मलेरिया की पायरेथ्रम सिंथेटिक पायरेथ्रोईट दवा की खरीदी काली सूची में दर्ज कंपनी से।
राज्य स्वास्थ्य प्रबंधन एवं संचार संस्थान ग्वालियर में एक करोड़ रूपये का भ्रष्टाचार।
हिमेटोलाजी रिएजेंट्स एवं डिजीटल एक्सरे फिल्मस् की अधिक दामों पर खरीदी।
डीएफआईडी ने भी पाया भ्रष्टाचार
अंतर्राष्ट्रीय संस्था डीएफआईडी ने तो पिछले महीने मप्र सरकार के स्वास्थ्य विभाग को पत्र लिखाकर कहा कि आप के यहां 11 सरकारी सेवाओ में सबसे अधिक भ्रष्टाचार है और आपका राज्य भारत के 5 भ्रष्ट राज्यो मैं आता है। इस संस्था के द्वारा मप्र सरकार को कहा गया कि आपके यहाँ स्वस्थ्य विभाग में भ्रष्टाचार को ख़तम करने के लिए गम्भीर प्रयास नहीं किये जाते। इस संस्था का ये कहने का साहस इसलिए हुआ क्योकि ये मप्र सरकार को उसकी कई जनकल्याणकारी योजनाओ के लिए वे कई वर्षो से आर्थिक सहायता देते आ रहे है।
इस रिपोर्ट में कई गंभीर टिप्पणियां भी की गई हैं
* मप्र शासन द्वारा मलेरिया, टीबी, कुष्ठ और अंधत्व से पीडि़त रोगियो के उपचार के लिए वर्ष 2007-08 से 2011-12 के मध्य के वर्षो मैं करीब 26 करोड़ रुपए कि राशि स्वास्थ्य समितियों को देनी थी लेकिन ये उस वक्त न देकर सरकार ने वर्ष 2012 में आपराधिक उदासीनता दिखाते हुए जारी करी। नि:संदेह इसका लाभ रोगियों को नहीं मिला और ये केवल कागजो में खर्च हुयी।
* सरकारी खजाने से करीब 1.23 करोड़ रुपए उन कार्यों के लिए भुगतान किये गए जो या तो हुए ही नहीं या फिर जरुरत से ज्यादा भुगतान किया गया।
* स्वास्थ्य की वार्षिक योजनाओं के क्रियान्वन के लिए करीब 213 करोड़ रुपए बैंको से निकले ही नहीं गए जिसका नुकसान इन योजनाओं के हितग्राहियो को उठाना पड़ा।
* ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार स्वास्थ्य सेवाओं के लिए विभिन्न संस्थाओं और व्यक्तियों को पिछले तीन वर्षो में करोड़ों रुपए दिए गए तथा उसमें से 100 करोड़ रुपए वापस वसूल करने थे लेकिन मिशन इन्हें वसूल करने में असफल रहा।
* मिशन द्वारा करीब 67.40 करोड़ रुपए उन योजनाओं में खर्च कर दिए जिन्हें करने कि अनुमति ही नहीं थी। इनमें कई प्रभावशाली लोगों के एनजीओ को जमकर पैसा दिया गया।
* मिशन द्वारा स्वीकृत स्वास्थ्य गतिविधियों में करीब 153 करोड़ रुपए बिना अनुमति के ज्यादा खर्च कर दिए। आखिर इतनी बड़ी राशि कैसे खर्च कर दी?
* इस ऑडिट रिपोर्ट कि सबसे ज्यादा चौकाने वाली बात ये है कि सामुदायिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए मप्र सरकार ने जितनी राशि मांगी उससे ज्यादा केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने दे दी। मप्र सरकार ने प्रस्ताव बनाकर भारत सरकार से 164.30 करोड़ मांगे लेकिन भारत सरकार ने बेहद आश्चर्यजनक तरीके से 179.2 3 करोड़ रुपए दे दिए। आखिर 14. 93 करोड़ रुपए कि इतनी रहस्मय उदारता क्यों?
* मिशन द्वारा प्रदेश की स्वस्थ्य संस्थाओं को जारी 112 करोड़ रुपए जो कि सामुदायिक स्वास्थ केन्द्रों ,प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों, उप स्वस्थ्य केन्द्रों, ग्रामीण स्वस्थ्य एवं स्वछता समितियों और रोगी कल्याण समितियों, जिला अस्पताल और सिविल अस्पताल के रखरखाव के लिए खर्च होना था स्टाफ की कमी के कारण नहीं हुआ। इसका दुखद परिणाम केवल और केवल जनता को भोगना पड़ा।
* टीकाकरण से सम्बंधित योजनाओं का वित मासिक प्रतिवेदन और मप्र सरकार कि तरफ से सीए से जो ऑडिट रिपोर्ट बनवाकर केंद्र सरकार को भेजा गया उसमे सीए के आंकड़ों को गलत पाया गया तथा 3. 50 करोड़ रुपए का अंतर पाया गया।
* स्वस्थ्य के बेहतर संचालन के लिए भारत सरकार ने मप्र कि सभी लोक स्वस्थ्य एवं परिवार कल्याण समितियों का विलय राज्य स्वास्थ्य समिति में करने को कहा लेकिन जिससे करीब 19 करोड़ रुपए कि संपत्ति का सदुपयोग किया जा सके लेकिन मप्र सरकार ने इसका पालन नहीं किया जिसके कारण भ्रष्टाचार पुरे प्रदेश में फैल गया और बेकाबू हो गया।
* मप्र सरकार द्वारा छोटे बच्चों के कुपोषण को दूर करने के लिए चलायी जा रही बहुचर्चित अटल बाल आरोग्य एवं पोषण मिशन सुपर फ्लाप रहा क्योंकि इसने अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया। इस योजना ने करोड़ों रुपए खर्च किये तथा बड़ी मात्रा पैसा बैंक में पड़ा रहा। विशेष तौर पर आदिवासी जिले झाबुआ और बड़वानी में स्थिति बदहाल रही।
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