गुरुवार, 9 जुलाई 2015
बलराम तालाब योजना में सामने आया फर्जीवाड़ा
7 साल में 8055000000 के तालाब गायब
8055 लापता तालाबों को ढूंढने में जुटे अधिकारी
भोपाल। प्रदेश में सरकार खेती को लाभ का धंधा बनाने में जुटी हुई है। इसके लिए सरकार ने कई योजनाएं परियोजनाएं संचालित कर रखी हैं। इसी में से एक बलराम तालाब योजना में बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है। इस योजना के तहत किसानों ने सरकार से अनुदान तो ले लिया है, लेकिन तालाब का निर्माण नहीं करवाया है। यही नहीं अधिकारियों ने कागजी भौतिक सत्यापन कर इनका भुगतान भी कर दिया है। आलम यह है कि प्रारंभिक पड़ताल में करीब 8055 से अधिक तालाब लापता बताए जा रहे हैं। इन लापता तालाबों को ढूढऩे के लिए अधिकारी जुट गए हैं। इस फर्जीवाड़े में करीब 8055000000 रूपए का घोटाला सामने आया है। जानकारों का कहना है कि जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ेगी फर्जीवाड़े का आंकड़ा भी बढ़ता जाएगा।
उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश सरकार ने वर्ष 2007-08 में बारिश का पानी सहेजने, सिंचाई करने और जमीनी जल स्तर बढ़ाने के लिए बलराम तालाब योजना प्रारम्भ किया था। इसमें किसान के अपने खेत पर तालाब बनाने के लिए करीब 40 से 50 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जाती है। प्रदेश के अधिकांश जिलों में किसान इस योजना का लाभ उठाने के लिए आगे आए पर कुछ जगह स्थानीय मैदानी अमले, पंचायत की मिलीभगत से यह योजना पैसा कमाने का जरिया बन गई। आलम यह है कि जमीन पर तालाब बने ही नहीं लेकिन तालाबों के नाम पर सरकारी खजाने से करोड़ों रूपए निकाल लिए गए। कहीं एक ही तालाब को तीन-चार लोगों ने अपना-अपना बताकर तो कहीं सरकारी जमीं पर गड्ढा खोदकर पैसा हजम कर लिया गया। मोटी रकम के लालच में यह गोरखधंधा खूब फला-फूला। कमाल यह है कि सरकार अब जागी है जब कितनी ही चिडिय़ाएं खेत चुग गई।
कागजों पर बना लिए बलराम तालाब
खेतों में पानी सहेजने के लिए बलराम तालाब योजना के तहत बनाए गए अधिकतर तालाब केवल कागजों पर बन कर तैयार हो गए हैं। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि विभाग ने जो लक्ष्य दिया था उसके अनुरूप विकासखंडों में तालाब नहीं बन सके है। वहीं किसी विकास खंड में लक्ष्य से दो गुने तालाब बन कर तैयार हो गए और बिना भौतिक सत्यापन के किसानों को अनुदान राशि भी जारी कर दी गई है। ऐसे में विभाग की कार्यप्रणाली पर सावालिया निशान खड़े हो गए हैं कि विभाग ने तालाबों का बिना सत्यापन किए अरबों रूपए की अनुदान राशि कैसे जारी कर दी।
उल्लेखनीय है कि शासन द्वारा उन्हीं बलराम तालाबों के निर्माण पर अनुदान की सुविधा दी जाती है जिनका निर्माण निर्धारित मापदंड के अनुसार कराया जाता है। इसके लिए कृषि विभाग द्वारा अनुदान राशि तभी जारी की जाती है जब बनाए गए तालाब का भौतिक सत्यापन कर लिया जाता है। शासन द्वारा बलराम तालाब तीन स्तर पर भूमि की उपलब्धता के आधार पर स्वीकृत किए जाते हैं। जिन किसानों के पास कम भूमि होती है ऐसे किसानों को 55 मीटर लंबा और 30 मीटर चौड़ा तथा 3 मीटर गहरा तालाब बनाने की स्वीकृति दी जाती है। इन तालाबों का निचला तल 46 मीटर लंबा 21 मीटर चौड़ा होता है। इसी प्रकार जिन किसानों के पास अधिक भूमि है उन्हें 63 से 68 मीटर लंबा, 30 मीटर चौड़ा और तीन मीटर गहराई वाले तालाब बनाने की स्वीकृति दी जाती है। लेकिन अधिक भूमि वाले किसान भी जिस तालाब की अनुमति मिलती है उसे न बनाते हुए कम भूमि में तालाबों का निर्माण कर लेते हैं। जो उन्हें मिली स्वीकृति के विपरीत होता है। लेकिन विभागीय अधिकारी तालाब के भौतिक सत्यापन के समय इसकी अनदेखी कर अनुदान की राशि उपलब्ध करा देते हैं।
सबसे अधिक देवास में घपला
जहां प्रदेशभर में सरकारी अधिकारी इन दिनों खेत-खेत जाकर लापता करीब 8055 तालाबों की पड़ताल कर रहे हैं वहीं अकेले देवास जिले में 2000 से ज्यादा तालाबों को जमीन पर ढूंढा जा रहा है। शुरूआती जांच में ही जिन 107 तालाबों की खोजबीन की गई, उनमें से सिर्फ 7 तालाब ही मौके पर मौजूद मिले, जबकि 100 तालाब जमीन पर बने ही नहीं। हद यह कि वे सिर्फ कागजों पर ही बन गए और सरकार के खजाने से इन तालाबों के नाम पर सब्सिडी के करोड़ों रूपए डकार लिए गए। ढोल की पोल उजागर हुई तो आनन-फानन में 13 कर्मचारियों को निलम्बित कर दिया गया है।
दरअसल देवास जिले के गांव-गांव में किसानों के खेत पर सरकार की बलराम योजना के तहत कागजों के मुताबिक बीते 3 सालों में करीब 2000 से ज्यादा तालाब बनाए जा चुके हैं लेकिन जब सरकारी कागजों के सहारे अधिकारी खेत-खेत पंहुचे तो वहां खेत लहलहा रहे थे। जिन तालाबों को लाखों रुपये की लागत से बनाया गया अब ये ढूंढे नही मिल रहे यानी तालाब के तालाब ही गायब हो गये। अब मामले की जांच करने पंहुची टीम गांव-गांव पंहुच कर तालाबों का पता ठिकाना ढूंढ रही है। हैरानी की बात ये है कि सरकारी कागजातों में जिस जमीन पर तालाब हिलोरें ले रहे है वहां कीचड़ तक नहीं है।
हालांकि इतना बड़ा खुलासा होने के बाद भी जांच का काम अभी बहुत धीमा चल रहा है। इससे तथ्य भी प्रभावित हो सकते हैं और दोषियों को बचने का मौका भी मिल सकता है। कलेक्टर की बार-बार की चेतावनी के बाद भी दो माह से ज्यादा समय बीतने पर भी जांच रिपोर्ट तैयार नहीं हो सकी है। देवास के उप संचालक कृषि जीके वास्केल कहते हैं कि जिला कलेक्टर के आदेश से 2000 तालाबों की जांच की जा रही है। टोंकखुर्द क्षेत्र में तालाब नहीं मिलने पर कर्मचारियों पर कार्रवाई की जा चुकी है। जांच रिपोर्ट जल्दी ही जिला कलेक्टर को सौंप दी जाएगी। देवास जिले चुरलाय गांव के किसान किसान राजेंद्रसिंह कहते हैं कि सरकारी अफसर ध्यान देते तो बहुत पहले ही यह सब सामने आ जाता। वह तो कुछ लोगों ने शिकायत न की होती तो दूसरी योजनाओं की तरह यहां भी अंधेरगर्दी चलती रहती। देवास जिले के करीब 5 हजार की आबादी वाले जिरवाय गांव में बड़ा घोटाला सामने आया है। यहां जब सज्जनसिंह और इन्दरसिंह के खेत पर सरकारी टीम पहुंची तो जमीन पर तालाब की जगह लहसुन की फसल खड़ी थी। पर यह अकेला गांव नहीं है, ऐसे कई गांव हैं। शुरुआती दौर में ये आंकडा बेहद चौंका देने वाला है। फिलहाल पूरे मामले में 13 अफसरों-कर्मचारियों को कलेक्टर ने दोषी पाते हुए निलंबित कर दिया है।
धार, नालछा व तिरला में जांच शुरू
इसी तरह धार जिले के धार, नालछा व तिरला में किसानों को दी जाने वाली योजनाओं में अनुदान, कृषि यंत्रों के वितरण व बलराम तालाब निर्माण योजना में अनियमितिता करने के मामले की जांच शुरू हो चुकी है। कृषि विभाग भोपाल द्वारा जांच के लिए बनाई गई 6 टीमों ने जिले के विकासखंडों में पहुंचकर जहां पर सूची में दर्ज किसान को ढूंढकर उससे योजना के तहत मिलने वाले अनुदान की जानकारी ली वहीं बलराम तालाब योजना के भौतिक सत्यापन की भी प्रक्रिया भी कर रही है। हालांकि प्रारंभिक रूप से टीम अपनी रिपोर्ट तैयार करने में लगी है। जिसे शासन को सौंपा जाएगा। लेकिन प्रारंभिक जांच में ही अनियमितताओं की जानकारी सामने आ रही है। सूत्रों के अनुसार जो किसान सूची में दर्ज है, वह संबंधित गांव व पते पर नहीं मिल रहे है। गौरतलब है कि कृषि विभाग के प्रमुख सचिव डॉ. राजेश राजौरा ने प्रदेश के चार जिलों में हितग्राहियों को दी गई योजनाओं व अनुदान के प्रकरणों की जांच करवाई थी। प्रारंभिक जांच में इसमें 80 करोड़ की अनियमितता की बात सामने आई थी। इसके चलते धार कृषि उप संचालक आरपी कनेरिया को निलंबित कर दिया गया था। इसके बाद चारों जिले में भौतिक सत्यापन व आगे की जांच के लिए टीमें बनाई गई थी। धार जिले की जांच के लिए शासन ने आलीराजपुर, बड़वानी व आसपास के कृषि अधिकारियों वाली 6 टीमे बनाई है। बलराम तालाब योजना के तहत बनाए गए 100 तालाबों के भौतिक सत्यापन के लिए धार, नालछा व तिरला में दल खेत-खेत घूमा। लेकिन कई जगह तालाब की जगह सपाट जमीन दिखी। वहीं सूची में दर्ज कई किसानों के मैदानी स्तर पर पते नहीं है। ऐसे में भौतिक सत्यापन में टीम को भटकना पड़ रहा है। धार जिले के कृषि विभाग के अधिकारी डीएस मौर्य का कहना है कि जांच दल ने अपनी भौतिक सत्यापन व जांच की प्रक्रिया पूरी कर ली है। बलराम तालाब निर्माण योजना के साथ ही ड्रिप स्प्रिकंलर वितरण, कृषि यंत्रीकरण खरीदी व वितरण, डीजल पंप व पाइप लाइन वितरण आदि की भी जांच की जा रही है।
अधूरे तलाबों का भी कर दिया भुगतान
सीहोर जिले में कृषि विभाग ने पांच विकास खंड सीहोर, इछावार, आष्टा, बुधनी और नसरुल्लागंज के लिए 50-50 तालाब बनाने लक्ष्य स्वीकृत किया था। लेकिन नसरुल्लागंज विकास खंड में लक्ष्य से दो गुने तालाब बना दिए गए। विभाग से मिले आंकड़ों के अनुसार यहां 100 में से 98 तालाब बन कर तैयार हो गए हैं। वहीं सीहोर, आष्टा, बुधनी और इछावार में अभी लक्ष्य अनुरूप भी तालाब नहीं बन सके हैं। लेकिन अधिकारियों ने बिना भौतिक सत्यापन किए हुए ही अधूरे तलाबों का भी भुगतान कर दिया। अब अधिकारी इसकी जांच में जुट गए हैं। दरअसल, शासन की योजनानुसार बलराम तालाब का निर्माण करने वाले अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जाति के किसानों को 50 प्रतिशत का अनुदान दिया जाता है। वहीं सामान्य तथा पिछड़ा वर्ग के किसानों को 40 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है। एक बलराम तालाब की लागत 2 लाख रुपए है उस मान से अजा और अजजा के हितग्राही किसान को 1 लाख और सामान्य तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के किसान को 80 हजार रुपए का अनुदान दिया जाता है। शेष राशि किसान को स्वयं खर्च करनी पड़ती है। पिछले वित्तीय वर्ष में 252 तालाबों में से 225 तालाबों का कार्य पूर्ण बताकर बिना भौतिक सत्यापन कराए ही अनुदान की राशि 176.920 लाख रुपए का भुगतान कर दिया गया जबकि कई तालाब अभी भी अधूरे पड़े हुए हैं।
यही नहीं बिना भौतिक सत्यापन के बनाए गए बलराम तालाबों में भारी लीपापोती की गई है। सत्यापन नहीं होने के कारण जिन किसानों ने तालाब बनाए है उन्हें तो अनुदान मिला ही है। लेकिन जिन किसानों ने तालाब नहीं बनाए है उनकों को भी विभाग अधिकारियों और कर्मचारियों ने सांठगांठ कर अनुदान राशि जारी कर दी है। इससे यह बात तो साफ हो गई है कि मौके पर पहुंच कर तालाबों का भौतिक सत्यापन इसी कारण से नहीं किया गया। सीहोर जिले के उपसंचालक कृषि रामेश्वर पटेल कहते हैं कि जिले में 252 बलराम तालाबों को स्वीकृति दी गई थी, जिसमें से 225 तालाबों का निर्माण कार्य पूरा हो जाने के बाद विभाग द्वारा अनुदान राशि दे दी गई है। यदि भौतिक सत्यापन में गड़बड़ी हुई है तो जांच कराई जाएगी।
फोटोकॉपी लगाकर पैसे निकाले गए
कृषि विभाग द्वारा राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, लघुत्तम सिंचाई योजना, नाफेड निर्माण, नलकूप योजना, वर्मी कम्पोस्ट, बलराम तालाब, बीज ग्राम, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, डीजल पंप, फसल प्रदर्शन, कृषि यंत्र, गन्ना विकास योजना, सघन कपास विकास कार्यक्रम आदि के लिए किसानों को मिलने वाली सब्सिडी में किस तरह घपला हो रहा है इसका नजारा धार और रतलाम की जांच में सामने आया है। यहां बिल की फोटोकॉपी लगाकर पैसे निकाल लिए गए। सब्सिडी किसान के खातों में जमा नहीं कराई गई। पंचायती राज संस्थाओं के अधिकारों को ताक पर रखकर हितग्राहियों का मनमर्जी से चयन किया गया। हितग्राहियों को जो सामग्री वितरण किया गया वो संदेहास्पद पाया गया। केन्द्रीय योजनाओं में किसानों से यंत्रों का चयन नहीं कराकर निजी कंपनियों को सीधे क्रय आदेश दिए गए। लक्ष्य के विरुद्ध अधिक पूर्ति कराकर शासन को आर्थिक नुकसान पहुंचाया गया। डॉ.राजौरा ने बताया कि महालेखाकार मप्र ने कैशबुक की जांच में 200 प्रकरण गबन और शासकीय धन की क्षति के पाए हैं। महालेखाकर की रिपोर्ट पर जांच के लिए संचालक कृषि की अध्यक्षता में कमेटी बनाई गई है। कमेटी एक-एक प्रकरण का परीक्षण कर जिम्मेदारी तय करेगी। साथ ही जो अधिकारी दस्तावेज मुहैया नहीं करा रहे हैं उनके खिलाफ कार्रवाई करेगी। गौरतलब है कि कृषि विभाग धार में करोड़ों रुपए का सबसिडी घोटाला हुआ है। इसकी जांच के लिए 6 टीमें बनाई गई है। इसके तहत वर्ष 2012 से 2015 तक जिले में बनाए गए बलराम तालाबों का भौतिक सत्यापन करवाया जाएगा। साथ ही अन्य दो योजनाओं के मामले में भी जांच शुरू करवाई जा रही है।
हर जिले में करोड़ों की हेराफरी
कृषि विभाग द्वारा मिलने वाले अनुदान का अनैतिक लाभ उठाने के लिए अधिकारियों, पंचायत प्रतिनिधियों और किसानों की मिलीभगत से जमकर हेराफेरी की गई है। केंद्र में एनडीए सरकार को सत्तासीन हुए तो महज एक वर्ष ही हुआ है। लेकिन इससे पहले वर्षों तक केंद्र से मिलने वाली करोड़ों रुपए की सहायता के भरोसे तीन-तीन बार कृषि कर्मण अवार्ड लेने वाले मध्यप्रदेश के कृषि विभाग में किस तरह घोटाला और घपला किया जा रहा था, इसकी परतें अब खुल रही हैं। विभाग एक तरफ कृषि को लाभ का धंधा बनाने में जुटा रहा दूसरी तरफ सरकारी सब्सिडी के गोरखधंधे खेल चलता रहा। रतलाम, धार तथा सतना जिलों में कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा भारत सरकार एवं राज्य पोषित योजनाओं में गंभीर अनियमितताएं की गईं। अकेले सतना जिले में करोड़ों रुपए की हेराफेरी हुई। स्प्रिंकलर सेट के वितरण, छोटे एवं बड़े कृषि यंत्रों के वितरण, बीज वितरण कार्यक्रम, सूरज धारा एवं अन्नपूर्णा योजना में बीज अदला-बदली-स्वालंबन-उत्पादन, बीज ग्राम योजना, बलराम तालाब योजना जैसी केंद्र और राज्य सरकार की तमाम योजनाओं में जमकर भ्रष्टाचार हुआ। कई योजनाओं में वित्तीय सीमा से बाहर जाकर लाखों रुपए खर्च कर दिए गए। वर्ष 2013-2014 में आईसोपाम योजना के अन्तर्गत 60 पाइप लाइन डाली जानी थी लेकिन 72 पाइप लाइन डाली गई। इस प्रकार जहां 9 लाख रुपए तक खर्च करने की सीमा थी वहां 27 लाख 23 हजार रुपए खर्च कर दिए गए। यह खर्चा तो कागजों पर लिखा हुआ है। वे 72 पाइप कहां हैं, किस जमीन में बिछे हुए हैं। बिछाए गए भी हैं या नहीं। इसमें भी संदेह है। क्योंकि जब हिसाब गलत है तो बाकी जगह भी गड़बड़ी हो सकती है। किसानों को स्प्रिंकलर सेट देने के लिए फर्जी आवेदन मंगाए गए। आवेदन में किसान द्वारा किस कंपनी का स्प्रिंकलर सेट मांगा गया है इसका कोई उल्लेख नहीं है। जाहिर है कागजों में स्प्रिंकलर सेट बांटे गए। केवल स्प्रिंकलर सेट ही नहीं बल्कि एनएफ.एसएम धान के अंतर्गत वर्ष 2012-2013 में 88 लोगों को 16.20 लाख रुपए के यंत्र बांटने की योजना थी जिसमें 252 लोगों को 36 लाख रुपए के यंत्र बांटे गए। बिना किसी अतिरिक्त स्वीकृति के। जनपद पंचायत की कृषि स्थायी समिति से अनुमोदन प्राप्त किए बगैर किसानों के खाते में पैसा डाल दिया गया। बलराम तालाब योजना में भी कई कृषकों के खाते में पैसे तो डाल दिए गए लेकिन उनकी प्रशासकीय स्वीकृतियां जारी ही नहीं हुई। जब पैसा स्वीकृत नहीं हुआ तो खाते में कैसे पहुंचा। कई ऐसे किसानों को 1-1 लाख रुपए का अनुदान दे दिया गया जो सामान्य वर्ग के संपन्न किसान थे तथा जिन्हें नियमानुसार बलराम तालाब योजना के तहत अनुदान या अन्य लाभ लेने की पात्रता ही नहीं थी। बताया जाता है कि 40 हजार रुपए से लेकर 1 लाख रुपए तक की राशि बिना किसी शासकीय स्वीकृति के किसानों के खाते में डाल दी गई। जो गंभीर अनियमितता की ओर इशारा करती है।
कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन का कहना है कि कुछ गड़बड़ी की शिकायत मिली थी इसलिए जांच कराई जा रही है। जांच चलती रहती है। 30-35 जिलों में जांच कराई जाएगी। जांच का किसी के कार्यकाल से कोई लेना-देना नहीं है। मैं अपने कार्यकाल की भी जांच कर रहा हूं। कुछ अधिकारियों ने फंड जारी करते समय अनुमोदन नहीं लिया इसलिए गड़बड़ी हुई।
अधिकारी घपला करते रहे, सरकार आंख मूंदकर देखती रही
अभी तो केवल तीन जिलों का काला-पीला सामने आया है। बाकी जिलों का हाल कहना मुश्किल है। सतना जिले में भी कई ग्रामीण क्षेत्रों में यह भ्रष्टाचार किया गया और सरकार आंख मूंदकर देखती रही। वैसे भी बलराम तालाब योजना में अनुदान राशि का भुगतान प्रथम निर्माण प्रथम अनुदान पद्धति से किया जाता है। लेकिन इसमें वह पद्धति अपनाई ही नहीं गई। यहां तक कि अधिकारियों ने बलराम तालाबों का भौतिक सत्यापन करना भी उचित नहीं समझा। वर्ष 2012 के मार्च माह से लेकर दिसंबर 2014 तक उप संचालक किसान कल्याण तथा कृषि विभाग सतना के पद पर एस के शर्मा, संजीव कुमार शाक्य (प्रभारी उपसंचालक) एपी सुमन पदस्थ रहे। इस दौरान रोकड़ पुस्तिका भी नियमित रूप से नहीं भरी गई। विभाग वित्तीय वर्ष 2014-15 के अंतिम दिवस 31 मार्च 2015 को कार्यालय अवशेष राशि 4 करोड़ 47 लाख 69 हजार 40 रुपए का वर्गीकरण बताने में भी असफल रहा। कई मामलों में अनुदान की राशि पहले ही निकाल ली गई जबकि इसे अग्रिम न निकालने का निर्देश शासन का है। एक जिले में 250 से अधिक गांव आते हैं। ऐसी स्थिति में सभी गांवों में दिए गए अनुदान और विभिन्न योजनाओं के तहत करवाए गए हर एक काम की जांच करना संभव नहीं है। अधिकारियों द्वारा जो जांच पड़ताल की जा रही है। वह बड़ी वित्तीय अनियमितताओं की है। छोटे-बड़े सभी मामलों को मिलाया जाए तो यह एक बड़ी धांधली हो सकती है। विभाग का अनुमान है कि केवल तीन जिले में 75 करोड़ रुपए की हेराफेरी हुई है। राजेश राजौरा ने इस संबंध में सभी 51 जिलों के कलेक्टरों को 22 मार्च को पत्र लिखते हुए 30 अप्रैल तक समस्त जांच करने का कहा था। लेकिन अभी तक कुल तीन जिलों धार, सतना, रतलाम से जांच प्राप्त की गई है। अब कलेक्टरों को और अधिक समय दिया जा रहा है। तीन उप संचालक निलंबित कर दिए गए हैं। जिनके विरुद्ध आपराधिक प्रकरण भी दर्ज किए जा सकते हैं।
इसी प्रकार धार जिले में भी उप संचालक कृषि द्वारा गंभीर वित्तीय अनियमितता करने का मामला सामने आया है। लाखों रुपए की राशि तो मार्च 2015 तक समयोजित नहीं की गई थी। रोकड़ पुस्तिका में बाउचर तक अंकित नहीं थे और किसानों के खाते में राशि तक जमा नहीं कराई गई थी। उप संचालक ने न तो कार्यालयों को नियंत्रित किया और न ही नियमानुसार हितग्राही कृषकों का चयन किया। बीज, उर्वरक, कीटनाशक, औषधि आदि बेचने वाले विक्रेताओं के संस्थानों का निरीक्षण तक नहीं किया न ही उनके द्वारा प्रयुक्त अमानक सामग्री आदि के संबंध में कोई उपयुक्त कार्यवाही की गई। हितग्राही कृषकों को कृषि सामग्री का वितरण संदेहास्पद पाया गया। अन्नपूर्णा-सूरजधारा योजना में हितग्राही कृषकों से उनका अंशदान नहीं लिया गया, बल्कि वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी स्तर से लगने वाली राशि की गणना कर अपने स्तर से राशि जमा कर, दर्शाया गया। 46 लाख 28 हजार 178 रुपए की राशि का समयोजन ही नहीं किया गया। विभिन्न योजनाओं के तहत कृषकों को जो सामग्री वितरित की गई उसकी पावती तक नहीं दी गई। लगभग 22 लाख रुपए की राशि एमपी एग्रो धार को बिना किसी सक्षम अधिकारी की स्वीकृति के अग्रिम दे दी गई। मूल प्रति के बगैर छायाप्रति पर ही बिल की राशि ले ली गई। लगभग सभी विकासखण्डों में कुछ न कुछ गड़बड़ी पाई गई है। स्प्रिंकलर, ड्रिप, पाइप लाइन, डीजल पंप, विद्युत पंप, सीड ड्रिल आदि की खरीद के लिए जो कोटेशन प्रक्रिया अपनाई गई वह भी त्रुटिपूर्ण थी। ज्ञात रहे कि इन यंत्रों की आपूर्ति कृषि विभाग द्वारा विभिन्न कंपनियों से लेते हुए की जाती है। इसके लिए किसान अपना अंश जमा कराते हैं और बाकी सरकारी अनुदान से मिलती है। लेकिन कतिपय कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए किसानों को उनके मन पसंद यंत्र न देकर उप संचालक ने स्वयं कोटेशन दिए और बाद में उसी के अनुरूप यंत्र प्रदान करवा दिए। इन यंत्रों तथा अन्य योजनाओं के लिए हितग्राही के चयन में कई तरह की गड़बडिय़ा मिली हैं। धार जिले में 573 बीज विक्रेता हैं जिनके निरीक्षण का दायित्व उप संचालक का है। लेकिन इस निरीक्षण में भी कंजूसी बरती गई। कई मामलों में नमूने अमानक पाए जाने के बाद भी कार्रवाई लंबित रखी गई। रोकड़ पुस्तिका, कंटेंजेट रजिस्टर, अग्रिम पंजी आदि के रखरखाव में भी गंभीर अनियमितता पाई गई है। कहीं बाउचर नहीं है तो कहीं पेमेेंट में पारदर्शिता नहीं है। राष्ट्रीय खाद सुरक्षा मिशन की दलहन योजना में भी भारी गड़बड़ी की गई है। बीज ग्राम योजना, बीजों पर अनुदान की योजना, संकर मक्का विस्तार कार्यक्रम, नलकूल योजना सहित तमाम योजना में छोटी से बड़ी गड़बड़ी मिली है। 1 करोड़ 15 लाख 75 हजार रुपए की राशि के बिलों का भुगतान तो किया गया लेकिन इनके भुगतान से संबंधित कॉन्टीजैन्ट रजिस्टर में कोई प्रविष्टी नहीं है तथा बिलों में रजिस्टर का पेज नंबर, पेड एवं केंसिल आदि का भी विवरण नहीं है। यह घपलेबाजी लंबे समय से चल रही है।
अनुदान की प्रक्रिया का नहीं हुआ पालन
रतलाम जिले में भी इसी तरह से उप संचालक द्वारा जमकर भ्रष्टाचार किया गया। फसल प्रदर्शन मेंं बीज, उर्वरक, कीट-नाशक औषधियों के प्रदाय एवं वितरण में वित्तीय अनियमितताएं पाई गई है। जिले में उप संचालक ने वर्ष 2011 से 2015 तक शासन के निर्देशों का न केवल उल्लंघन किया बल्कि त्रिस्तरीय पंचायत राज व्यवस्था का उल्लंघन करते हुए विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत लक्ष्य से अधिक खर्च किए गए। स्प्रिंकलर, पाइप लाइन, पंंप सेट आदि में किसानों को अनुदान देते समय उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। उप संचालक ने अपने अधीनस्थ कृषि विकास अधिकारियों को कोई लक्ष्य नहीं दिए और मौखिक निर्देशानुसार बिलों का सत्यापन करवाया। वर्ष 2011-12 में 5 लाख 71 हजार रुपए बिना प्रदाय आदेश के खर्च कर दिए। इसी वर्ष प्रदाय सामग्री को झूठा दर्शाकर हड़पने का प्रयास किया और किसानों के नाम पर लूट खसौट की गई। इतना ही नहीं बीज नियंत्रण आदेश 1983 के अंतर्गत उप संचालक कृषि ने बीज गुण नियंत्रण में नियमानुसार वैधानिक कार्रवाई न करते हुए व्यापारियों को संरक्षण प्रदान किया और अपने दायित्व की अवहेलना की। बीज ग्राम योजना में भी किसी भी स्तर पर भौतिक सत्यापन नहीं किया। विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत वितरित माइक्रो न्यूट्रियेंट में भी भारी अनियमितता पाई गई। अस्थाई अग्रिम राशि जो कि 17 लाख 3 हजार के करीब थी के समायोजन में मध्यप्रदेश कोषालय संहिता के सहायक नियम 53 (4) का पालन नहीं किया गया। ऐसा एक नहीं अनेक बार हुआ। शासकीय वाहन से जो यात्रा की गई उसमें भी अनियमितताएं पाई गईं। महालेखाकार द्वारा किए गए ऑडिट में भी 20 वर्ष पुराना सोयाबीन बीज खरीद के मामले में 6 लाख 19 हजार 9 सौ 20 रुपए की अनियमित भुगतान की बात सामने आई है इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में 13 लाख 50 हजार 500 रुपए व आईसोपाम तिलहन योजना में 44 लाख 99 हजार 140 रुपए की अनियमितताएं पाई गईं। कुछ मामलों में कृषकों की बजाए सीधे संस्थाओं को पैसा दे दिया गया। किसानों के हितों को ताक में रखकर अमानक उर्वरक और दवाएं वितरित की गईं। ये तो कुछ बानगी है। अनियमितताओं और घोटाले की सूची तो बहुत लंबी है। अकेले तीन जिलों में सैकड़ों छोटे-बड़े मामले पकड़ में आए हैं।
...तो फाइलों में दब जाता घोटाला
सब्सिडी के नाम पर प्रदेश में पिछले सात साल से हो रहा घोटाला फाइलों में दब जाता, अगर विभाग के प्रमुख सचिव राजेश राजौरा सजग नहीं रहते। उनकी जागरूकता और सजगता से ये घोटाला पकड़ा गया। अन्यथा सारी अनियमितताएं फाइलों में दफन होकर कहां गोल हो जाती पता ही नहीं चलता। राजौरा के कहने पर ही विभाग ने प्रदेश भर के सारे जिलों में कृषि से संबंधित किए गए खर्चों को फिर से खंगालना शुरू किया है। इस कारण उनकी पूर्व संचालक डॉ. डीएन शर्मा से सीधी टक्कर भी हुई थी। बताया जाता है कि राजौरा को कई दिनों से अनियमितताओं की शिकायत मिल रही थी उन्होंने जांच में देरी नहीं की और परिणाम सामने आया। अब यह जांच करना बाकी है कि सभी 51 जिलों में से कितने जिलों में ये घोटाला हुआ है। इसके लिए उन्होंने सभी जिलों के कलेक्टरों से कृषि क्षेत्र में दी जाने वाली सब्सिडी की रिपोर्ट मांगी है।
जिलों ने दबाई सब्सिडी घोटाले की जांच रिपोर्ट
भोपाल कृषि योजनाओं में दी जाने वाली सब्सिडी में घोटाले की जांच रिपोर्ट जिलों में कलेक्टरों ने दबा ली है। 30 अप्रैल तक सभी कलेक्टरों को जिले में एक विकास खंड की हितग्राहीवार जांच कर रिपोर्ट कृषि विभाग को देनी थी, लेकिन विभाग के प्रमुख सचिव डॉ.राजेश कुमार राजौरा को रिपोर्ट नहीं मिली, वहीं विभागीय स्तर पर जांच के बाद धार के तत्कालीन उप संचालक आरपी कनेरिया और रतलाम के सीके जैन को निलंबित कर दिया है। यह खुलासा ड्रिप स्प्रिंकलर योजना की जांच में सामने आया था। इसके बाद प्रमुख सचिव कृषि ने सभी कलेक्टरों से वर्ष 2014-15 में जांच करके प्रतिवेदन 30 अप्रैल तक मांगे थे। जिला पंचायतों के सीईओ ने भी नहीं बताया कि हितग्रहियों के चयन में पंचायतीराज संस्थाओं के अधिकारों का हनन हुआ या नहीं। डॉ.राजौरा ने बताया कि धार, रतलाम में विभागीय स्तर पर कराई जांच में गड़बड़ी के प्रमाण मिले हैं। इसके आधार पर रतलाम के तत्कालीन उप संचालक सीके जैन और धार के आरपी कनेरिया को निलंबित कर संचालनालय में अटैच कर दिया है। इसी तरह सतना में उप संचालक रहे एसके शर्मा के खिलाफ आरोप पत्र जारी कर जवाब तलब किया जाएगा। शर्मा अभी राज्य कृषि विस्तार एवं प्रशिक्षण संस्थान में पदस्थ हैं। रीवा के तत्कालीन उप संचालक अमिताभ तिवारी को भी जांच में दोषी पाया गया है। तिवारी करीब चार माह से निलंबित चल रहे हैं।
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