गुरुवार, 9 जुलाई 2015
ईस्टर्न बाघ परियोजना को भूली मप्र सरकार
भोपाल। नौ दिन चले अढ़ाई कोस यह कहावत इन दिनों बालाघाट जिले में अंतरराज्यीय ईस्टर्न बाघ परियोजना पर सटीक बैठ रही है। 7 साल बीत जाने के बाद भी यह योजना अमल में नहीं आ पाई है। खास बात ये है कि इस योजना को लेकर सीएम शिवराज सिंह ने जोर-शोर से घोषणा की थी, लेकिन अब उन्हीं की सरकार इसमें रुचि नहीं ले रही है। इस योजना को अब तक प्रदेश सरकार की ओर से हरी झंडी नहीं मिल पाई है। गत वर्ष बालाघाट प्रवास के दौरान जयंत मलैया ने ईस्टर्न बाघ परियोजना की जानकारी नहीं होने की बात कही थी। साथ ही इसे पूरी जानकारी लेकर पूरा करने का वादा भी किया था। लेकिन अब तक इसकी कार्रवाई आगे नहीं बढ़ पाई है।
दरअसल, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र सरकार की इस साझा योजना पर प्रदेश सरकार की अरूचि के कारण संकट गहरा गया है। खास बात यह है कि योजना को लेकर सीएम शिवराज सिंह ने भले ही घोषणा कर वृहद सिंचाई परियोजना को पूरा करने का वादा किया हो वहीं उनके कैबिनेट के जल संसाधन विभाग के मंत्री जयंत मलैया के अनभिज्ञता जाहिर करते एक बयान ने सीएम की घोषणा और उसके पूरे होने की आस पर अटकलें बढ़ा दी हैं।
सर्वे रिपोर्ट तक अटकी योजना
जानकारी के मुताबिक ईस्टर्न बाघ परियोजना का लाभ महाराष्ट्र सरकार को मिलना है। इसमें करीब 4 हजार हेक्टेयर का जंगल मध्य प्रदेश का डूब में जा रहा है। इसके चलते इस योजना पर सहमति नहीं बन पाई है। हालांकि 6 मई 2011 को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लांजी प्रवास के दौरान इस योजना का सर्वे कार्य शीघ्र कराने के आदेश दिए थे। अप्रैल माह में परियोजना का सर्वे तो करा लिया गया, लेकिन अब तक सर्वे रिपोर्ट तैयार नहीं हो सकी है।
क्या है योजना
छत्तीसगढ़ राज्य की ईस्टर्न बाघ नदी पर बांध बनाकर करीब 14 हजार हेक्टेयर सिंचाई क्षमता के लिए पानी एकत्रित करने वृहद सिंचाई परियोजना बनाई गई है। ईस्टर्न बाघ परियोजना से करीब 14 हजार हेक्टेयर में से 8 हजार हेक्टेयर रकबे के लिए पानी का सिंचाई के लिए उपयोग किया जाना है। जबकि शेष पानी महाराष्ट्र सरकार पाइप लाइन के जरिए आपूर्ति के लिए चाह रही है।
यह एक मप्र, महाराष्ट्र एवं छत्तीसगढ़ राज्य की अंतरराज्यीय परियोजना है। जिसके डूब क्षेत्र में मप्र एवं महाराष्ट्र का वनक्षेत्र 460 हेक्टर आता है। जिससे 65 मिलियन घ.मी. प्राप्त यील्ड से म.प्र. का 75 प्रतिशत तथा महाराष्ट्र का 25 प्रतिशत क्षेत्र में महाराष्ट्र को 25 प्रतिशत क्षेत्र में पानी दिया जा सकेगा। जिससे म.प्र. का 7637 हेक्ट. एवं महाराष्ट्र का 3022 हेक्ट. में सिंचाई की जा सकेगी। म.प्र. एवं छ.ग. राज्य के जल संसाधन विभाग की उच्चस्तरीय बैठक दिनांक 15.12.2006 स्थान छत्तीसगढ़ शासन मंत्रालय रायपुर में संपन्न बैठक में लिये गये निर्णय अनुसार म.प्र. महाराष्ट व छत्तीसगढ़ राज्य को लिखे वचन पत्र दिये जाने की कार्यवाही प्रक्रियाधीन है। बांध के जलग्रहण क्षेत्र में से छ.ग. राज्य का अंश छोड़कर योजना बनाने के लिये छ.ग. राज्य की सहमति ली जाना है। तीनों राज्य की सहमति उपरांत ही योजना का क्रियान्वयन संभव होगा। वर्तमान में इस योजना के कमाण्ड क्षेत्र का अधिक कमाण्ड क्षेत्र पूर्व से संचालित बाघ कम्पलेक्स परियोजना एवं खराड़ी मध्यम योजना से सिंचाई हो रही है। कार्या. ज्ञाप क्र. 2210/कार्य/दिनांक 31.10.2014 को अधीक्षण यंत्री जल संसाधन मण्डल को अवगत कराया जा चुका है। अत: कमाण्ड क्षेत्र के आंकलन में यह योजना साध्य नहीं है।
लाभान्वित होंगे किसान
इस योजना से जिले के पहुंच विहीन क्षेत्रों में करीब 352 हेक्टेयर रकबे में कृषि कार्य की संभावनाएं बढ़ जाएगी। करीब 200 किसान सिंचाई का लाभ ले सकेंगे। लांजी आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में पहुंच विहीन गांवों में इस परियोजना के पूर्ण होने से किसानों को लाभ मिलेगा।
क्यों अटकी योजना
योजना के जरिए महाराष्ट्र सरकार पानी ले जाना चाह रही है, तो वहीं मध्य प्रदेश सरकार अपना जंगल बचाना चाह रही है। दोनों ही सरकारों के मंसूबे अलग-अलग होने के कारण इस योजना पर सहमति नहीं बन पा रही है। हालांकि जानकारों का मानना है कि अंतर्राज्यीय ईस्टर्न बाघ परियोजना मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र राज्य सरकार के दस्तावेजों में उलझी हुई है।
भू-अर्जन में परेशानी
परियोजना के अमल में आने के बाद विभागीय अधिकारियों को भू-अर्जन की समस्या का सामना करना पड़ेगा। विभागीय सूत्रों के अनुसार योजना में 14 हजार हेक्टेयर में से लगभग 8 हजार हैक्टेयर भूमि की ही सिंचाई हो पाएगी। वहीं विभाग के कार्यपालन यंत्री एसएस गहरवार का कहना है कि सर्वे का प्रतिवेदन प्राप्त नहीं हुआ है।
परियोजना की स्थिति
पिछले पांच साल से यह परियोजना केवल कागजों में ही स्वीकृति के लिए दफ्तरों में भटक रही है। पूर्व में सचिव स्तर के अधिकारियों की बैठक 17 अप्रैल 2007 को हुई थी। अब तक परियोजना के विस्तृत परियोजना प्रस्ताव (डीपीआर) के लिए दोनों राज्यों की सहमति नहीं बन पाई है। वहीं महाराष्ट्र शासन से परियोजना का शीर्ष कार्य का डीपीआर और 30-35 वर्ष पुराने आवश्यक आंकड़े भी उपलब्ध नहीं हो पाए हैं।
सरकार नहीं ले रही रुचि
मप्र सरकार शिवराज सिंह चौहान की घोषणा के बाद भी इसे लेकर रुचि नहीं दिखा रही है। जबकि महाराष्ट्र सरकार हर कीमत पर इस योजना को पूरा करना चाह रही है। जानकारी के मुताबिक ईस्टर्न बाघ परियोजना का लाभ महाराष्ट्र सरकार को मिलना है। इसमें करीब 4 हजार हेक्टेयर का जंगल मप्र का डूब में जा रहा है। इसके चलते इस योजना पर सहमति नहीं बन पाई है। हालांकि 6 मई 2011 को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लांजी प्रवास के दौरान इस योजना का सर्वे कार्य शीघ्र कराने के आदेश दिए थे। अप्रैल माह में इस परियोजना का सर्वे तो करा लिया गया है, लेकिन अब तक सर्वे रिपोर्ट तैयार नहीं हो पाई है।
ये है योजना
छत्तीसगढ़ राज्य की ईस्टर्न बाघ नदी पर बांध बनाकर करीब 14 हजार हेक्टेयर सिंचाई क्षमता के लिए पानी एकत्रित करने वृहद सिंचाई परियोजना बनाई गई है। ईस्टर्न बाघ परियोजना से करीब 14 हजार हेक्टेयर में से 8 हजार हेक्टेयर रकबे के लिए पानी का सिंचाई के लिए उपयोग किया जाना है। शेष पानी महाराष्ट्र सरकार पाइप लाइन के जरिए आपूर्ति के लिए ले जाना चाह रही है।
इस योजना से जिले के पहुंचविहीन क्षेत्रों में करीब 352 हेक्टेयर रकबे में कृषि कार्य की संभावनाएं बढ़ जाएगी। करीब 200 किसान सिंचाई का लाभ ले सकेंगे। लांजी आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में पहुंचविहीन गांवों में इस परियोजना के पूर्ण होने से किसानों को लाभ मिलेगा। जिले में लगभग 8 हजार हेक्टेयर कुल रकबा सिंचाई का होगा। हालांकि सर्वे रिपोर्ट के बाद अधिकारी सिंचाई रकबा तथा परियोजना की क्षमता के आकलन को आधार मान रहे हैं।
क्यों अटकी योजना
इस योजना के जरिए महाराष्ट्र सरकार पानी ले जाना चाह रही है तो वहीं मप्र सरकार अपना जंगल बचाना चाह रही है। दोनों ही सरकारों के मंसूबे अलग-अलग होने के कारण इस योजना पर सहमति नहीं बन पा रही है। सरकारी पेंच में उलझी ईस्टर्न बाघ परियोजना पर संकट गहरा गया है। जानकारों के अनुसार अंतरराज्यीय ईस्टर्न बाघ परियोजना मप्र और महाराष्ट्र राज्य सरकार के दस्तावेजों में उलझी हुई है। इस योजना को मप्र सरकार से स्वीकृति नहीं मिल पाई है।
भू-अर्जन में परेशानी
खास बात तो यह है कि परियोजना के अमल में आने के बाद विभागीय अधिकारियों को भू-अर्जन की समस्या का सामना करना पड़ेगा। विभागीय सूत्रों के अनुसार इस अंतरराज्यीय परियोजना तैयार होने के बाद 14 हजार हेक्टेयर में से लगभग 8 हजार हैक्टेयर कृषि भूमि में ही सिंचाई हो पाएगी। उक्त क्षेत्र में वृहद सिंचाई के लिए विभाग के पास पर्याप्त भूमि नहीं है। जिसके चलते वृहद सिंचाई योजना पर कार्य नहीं हो पा रहा है। जबकि इस मामले में विभाग के कार्यपालन यंत्री एसएस गहरवार का कहना है कि ईस्टर्न बाघ परियोजना के लिए कराए गए सर्वे का प्रतिवेदन प्राप्त नहीं हुआ है। फिलहाल शासन स्तर पर इस परियोजना के लिए सहमति नहीं बन पाई है। मप्र का अधिकांश मात्रा में जंगल डूब में आ रहा है। जिसके चलते कार्रवाई प्रभावित हो रही है। स्वीकृति के उपरांत भू-अर्जन की समस्या भी सर्वे के दौरान सामने आई है। फिलहाल सर्वे रिपोर्ट के उपरांत ही इस मामले में कुछ कहा जा सकता है।
परियोजना की स्थिति
परियोजना की स्वीकृति के लिए दोनों ही राज्यों के अधीक्षण यंत्री स्तर के अधिकारियों की बैठक भी हो चुकी है। जिसमें सहमति नहीं बन पाई है। पिछले पॉंच साल से यह परियोजना केवल कागजों में ही स्वीकृति के लिए दफ्तरों में भटक रही है। पूर्व में सचिव स्तर के अधिकारियों की बैठक 17 अप्रैल 2007 को हुई थी। जिसमें दोनों राज्यों से सहमति बनाए जाने का निर्णय लिया गया था। अब तक परियोजना के विस्तृत परियोजना प्रस्ताव (डीपीआर) के लिए दोनों राज्यों की सहमति नहीं बन पाई है। महाराष्ट्र शासन से परियोजना का शीर्ष कार्य का डीपीआर और 30-35 वर्ष पुराने आवश्यक आंकड़े भी उपलब्ध नहीं हो पाए हैं। इस परियोजना में दाई तट नहर निर्माण के लिए 3056.71 लाख रुपए का प्राक्कलन तैयार किया गया है, जो प्रमुख अभियंता जल संसाधन विभाग भोपाल के पास स्वीकृति के लिए वर्ष 2009 में भेजा गया है। परियोजना के बनने के बाद क्षेत्र के 14 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि में सिंचाई की जा सकेगी।
इनका कहना है
ईस्टर्न बाघ परियोजना के बारे में जानकारी ली जा चुकी है। इसके लिए पर्याप्त जमीन उपलब्ध नहीं है योजना की गतिविधि को बढ़ाने और हितग्राहियों को लाभांवित कराने योजना बनाई जाएगी। सिंचाई परियोजना के काम को बावनथड़ी की तर्ज पर आगे बढ़ाया जाएगा।
जयंत मलैया
प्रभारी मंत्री बालाघाट
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