शनिवार, 28 फ़रवरी 2015
कंगाल हो गया मध्य प्रदेश 90,000 करोड़ के कर्ज में डूबा
बेहिसाब खर्च ने बिगाड़ा गणित...बेहाल हुआ हुई सरकार
धन की तंगी से लोक कल्याणकारी योजनाएं अटकी
इस वर्ष ही सरकार ने साढ़े 6 हजार करोड़ से अधिक का ले लिया है कर्ज
11 वर्ष के भाजपा सरकार के कार्यकाल में पहली बार आर्थिक संकट
विनोद उपाध्याय
भोपाल। 26 मई को जब केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र की सरकार गठित हुई थी तो उसके कुछ दिन बाद मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों से कहा था कि वे अपने विभाग से संबंधित केंद्रीय मंत्रियों से मुलाकात कर विकास कार्यों के लिए फंड मांगने जाएं। उस समय मुख्यमंत्री की इस पहल को विकास के प्रति समर्पण माना जा रहा था। लेकिन अब जाकर यह खुलासा हुआ है कि प्रदेश में वित्तीय संकट आ खड़ा हुआ है। आलम यह है कि दिखावे के लिए सरकार द्वारा किए गए बेहिसाब खर्च से इस वित्तीय वर्ष में प्रदेश 90,000 करोड़ रूपए के कर्ज तले दब गया है। प्रदेश सरकार की आर्थिक स्थिति इतनी बदतर हो गई है कि धन की तंगी से लोक कल्याणकारी योजनाएं अटक गई हैं। लगभग 11 वर्ष के भाजपा सरकार के कार्यकाल में पहली बार प्रदेश में आर्थिक संकट का हालात निर्मित हुए हैं। यही नहीं मुख्यमंत्री की लगातार कोशिश के बावजुद केंद्र से जो पैसा आना चाहिए, आ ही नहीं रहा है। ऐसे में प्रदेश सरकार कर्ज पर कर्ज ले रही है। अक्टूबर में लिए गए एक हजार करोड़ के कर्ज को मिलाकर इस वर्ष ही सरकार लगभग साढ़े 6 हजार करोड़ कर्ज के रूप में ले चुकी है।
वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है कि वित्तीय कुप्रबंधन और बेहिसाब खर्च ने सरकार का खजाना खाली कर दिया है। आलम यह है,कि प्रदेश के कर्मचारियों का वेतन बांटने के लिए भी सरकार को कर्ज लेना पड़ रहा है। संभवतया यह पहला मौका है,जब किसी एक ही सरकार के लगातार 11 साल के कार्यकाल के बावजूद प्रदेश में इस तरह की कंगाली के हालात बने। अधिकारियों का कहना है की प्रदेश पर लगातार बढ़ते कर्ज की एक वजह यह भी है की सरकार की सोच है की प्रदेश की साख बढ़ी है और मप्र अब कर्ज पाने के मामले में ए ग्रेड की श्रेणी में आ गया है। इसके तहत प्रदेश की क्षमता और अधिक कर्ज ले पाने की है। इसी कर्ज के सहारे प्रदेश की माली हालत को दुरुस्त कर लिया जाएगा। सरकार की इसी सोच ने प्रदेश को 90 हजार करोड़ रूपए से अधिक के कर्ज में डूबो दिया है। 11 साल में कर्ज का यह सबसे बड़ा आंकड़ा है। अप्रैल से नवंबर तक सरकार ने दस साल के लिए अपनी सिक्योरिटी गिरवी रखकर बाजार से 6,500 करोड़ का कर्ज उठाया है, जबकि पिछले साल सितंबर तक सरकार ने केवल 1500 करोड़ का कर्ज बाजार से लिया था। वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है कि खर्चों में बेहताशा बढ़ोतरी के चलते प्रदेश सरकार की माली हालात डगमगाने लगी है। स्थिति इतनी बदहाल है कि एक महीने में दो-दो बार कर्ज लिया जा रहा है। वित्त विभाग के एक अफसर के अनुसार संभव है कि प्रदेश की भाजपा सरकार इस वित्तीय वर्ष में एक वर्ष में कर्ज लेने का रिकार्ड तोड़ दे।
चुनावी घोषणाओं से बिगड़ी स्थिति
वित्त विभाग के अधिकारी भी समझ नहीं पा रहे हैं कि अचानक प्रदेश में ऐसे कौन से खर्च बढ़ गए हैं, जिससे खजाने पर बोझ पड़ रहा है। जानकार बताते हैं ओला-पाला पीडि़तों को बांटे गए 2,000 करोड़ रूपए से भी सरकार का गणित गड़बड़ाया है। लेकिन सबसे अधिक स्थिति चुनावी घोषणाओं से बिगड़ी है। लोकसभा और विधानसभा चुनावों के दौरान राज्य सरकार द्वारा की गई घोषणाएं राज्य की वित्तीय हालत पर भारी पड़ रही है। हालत यह है कि सरकारी खजाने की हालत खस्ता है। चालू वित्तीय वर्ष में अकेले लोक निर्माण विभाग पर 7000 करोड़ रुपए की देनदारी बकाया है। जो विभाग के कुल बजट का दोगुना है। निर्माण विभाग के अफसरों की मानें तो इनमें ज्यादातर कार्य लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान ही कराए गए थे। खराब आर्थिक हालत के कारण ही राज्य सरकार ने पीडब्ल्यूडी में नए काम कराए जाने पर अघोषित रुप से प्रतिबंध लगा रखा है। इसमें नई सड़के और भवन दोनों शामिल है।
बड़े भुगतानों पर लगी रोक
वित्त विभाग नए सिरे से विभागों की फिजूलखर्ची रोकने की रणनीति बना रहा है। कारण सरकार ने बजट में सिक्योरिटी गिरवी रखकर बाजार से कर्ज उठाने की सीमा 10 हजार करोड़ तय की है। ऐसे में यदि खर्च पर अंकुश नहीं लगाया तो दिसंबर तक ही बाजार से कर्ज उठाने की सीमा इससे ऊपर जा सकती है।
प्रदेश में वित्तीय संकट के चलते सरकार ने 25 करोड़ से अधिक के फंड के आहरण पर रोक लगा दी गई है। अब इससे अधिक की राशि आहरण करने के लिए विभागीय अधिकारियों को वित्त विभाग से अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया है। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के बाद यह पहला मौका होगा जब राज्य सरकार को ओवर ड्राफ्ट की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि राज्य के वित्तीय अधिकारी अधिकारिक तौर पर ऐसे किसी भी संकट से इंकार कर रहे है, लेकिन वह भी मानते है कि संकेत अच्छे नही है। खासकर अक्टूबर-नवंबर में ऐसी स्थिति कभी देखने को नही मिली। बताया जाता है कि वित्त विभाग की ओर से बीते माह सभी महकमों को एक पत्र भेजा गया है। इसमें एक बार में 25 करोड़ से अधिक चेक, नगदी के आहरण पर रोक लगाई गई है। विशेष परिस्थति में वित्त विभाग की अनुमति के बाद यह राशि निकाली जा सकती है। वित्त विभाग का पत्र मिलने के बाद से राज्य के बड़े महकमों में हड़कंप की स्थिति है। उल्लेखनीय है की वित्तीय वर्ष 2013-14 समाप्त होते-होते राज्य सरकार की माली हालत लडख़ड़ा गई थी। वित्त विभाग ने आनन-फानन में 26 मार्च 14 को सभी विभागों को आदेश जारी कर 10 करोड़ से अधिक के खर्च की अनुमति लेने को कहा। जनवरी 13 में विभाग ने 25 करोड़ से अधिक की खरीदी के लिए आदेश जारी कर राजकोषीय घाटा 3 प्रतिशत से अधिक होने से रोका था। इस बार हालात कुछ नाजुक बताए जा रहे हैं, इसी कारण वेतन छोड़ 5 करोड़ तक के भुगतान पर रोक लगी है।
साख बचाने कर्ज पर कर्ज ले रही सरकार
एक ओर बेहिसाब खर्च तो दूसरी ओर सरकार अपनी साख बनाए रखने के लिए कर्ज पर कर्ज लेने को मजबूर है। राज्य सरकार ने एक माह के दरम्यान ही दूसरी बार पुन: एक हजार करोड़ रुपए का कर्ज बाजार से उठाया। बताया जाता है,कि इसे मिलाकर इसी वित्तीय वर्ष में राज्य सरकार 6500 करोड़ रुपए से अधिक का लोन ले चुकी है। जबकि वित्तीय वर्ष समाप्त होने में पांच माह बाकी है। ऐसे में कर्ज लेने के मामले में किसी एक वित्तीय वर्ष का सभी पिछले रिकार्ड इस वर्ष टूट जाने की संभावना है। प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष लक्ष्मण सिंह का कहना है कि भाजपा सरकार का वित्तीय प्रबंधन इतना गड़बड़ा गया है कि हमारे समय का 27 हजार करोड़ रुपए का कर्ज अब बढ़कर 92 हजार करोड़ रुपए हो गया है। प्रदेश के वित्तीय हालात इतने बदतर हो गए हैं कि सरकार को अपने कर्मचारियों को वेतन बांटने के लिए भी बाहर से कर्ज लेना पड़ रहा है। जानकारों के मुताबिक, इस वर्ष कर्ज लेने का यह आंकड़ा दस हजार करोड़ रुपए को पार कर सकता है। हालांकि राज्य शासन भी इस आशय के संकेत गत दिनों दे चुकी है,कि मप्र की मौजूदा साख को देखते हुए उसकी कर्ज लेने की क्षमता इससे कहीं अधिक है। सूत्रों के मुताबिक, राज्य सरकार प्रदेश की आर्थिक सेहत को लेकर दोहरे संकट के दौर से गुजर रही है। विभिन्न योजनाओं को लेकर जो केंद्रीय अंश राज्य सरकार को मिलना चाहिए, वह समय पर नहीं मिल रहा है। इस कारण प्रदेश को न सिर्फ विकास योजनाओं के लिए राशि की तंगी हो रही है बल्कि लोक कल्याणकारी योजनाओं के लिए भी पर्याप्त राशि का बंदोबस्त करना सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन गई है। इस बीच कर्मचारियों का महंगाई भत्ता बढऩे से सरकारी खजाने पर बोझ और बढ़ गया है। इन हालातों में सरकार का फायनेंस मेनेजमेंट गड़बड़ा गया है।
कर्ज लो और घी पीओ की नीति पर चल रही शिवराज सरकार
कांग्रेस का आरोप है कि शिवराज की सरकार 'कर्ज लो और घी पीओÓ की नीति पर चलती रही है। उनके कार्यकाल के हर वर्ष में कर्ज के आंकड़े में भारी इजाफा हुआ है। यह कर्ज ऊंची ब्याज दर पर बाजार से लिया गया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरूण यादव कहते है कि शिवराज सरकार का वित्तीय कुप्रबंधन उजागर हो गया है। सरकार अपने खर्चे लगातार बढ़ाती रही है इस कारण यह स्थिति निर्मित हुई है। वहीं कांग्रेस उपाध्यक्ष मानक अग्रवाल प्रदेश सरकार की वित्तीय स्थिति के अचानक गंभीर संकट में पड़ जाने पर गहरी चिंता प्रगट करते हुए सरकार से राज्य की वित्तीय स्थिति पर तत्काल श्वेत पत्र जारी करने की मांग की है। वह कहते हैं कि प्रदेश की जनता जो कि विभिन्न प्रकार के टैक्सों का भुगतान कर सरकार का खजाना भरती है, को यह जानने का पूरा अधिकार है कि आखिर सरकार की वित्तीय हालत इस तरह अचानक बिगड़ जाने के पीछे कौन से कारण रहे हैं? क्या यह सच है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निर्देश पर एक उद्योगपति को भारी भुगतान किया जाने के कारण प्रदेश सरकार का खजाना अचानक खाली होने की यह नौबत आई है? सुशासन की बात करने वाली भाजपा सरकार का वित्तीय कुप्रबंधन इस घटना से उजागर हो गया है। वह कहते हैं कि कांगे्रस ने कई बार सरकार को चेताया था कि उसकी फिजूलखर्ची एक दिन प्रदेश को गंभीर वित्तीय संकट में डाल देगी, किंतु सरकार ने इस चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया। अब नतीजा सबके सामने है। अग्रवाल कहते हैं कि सरकार की वित्तीय स्थिति किस सीमा तक बिगड़ चुकी है, उसका अनुमान कोषालयों और उप कार्यालयों को वेतन के अलावा अन्य भुगतानों पर लगाई गई रोक से साफ जाहिर हो जाता है। सरकार को तत्काल खुलासा करना चाहिए कि क्या वह अपने कर्मचारियों को वेतन का भुगतान करने की स्थिति में हैं? मुख्यमंत्री को विदेशों के दौरों और उद्योगपतियों की मनुहार से समय ही नहीं मिलता कि वे प्रदेश के वित्तीय प्रबंधन की चिंता करें। वित्त मंत्री जयंत मलैया के पास वित्त विभाग के अलावा जो अन्य मलाईदार विभाग हैं, उनकी फिक्र करने से ही उनको फुर्सत नहीं मिलती मुख्यमंत्री की फिजूलखर्ची की तो इन्तहा हो चुकी है।
कांग्रेस उपाध्यक्ष ने कहा कि खजना खाली होने की यह स्थिति निर्मित होने के पीछे एक कारण यह भी है कि राज्य सरकार को विभिन्न स्त्रोतों से जो राजस्व मिलता है, उसमें भारी गोलमाल चल रहा है। जितनी वसूलियां होती हैं, उसका काफी कम हिस्सा खजाने में जमा होता है। प्रदेश भर में भारी लूटमार मची हुई है। अवैध उत्खनन के प्रकरणों में करोड़ों के जुर्माने की धनराशि की वसूली रसूखदार खनिज माफियाओं से नहीं हो रही है।
क्रेडिट रेटिंग की आड़ में सरकार कर रही कर्जखोरी
प्रदेश के विकास योजनाओं को गति देने के लिए बाजार से कर्ज लेने के अलावा अब सरकार के पास कोई विकल्प नहीं है। लिहाजा अब सरकार आर्थिक मोर्चे पर प्रदेश की बढ़ती साख को भुनाने में लग गई है। इसके चलते बीते सप्ताह ही राज्य सरकार ने बाजार से फिर एक हजार करोड़ रुपए का लोन लिया है। यह लगातार पांचवां मौका है, जब सरकार ने मौजूदा वित्तीय वर्ष में लोन लिया है। यह लोन भी प्रदेश की विकास योजनाओं के नाम पर लिया गया है। यह लोन दस वर्ष की अवधि के लिए लिया गया है। बताया जा रहा है कि यह लोन देने के लिए कर्जदारों ने पूरी दरियादिली दिखाई है और करीब 8.50 फीसदी ब्याज दर पर यह राशि ली गई। मप्र की क्रेडिट रेटिंग पहली बार ए निगेटिव मार्क की गई है। यह पहली बार है, कि प्रदेश की रेकिंग को ए श्रेणी में शामिल किया गया है। अब तक प्रदेश की रेटिंग बी प्लस में थी। यानि मप्र की साख अपेक्षाकृत कमजोर थी। इस कारण वित्तीय संस्थान ऐसे राज्यों में निवेश करने या अन्य योजनाओं में पैसा फंसाने का जोखिम उठाने से बचते हैं। रेटिंग संस्थाएं भी निवेशकों के लिये बाकायदा चेतावनी जारी करती है, कि प्रदेश की परियोजनाओं में राशि फंसाने पर रिस्क ज्यादा है। लेकिन अब प्रदेश की रेटिंग ए होने से प्रदेश की साख में बढ़ोत्तरी हो गई है। इस कारण निवेशकों में यह विश्वास बढ़ गया है कि प्रदेश में राशि लगाना अब जोखिम का सौदा नहीं है। ऐसे में सरकार को बाजार से पैसा जुटाने में कोई दिक्कत नहीं हो रही है। प्रदेश इस वित्तीय वर्ष में कर्ज के मामले में एक लाख करोड़ कर्ज वाले राज्यों में शामिल होने के करीब पहुंच सकती है। इस समय महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, तमिलानाडू, गुजरात जैसे राज्यों के कर्ज का आंकड़ा एक लाख करोड़ से अधिक है। मप्र भी बहुत जल्द इस क्लब में शामिल हो सकता है। अधिकारिक तौर पर प्रदेश पर 90 हजार करोड़ से अधिक का कर्ज है। राज्य सरकार ने लोन के लिए जो 31 मार्च 2013 की स्थिति का ही ब्यौरा दिया है, उस हिसाब से प्रदेश पर उस अवधि में 77,413 करोड़ रुपए का कर्ज हो चुका था। वर्ष 2003 में प्रदेश में जब भाजपा ने सत्ता संभाली थी तब राज्य पर कर्ज महज 27 हजार करोड़ था। इसी कर्ज के लिए तब विपक्षी दल में बैठी भाजपा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को आड़े हाथों लिया था।
शिवराज ने दो बार लगाई गुहार पर नहीं सुनी केंद्र सरकार
मप्र में वित्तीय संकट गहराने के बाद से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रधानमंत्री सहित केंद्रीय मंत्रियों से दो बार मुलाकात करके योजनाओं के लिए फंड की मांग की, लेकिन उनकी अभी तक नहीं सुनी गई है। मुख्यमंत्री 7 नवंबर को केन्द्रीय जल-संसाधन मंत्री उमा भारती और सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी से मुलाकात की।
मुख्यमंत्री ने नदी जोड़ो परियोजना के नाम पर उमा भारती से 26 हजार करोड़ रुपए देने का आग्रह किया। फिर उन्होंने गडकरी से मनरेगा योजना में मजदूरी के लिए 1500 करोड़ रुपए की राशि उपलब्ध करवाने का आग्रह किया है। साथ ही मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री ग्राम-सड़क परियोजना में 2800 करोड़ और इंदिरा आवास योजना में शेष राशि 600 करोड़ भी तत्काल जारी करने का आग्रह किया, लेकिन करीब एक पखवाड़ा बितने के बाद भी केंद्र ने प्रदेश सरकार को फंड मुहैया नहीं कराया।
वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है की प्रदेश में लगातार बढ़ रहे कर्ज से राहत की थोड़ी बहुत आस इंदौर ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के दौरान केंद्र सरकार ने मप्र में निवेश के लिए सवा लाख करोड़ से ज्यादा के जो प्रस्ताव दिए है उससे है। केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों की इस दिलदारी ने राज्य सरकार की ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट को तो सफलता के शिखर पर पहुंचाया ही खास बात यह कि इस निवेश से भविष्य में प्रदेश की माली हालत में भी सुधार होगा। केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने दिल्ली, मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर में पीथमपुर-धार-महू क्षेत्र में सबसे बड़ा इंडस्ट्रियल हब बनाने की घोषणा की है। इसी परियोजना में उज्जैन के पास स्मार्ट इंडस्ट्रियल सिटी विकसित की जाएगी। कृषि क्षेत्र में मूल्य संवर्धन के लिए खाद्य प्र-संस्करण संयंत्र स्थापित किए जाएंगे। वहीं केंद्रीय इस्पात मंत्रालय का सार्वजनिक उपक्रम सेल मध्यप्रदेश में 50 मिलियन टन आयरन खनिज का निवेश करेगा। इसके पॉयलट प्लांट में 1500 करोड़ रुपए का निवेश होगा। यदि 140 मिलियन टन तक आयरन खनिज एसेस होता है तो 12 हजार करोड़ की लागत से स्टील प्लांट लगाने का भरोसा मंत्रालय ने राज्य सरकार को दिलाया है। नाल्को बॉक्साइट रिजर्व क्षेत्र में एल्यूमीनियम रिफायनरी के लिए 6000 करोड़ का निवेश करेगा। सौर ऊर्जा के लिए एचसीएल 100 करोड़ तथा मैग्नीज संयंत्र के लिए मॉइल 250 करोड़ रुपए का निवेश करेगा। इसी तरह एनएमडीसी टीकमगढ़ में हीरा उत्खनन के लिए 1000 करोड़ का निवेश करेगा। कोल ब्लॉक पर आधारित पॉवर प्लांट के लिए नाल्को 19 हजार करोड़ रुपए तथा एनएमडीसी 3000 करोड़ रुपए का निवेश करेगा। इसी तरह, रासायनिक व उर्वरक मंत्रालय ने बीना रिफायनरी के क्षेत्र में एक लाख करोड़ की लागत से पेट्रो केमिकल पेट्रो इन्वेस्टमेंट रीजन बनाने का प्रस्ताव राज्य सरकार को दिया है।
बीना के पास देश का पहला लेंड लॉक पेट्रो केमिकल काम्पलेक्स भी बनेगा। मंत्रालय बीना रिफायनरी की क्षमता 6 मिलियन टन से बढ़ाकर 8 मिलियन टन तक करेगा। इसमें 25 हजार करोड़ रुपए का निवेश बीपीसीएल द्वारा किया जाएगा। बाद में इस क्षमता को 15 मिलियन टन तक बढ़ाने का लक्ष्य है। मध्यप्रदेश में गैस अथारिटी ऑफ इंडिया (गेल) 10 हजार करोड़ के निवेश से गैस ग्रिड बनाएगा। जबलपुर और शहडोल में 12 हजार करोड़ रुपए के निवेश से उर्वरक संयंत्र स्थापित होंगे। मंडीदीप में प्लास्टिक पार्क और ग्वालियर में पॉलीमर पार्क के अलावा भोपाल में नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ फार्मा एज्यूकेशन एंड रिसर्च का सेंटर ऑफ एक्सीलेंस खुलेगा। इस निवेश को जल्द से जल्द जमीन पर लाने के प्रयास शुरु हो गए हैं। इसी तरह ऊर्जा, कोयला और नवीन ऊर्जा मंत्रालय ने भी प्रदेश में पचास हजार करोड़ रुपए के निवेश की घोषणा की। दरअसल,एनटीपीसी का सबसे ज्यादा केपिटल इंवेस्टमेंट मध्यप्रदेश में 75 हजार करोड़ का है। एनटीपीसी गाडरवारा में 1320 मेगावॉट का पॉवर प्लांट बनाने जा रहा है। मंत्रालय से नवकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में 50 हजार करोड़ के निवेश के प्रस्ताव मिले हैं। स्वच्छ भारत अभियान में ऊर्जा मंत्रालय के सार्वजनिक उपक्रम मध्यप्रदेश में 125 करोड़ की लागत से 12 हजार 477 स्कूल में शौचालय बनाएगा। कापोर्रेट सोशल रिस्पांसबिलिटी के तहत 300 करोड़ रुपए और खर्च करेंगे।
इधर,पर्यटन क्षेत्र में निवेश को बढ़ाने के लिए भी राज्य सरकार ने अपनी नीतियों को और अधिक सरल बनाया है। जानकार सूत्रों के मुताबिक, प्रदेश में पर्यटन विकास की गतिविधियों के लिए सरकार से ली गई जमीन को अब बैंक में गिरवी रखकर पर्यटन कारोबारी लोन ले सकेंगे। इसके लिए उन्हें कुछ शर्तों का पालन करना होगा। अभी तक भी तक सरकार द्वारा दी गई जमीन को बैंक में गिरवी नहीं रखने की सुविधा नहीं थी। प्रदेश में पर्यटन कारोबार को प्रोत्साहित करने के लिए हाल में जारी पर्यटन नीति में सरकार ने भूमि आवंटन की प्रक्रिया का काफी सरलीकरण किया है। राज्य सरकार पर्यटन विभाग को निशुल्क भूमि आवंटित करेगी। इसके लिए मप्र राज्य पर्यटन विकास निगम को प्रोसेस मैनेजर नियुक्त किया जाएगा। प्रोसेस मैनेजर की हैसियत से निगम इस जमीन को पर्यटन विकास के निजी कारोबारियों को आवंटित करेगा। भूमि आवंटन की आरक्षित मूल्य भी बहुत कम कर दिया गया है। जमीन के लीज रेंट में भी भारी कमी की गई है। भूमि आवंटन के लिए स्वीकार किए गए प्रीमियम का एक प्रतिशत वार्षिक होगा। जमीन से जुड़े मामले पहले राज्य मंत्रिपरिषद की समिति के पास जाते थे। अब इन मामलों का निराकरण मप्र राज्य पर्यटन विकास निगम ही करेगा। एक अन्य फैसला यह भी है, कि आवंटित भूमि का उपयोग नहीं हो पाने की स्थिति में इस भूमि को सरेंडर भी किया जा सकेगा। एक साल में सरेंडर पर दस प्रतिशत, दूसरे साल में बीस प्रतिशत और तीसरे साल में 30 प्रतिशत राशि काट ली जाएगी। शर्त यह,कि आवंटित जमीन का उपयोग केवल पर्यटन विकास के लिए ही किया जा सकेगा।
विदेश से भी कर्ज की तैयारी
प्रदेश की सड़कों को सुधारने के लिए सरकार अब विदेश से कर्ज लेगी। सड़कों की मरम्मत के लिए करीब 11 हजार 500 करोड़ रूपए की जरूरत है, लेकिन केंद्र से इतनी राशि नहीं मिल पा रही है। लोक निर्माण विभाग ने सड़कों की मरम्मत को लेकर बैठक की थी, जिसमें केंद्र से राशि नहीं मिलने पर वैकल्पिक इंतजाम के निर्देश दिए थे। इसके तहत विभाग द्वारा राष्ट्रीयकृत बैंकों से लेकर एशियाई विकास बैंक तक को प्रस्ताव भेजे जाना है। इस राशि से आगामी चार साल में सभी जिला मुख्य मार्गो को चमकाने का लक्ष्य रखा गया है। करीब साढ़े दस हजार किमी से ज्यादा सड़कों को मरम्मत की जरूरत है। 500 करोड़ ही मिले अब तक इस साल सड़कों की मरम्मत के लिए विभाग ने करीब 1500 करोड़ मांगे थे, लेकिन अब तक बजट में केवल पांच सौ करोड़ रूपए ही मिले हैं, जबकि पिछले साल 1100 करोड़ रूपए मिले थे। सरकार के विजन-2018 में सड़कों को सुधारना शामिल हैं, किंतु सरकार के सामने इस पर अमल बड़ी चुनौती है। हर दिन दो किमी सड़क बनाने के दावे पर भी सरकार ने इसी कारण कदम रोक दिए हैं।
केंद्र ने मांगी वित्तीय स्थिति की रिपोर्ट
उधर, प्रदेश में बदहाल वित्तीय स्थिति को गंभीरता से लेते हुए केंद्र सरकार ने प्रदेश की वित्तीय हालात की रिपोर्ट मांगी है। वित्त विभाग के अधिकारी पिछले 10 साल की वित्तीय स्थिति की रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं। संभवत: तैयार हो रही रिर्पोट में सरकार द्वारा की गई फिजुलखर्ची को दूसरे कार्यो में एडजस्ट किया जा रहा है। बताया जाता है की जल्द ही केंद्र का एक दल आकर प्रदेश की खस्ताहालत का जायजा लेगा। उसके बाद ही राज्य सरकार को किसी तरह का अनुदान दिया जाएगा।
कर्ज पर एक नजर
बाजार का कर्ज-31,407
एलआईसी से 94.37
जीआईसी से 9.92
नाबार्ड से 4172.03
एनसीडीसी से 96.74
अन्य बांडस 1412.69
अन्य वित्तीय संस्थाएं 189.89
केन्द्र सरकार से कर्ज व अग्रिम 12267.81
प्रोविडेंट फंड से 10836.73
एसबीआई व अन्य बैंकों से 120.68
एनएसएसएफ से 1680.6
(सारी राशि करोड़ रुपए में)
नोट- चालू वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से सितंबर तक 4250 करोड़ रुपए का कर्ज सिक्योरिटी बांड गिरवी रखकर लिया गया।
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