शनिवार, 28 फ़रवरी 2015
मप्र के 160 दागी नौकरशाहों को मिलेगा मोदी का साथ
भ्रष्ट अफसरों को बचाने वाला कानून ला रही केंद्र सरकार
जांच के लिए लेनी होगी लोकपाल की मंजूरी
विनोद उपाध्याय
भोपाल। सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की सीबीआई या अन्य एजेंसियों से जांच के लिए लोकपाल की पूर्व अनुमति को अनिवार्य किया जा सकता है। केंद्र सरकार इस संबंध में भ्रष्टाचार रोधी कानून में परिवर्तन करने पर विचार कर रही है। इस कदम को भ्रष्ट कर्मचारियों को बचाने वाला बताया जा रहा है। अगर यह कानून परिवर्तित होकर लागू होता है तो मप्र के 160 से अधिक दागी नौकरशाहों सहित 776 अफसरों को राहत मिल सकती है। हालांकि सरकार का कहना है कि कर्मचारियों के कामकाज में कुशलता और पारदर्शता लाने के लिए ऐसा किया जा रहा है।
लोकपाल और लोकायुक्त कानून के प्रस्तावित प्रावधानों के अनुसार, अभियोजन की अनुमति देने का अधिकार लोकपाल को होगा। अधिकारियों के अनुसार, इसका अर्थ यह है कि सीबीआई और अन्य जांच एजेंसियों को भ्रष्टाचार के किसी आरोप की जांच से पहले केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त अथवा समान निकाय से अनुमति लेनी होगी।
सुप्रीम कोर्ट कर चुकी है ऐसे कानून पर टिप्पणी
वहीं, आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 197 या दिल्ली स्पेशल पुलिस स्थापना अधिनियम की धारा 6ए कहती है कि भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत कथित रूप से होने वाले किसी भी अपराध की जांच केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति के बिना नहीं की जा सकती है। सीआरपीसी और भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम में भी इस तरह का प्रावधान है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल मार्च में ऐसे सभी कानूनी प्रावधानों को अवैध और असंवैधानिक बताया था, जिनमें भ्रष्ट अफसर की जांच से पहले सीबीआई के लिए मंजूरी लेना अनिवार्य था। शीर्ष अदालत का कहना था कि इसे भ्रष्ट अफसरों का बचाव होता है। इस संबंध में संपर्क किए जाने पर केंद्रीय कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि ऐसा कर्मचारियों के काम में पारदर्शिता और दक्षता लाने के लिए किया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि 6 मई 2014 को जैसे ही सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने एतिहासिक फैसला सुनाते हुए दिल्ली पुलिस एक्ट की धारा 6-ए को खारिज किया वैसे ही भ्रष्ट नौकरशाहों तथा उन्हें संरक्षण देने वालों के होश उड़ गए थे। इसका सबसे अधिक असर मप्र के उन 160 से अधिक नौकरशाहों पर पड़ा ,जो किसी न किसी भ्रष्टाचार के मामले में दागी हैं और उनकी फाइल सरकार की मेहरबानी से बंद पड़ी थी। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद मप्र सरकार भी अपने नौकरशाहों से कानूनी कवच छीनने की तैयारी कर रही थी। उधर,लोकायुक्त,इओडब्ल्यू के साथ ही सीबीआई ने भी इन भ्रष्ट अफसरों की फाइल खगाल रही है। लेकिन केंद्र सरकार ने दागी अफसरों को बचाने के लिए कानून में परिवर्तन का जो संकेत दिया है उससे जांच एजेंसियों ने भी फिलहाल अपने हाथ रोक लिए हैं।
776 अफसर थे पीएमओ के निशाने पर
पिछले 10 साल में भ्रष्टाचार के मामलें में फंसे मप्र के 32 अधिकारियों सहित 776 नौकरशाहों पीएमओ के निशाने पर थे। केंद्र और विभिन्न राज्यों में पदस्थ इन अफसरों द्वारा किए गए भ्रष्टाचार की फाइल प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ ) और डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनेल ऐंड ट्रेनिंग (डीओपीटी)में खंगाली गई हंै। खासकर कांग्रेस नीत यूपीए सरकार के 10 साल के शासनकाल में हुए 38 घोटालों की जांच गंभीरता से हो रही है। इन तमाम घोटालों के सूत्रधार रहे नौकरशाहों की कुंडली पीएमओ द्वारा बना ली गई है। केंद्र सरकार ने उन नाकारा अफसरों को घर बैठाने का मानस बना लिया था, जो कि किसी भी प्रकार के कामकाज करने की जरूरत तक महसूस नहीं करते। केंद्र सरकार के इस रूख से अफसरों में दहशत की स्थिति थी। लेकिन केंद्र सरकार ने ऐसे अफसरों को सजा की बजाय समझाईस देकर सुधारने का मानस बना रही है।
उल्लेखनीय है कि केंद्र के साथ ही विभिन्न राज्यों में पदस्थ 4619 आईएएस अफसरों में से 1476 किसी न किसी भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए हैं। सबसे पहले केंद्र में हुए भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों लिस्ट तैयार की गई है, उसके बाद राज्यों की। पहली लिस्ट में यूपीए सरकार के शासनकाल के मोस्ट करप्ट 34 अफसर मोदी सरकार के निशाने पर आए हैं। इसमें से दो अफसर मप्र कैडर के हैं। उसके बाद प्रदेशों में हुए भ्रष्टाचार के दोषी पाए गए अधिकारियों में से 738 को छांटा गया है जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर मामले सामने आए हैं। इसमें मप्र के 32 अधिकारियों के नाम शामिल हैं। अगर पिछले दस साल का रिकार्ड देखें तो इस दौरान 157 आईएएस अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया गया है, जिसमें से 71 की जांच सीबीआई कर रही है। अपने लगभग नौ माह के शासनकाल में मोदी सरकार ने अभी तक कोई बड़ी उपलब्धि भले ही हासिल न की है,लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक्शन लेना शुरू कर जनता को भविष्य के लिए शुभ संकेत जरूर दिया है। पीएमओ और डीओपीटी द्वारा 1476 भ्रष्ट अधिकारियों में से जिन 776 अधिकारियों को दोबारा जांच के लिए जो सूची बनाई गई है उसमें सबसे अधिक उत्तर प्रदेश के अधिकारी हैं, जबकि दूसरे स्थान पर महाराष्ट्र के और तीसरे स्थान पर मप्र के अफसर हैं। उल्लेखनीय है कि भ्रष्टाचार के मामले में प्रदेश के 160 आईएएस अधिकारियों की फाइल को जांच के लिए पीएमओ और डीओपीटी द्वारा तलब की गई थी। प्रारंभिक जांच में प्रदेश के 32 अफसरों के मामलों को दूसरी जांच के लिए लिया गया है। यहां यह बताना उचित होगा कि केंद्र की मोदी सरकार ने सभी जांच एजेंसियों के साथ मिलकर नौकरशाहों की बेनामी और अवैध कमाई वाली संपत्ति जब्त करने की तैयारी कर रही थी। इसके तहत मप्र के 302 आईएएस अधिकारियों की करीब 22,000 करोड़ की संपत्ति भी थी, जिसका जिक्र इन अधिकारियों ने अपनी संपत्ति के ब्यौरे में नहीं दिया है। अधिकारियों की देश-विदेश में स्थित संपत्ति की पड़ताल के लिए आईबी, आयकर विभाग, सीबीआई सहित अन्य प्रादेशिक ईकाइयों को सक्रिय कर दिया गया है। उल्लेखनीय है कि मप्र के नौकरशाहों में से जिन 289 अफसरों ने अपनी संपत्ति का ब्यौरा दिया है उससे पीएमओं और केंद्रीय कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग संतुष्ट नहीं है। इसलिए जांच एजेंसियों से पड़ताल कराई गई कि आखिरकार ये अफसर रातों-रात अमीर कैसे बन गए और इन्होंने अपनी संपत्ति कहां और किसके नाम से दबाई है।
ज्ञातव्य है कि पिछले तीन साल में देश भर में 39 आईएएस, 7आईपीएस समेत अब तक 54 नौकरशाह विभिन्न मामलों में दोषी पाए जा चुके हैं जबकि 260 से अधिक नौकरशाहों के खिलाफ मुकदमें चल रहे हैं। यह आकड़े 2010 से लेकर 17 फरवरी 2015 तक के हैं। इनमें ज्यादातर मामले भ्रष्टाचार से जुड़े हैं। 117 फरवरी तक भारतीय प्रशासनिक सेवा के 19, भारतीय पुलिस सेवा के 3 और संबद्ध केन्द्रीय सेवाओं के 67 अधिकारियों के खिलाफ जांच लंबित है। इसके अलावा भारतीय प्रशासनिक सेवा के 154, भारतीय पुलिस सेवा के 15 और अन्य संबद्ध केंद्रीय सेवाओं के 102 अधिकारियों के खिलाफ 180 मामलों में मुकदमें चल रहे हैं।
उधर, मप्र के लोकायुक्त पीपी नावलेकर के अनुसार, प्रदेश में लोकायुक्त के पास 923 मामले अभी भी जांच में हैं, कुल 2839 शिकायतें जांच में ली गईं। 1108 लोगों को रंगे हाथों रिश्वत लेते पकड़ा,169 छापों में 339 करोड़ की अवैध सम्पत्ति का पता लगाया। 852 मामलों में चालान पेश किए गए, 792 शिकायतों का निवारण किया। वह कहते हैं कि लोकायुक्त को छापामार कार्यवाही में जप्त अनुपातहीन सम्पत्ति को राजसात करने तथा किसी अधिकारी-कर्मचारी या संस्थान पर कार्यवाही के लिए सर्च वारंट जैसी शक्तियों से लैस करने की जरूरत है, इससे भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रभावी व त्वरित कार्यवाही होगी। अभी संसाधन कम हैं, फिर भी बेहतर काम कर रहे हैं।
12 माह में 407 करोड़ की अवैध कमाई का खुलासा
एक तरफ केंद्र की मोदी सरकार यूपीए शासनकाल के दौरान हुए भ्रष्टाचार की जांच में जुटी हुई है, वही मप्र में पिछले 12 माह में 174 अधिकारियों-कर्मचारियों पर की गई छापामार कार्रवाई में 407 करोड़ की अवैध कमाई सामने आई है। लोकायुक्त के छापे में अफसरों के घर, बैंक और तिजोरियों ने करोडों की संपत्ति उगली हैं। छापों में करोड़ों के सोने-चांदी के जेवरात, लाखों रुपए की नकदी और अकूत मात्रा में अचल संपत्ति मिली है। यही नहीं अदने से सरकारी कर्मचारियों से लेकर अधिकारियों के घर-परिवार में ऐसे ऐशोआराम-भोगविलासिता के सामान मिले हैं जो शायद अरबपति घरानों के यहां मिलते हैं। इंदौर संभाग के अलग-अलग सरकारी महकमों में भ्रष्टाचार का खुलासा करते हुए लोकायुक्त पुलिस ने पिछले 12 महीने में 52 कारिंदों को रिश्वत लेते रंगे हाथों धर दबोचा।
सरकारी संरक्षण में भ्रष्ट अधिकारियों की संख्या बढ़ी
पीएमओ और डीओपीटी की अब तक की पड़ताल में यह बात सामने आई है कि यूपीए शासनकाल में सरकारी संरक्षण में भ्रष्टाचार की राह चलने वाले अफसरों की संख्या बढ़ती गई। साल 2013 में ऐसे अधिकारियों की संख्या तीन गुना से भी ज्यादा बढ़ गई। ये वे भ्रष्ट अधिकारी हैं जिनके खिलाफ जांच पूरी कर सीबीआई आरोप पत्र दाखिल करना चाहती थी, लेकिन यूपीए सरकार ने इसके लिए जरूरी अनुमति नहीं दी। इसके बाद सीबीआई ने 31 दिसंबर 2013 को ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों की सूची जारी की, जिनमें उनकी संख्या बढ़कर 99 हो गई। ये सभी अधिकारी कुल 117 मामलों में फंसे हुए थे। लेकिन सीबीआई द्वारा सूची जारी कर देने भर से भ्रष्ट अधिकारियों को मिल रहा सरकारी संरक्षण कम नहीं हुआ। सीबीआई की ताजा सूची में ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों की संख्या बढ़कर 165 हो गई है। इन 165 अधिकारियों के खिलाफ कुल 331 केस दर्ज हैं, जिनकी जांच पूरी हो चुकी है। यदि भ्रष्ट अधिकारियों और उनके खिलाफ दर्ज मामलों का अनुपात निकाला जाए तो एक भ्रष्ट अधिकारी औसतन भ्रष्टाचार के दो मामलों में लिप्त है। जांच एजेंसी को ठेंगा दिखाने वाले भ्रष्ट अधिकारियों में कस्टम व एक्साइज विभाग के अधिकारी अव्वल हैं। 165 अधिकारियों की सूची में अकेले कस्टम व एक्साइज विभाग के 70 अधिकारी हैं।
5 साल में 25,840 भ्रष्ट अफसरों पर मामला
केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) में वर्ष 2009 से लेकर 2013 तक 25,840 अधिकारियों के खिलाफ शिकायत पहुंची। जिनकी जांच में ये दोषी पाए गए और सीवीसी ने इनके विभागों को कार्रवाई करने का निर्देश दिया था। लेकिन कई विभागों ने भ्रष्ट अफसरों के प्रति नरम रवैया अपनाया। खास कर विदेश मंत्रालय और ओएनजीसी समेत कई सरकारी संस्थानों द्वारा भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ नरमी बरतने पर सीवीसी ने नाराजगी जताई। सीवीसी ने कहा कि भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई नहीं होने से अन्य अफसरों के हौसले भी बुलंद होंगे। सीवीसी द्वारा वर्ष 2013 के लिए तैयार की गई रिपोर्ट के मुताबिक गत वर्ष 17 मामलों में संबंधित संस्थानों ने भ्रष्ट अधिकारियों को दंडित नहीं किया या हल्की-फुल्की कार्रवाई कर छोड़ दिया। इनमें चार दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए), तीन रेल मंत्रालय, दो-दो दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) व ओएनजीसी के अधिकारी शामिल हैं। इसके अलावा केंद्रीय लोक निर्माण विभाग, दिल्ली जल बोर्ड, एलआइसी हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड, विदेश मंत्रालय, एसबीआई और भारतीय मानक ब्यूरो के एक-एक भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ भी पक्षपाती रवैया अपनाया गया।
नौकरशाहों पर भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर मप्र भले ही तीसरे स्थान पर है लेकिन यहां के हर चौथे अधिकारी-कर्मचारी पर कोई न कोई आरोप है। पिछले 10 साल से जिस तरह के मामले उजागर हो रहे हैं, उनसे इतना तो साफ है कि चाहे नौकरशाही हो या फिर अन्य अधिकारी-कर्मचारी सबके सब भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं। पंचायत के सचिव से लेकर सरकार के बड़े अफसरों तक के यहां पड़े छापों में जो सच्चाई सामने आई है वह आंखें खोलने के लिए काफी है। हजारों कमाने वाला पंचायत सचिव करोड़ों का मालिक निकला तो लाखों कमाने वाला अफसर अरबों का। इस तरह के कर्मचारियों और राज्य स्तर के अधिकारियों की एक लंबी सूची है। राज्य सरकार दावा करती है कि प्रदेश में भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम उठाए जा रहे हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि अपने छापों को लेकर चर्चा में रहने वाला लोकायुक्त भी भ्रष्टाचार के मामलों में खुद को असहाय पाता है। आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों में तो लोकायुक्त के हाथ वैसे ही बंधे हुए हैं। इन वर्गों के अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए उसे केंद्र सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है। लेकिन राज्य सरकार के कर्मचारियों और अधिकारियों के मामले में भी हालात कमोबेश ऐसे ही हैं। लोकायुक्त के ताजा आंकड़े बताते हैं कि करीब 150 मामलों में भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए उसे प्रशासनिक स्वीकृति का इंतजार है। लोकायुक्त द्वारा समय-समय पर याद दिलाए जाने के बाद भी राज्य सरकार की तरफ से मंजूरी न दिया जाना सरकार की नीयत पर सवाल खड़ा करता है।
एक बार फिर पत्र लिखा लाकायुक्त ने
लोकायुक्त जस्टिस पीपी नावलेकर ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को एकबार फिर लिखकर 135 प्रकरणों का जिक्र करते हुए संकेतों में भ्रष्टाचार के दोषियों को बचाने का अंदेशा जता दिया है। लोकायुक्त जस्टिस नावलेकर ने 8 जनवरी 15 को मुख्यमंत्री को यह खत लिखा है। खत में लोकायुक्त ने भ्रष्ट आचरण वाले अधिकारी-कर्मचारी के खिलाफ चालान पेश होने की स्थिति में निलंबन के प्रावधान का स्मरण कराया है। इसके बाद उन्होंने लिखा है 31 दिसंबर 2014 की स्थिति में लोकायुक्त पुलिस के समक्ष कुल 135 ऐसे प्रकरण हैं जिनमें आरोपित शासकीय सेवकों के खिलाफ सक्षम प्राधिकारी से अभियोजन स्वीकृति मिल चुकी है और इनके खिलाफ चालान भी पेश किए जा चुके हैं। पत्र में लिखा है कि कई शासकीय सेवक ऐसे हैं जिनके खिलाफ लोकायुक्त द्वारा चालान पेश किए दो साल से ज्यादा हो चुके हैं, लेकिन संबंधित को निलंबित किया है अथवा नहीं, इसकी जानकारी प्राप्त नहीं हुई है। चि_ी में लिखा है 'भ्रष्टÓ शासकीय सेवकों के विरुद्ध त्वरित एवं प्रभावी कार्यवाही की शासन की मंशा के प्रति समाज में जहां प्रतिकूल छवि निर्मित होती है वहीं भ्रष्ट सेवकों के यथावत पद पर बने रहने से साक्ष्य/साक्षियों को प्रभावित करने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। खत के साथ लोकायुक्त ने सभी 135 प्रकरणों में आरोपित अफसरों और कर्मचारियों के नाम भी सीएम को भेजे हैं और इन सेवकों को शीघ्र निलंबित करने के संबंध में प्रभावी कार्रवाई करने का मशविरा दिया है।
आईएएस पर नकेल कसने विवेकानंद फार्मूला अपनाएगी सरकार
नौकरशाहों पर अंकुश लगाने के लिए मोदी सरकार विवेकानंद फार्मूला अपनाने जा रही है। जिस तरह विवेकानंद ने विद्यालय में श्यामपट्ट पर अंकित सीधी रेखा को बिना छुए श्यामपट्ट पर एक और सीधी रेखा खींच कर पहली रेखा को छोटी कर दिया था उसी तरह अब केंद्र सरकार आईएएस अधिकारियों के बढ़ते दबदबेको विवेकानंद फॉर्मूले से कम करेगी। यानी योग्य अधिकारियों को तव्वजो दी जाएगी और नकारा को हासिए पर डाल दिया जाएगा। सरकार का मानना है कि मंत्रालय के भीतर और बाहर तमाम अवसरों के अतिरिक्त नियामकीय पदों पर आईएएस अधिकारियों के तकरीबन एकाधिकार सरीखी स्थिति के कई कारण हो सकते हैं। समय-समय पर सरकार ने भी ने ऐसे वर्चस्व पर चिंता जाहिर की है जिसका नतीजा यही निकलता है कि उतने ही प्रतिभाशाली और कुशल गैर-आईएएस अधिकारी उन पदों से वंचित रह जाते हैं। मगर यह समस्या बड़े स्तर पर अनसुलझी ही रही है। इसलिए, आखिर एक शक्तिशाली सेवा का सृजन क्यों नहीं किया जाए जिसमें प्रतिभाशाली लोगों को लुभाने का आकर्षण हो और उन्हें अहम पदों पर नियुक्त किया जा सके? पीएमओ के एक अधिकारी कहते हैं कि जब तक अधिकारियों का अधिक शक्तिशाली काडर नहीं बनाएंगे तब तक आईएएस बिरादरी का दबदबा लगातार बढ़ता रहेगा। यदि पूरे देश में महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक पदों पर आईएएस अपनी पकड़ बनाए रखने में कामयाब हुए हैं तो इसकी बड़ी वजह यही है कि इसके सदस्यों ने मंत्रालयों के अहम पदों या फिर सरकार की पेशेवर संस्थाओं पर किसी दूसरे काडर के सदस्यों को काबिज नहीं होने दिया।
इस तरह सांख्यिकी विभाग की कमान शायद ही भारतीय सांख्यिकी सेवा के किसी अधिकारी के हाथ में होगी। यहां तक कि राजस्व विभाग में सचिव पद पर परंपरागत रूप से आईएएस अधिकारी की ही नियुक्ति होती रही है जिसमें भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारियों के दावे की अनदेखी होती रही। विधि मंत्रालय में भी कमोबेश यही कहानी है। भारतीय विधि सेवा के अधिकारी कहां हैं और उन्हें इस तरह से प्रशिक्षित क्यों नहीं किया जाना चाहिए कि वे मंत्रालय में शीर्ष पद संभाल सकें? भारतीय आर्थिक सेवा में भी लगातार पराभव हुआ है, उसके कुछ अधिकारी ही देश की वृहद आर्थिक स्थिति के अवलोकन के लिए आर्थिक मामलों के विभाग में पदस्थापित हुए हैं। यह सूची बहुत लंबी हो सकती है लेकिन इसका मुख्य बिंदु एकदम स्पष्ट है। अत: इसी सोच के साथ सरकार विवेकानंद की तरह एक नई सेवा शुरू करने पर विचार कर रही है जो आईएएस से भी शक्तिशाली हो।
विवेकानंद फॉर्मूला तभी कामयाब हो सकता है जब सरकार बतौर आईएएस विकल्प आंतरिक तौर पर प्रतिभाशाली अधिकारियों का वर्ग तैयार करने की जरूरत पर ध्यान देना शुरू करे। हर नियामकीय संस्था को अधिकारियों का अपना काडर विकसित करने पर समय और ऊर्जा खर्च करनी चाहिए जो शीर्ष पदों पर भी पहुंच सकें। यही दबाव आईएएस के बढ़ते दबदबे को कम करने का सबसे बेहतर तरीका होगा। सरकार को कई ऐसी सीधी रेखाएं खींचनी होंगी जो आईएएस की रेखा से लंबी हो जो काफी पहले खींची गई थी और अभी भी उसे कोई चुनौती नहीं मिल रही है।
सुस्त नौकरशाही को बनाया जाएगा डायनामिक
सुस्त नौकरशाही को डायनामिक बनाने के लिए मोदी सरकार ने कुछ इस तरह का खाका तैयार कर लिया है कि अब उन्हें गतिशील होना ही होगा। लालफीताशाही की सुस्त रफ्तार का असर देश के विकास पर पड़ता है। पर नौकरशाही अपने पारम्परिक अंदाज में काम करने से बाज नहीं आती। यही कारण है कि भारत की नौकरशाही विश्व के काहिल नौकरशाही में शुमार की जाती रही है। इतना ही नहीं हॉंगकॉंग स्थित संस्था, 'पॉलिटिकल एन्ड इकनॉमिक रिस्क कंसलटेंसीÓ ने 2012 की अपनी रिपोर्ट में एशियाई देशों में नौकरशाही को एक से 10 तक क्रमबद्ध किया था। इसमें 10 सबसे बुरी स्थिति का सूचक है। भारत को इस 9.21 अंक मिले थे यानी सभी देशों में सबसे कम। भारत में नौकरशाही की स्थिति वियतनाम, इंडोनेशिया, फिफलिपीन्स और चीन से भी बदतर है। पर मोदी सरकार ने इसमें नयी धार लाने के लिए कई महत्वपूर्ण उपाय किये हैं।
ऐसे आएगी जिम्मेदारी
नौकरशाहों को उनके काम के प्रति जिम्मेदार बनाने के लिए मोदी सरकार ने आला सचिवों के लिए फाइलों को निपटाने के साथ ही कैबिनेट से जुड़े नोट और अंतर मंत्रालय विचार-विमर्श के लिए डेडलाइन तय करने का फैसला किया है। कैबिनेट सचिव अजित सेठ को इस काम पर लगाया गया है। नतीजा यह है कि अंतर मंत्रालय नोट और कैबिनेट से जुड़े मुद्दों पर 15 दिन की मियाद के अंदर ही फैसला करना होगा। अगर कोई मंत्रालय या विभाग इन पंद्रह दिनों की मियाद के भीतर नोट पर अपनी सहमति नहीं देता तो संबंधित मंत्रालय या विभाग आगे की कार्यवाही के लिए स्वतंत्र होगा। मोदी सरकार के इस फैसले का सीधा मतलब हुआ कि अगर कोई विभाग काम में आनाकानी करता है तो उसका महत्व खुद ही समाप्त हो जाएगा और उन नौकरशाहों की उपयोगिता भी बेमानी हो कर रह जाएगी। इतना ही नहीं इस कवायद के तहत अगर कोई मंत्रालय काम करने में या फैसला लेने में कोताही करता है तो निर्धारित 15 दिनों के भीतर खुद ब खुद यह मान लिया जाएगा कि पीएमओ ने इसे मंजूरी दे दी है। इतना ही नहीं इस मामले में अगर किसी मंत्रालय का सचिव निश्चित समय सीमा में काम नहीं करते या जवाब नहीं देते तो उन्हें कैबिनेट के सामने पेश होकर इसकी वजह बतानी होगी। सचिवालय का कहना है कि इस कवायद का असली मकसद फैसला लेने की प्रक्रिया में तेजी लाना है। इन तमाम प्रक्रियाओं के बाद पीएमओ तमाम मंत्रालयों की प्रगति पर नजर रखेगा इसके लिए तमाम मंत्रालय अपनी फाइलों को पीएमओ को भेजना होगा
रिटायर्ड अधिकारियों का बनेगा पूल
सरकार रिटायर हो चुके बेहतरीन अधिकारियों की फिर सेवा लेने का रास्ता तलाश रही है। मोदी सरकार नियमों में बदलाव कर ऐसे रिटायर्ड अफसरों को जरूरत पडऩे पर अहम विभागों में नीतिगत पदों पर तैनात कर सकती है। डीओपीटी को ट्रैक रेकॉर्ड के साथ ऐसे अफसरों की पहचान को कहा गया है। पीएमओ में तो इसकी शुरूआत पहले ही हो चुकी है।
गुजरात मॉडल की तर्ज पर ब्रेन स्टॉर्मिंग सेशन
सूत्रों के अनुसार, गुजरात की तर्ज पर प्रधानमंत्री दिल्ली में भी सीनियर अफसरों के साथ ब्रेन स्टॉर्मिंग सेशन पर जा सकते हैं। पीएमओ और डीओपीटी साथ मिलकर इसके स्वरूप को तैयार कर रहे हैं। गुजरात में मुख्यमंत्री के रूप में मोदी सभी विभागों के प्रमुख अफसरों के साथ साल में एक बार दो दिनों के लिए ब्रेन स्टॉर्मिंग सेशन में जाते थे। इसमें विभागीय मंत्री नहीं आते थे। इस दौरान मुख्यमंत्री और अधिकारी लगातार साथ होते थे और आपस में तमाम बातों पर खुलकर बात करते थे। इसके पीछे मोदी का एक ही मकसद होता समिलित विकास। अब यही फार्मूला केंद्र में भी अपनाया जाएगा। इसीलिए प्रधानमंत्री गंभीर मामलों को छोड़कर अन्य मामलों में फंसे अफसरों को राहत देने की तैयारी कर रहे हैं।
मप्र के इन अफसरों को उनके आरोप से मिल सकती है मुक्ति
- एंटोनी डिसा
- निविदा स्वीकृति में अनियमितताएं
- राकेश साहनी
- पुत्र को 5 लाख रूपए कम में विमान प्रशिक्षण दिलाया
- मनीष श्रीवास्तव
त्रैमासिक अर्धवार्षिक परीक्षा के मुद्रण कार्य में घोटाला
- अरूण पांडे
खनिज लीज में ठेकेदारों को अवैध लाभ पंहुचाना
- प्रभात पाराशर
- वाहनों के क्रय में 5 लाख से अधिक का भ्रष्टाचार
- गोपाल रेड्डी
- कालोनाईजरों को अनुचित लाभ पहुंचाना, शासन को आर्थिक हानि पहुंचाना
- अनिता दास
- ऊन तथा सिल्क साडिय़ों के क्रय में भ्रष्टाचार
- दिलीप मेहरा
- कार्यपालन यंत्री से अधीक्षण यंत्री की पदोन्नति में अनियमितताएं
- मोहम्मद सुलेमान
- कालोनाईजरों को अवैध लाभ पंहुचाना
- टी राधाकृष्णन
- दवा खरीदी में अनियमितताएं
- एसएस उप्पल
- पांच लाख रूपए लेकर भूमाफियाओं को अनुज्ञा दी
- अस्ण भट्ट
- भारी रिश्वत लेकर निजी भूमि में अदला बदली
- निकुंज श्रीवास्तव
- पद का दुरूपयोग एवं भ्रष्टाचार, दो शिकायतें
- एमके सिंह
- तीन करोड़ रूपए का मुद्रण कार्य आठ करोड़ रूपए में कराया
- एमए खान
- भ्रष्टाचार एवं वित्तिय अनियमितताएं, तीन शिकायतें
- संजय दुबे
- शिक्षाकर्मियों के चयन में अनियमितताएं
- रामकिंकर गुप्ता
- इंदौर योजना क्रमांक 54 में निजी कंपनी को सौ करोड़ रूपए का अवैध लाभ पंहुचाया
- एमके वाष्र्णेय
- सम्पत्तिकर का अनाधिकृत निराकरण करने से निगम को अर्थिक हानि
- आरके गुप्ता
- निविदा स्वीकृति में अनियमितताएं
- केदारलाल शर्मा
- सेन्ट्रीफयूगल पम्प क्रय में अनियमितताएं
- शशि कर्णावत
- पद का दुरूपयोग, दो शिकायतें
- केके खरे
- पद का दुरूपयोग कर भ्रष्टाचार
- विवेक अग्रवाल
- 21 लाख रूपए की राशि का मनमाना उपयोग
- एसके मिश्रा
- खनिज विभाग में एमएल, पीएल आवंटन में भ्रष्टाचार
- महेन्द्र सिंह भिलाला
- 75 लाख रूपए की खरीदी में अनियमितताएं
- अल्का उपाध्याय
- भारी धन राशि लेकर छह माह तक दवा सप्लाई के आदेश जारी नहीं किए
- सोमनाथ झारिया
- 4 वर्षों से भ्रष्टाचार एवं पद का दुरूपयोग करना
- डा. पवन कुमार शर्मा
- बगैर रोड़ बनाए ठेकेदार को पांच लाख का भुगतान करना
- पी नरहरि
- सड़क निर्माण व स्टाप डेम में गड़बड़ी
- तरूण गुप्ता
- फर्जी यात्रा देयक
- आरके गुप्ता
- इंदौर में मैंकेनिक नगर में गलत तरीके से लीज
- डीके तिवारी
- ट्रेजर आईलैंड की भूमि उपांतरित करने में गड़बड़ी
- एवी सिंह
- ट्रेजर आईलैंड की भूमि उपांतरित करने में गड़बड़ी
- एसएस अली
- फर्जी फर्मों के द्वारा सर्वे सामग्री एवं कम्प्यूटर खरीदी
- एमके अग्रवाल
- फर्जी फर्मों के द्वारा सर्वे सामग्री एवं कम्प्यूटर खरीदी
- राजेश मिश्रा
- फर्जी दस्तावजों के आधार पर आचार सत्कार शाखा में गड़बड़ी
- शिखा दुबे
- अनुसूचित जाति, जनजाति के विधार्थियों की गणवेश खरीदी में अनियमितता
- जीपी सिंघल
- सेमी ओटोमेटिक प्लांट की जगह प्राइवेट डिस्टलरी से देशी शराब की वाटलिंग कराने का आरोप
-स्व. टी धर्माराव
- सेमी ओटोमेटिक प्लांट की जगह प्राइवेट डिस्टलरी से देशी शराब की वाटलिंग कराने का आरोप
- योगेन्द्र कुमार
- शराब की दूकान बंद कराने की धमकी देकर लाईसेंसधारियों से अवैध वसूली
- आरएन बैरवा
- अनुसूचित जाति के छात्रों के भोजन बजट में गड़बड़ी
- मनीष रस्तोगी
- सतना में रोजगार गारंटी योजना में 10 करोड़ की अनियमितता
- विवेक पोरवाल
- सतना में रोजगार गारंटी योजना में 10 करोड़ की अनियमितता
- हरिरंजन राव
- रायल्टी का भुगतान नहीं करने से शासन को लाखों की चपत लगाई
- अंजू सिंह बघेल
- मनरेगा में भुगतान की गडगड़़ी
- एसएस शुक्ला
- बाल श्रमिक प्रशिक्षण में आठ करोड़ रूपए का दुरूपयोग
- सीबी सिंह
- बिल्डर्स को लाभ पहुंचाने के लिए अवैध निर्माण व बिक्रय
- प्रमोद अग्रवाल
- औधोगिक केन्द्र विकास निगम में अनियमितताएं
- आशीष श्रीवास्तव
- एमपीएसआईडीसी की राशि का एक मुश्त उपयोग कर बैंक लोन पटाने का मामला
- संजय गोयल
- मनरेगा में कुंआ निर्माण में अनियमितता
- निकुंज श्रीवास्तव
- रेडक्रास सोसाइटी में आर्थिक गड़बड़ी
- एसएन शर्मा
- ट्रांसफर के बाद बंगले पर फाइलें बुलाकर आम्र्स लायसेंस स्वीकृत किए
- मनीष श्रीवास्तव
- चार शिकायतें, शिवपुरी, टीमकगढ़ में अर्धवार्षिक परीक्षा में गलत भुगतान, राजीव गांधी शिक्षा मिशन में निर्माण में अनियमितता, दवा व बिस्तर खरीदी में गड़बड़ी, उत्तर पुस्तिका छपाई और गणवेश खरीदी और खदानों का गलत तरीके से आवंटन आदि।
इनको भी मिलेगी राहत
प्रदेश के उन कुछ चर्चित मामलों में भी दागदारों को राहत मिल सकती है, जो वर्षों से लंबित है। उनमें से मप्र विद्युत मंडल में विद्युत मीटर खरीदी मामले में लोकायुक्त में पुन: जांच शुरू हो गई है। मप्र विद्युत मंडल में सदस्य (वित्त) रहते हुए अजीता वाजपेयी ने विद्युत मीटर खरीदी की थी जिसमें कई करोड़ों के घोटाले का आरोप है। उल्लेखनीय है कि लोकायुक्त पुलिस में दस साल में 19 आईएएस अफसरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं लेकिन पांच वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य नहीं होने का कारण बताकर अदालत में उनके मामलों का खात्मा भेज दिया गया। दो अधिकारियों के मामले में विशेष न्यायालयों के निर्णय को लेकर लोकायुक्त पुलिस की ओर से हाईकोर्ट में अपील की गई है। इनमें से सर्वाधिक तीन-तीन मामले सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी यूके सामल और आरके गुप्ता के खिलाफ हैं। रमेश थेटे के खिलाफ भी दो मामले दर्ज हो चुके हैं जिनमें से रिश्वत लेते पकड़े जाने के एक मामले में थेटे को विशेष न्यायालय ने सजा दी थी। इसके बाद उन्हें सेवा से पृथक कर दिया गया। फिर उन्हें हाईकोर्ट ने बरी किया लेकिन लोकायुक्त पुलिस इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील में गई है। इसके अलावा दो प्रशासनिक अधिकारी अशोक देशवाल और लक्ष्मीकांत द्विवेदी के खिलाफ जब प्रकरण दर्ज हुआ था तब उन्हें आईएएस नहीं मिला था। अभी वे आईएएस अधिकारी हैं। उनके खिलाफ भी लोकायुक्त पुलिस में दो एफआईआर दर्ज हैं। एक अन्य आईएएस संजय शुक्ला ने नगर निगम आयुक्त के कार्यकाल में दो करोड़ रुपए की खरीदी की थी जिसमें सामग्री की कीमत केवल 96 लाख रुपए पाया जाना प्रमाणित हुआ है। इस प्रकार उन पर बिना टेंडर, कोटेशन के एक करोड़ चार लाख रुपए का एक फर्म को लाभ पहुंचाया। हैरानी की बात यह है कि वे इस समय प्राइम पोस्ट पर हैं। रतलाम कलेक्टर और नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष की हैसियत से विनोद सेमवाल ने विनोद पारिख नाम के व्यक्ति को शहरी क्षेत्र की जमीन दे दी। कटनी में हाउसिंग बोर्ड के प्रोजेक्ट के लिए ज्यादा कीमत पर जमीन खरीदी का मामला तत्कालीन आयुक्त हाउसिंग बोर्ड राघवचंद्रा और कटनी कलेक्टर शहजाद खान के अब तक गले पड़ा हुआ है। वहीं शिवपुरी भू-अर्जन अधिकारी के रूप में एलएस केन ने आईटीबीपी के लिए अधिग्रहित जमीन का मुआवजा किसानों को नहीं देकर मध्यस्थ को दे दिया था। हालांकि 26 मार्च 2014 को शिवपुरी के जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने छत्तीसगढ़ में पदस्थ आईएएस अधिकारी एलएस केन और डिप्टी कलेक्टर आरएन शर्मा को का दोषी मानते हुए दो-दो साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई है। दोषियों पर 10-10 हजार रुपए का अर्थदंड भी लगाया गया है। सजा सुनाने के बाद अदालत ने एलएस केन की जमानत भी मंजूर कर ली।
बाबुओं को इस वर्ष दो बार देना होगा संपत्ति का विवरण
सरकार किसी भी स्तर पर किसी भी कर्मचारी के खिलाफ भेदभाव नहीं करना चाहती। केंद्र सरकार ने अभी तक भ्रष्टाचार निरोधक निकाय लोकपाल का गठन नहीं किया है। इस संबंध में एक संशोधन विधेयक की एक संसदीय समिति द्वारा पड़ताल की जा रही है। लोकपाल-लोकायुक्त और इससे संबंधित अन्य संशोधन विधेयक गत वर्ष आठ दिसंबर को लोकसभा में पेश किए गए थे। केंद्र सरकार के सभी अधिकारियों को इस साल अपनी संपति और जिम्मेदारियों से संबंधित ब्योरा दो बार देना होगा। लोकपाल अधिनियम के कार्यान्वयन के मद्देनजर यह फैसला लिया गया है। लोकपाल-लोकायुक्त अधिनियम के तहत अधिकारियों को पहली अगस्त, 2014 तक का पहला रिटर्न इस साल 30 अप्रैल से पहले जमा करना होगा। अधिनियम के तहत 31 मार्च 2015 को समाप्त हो रहे मौजूदा वित्तीय वर्ष के लिए रिटर्न 31 जुलाई से पहले देना होगा। केंद्रीय कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग द्वारा जारी आदेश में यह जानकारी दी गई है।
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