बुधवार, 10 अगस्त 2011
मध्य प्रदेश में भाजपा के लिए घातक न बन जाएं उसी के मोहरे...?
मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव में अभी लगभग ढाई साल का समय शेष है, लेकिन मिशन-2013 के लिए सत्तारुढ भाजपा सहित प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने अपनी अपनी बिसात बिछानी शुरु कर दी है और प्रदेश में चुनावी समर की तैयारी होने लगी है। अभी तक हर मोर्चे पर कांगे्रस की कमजोरी को देखकर लगातार तीसरी बार सत्ता का सपना देख रही भाजपा के लिए उसके ही मोहरें घातक सिद्ध हो सकते हैं।
ये मोहरें वे हैं जिन्होंने अपनी पार्टी,नीति,रीति,चरित्र और चेहरे को त्याग कर 2008 के विधानसभा चुनाव से पूर्व भाजपा में आए और जिनके दमखम और सहयोग से भाजपा सत्ता में आ गई लेकिन सत्ता में आने के बाद भाजपा के रहनूमा इन्हें भूल गए। उसके बाद भी कई नेता बड़े अरमान के साथ भाजपा में आए लेकिन उन्हें भी कोई तव्वजो नहीं दी गई,जिसके कारण वे प्रवासी नेता और कार्यकर्ता अपने आपको ठगा महसूस करने लगे हैं, क्योंकि जो नेता उनकी पूछ-परख करते थे, वे किनारा करने लगे। ऐसे में कुछ नेता तो घर बैठ गए और कुछ अभी भी आस लगाए बैठे हैं।
चुनाव तक भाजपा में शामिल होने वाले हर नेता तथा कार्यकर्ताओं के मान-सम्मान का पूरा ध्यान दिया गया। उन्हें चुनाव में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी दी गई। प्रवासी भाजपाइयों की मेहनत का नतीजा ही था कि मुरैना संसदीय क्षेत्र से भाजपा नेता नरेन्द्र सिंह तोमर विजयी हुए। यह महज एक उदाहरण मात्र है। कई विधानसभा क्षेत्रों में भी प्रवासी भाजपाइयों की बदौलत ही भाजपा को जीत हासिल हुई। चुनाव में विजयश्री मिलने के बाद से पार्टी में लगातार प्रवासी भाजपाईयों की उपेक्षा होने लगी है। जिसके कारण ये नेता एक बार फिर से अपनी मूल पार्टी या किसी अन्य पार्टी में जाने की योजना बना रहे हैं।
गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के नेताओं ने तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को एक पत्र लिखकर अपनी पीड़ा से अवगत कराया है। दरअसल, मामला संगठन से जुड़ा हुआ है, किन्तु मुख्यमंत्री श्री चौहान को पत्र इसलिए लिखा, क्योंकि उन्हें उन पर विश्वास था कि वे उनके साथ पूरा इंसाफ करेंगे। उनका विश्वास अब टूटता नजर आने लगा है। प्रवासी भाजपाइयों को न तो लालबत्ती मिली और न ही संगठन में उन्हें सम्मानजनक पद दिया गया। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से भाजपा में शामिल हुए पूर्व प्रवक्ता विष्णु शर्मा ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लिखे पत्र में कहा है कि महाकौशल, विंध्य क्षेत्र और बुंदेलखंड में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का पर्याप्त जनाधार रहा है। गोंगपा के बिखराव के बाद उसके नेता और कार्यकर्ता अपनी नीति एवं आस्था के हिसाब से राजनीतिक दलों से जुड़ते गए। इसी कड़ी में गोंगपा के पांच-छह सौ से अधिक नेता और कार्यकर्ता भाजपा से भी जुड़े। इन नेताओं और कार्यकर्ताओं का वजूद सिवनी, मंडला, डिंडोरी, बालाघाट, छिंदवाड़ा, शहडोल, उमरिया, कटनी, जबलपुर, होशंगाबाद, नरसिंहपुर, सिंगरौली-सीधी, दमोह, सागर, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, भिंड, मुरैना, ग्वालियर, शिवपुरी और गुना जिले में है।
पत्र में श्री शर्मा ने लिखा है कि यदि आदिवासी समाज में पार्टी का दस प्रतिशत वोट बढ़ाना है, तो यह काम केवल गोंगपा से आए हुए कार्यकर्ता ही कर सकते हैं, क्योंकि उनकी आदिवासियों के बीच खासी पैठ है। उन्होंने पत्र में कहा है कि कांग्रेस ने अपने पुराने आदिवासी वोट बैंक की खातिर कद्दावर आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया को प्रदेशाध्यक्ष बनाया है। शर्मा ने मुख्यमंत्री चौहान से आग्रह किया है कि आगामी समय में आदिवासी समाज को कांग्रेस की ओर जाने से रोकना है, तो गोंगपा से भाजपा में आए कार्यकर्ताओं को मान-सम्मान प्रदान करें और उन्हें संगठन अथवा कोई और दायित्व सौंपे। गोंगपा के इस पूर्व प्रवक्ता ने पत्र में यह भी लिखा है कि आपने(शिवराज सिंह) जैसे हम्माल पंचायत, चर्मकार पंचायत, मजदूर पंचायत, किसान पंचायत बुलाई थी, ठीक उसी तरह से गोंगपा से भाजपा में आए कार्यकर्ताओं का सम्मेलन बुलाएं, ताकि उन्हें पार्टी में तवज्जो एवं तरजीह मिल सके। वे लिखते हैं कि भाजपा के नेताओं एवं पदाधिकारियों की फितरत बन गई है कि दूसरे दलों से आए नेताओं का चुनावी मोहरे के रूप में इस्तेमाल करें और जब काम निकल जाए, तब उन्हें हाशिए पर धकेल दें। आज भाजपा में यही हो रहा है। अब यह सभी नेता और कार्यकर्ता भाजपा में घुटन महसूस कर रहे हैं और वे किसी नए राजनीतिक आसरे की तलाश में हैं।
वैसे तो प्रवासी भाजपाइयों की लंबी फेहरिस्त है। इनमें कुछ बड़े नाम भी हैं जैसे- फूलसिंह बरैया, भुजबल अहिरवार, एनपी शर्मा, बालेन्दु शुक्ल, प्रेमनारायण ठाकुर, सतेन्दु तिवारी, अशोक गौतम, नवाब ठाकुर, रामस्वरूप यादव, अवधराज मसकुले, राजपाल सिंह, अतरसिंह राजपूत, केशव सिंह गुर्जर, दिलीप सिंह भूरिया, असलम शेर खां इत्यादि। इनमें से समता समाज पार्टी के फूल सिंह बरैया और भुजबल अहिरवार को भाजपा ने मुरैना संसदीय क्षेत्र और एनपी शर्मा को विदिशा लोकसभा सीट से चुनाव जीतने के लिए ही पार्टी में शामिल कराया था। शुरुआती दिनों में इन नेताओं की खूब पूछ-परख हुई, पर उसके बाद से उनकी लगातार उपेक्षा हो रही है। उपेक्षाओं के चलते फूल सिंह बरैया ने तो भाजपा से अलग होकर अपनी अलग पार्टी बहुजन संघर्ष दल का गठन कर लिया है।
फूल सिंह बरैया कहते हैं कि दूसरे दल से आए नेताओं पहचान की भाजपा में केवल चुनावी मोहरे के रूप में ही इस्तेमाल किया जाता है। भाजपा और कांग्रेस दोनों बड़ी पार्टियां नहीं चाहती हैं कि मध्यप्रदेश में कोई तीसरी राजनीतिक शक्ति का उदय हो। यही कारण है कि ये दोनों दल छोटे दलों को तोडऩे में जुट जाते हैं। यह पूछे जाने पर आप वरिष्ठ राजनेता हैं और भाजपा के झांसे में कैसे आ गए? वे जवाब देते हैं-मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और सांसद नरेन्द्र सिंह तोमर के बहकावे में आ गया था। पार्टी में आने के बाद मैं भाजपा नेताओं की हकीकत से वाकिफ हुआ। मुझे पार्टी की नीति निर्धारण के लिए बुलाई जाने वाली बैठकों में नहीं बुलाया जाता था। वैसे भी मेरा पूरा कुनबा (दलित) भाजपा में सेट नहीं हो पा रहा था, इसलिए मैंने भाजपा छोड़कर बहुजन संघर्ष दल का गठन किया। फिलहाल मैं अपने संगठन को मजबूत करने में जुटा हुआ हूं। श्री बरैया ने तो भाजपा से नाता तोड़ लिया, पर भुजबल अहिरवार और एनपी शर्मा जैसे वरिष्ठ हाशिये पर धकेल दिए गए हैं। भुजबल अहिरवार कहते हैं कि वे अभी भाजपा के साधारण कार्यकर्ता हैं। पार्टी की तरफ से आश्वासन मिला है। उसी का इंतजार कर रहा हूं। कांग्रेस के सहकारिता नेता एनपी शर्मा भी भाजपा में जाने के बाद राजनीति में गुम-से हो गए हैं। उपेक्षाओं के चलते ही उनका दिल भी भाजपा से ऊब गया है। इसके पहले आदिवासी नेता दिलीप सिंह भूरिया और अल्पसंख्यक नेता असलम शेर खां का भी भाजपा में जाने का अनुभव ठीक नहीं रहा है। अंतत: असलम शेर खां और दिलीप सिंह भूरिया ने भी उपेक्षाओं के चलते बहुत पहले भाजपा को अलविदा कह दिया था। यह बात अलग है कि दिलीप सिंह भूरिया का इस्तेमाल कर भाजपा ने कांग्रेस के गढ़ झाबुआ में सेंध लगा लिया है। कांग्रेस से भाजपा में आए प्रेमनारायण ठाकुर विधायक तो बन गए, किन्तु पार्टी में उनकी भी पूछ-परख नहीं हो रही है। कांग्रेस में आने के उनके मार्ग बंद है, इसलिए भाजपा में रहना उनकी विवशता है।
उधर बताया जाता है कि कांग्रेस ने उन नेताओं की लिस्ट बनानी शुरू कर दी है जो भाजपा में उपेक्षा का दंश झेल रहे हैं। मौका मिलते ही पार्टी इन नेताओं को आगामी चुनाव में विधायकी का प्रलोभन देकर कांग्रेस में बुला लेगी। अगर समय रहते भाजपा ने अपने मोहरें नहीं संभाले तो वे उसके लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं।
आदिवासियों में असंतोष
भारतीय जनता पार्टी की सिंगरौली में हुई प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में ही अगले चुनाव लड़़े जाने के संकल्प से आदिवासी नेतृत्व को तगड़़ा झटका लगा है। पार्टी के सिंगरौली मंथन ने ये साफ कर दिया है कि पार्टी के आदिवासी नेताओं को अभी मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने के लिए लंबा इंतजार करना पड़़ेगा।
बैठक में आदिवासी वोट बैंक को पार्टी की ओर मोड़ऩे के लिए संगठन ने कई अभियान चलाने का ब्यौरा तो दे दिया लेकिन साथ ही ये भी स्पष्ट कर दिया कि केवल आरक्षित सीटों पर ही उनके दावों पर विचार किया जाएगा। आदिवासियों को लुभाने के लिए किसी आदिवासी नेता को उपमुख्यमंत्री की कुर्सी देने का भी फार्मूला नहीं बना। पार्टी के एक युवा आदिवासी नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि मंडला में आयोजित नर्मदा कुंभ के बाद यदि पार्टी सिंगरौली में किसी आदिवासी नेता को उपमुख्यमंत्री के लिए प्रोजेक्ट करती तो शायद आदिवासी समाज के लोगों का पार्टी पर और ज्यादा विश्वास बढ़़ता। हालांकि उन्होंने संगठन के फैसले पर किसी तरह की टीका टिप्पणी करने से साफ मना करते हुए कहा कि इस संबंध में अंतिम निर्णय लेने का अधिकार हाईकमान को है। हम अपनी भावनाओं से उन्हें अवगत भी करा चुके हैं। बहरहाल, सिंगरौली मंथन से आदिवासी नेतृत्व का नेजा संभालने वाले इस तबके को करारा झटका लगा है।
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