एक दौर ऐसा था कि धर्म क्षेत्र से जुड़े साधु-संत मायावी प्रलोभनों से दूर रहकर समाज को संस्कारित व धार्मिक बनाने में अपनी महती भूमिका निभाते हुए स्वयं सात्विक-सरल जीवन जीते थे. काम, क्रोध, मद लोभ को त्याग कर दूसरों को प्रेरणा देते हुए खुद का जीवन दूसरों के हितार्थ होम कर देते थे. आज जिन साधु-संतों को हम देख रहे हैं, इनमें योग और साधना कितनी है, यह बताना मुश्किल है. सर्व गुण संपन्न इन कथित साधु संतों का न तो कोई चरित्र होता है न ही इनमें कोई त्याग, आए दिन इनकी काली करतूतें सार्वजनिक हो रही हैं. पहले की तरह ही इस कलयुगी दौर में भी साधु-संतों के प्रति आम जनता में श्रद्धाभाव है, जिसका फायदा उठाकर बड़ी संख्या में छद्म वेशधारियों ने भी अपने आप को साधु-बाबाओं की जमात में शामिल कर लिया हैं. ङग्हंस चुनेगा दाना तिनका, कौआ मोती खाएगाफ को चरितार्थ करते हुए चकाचौंध की दुनिया में जीने वाले ऐसे पाखंडी साधु संतों की निगाह ऐशोआराम के हर संसाधन जुटाने में लगी रहती है. धर्म के नाम पर लाखों करोड़ों की जमीन को मुफ्त में लेकर आलीशान बिल्डिंग बना डालते हैं, वह भी जनता के पैसे से. इन कोठीनुमा भवनों को नाम तो आश्रम का दिया जाता है, लेकिन यहां विलासिता के सभी सामान मौजूद होते हैं.
एक तरफ जहां कई साधु संतों पर आपराधिक आरोप लगे वहीं कुछ गेरुआ वस्त्रधारियों को सांप्रदायिकता भड़काने के आरोप में जेल की हवा भी खानी पड़ी. गोरखपुर के सांसद महंत योगी के ऊपर तो अक्सर ही कट्टर हिंदूवादी होने का आरोप लगता रहा है. हिंदू रक्षा के नाम पर दबंगई दिखाने में उन्हें महारथ हासिल है. इसी के चलते उन्हें दर्जनों बार जेल भी जाना पड़ा. अभी भी उनके खि़लाफ़ कई मुक़दमे चल रहे हैं.
इनके शरण में उद्योगपतियों व्यापारियों के साथ तमाम राजनेता भी आ जाते हैं और वे भी इन्हे दंडवत करते है. आए दिन घटने वाली घटनाओं को देखकर प्रतीत होता है कि यदि समय रहते इन पर अंकुश नहीं लगाया गया तो जनता का उन साधु संतों पर से भी विश्वास उठ जाएगा जो वास्तव में सच्चे हैं.
यूपी में धर्म के नाम पर ठगने वालों की बाढ़ सी आ गई है. महानगरों से लेकर गांव तक इनका प्रभाव है. कई खूंखार अपराधी भी इस चोले ओढ़ लेते हैं. साधुरुपी चोला ओढऩे को आतुर ढोंगियों के लिए कुछ अध्यात्म केंद्र मील का पत्थर साबित हो रहे हैं. इन अध्यात्म केंद्रों में ये ढोंगी कुछ महीनों में ही जनता को मूर्ख बनाने के हथकंडे आसानी से सीख जाते हैं.
यूपी में पाखंडी साधुओं की संख्या में खासा इजाफा हुआ है. भक्त बनकर मंदिर स्थापित करने और लोगों को प्रवचन देने वाले चित्रकूट के बाबा शिवमूरत द्विवेदी उर्फ इच्छाधारी संत स्वामी भीमानंद महाराज के काले कारनामों को चिट्?ठा जब उजागर हुआ तो ऐसे साधु संतों को लेकर यहां बहस छिड़ गई. वैसे तो राज्य में कई साधु-संत अपनी विवादित भाषा शैली और आचरण के कारण चर्चा में रहे हैं, लेकिन कुछ बाबाओं ने तो हद ही कर दी. राजधानी लखनऊ के बाबा भूतनाथ को मरे कई साल हो गए हैं, लेकिन आज भी उनके द्वारा हथियाई गई ज़मीन पर बनी भव्य भूतनाथ मार्केट उनके नाम को जीवित रखे हुए है. लखनऊ के पॉश इलाक़े इंदिरागनर में जहां पर भूतनाथ मार्केट बनी है इस ज़मीन की क़ीमत करोड़ों रुपए है. बाबा भूतनाथ करिश्माई तांत्रिक के रूप में अपनी छाप बनाए हुए थे, जब कि वे तरह-तरह के केमिकल के प्रयोग से लोगों को बेवकूफ बनाने में सिद्वहस्त थे. उनके गुरुभाई रहे बाबा भैरोनाथ को उनकी करतूतों पर काफी नाराजग़ी रहती थी. संत ज्ञानेश्वर को देखें, उनके तो नाम के आगे ही संत लगा था और पीछे ज्ञानेश्वर. लेकिन उनके शौक निराले थे, भूमाफिया के रूप में संत ज्ञानेश्वर का नाम पुलिस रिकॉर्ड में भले ही नहीं था, लेकिन दूसरों की ज़मीन हथियाने की आदत ने ही उन्हें मौत की गोद में सुला दिया. सुल्तानपुर जनपद के उसौली विधानसभा क्षेत्र के विधायक इंद्रभद्र सिंह ने जब उनकी काली करतूतों का विरोध किया तो संत ज्ञानेश्वर ने अपने गुर्गों के माध्यम से विधायक इंद्रभद्र की हत्या करवा दी. बाद में बदला लेने की नीयत से इंद्रभद्र के बेटों सोनू और मोनू सिंह ने दस फरवरी 2006 को इलाहाबाद के हंडिया थाना क्षेत्र में दिन दहाड़े संत ज्ञानेश्वर की हत्या कर दी. हत्या के जुर्म में सोनू और मोनु सिंह को जेल भी जाना पड़ा हालांकि वर्तमान में सोनू बसपा से विधायक व मोनू ब्लॉक प्रमुख है और मामला सुप्रीमकोर्ट जा पहुंचा है. ख़ूबसूरत महिला कमांडो के संरक्षण में चलने वाले संत ज्ञानेश्वर ने बाराबंकी से लेकर इलाहाबाद तक में अपना साम्राज्य फैला रखा था. उनके आश्रम में कई वीआईपी जनों का आना-जाना था. संत ज्ञानेश्वर पर आरोप था कि वह अपने आश्रम में आने वाले अतिथियों के सामने आश्रम में रहने वाली लड़कियों को पेश करते थे. संत के आश्रम पर जब छापा मारा गया तो उनके आश्रम से कई आधुनिक हथियार भी पुलिस ने बरामद किए.
यूपी के चर्चित भाजपा नेता और पूर्व मंत्री ब्रह्मदत्त द्विवेदी हत्याकांड में भी संत साक्षी महाराज पर हत्या का आरोप लगा. दोनों फर्रुखाबाद से ताल्लुक रखते थे. भाजपा के टिकट से दो बार सांसद रह चुके सच्चिदानंद हरि उर्फ साक्षी महाराज कभी दिग्गज नेता कल्याण सिंह के काफी कऱीबी हुआ करते थे. साक्षी महाराज की गिनती भाजपा के दबंग नेताओं में होती थी. बीते 27 मार्च 2009 को साक्षी महाराज के आश्रम से एक 24 वर्षिय युवती लक्ष्मी का शव बरामद हुआ तो हड़कंप मच गया. साक्षी महाराज पर ज़मीन हथियाने और यौन उत्पीडऩ के आरोप समय-समय पर लगते रहे हैं. बताया जाता है कि आश्रम के रूप में साक्षी महाराज के पास अच्छी खासी संपदा एकत्र है. प्रतापगढ़ के कुंडा के मनगढ़ धाम कृपालु महाराज के आश्रम में भंडारे में हुई भगदड़ में 63 लोगों की मौत के बाद कृपालु महाराज का नाम चर्चा में आया तो लोग हैरान रह गए. आश्रम में 63 मौतें हो गईं तथा कई लोग घायल हो गए, लेकिन कृपालु महाराज घटना स्थल तक पहुंचे ही नहीं. जब कृपालु महाराज जी का अतीत खंगाला गया तो पता चला कि उनके दामन में भी कई दाग लगे हुए थे. कृपालु जी महाराज पर नाबालिग लड़कियों के अपहरण और दुराचार का मुक़दमा भी दर्ज हो चुका है. वह त्रिनिदाद में गिरफ्तार भी हो चुके हैं. 2007 में कृपालु महाराज पर एक महिला के साथ दुराचार करने का आरोप लगा था. कृपालु महाराज जब विश्व भ्रमण पर थे तब त्रिनिदाद में एक महिला ने आरोप लगाया था कि महाराज ने उसके साथ एक व्यापारी के घर पर दुराचार किया था. बताया जाता है कि कृपालु महाराज इसी व्यापारी के घर पर ठहरे भी थे. 1991 में एक वृद्ध व्यक्ति ने नागपुर में शिकायत दर्ज कराई थी कि कृपालु महाराज ने उसके दो नाबालिग लड़कियों का अपहरण कर लिया. पुलिस ने जांच में पाया कि बलात्कार के दो मामले पहले भी हुए थे, उनमें शिक़ायत दर्ज नहीं की गई थी. इसका संज्ञान लेते हुए पुलिस ने कृपालु महाराज के खिलाफ अपहरण और दुराचार के चार मामले दर्ज किए थे. ये कुकृत्य 1985 से 1991 के बीच किए थे. बाद में कृपालु महाराज इस मामले में बरी कर दिए गए. कृपालु महाराज राधा माधव सोसाइटी के प्रमुख बताए जाते हैं. इस सोसाइटी के दुनिया भर में करीब 300 केंद्र है. राम कृपाल त्रिपाठी उर्फ कृपालु जी महाराज के खिलाफ 90 के दशक में आंध्र प्रदेश की दो महिला सत्संगियों ने जबरन कैद किए जाने का आरोप लगाया था, मामले में रिपोर्ट भी दर्ज कराई गई थी पर धनबल व ऊंची पहुंच के चलते बाद में इन आरोपों से भी कृपालु जी मुक्त हो गए. वृंदावन आश्रम के लिए भूमि का मामला भी पुलिस के पास आया था. इस मामले में मथुरा जिला प्रशासन ने कृपालु महाराज और इनकी संस्था पर कार्रवाई की थी. चित्रकूट का शिवा उर्फ शिवमूरत द्विवेदी उर्फ इच्छाधारी संत भीमानंद सरस्वती के नाम के साथ सेक्स रैकेट सरगना जुड़ जाने से धर्मनगरी चित्रकूट के वाशिंदे भी काफी मर्माहत हुए. इच्छाधारी के कारनामों से उसके जन्मस्थली चमरौहा गांव के लोग बेहद शर्मशार हुए. इच्छाधारी संत भीमा नंद सरस्वती चमरौहा में शतचंडी यज्ञ कराने वाला था, जिस हेतु काशी के 101 पंडित भी बुक हो चुके थे. पूर्व सांसद प्रकाश नारायण त्रिपाठी को भी आयोजन में बुलाया गया था, लेकिन उसकी काली करतूत को लेकर उन्हे आशंका थी क्योंकि यह बाबा दस्यु ददुआ का करीबी था, यह बात उनके संज्ञान में आ चुकी थी.
अयोध्या, वाराणसी, विठूर, हरिद्वार, मथुरा-वृंदावन और चित्रकूट जैसे धार्मिक स्थलों के कई आश्रमों और मंहतों के नाम तो अक्सर ही विवादित छवि के कारण चर्चा में रहते हैं. कुछ समय पहले चित्रकूट के एक आश्रम में रहने वाले महंत पर भी डकैतों को संरक्षण देने का आरोप लगा था, पुलिस कार्रवाई भी हुई लेकिन बाद में मामला रफा-दफा हो गया. इसी प्रकार अयोध्या के हनुमानगढ़ी के महंत पर गोलियों व बमों से हमला किया गया. चित्रकूट में आश्रम बनाकर भगवान भक्ति में लीन स्वामी परमानंद का नाम आदर से लिया जाता था, लेकिन पिछले दिनों औरेया में उनके खिलाफ भी व्याभिचार का आरोप लगाकर जूते-चप्पल फेकें गए. यही स्वामी परमानंद साध्वी ॠतुंभरा के गुरु हैं. एक तरफ़ जहां कई साधु संतों पर आपराधिक आरोप लगे वहीं कुछ गेरुआ वस्त्रधारियों को सांप्रदायिकता भड़काने के आरोप में जेल की हवा भी खानी पड़ी. गोरखपुर के सांसद महंत योगी के ऊपर तो अक्सर ही कट्?टर हिंदूवादी होने का आरोप लगता रहा है. हिंदू रक्षा के नाम पर दबंगई दिखाने में उन्हें महारथ हासिल है. इसी के चलते उन्हें दर्जनों बार जेल भी जाना पड़ा. अभी भी उनके खिलाफ कई मुकदमे चल रहे हैं. भाजपा सांसद रहे पूर्व गृह राज्य मंत्री स्वामी चिन्मयानंद, पूर्व रेल राज्य मंत्री सतपाल जी महाराज पर भी समय-समय पर संपत्ति हड़पने, जमीनों पर कब्जा करने जैसे आरोप लगते रहे हैं.
योगगुरु के रूप में देश-विदेश में विख्यात स्वामी रामदेव तो अरबों-करोड़ों का व्यवसाय कर रहे हैं. इसी धन-संपदा के बल पर अब वह राजनीति में भी पदार्पण का मन बना चुके हैं. उनके तेवर को देखते हुए ऐसा लग रहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव में वह पार्टी बनाकर अपने प्रत्याशी भी चुनावी मैदान में उतारेंगे. जाहिर है राजनीतिक चोला पहनने पर बाबा का भगवा चोला दागदार जरूर हो जाएगा. इस हफ्ते योगगुरू बाबा रामदेव ने जगन्नाथ पुरी मंदिर में सबके प्रवेश की वकालत कर डाली. फिर क्या था, पुरी में मच गया धमाल. लोगों ने बाबा के खिलाफ जमकर नारेबाजी की, बाबा रामदेव के पुतले फुंके, उनकी गिरफ्तारी की मांग भी कर डाली. लोगों का कहना था कि मंदिर में प्रवेश के मसले पर निर्णय लेने का अधिकार पुरी के शंकराचार्य को है, न कि योग गुरू बाबा रामदेव को. गौरतलब है कि इस मंदिर में गैर-हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है. उनके बयान पर उठे विवाद से बस इतना ही स्पष्ट हो पाया है कि बाबा की स्वाभिमान पार्टी में राजनैतिक समझ-बूझ वाले कुशल प्रबंधक और रणनीतिकारों की कमी है. भले ही वे अपने बयानों से मीडिया की सुर्खियां बटोर लेते हैं. उन्हें जेड श्रेणी की सुरक्षा भी सरकार द्वारा मुहैया कराई गई है, जिससे इन पर चल रही अटकलों को और बल मिला है यानि अब नेता ही नही साधु-संत भी सुरक्षा में चाकचौबंद दिखेंगे. दो राय नहीं कि भविष्य में अब इन कथित साधु-संतो का भी नेताओं से गठजोड़ होना लगभग तय सा है. कुल मिलाकर जनता जनार्दन को तो लुटना ही है.
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