शिवराज को भारी पड़ेगी बिहारी,पंजाबी और उडिय़ा लॉबी की उपेक्षा
विनोद उपाध्याय
मध्य प्रदेश में लगातार तीसरी बार सत्ता में आने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश,उत्तर प्रदेश और राजस्थानी लॉबी के नौकरशाहों पर दाव खेल रहे हैं और उनकी इस चाल को भांपते हुए प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने उनके कुनबे के बिहारी,पंजाबी और उडिय़ा लॉबी के नौकरशाहों को अपने पाले में लाने के लिए घुसपौठ शुरू कर दी है। संभावना व्यक्त की जा रही है कि अगर शिवराज समय रहते नहीं चेते और दिग्विजयी अभियान सफल हो जाता है तो 2013 में होने वाले विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश की तस्वीर बदल सकती है।
उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश में सत्ता कांग्रेस की रही हो या भाजपा की यहां हमेशा से ही बिहारी,पंजाबी,उडिय़ा और उत्तर प्रदेश लॉबी के नौकरशाहों का राज रहा है। सत्ता के प्रति इस लॉबी का समर्पण भाव हर कोई जानता है तथा इस लॉबी के लिए यह भी प्रचारित है कि अगर इस लॉबी के नौकरशाह ठान लें तो किसी भी सरकार का बोरिया-बिस्तर बंधवा दें। शायद यह बात शिवराज नहीं जानते हैं या फिर उनके सिपहसलारों ने उन्हें इससे अनभिज्ञ रखा है,लेकिन दिग्विजय सिंह यह बखुबी जानते हैं क्योंकि दस साला शासन की कहानी नौकरशाहों से शुरू होती है और उन्हीं पर खत्म होती है। मध्य प्रदेश में कहावत भी प्रचलित है कि नौकरशाहों की जितनी परख दिग्विजय सिंह को है उतना और किसी को नहीं है। फिर भी राजनीति के इस माहिर खिलाड़ी को कुछ नौकरशाहों के प्रति अति विश्वास ले डूबा था। अपनी इस भूल का खामियाजा भुगत रहे दिग्विजय सिंह ने एक बार फिर से अपने पसंदीदा नौकरशाहों को साधना शरू कर दिया,वहीं शिवराज सिंह चौहान अपने कुछ विश्वस्त अधिकारियों के बुत्ते ही तीसरी बार सत्ता में आने का ख्वाब संजोए हुए हैं। जबकि मुख्यमंत्री के सिपहसलार अधिकारियों की सलाह का ही असर है कि यहां एक असंतुलित प्रशासनिक ढांचा काम कर रहा है जिसके कारण नौकरशाहों में गुटबाजी और असंतोष फैला हुआ है।
राज्यवार विभिन्न लॉबियों में बंटी प्रदेश की नौकरशाही में असंतोष की पहली वजह है मप्र लॉबी का सरकार में बढ़ता वर्चस्व। मप्र में संभवत पहली बार प्रशासनिक सत्ता दूसरे राज्यों के निवासी नौकरशाहों के हाथों से निकलकर मप्र में पले-बढ़े और पढ़े-लिखे नौकरशाहों के हाथों में आ रही है। अब तक प्रदेश में बिहारी, उडिय़ा, पंजाबी और उत्तर प्रदेश लॉबी का राज था और इन्हीं लॉबियों के अधिकारी सरकार के सबसे अहम पदों पर पदस्थ किए जाते थे, लेकिन लंबे समय बाद इस स्थिति में बदलाव आया है।
सरकार में टॉप टू बॉटम के ज्यादातर अहम पदों पर मप्र,राजस्थान और उत्तर प्रदेश लॉबी के अफसर जमे हुए हैं। प्रशासनिक जमावट के लिहाज से सरकार में सबसे ताकतवर माने जाने वाला मुख्यमंत्री सचिवालय इस पूरी तरह मप्र के रंग में रंगा हुआ है। इस सचिवालय पर लंबे समय से केन्द्र शासित प्रदेश से आए एक अफसर इकबाल सिंह बैंस का कब्जा का था, लेकिन अब इसकी कमान भी भोपाल के रहने वाले प्रमुख सचिव दीपक खाण्डेकर के हाथों में है। यहां पहले से जमे सचिव अनुराग जैन मूलत: ग्वालियर निवासी हैं। एक अन्य सचिव और सबसे विश्वस्त अधिकारी एसके मिश्रा भी मुख्यमंत्री के पड़ोसी जिले होशंगाबाद के हैं। हालांकि कई प्रमुख विभागों की कमान अब भी दूसरी लॉबियों के अफसरों के हाथों में हैं, लेकिन यह सरकार की मजबूरी है, क्योंकि प्रदेश में मप्र के निवासी वरिष्ठ अधिकारियों की भारी कमी है। इस कारण फील्ड में कमिश्नर-कलेक्टर जैसे अहम पदों पर मप्र के अफसरों की बिठाया गया है। 10 संभागों में से 7 में आयुक्त और 50 में से 35 जिलों में कलेक्टर मप्र के निवासी हैं।
सरकार में एक चलन और बढ़ गया है। अब पदों की महत्ता विभागों और उनके कामकाज के आधार पर आंकी जाने लगी है। अहम विभाग और कामकाज वाले पदों पर इन दिनों राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के निवासी अधिकारी जमे हुए हैं। इस जमावट में राजस्थान और उत्तरप्रदेश के निवासी अधिकारियों को पदस्थ करना सरकार की मजबूरी भी दिखाई देती है, क्योंकि मप्र के निवासी वरिष्ठ अफसर प्रदेश में काफी कम हैं। इसलिए अपर मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी ओपी रावत को उपाध्यक्ष एनवीडीए, आभा अस्थाना को कृषि उत्पादन आयुक्त, सत्य प्रकाश को वाणिज्य एवं उद्योग जैसे अहम विभाग दिए गए। मप्र के एकमात्र अपर मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी आर. परशुराम को पंचायत एवं ग्रामीण विकास की जिम्मेदारी दी गई। मप्र कैडर में प्रमुख सचिव और इससे अधिक वेतनमान के कुल 87 आईएएस अधिकारी हैं। इनमें 33 प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली में केन्द्र सरकार को अपनी सेवाएं दे रहे हैं। दो प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी अरविंद जोशी और टीनू जोशी सस्पेंड हैं। बाकी बचे 52 अधिकारियों को सरकार ने उनके कामकाज के अलावा क्षेत्रवाद के पैमाने और वरिष्ठ भाजपा नेताओं की सिफारिशों पर पदस्थ किया है। सरकार के 54 विभागों में इन्हें एडजस्ट किया गया।
मप्र के निवासी प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी जयदीप गोविंद पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण विभाग, दीपक खाण्डेकर मुख्यमंत्री सचिवालय और एसपीएस परिहार नगरीय प्रशासन एवं विकास और बालाघाट के निवासी प्रभाकर बंसोड़ नए बनाए गए लोक सेवा गारंटी जैसे अहम विभागों की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। इनमें एसपीएस परिहार मुख्यमंत्री के काफी नजदीकी हैं और पहले उनके सचिव भी रह चुके हैं।
मप्र के बाद प्रशासन में राजस्थान लॉबी का दबदबा है। प्रशासन के सबसे उच्चे ओहदे मुख्य सचिव की कुर्सी पर राजस्थान मूल के अधिकारी अवनि वैश्य बैठे हैं। जिसके कारण उनके गृह राज्य के कई अफसरों को सरकार ने तवज्जो दी है। इनमें जीपी सिंहल वित्त जैसा अहम विभाग संभाले हुए हैं। पुखराज मारू भी कुछ समय तक तकनीकी शिक्षा और प्रशिक्षण जैसे विभाग के प्रमुख सचिव थे लेकिन किसी वजह से उनसे यह विभाग छीनकर श्रम जैसा बेहद कमजोर विभाग दिया गया। सचिव स्तरीय अधिकारियों में राजस्थान लॉबी के सदस्य मनोज झालानी को राज्य शिक्षा केन्द्र आयुक्त की कुर्सी पर बैठाया गया है, जहां करोड़ों रुपए का बजट है। स्वास्थ्य आयुक्त जैसा अहम पद इसी लॉबी के सदस्य जयनारायण कंसोटिया के पास है।
उप्र के निवासी आईएएस में ओपी रावत और सत्य प्रकाश के बाद एमएम उपाध्याय, मनोज गोयल, कंचन जैन, विजया श्रीवास्तव, आलोक श्रीवास्तव, एके श्रीवास्तव, प्रभांशु कमल और विनोद सेमवाल प्रमुख सचिव हैं। इनमें से केवल एमएम उपाध्याय, विजया श्रीवास्वत, आलोक श्रीवास्तव और प्रभांशु कमल को ही मलाईदार विभाग दिए गए हैं।
बिहारी, पंजाबी और उडिय़ा लॉबी के हाल बुरे मप्र में सरकार चलाने के लिए जाने वाली बिहारी, उडिय़ा और पंजाबी लॉबी के इस सरकार में काफी बुरे हाल हैं। इस लॉबी के अधिकांश प्रमुख सचिवों को सामान्य विभागों में ही बिठाया गया है। कुछ के पास तो ऐसे विभाग हैं, जहां दिन में एक फाइल भी उनकी टेबल तक नहीं पहुंचती।
उडिय़ा लॉबी में अपर मुख्य सचिव वन एमके राय, प्रमुख सचिव गृह अशोक दास और स्वास्थ्य सचिव एसआर मोहंती को ही सरकार ने नवाजा है लेकिन इनके विभागों में सचिव और अन्य महत्वपूर्ण पदों पर मप्र के निवासी अफसरों को बिठाया गया है। गृह विभाग में सचिव चंद्रहास दुबे मूलत: खरगौन के रहने वाले हैं। एसआर मोहंती के प्रमुख सचिव पद पर प्रमोशन को रोककर उनके पर कतरे हैं लेकिन मोहंती अपनी सक्रियता और संबंधों के दम पर लाइम लाइट में बने हुए हैं। इस लॉबी के सदस्यों में कभी काफी सक्रिय रहे राजकुमार स्वाई और पीके दास क्रमश: पीएचई और श्रम आयुक्त जैसे पदों को छोडऩे के लिए लंबे समय से बेकरार हैं लेकिन वे इसमें सफल नहीं हो पा रहे।
पंजाबी लॉबी इस सरकार से पूरी तरह आउट है। लॉबी की सबसे वरिष्ठ सदस्य अपर मुख्य सचिव आईएम चहल को लंबे समय तक सरकार ने ग्रामोद्योग विभाग में पटके रखा और वे वहीं से रिटायर हो गईं। इसी लॉबी के देवराज बिरदी, सेवाराम और सुदेश कुमार पर भी सरकार कभी मेहरबान नहीं रही। बिरदी आदिम जाति अनुसूचित जाति कल्याण में समय काट रहे हैं तो सुदेश कुमार को सार्वजनिक उपक्रम जैसे हल्के विभाग दिए गए हैं। सेवाराम से कुछ समय पहले उच्च शिक्षा विभाग छीना गया और काफी समय बाद उन्हें विज्ञान-प्रौद्योगिकी, उद्यानिकी मछलीपालन जैसे विभाग देकर थोड़ी राहत दी गई।
बिहारी लॉबी में से एक मात्र केके सिंह को लोक निर्माण विभाग देकर सरकार ने तवज्जो दी जबकि एमके सिंह लंबे समय से खादी-ग्रामोद्योग में समय काट रहे हैं।
ये आईएएस हैं
मप्र के मूल निवासी केएम आचार्य, राकेश बंसल, विनय शुक्ला, प्रशांत मेहता, डीआरएस चौधरी, आर. परशुराम, अरविंद जोशी, आईएस दाणी, स्वर्णमाला रावला, अजीता वाजपेयी, स्नेहलता श्रीवास्तव, जयदीप गोविंद, रजनीश वैश्य, राधेश्याम जुलानिया, दीपक खाण्डेकर,प्रभाकर बंसोड़, एसपीएस परिहार, मनोज श्रीवास्तव, शिखा दुबे, संजय बंदोपाध्याय, अनुराग जैन, एसडी अग्रवाल, राजेश राजौरा, मलय श्रीवास्तव एसके वेद, मधु हाण्डा, पीके पाराशर, मनोज गोविल, सतीश चंद्र मिश्रा, विश्वमोहन उपाध्याय, अरुण तिवारी, एसके मिश्रा, सुधा चौधरी, पंकज अग्रवाल, केसी गुप्ता, रघुवीर श्रीवास्तव, ओमेश मूंदड़ा, प्रदीप खरे, सीमा शर्मा, अरुण पाण्डेय, वीके बाथम, वीके कटेला, नीरज मण्डलोई, हीरालाल त्रिवेदी, अंजू सिंह बघेल, एसबी सिंह, राकेश श्रीवास्तव (छग), अरुण भट्ट, संजय शुक्ला, हरिरंजन राव, मनीष रस्तोगी, चंद्रहास दुबे, एसके पॉल, अरुण कोचर, जेएस मालपानी, सूरज डामोर, सचिन सिन्हा, अशोक शिवहरे, रामकिंकर गुप्ता, डीडी अग्रवाल, राजकुमार माथुर, भरत व्यास, सुभाष जैन, डीपी अहिरवार, संजीव झा, अमित राठौर, अजातशत्रु श्रीवास्तव, विजय कुरील, राजकुमारी खन्ना, शिवानंद दुबे, पीजी गिल्लौरे, राजकुमार पाठक, जगदीश शर्मा, रामअवतार खण्डेलवाल, मनीष सिंह, राघवेन्द्र सिंह, मधु खरे, जीपी श्रीवास्तव, केके खरे, एसएन शर्मा, विनोद बघेल, गीता मिश्रा, आकाश त्रिपाठी, केपी राही, राजेन्द्र शर्मा, महेन्द्र ज्ञानी, पुष्पलता सिंह, एसएस बंसल, जीपी कबीरपंथी, आरपी मिश्रा, उर्मिला मिश्रा, अनिल यादव, शशि कर्णावत, केदार शर्मा, संतोष मिश्रा, योगेन्द्र शर्मा, रजनी उईके, शोभित जैन, विवेक पोरवाल, कवीन्द्र कियावत, एमके अग्रवाल, सुनीता त्रिपाठी, मनोहर दुबे, शिवनारायण रूपला,जयश्री कियावत, एसपीएस सलूजा, नीरज दुबे, अशोक सिंह, केसी जैन, एसएस कुमरे, नवनीत कोठारी, चतुर्भुज सिंह, बृजमोहन शर्मा, निशांत बरबड़े, लोकेश जाटव, राहुल जैन, डीएस भदौरिया, श्रीमन शुक्ला, एसके सिंह, भरत यादव, विशेष गढ़पाले।
सचिव स्तरीय पदों पर सबसे ज्यादा कब्जा प्रदेश में मप्र के निवासी वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों की कमी हैं, इस कारण सरकार नेमजबूरी में वरिष्ठ पदों पर बाहरी राज्यों के अफसरों को बैठा रखा हो लेकिन सचिव स्तरीय और इसके समकक्ष पदों पर मप्र के निवासी अफसरों का बोलबाला है। सरकार में मप्र लॉबी को किस तरह तवज्जो मिल रही है इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि विभिन्न अहम पदों पर बतौर मुखिया भले ही बाहरी राज्यों के निवासी अधिकारी हों लेकिन उनके अधीनस्थ अहम पदों पर मप्र के निवासी अफसर जमे हैं। गृह, परिवहन, किसान कल्याण एवं कृषि विकास, राजस्व मण्डल, भू-अभिलेख एवं बंदोबस्त, राजस्व, स्वास्थ्य, उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा जैसे महकमों में निचले अहम पदों मप्र के निवासी अफसर काम कर रहे हैं।
हालांकि इसमें अपवाद स्वरूप होम स्टेट के कई सचिव स्तरीय अफसर अपने ही राज्य में अब भी उपेक्षित हैं और कुछ बाहरी राज्यों के अधिकारी अच्छे पदों पर हैं। इसके पीछे इन अफसरों की व्यक्तिगत क्षमताओं और कार्यकुशलता को कारण माना जा रहा है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें