मंगलवार, 27 नवंबर 2012
अपनों ने की भाजपा की छवि तार-तार
विनोद उपाध्याय
देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी बीजेपी आज एक बार फिर दोराहे पर खड़ी है। पार्टी के भीतर मचा घमासान उसे अंदर से कमजोर किए जा रहा है। उसके अपने ही नेता उसकी छवि तार-तार करने में जुटे हैं। अनुशासित कही जाने वाली बीजेपी बेबस नजर आ रही है। अमूमन हर बड़ा नेता अपनी ढपली अपना राग अलाप रहा है। एक बार फिर जाहिर हो रहा है कि जब-जब पार्टी के पास मौका होता है सत्ता के करीब आने का, वो खुद को इससे दूर कर लेती है। लगता है जैसे पार्टी ने अपनी गलतियों से सबक नहीं सीखा है। पार्टी के बड़े नेता बयानों, चि_ियों के ऐसे-ऐसे बम फोड़ रहे हैं कि हाई कमान बेबस दिख रहा है। गौर करने वाली बात ये है कि आरएसएस की नाक के नीचे ये सब हो रहा है। किन-किन दिग्गजों ने बीजेपी को मुश्किल में डाला है देखते हैं-
राम जेठमलानी
कभी बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ चुनाव लडऩे वाले मशहूर वकील राम जेठमलानी कैसे बीजेपी सांसद बना दिए गए, इसका जवाब आज तक पार्टी की तरफ से नहीं आया। बहरहाल, वो बीजेपी में शामिल हुए और पार्टी का चेहरा भी बने। लेकिन उनके मौजूदा तेवर ने बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है। जेठमलानी ने नितिन गडकरी पर खुलकर हमले बोले। लेकिन मजबूरीवश पार्टी को शांत रहना पड़ा। लेकिन जब जेठमलानी ने सीबीआई प्रमुख की नियुक्ति के मुद्दे पर बीजेपी से अलग स्टैंड लिया तो पार्टी को उनके खिलाफ एक्शन लेने का मौका मिल गया। अब उन्हें पार्टी से सस्पेंड कर कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है।
यशवंत सिन्हा
बीजेपी के एक और वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा भी इन दिनों बगावती तेवरों में हैं। जेठमलानी की तर्ज पर उन्होंने भी नितिन गडकरी से इस्तीफा मांगा है। एनडीए शासन में वित्त मंत्री रह चुके यशवंत सिन्हा इससे पहले भी कई मुद्दों पर अपनी इतर राय दे चुके हैं। सिन्हा को हालांकि अभी तक कोई नोटिस तो जारी नहीं किया गया है, लेकिन उनके स्टैंड ने पार्टी की किरकिरी खूब कराई है।
नरेंद्र मोदी
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी पार्टी के लिए अपने अंदाज में मुश्किलें खड़ी करते रहे हैं। संजय जोशी प्रकरण में मोदी की ताकत साफ नजर आ गई थी। संजय जोशी को बीजेपी से हटाए जाने के बाद ही मोदी बीजेपी कार्यकारिणी की बैठक में नजर आए थे। मोदी बीजेपी की तरफ से पीएम पद के सबसे बड़े दावेदार हैं। पार्टी के भीतर भी उनके समर्थक बड़ी तादाद में हैं। ऐसे में उन्हें नजरअंदाज करना पार्टी के लिए बेहद मुश्किल है।
लालकृष्ण आडवाणी
पूर्व उप प्रधानमंत्री और बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे लालकृष्ण आडवाणी उन नेताओं में से हैं जिन्होंने पार्टी को बुलंदियों पर पहुंचाया। आज के दौर में वो खुद को बेहद उपेक्षित महसूस करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि कई अहम मुद्दों पर लालकृष्ण आडवाणी की राय पार्टी की राय से इतर रही है। आडवाणी के स्टैंड ने पार्टी को कई बार मुश्किल स्थिति में डाला है।
बी एस येदुरप्पा
बीजेपी के लिए एक और बड़ा खतरा बने हुए हैं कर्नाटक के प्रमुख नेता बी एस येदुरप्पा। कर्नाटक में बीजेपी को खड़ा करने में येदुरप्पा की खास भूमिका रही है। कर्नाटक में सत्ता हासिल कर बीजेपी ने पहली बार किसी दक्षिण भारत राज्य में सरकार बनाई। लेकिन कथित जमीन घोटाले और अवैध खनन के आरोप में येदुरप्पा की कुर्सी क्या गई वो बगावत पर उतर आए। येदुरप्पा लगातार कहते आ रहे हैं कि नितिन गडकरी ने उनसे वादाखिलाफी की है और इसके लिए वही जिम्मेदार हैं।
केशुभाई पटेल
बीजेपी से दशकों से जुड़े रहे और गुजरात के मुख्यमंत्री रहे केशुभाई पटेल मोदी विरोध के नाम पर पार्टी से अलग हो गए। उन्होंने गुजरात परिवर्तन पार्टी बना ली। विधानसभा चुनावों में वो मोदी और बीजेपी को चुनौती दे रहे हैं।
नितिन गडकरी
बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी ही पार्टी के लिए जाने-अनजाने में सबसे बड़ा संकट बने हुए हैं। अपनी ही पूर्ति कंपनी को लेकर गडकरी पर जिस तरह के आरोप लगे उसने पार्टी में ना सिर्फ उनकी स्थिति को कमजोर किया बल्कि, पार्टी के भीतर ही कई विरोधी सुरों को जगह दी। इससे भ्रष्टाचार को लेकर यूपीए सरकार के खिलाफ उसकी लड़ाई कमजोर हुई। हालत ये है कि अब यकीन करना मुश्किल है कि बीजेपी भ्रष्टाचार को लेकर गंभीर है भी या नहीं।
पुराने नेता भी कम नहीं
ये वो नाम हैं जो मौजूदा दौर में बीजेपी के लिए संकट बने हुए हैं। लेकिन पूर्व में पुराने नेताओं ने भी बीजेपी को मुश्किल में डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इनमें सबसे प्रमुख हैं जसवंत सिन्हा, उमा भारती और कल्याण सिंह।
जसवंत सिंह
भारत-पाक विभाजन के लिए जिम्मेदार कहे जाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना पर किताब लिखना जसवंत सिन्हा को भारी पड़ गया। इस मुद्दे पर बीजेपी की जमकर किरकिरी हुई। नतीजतन 2009 में जसवंत को बीजेपी से निकाल दिया गया। हालांकि बाद में उनकी वापसी भी हो गई।
उमा भारती
उमा भारती का वाकया भी बीजेपी के लिए भारी पड़ा। 2003 में उमा को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया। लेकिन महज 9 महीने बाद ही 23 अगस्त 2004 में उन्हें उन्हें पद से हटा दिया गया। बस फिर क्या था, उमा भारती ने लालकृष्ण आडवाणी की बैठक में सरेआम पार्टी नेताओं को ही चुनौती दे डाली। पार्टी से निकाले जाने के बाद उमा भारती ने भारतीय जनशक्ति पार्टी नाम से अपनी अलग पार्टी भी बना ली। लेकिन जून 2001 में उनकी बीजेपी में वापसी हो गई।
कल्याण सिंह
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह भी बीजेपी को कई बार दर्द देकर गए। कभी बीजेपी के हिंदुत्व का चेहरा रहे कल्याण सिंह 1999 में बीजेपी से निष्कासित कर दिए गए। जवाब में 5 जनवरी 2000 को उन्होंने जनक्रांति पार्टी बना ली। यूपी में बीजेपी को खासा नुकसान पहुंचाने के बाद 2004 में उन्होंने पार्टी में वापसी कर ली। 2007 में बीजेपी ने यूपी में कल्याण के नेतृत्व में चुनाव लड़ा लेकिन नाकामी ही हाथ लगी। 2009 में कल्याण ने फिर बीजेपी का साथ छोडा़ और मुलायम सिंह से हाथ मिला लिया। अब आलम ये है कि बाकी बागियों की तरह कल्याण की भी बीजेपी में वापसी की बाट जोह रहे हैं।
ऐसे वक्त पर जब महंगाई और भ्रष्टाचार को लेकर देश में यूपीए सरकार के खिलाफ माहौल बना हुआ है। लेकिन बजाए इन मुद्दों पर सरकार को घेरने के, बीजेपी अपने ही झगड़ों में उलझी हुई है। करप्शन के मुद्दे पर कभी आक्रामक रही बीजेपी नितिन गडकरी पर लगे आरोपों के बाद बैकफुट पर है। उसके अपने नेता ही मुसीबत का सबब बने हुए हैं। एक से निपटो तो दूसरा नेता चुनौती देता नजर आ जाता है। पार्टी विद डिफरेंस कही जाने वाली पार्टी अब पार्टी विद डिफरेंसेस नजर आने लगी है। इन तमान तथ्यों के मद्देनजर कहा जा सकता है कि 2004 से सत्ता में वापसी की आस देख रही बीजेपी के लिए दिल्ली कहीं और दूर ना चली जाए।
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