मंगलवार, 3 अप्रैल 2012
भेड़ाघाट में नर्मदा का सौंदर्य देखने उमड़ती है भीड़
मध्य प्रदेश में जबलपुर शहर के बगल में नर्मदा नदी के गोद में बसा एक जगह जहाँ घुमती सड़कें उचाइयों की तरफ बढ रही थी,पेड़ों से पटी झुरमुठ के पिछे से झांकती झाड़ियाँ,जो उस जगह के लिए किसी नवविवाहिता के द्वारा प्रयुक्त श्रिंगार प्रशाधन से कम न थी.
चारों तरफ फैली बड़ी-बड़ी चट्टानें खुद में अटल एवं आभायुक्त चरित्र को समेटे हुए थी.उन चरित्रों को उभारनें का कार्य वहाँ के शिल्पकार कर रहे थे,जो उनकी जीविका का साधन एवं आगन्तुकों के आकर्षण के केन्द्र भी थे.कलाक्रितियाँ ऐसी जो बरबस ही आगन्तुकों की भीड़ को अपनी ओर खींच रही थी.
आगे बढने पर नीचे उतरते पथरीले -संकड़े रास्ते,जहाँ सुरज की किरणें चारों तरफ व्याप्त संगमरमर के वास्तविक चरित्र के प्रदर्शन में अपना योगदान दे रही थी.नदजल की कलकल ध्वनी जो उँचाई से गिरने पर कर्णप्रिय संगित के रुप में हमारे कानों तक पहुँच रही थी तथा जल की बुंदे उँचाई से गिरने पर फुहरों में परिवर्तित हो कपासी प्रतिरुप प्रदर्शित कर रही थी.
नर्मदा एवं बैण-गंगा की सम्मिलित तेज धारा एवं गहरी खाई,जो हमारे दिल की धड़कनों को तेज कर रही थी और अनजान खतरे से आगाह भी.कुल मिलाकर एक ऐसा मनोरम जगह जो हमारे मन को आह्लादित एवं नयनों को त्रिप्ती की परकाष्ठा तक ले जा रहा था.
हम धुआंधार के सामने खड़े हैं। सामने यानी रेलिंग पर। नर्मदा यहां कोई 10-12 फीट नीचे खड्ड में गिरती है और फुहारों के साथ ऊपर उछलती है, मचलती है। गेंद की तरह टप्पा खाकर फब्वारों साथ ऊपर कूदती है । यहां नर्मदा का मनोरम सौंदर्य अपने चरम पर होता है। घंटों निहारते रहो, फिर भी मन न भरे। जल प्रपात का ऐसा नजारा शायद ही कहीं और देखने को मिले।
धुआंधार के सामने दोनों ओर कतारबद्ध संगमरमर की चटानें हैं, जो नर्मदा का रास्ता रोकती हैं। इन मार्बल राक्स की बनावट ऐसी है कि लगता है इन्हें किसी धारदार छेनी से तराशा गया हो। चट्टानों की बीच नर्मदा सिकुड़ती जाती है पर वह अपने वेग में बलखाती, इठलाती और अठखेलियां करती आगे बढ़ती जाती है। मानो कह रही हो "मुझे कोई नहीं रोक सकता।
यहां ’रोपवे’ भी हैं लेकिन मेरे बेटे ने इस पर यह कहकर जाने से मना कर दिया कि यह विकलांगों के लिए है। हम तो पैदल चलकर ही जाएंगे। यानी यह जेब ढीली करने का ही साधन है।
संझा आरती का समय है। भक्तजन नर्मदा मैया की आरती कर रहे हैं। दीया जलाकर लोग आरती कर रहे हैं और कुछ लोग नर्मदा में दीप प्रवाह कर रहे हैं। कर्तल ध्वनि के साथ आरती में बहुत से लोग शामिल हो गए हैं। आरती के पशचात प्रसाद वितरण हो रहा है।
कुछ परिक्रमावासी ’हर-हर नर्बदे’ का जयकारा कर रहे हैं। पहले लोग नर्मदा के एक छोर से दूसरे छोर तक और वापस उसी स्थान तक पैदल ही परिक्रमा करते थे। अब भी कुछ लोग करते हैं। लेकिन अब बस या ट्रेन से भी परिक्रमा करने लगे हैं।
जीवनदायिनी नर्मदा की महिमा युगों-युगों से लोग गाते आ रहे हैं। लेकिन अब नर्मदा संकट में है। बरसों से नर्मदा बचाओ की लड़ाई लड़ी जा रही है। इस पर बड़े-बड़े बांध बनाए जा रहे हैं। मैं वापस लौटते समय सोच रहा था कि क्या इस जीवनदायिनी मनोरम सौंदर्य की नदी को बचाया नहीं जा सकता?
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